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लेख
महात्मा बुद्ध ने अपने ऊपर थूके जाने पर क्रोध क्यों नहीं किया? || आचार्य प्रशांत (2018)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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प्रश्नकर्ता : मैंने एक कहानी सुनी कि महात्मा बुद्ध ध्यानावस्था में बैठे थे, उसी समय कोई व्यक्ति आता है और बार-बार बुद्ध पर थूकता है और बुद्ध पोंछते जाते हैं, बिना उस व्यक्ति से रुष्ट हुए। ऐसे ही विवेकानन्द के बारे में है कि कोई उनपर थूकता है, तो वे बार-बार नदी से स्नान करके वापस आ जाते हैं।

इस कहानी का क्या अर्थ है? क्या यही बुद्ध पुरुषों की सहनशीलता है कि कोई कुछ भी कर रहा हो, बुद्ध को उसको उत्तर नहीं देना चाहिए?

आचार्य प्रशांत : अरे अनुराग! बुद्ध व्यस्त हैं। और छोटी-मोटी व्यस्तता तो तुम भी जानते हो न? कि नहीं जानते?

तुम गये हो अपनी प्रेमिका के साथ पिक्चर देखनेऔर पॉपकॉर्न ठंडा है। तुमने ऑर्डर दिया था, मध्यांतर में। वो आधे घंटे बाद लेकर आया तुम्हारी कुर्सी पर और जो लाया वो भी ठंडा। वो तो देकर चला गया। अब तुम क्या करोगे? तुम वो डब्बा लेकर जाओगे, वहाँ उससे लड़ने? इतने में पिक्चर भी छूटेगी और प्रेमिका भी छूटेगी। ज़माने का भरोसा नहीं; वापस आओ तो गद्दी भरी हो कि पॉपकॉर्न ही रखे रहना।

बुद्ध व्यस्त हैं, वो किसी के साथ हैं। तुम्हीं ने लिखा है न कि वो ध्यानावस्था में बैठे हुए हैं। ध्यान का अर्थ होता है कि ध्येय परमात्मा है। ध्येय सत्य है, शांति है। बुद्ध परमात्मा शब्द का प्रयोग नहीं करते थे। तो, ससम्मान बुद्ध के संदर्भ में हम भी परमात्मा शब्द का प्रयोग नहीं करेंगे। हम कहेंगे कि ध्यान का ध्येय होता है—शांति। बुद्ध शांति के साथ हैं।

तुम अपनी प्रेमिका के साथ होते हो, तुम उसको नहीं छोड़ सकते। बुद्ध शांति के साथ हैं, बुद्ध कैसे छोड़ देंगे? कैसे छोड़ देंगे? बताओ न! या छोड़ देंगे?

बुद्ध में और बुल्लेशाह में बहुत अंतर मत मान लेना। ये सारा खेल ही आशिक़ी का है। बुद्ध भी आशिक़ हैं। किसके?—शांति के।

और वो थूकने वाला कोई पप्पू घूम रहा है, उसको…। क्या तुमने बात कर दी। बोलो! कि बैठे हो अपनी प्रेमिका के साथ किसी बाग में और ऊपर से कोई कौवा आ करके तुम्हारे सिर पर बीट (मलत्याग) कर गया। तुम कौवे के पीछे दौड़ोगे या बीट चुपचाप पोंछ लोगे? जवाब देना बिलकुल ईमानदारी से। क्या करोगे? बीट चुपचाप पोंछ लोगे न?

तो, ऐसे ही बुद्ध ने थूक पोंछ लिया।

अब उस दिन तुम्हारी क़िस्मत ज़्यादा ही ख़राब हो, फिर एक और कौवा आ जाए और वो भी बीट कर दे। तो, क्या अब दूसरे वाले के पीछे दौड़ोगे? तुम फिर पोंछ लोगे। तो, बुद्ध ने दोबारा पोंछ लिया।

अब कौवों ने उस दिन ठान ही रखी हो, उन्हें प्रेम ही आ गया हो तुम पर, वो अपने पीछे कबूतरों को भेज दें। अब कबूतर तुम्हें विष्ठा से नहला रहे हैं, तो क्या करोगे? कबूतरों के पीछे दौड़ोगे? भूलना नहीं बगल में कौन बैठी है। कौन बैठी है? तो, पोंछ ही तो लोगे, तो बुद्ध भी पोंछते गए।

तुम्हें ध्यान का, लगता है कुछ पता नहीं; इसलिए ऐसे सवाल पूछ रहे हो।

यही बात विवेकानन्द की है। कुछ ऐसे होते हैं लोग, जिनका ध्यान अखंड हो जाता है। अनवरत। तुम कभी भी उनको परेशान करने आओगे, वो कहेंगे—'अभी हम डार्लिंग (प्रियतम) के साथ हैं।' और वो लगातार डार्लिंग के ही साथ रहते हैं। वो तुमपर फिर बहुत ग़ौर करेंगे नहीं। कहेंगे—'तुम हो कौन? हटो यार।'

अभी यहाँ पर सत्र चल रहा है या मच्छर घूम रहे हैं इतने, ऊपर, देखो क्या है? आप एक फोटो ले करके अपने ग्रुप पर डाल दीजिए। सबको बताइए, ये सब हैं। अब हम क्या इनसे लड़ाई करेंगे? और तुम्हें क्या लग रहा है, इतने देर में खा-पचा नहीं रहे? खा-पचा हैं, तो हग भी रहे होंगे। तो, इनसे लड़ने जाएँ क्या हम? कि ऊपर से तुम क्या कर रहे हो, हमारे ऊपर गिर रहा है। और गिर तो रहा ही होगा। सूक्ष्म कणों की वर्षा तो हो ही रही है ऊपर से।

होठ मत चाट प्रसन्ने! (श्रोता से कहते हुए) कह रहा है—नमकीन है।

तो, बताओ अनुराग! तुमसे बातचीत करें या ये कीड़े-मकोड़ों को दौड़ाएँ?

अरे भाई! हम व्यस्त हैं। अध्यात्म परम व्यस्तता है। अध्यात्म परम व्यस्तता है। तुम्हें छोटी-मोटी बीवी या छोटा-मोटा शौहर भी मिल जाता है, तो उसी की माँगें इतनी होती हैं कि पूरी नहीं कर पाते हो। वही बार-बार ताने मारता है कि तुम्हारे पास हमारे लिए समय नहीं है। तुम्हारे पास हमारे लिए पैसे नहीं हैं। कोई छोटा-मोटा साथी भी तुम्हारी पूरी हस्ती को आच्छादित कर लेता है। कर लेता है न?

देखा है जिनकी नयी-नवेली शादी होती है, उनके दोस्त शिकायत करना शुरू कर देते हैं—'तू बेटा! अब बेगाना हो गया। तेरे पास हमारे लिए अब वक़्त ही नहीं है। बाहर ही नहीं निकलता तू।' और लड़कियों बेचारियों के तो अक्सर बाक़ी सब सम्बन्ध ही टूट जाते हैं। उनकी शादी हुई नहीं कि बाक़ी की सब सखी-सहेलियाँ ख़त्म। पहले ऐसा ही होता था, अब कम होता है।

जब एक साधारण इंसान भी तुम्हारे मन के आकाश पर पूरी तरह छा जाता है, तो सोचो कि जिनको सत्य और शांति और मुक्ति मिल गये, अनंतता ही मिल गयी जिनको, इतना विशाल कुछ मिल गया, उनके पास समय कहाँ बचेगा? बचेगा क्या? बोलो! तुम कहते हो—'हमें नया-नया प्यार हुआ है। दीज़ डेज़ आई एम् बिज़ी (इन दिनों मैं व्यस्त हूँ)'। यही बताते हो न? और किसको लेकर बिज़ी (व्यस्त) हो? वो कुछ नहीं, वो ऐसे ही। 'चुहिया'। उसको लेकर के तुम बिज़ी हो जाते हो? चुहिया को लेकर तुम बिज़ी हो जाते हो? चलो 'चूहा'!

और जिसको वो विराट मिल गया, वो कितना बिज़ी हो जाएगा? कितना हो जाएगा अरे! उसके पास अब साँस लेने की फ़ुर्सत नहीं। अभी गा रहे थे न, उस दिन—अभी साँस लेने की फ़ुर्सत नहीं है कि तुम मेरी बाँहों में हो"।

अभी साँस लेने की फ़ुर्सत है नहीं, यहाँ थूकने वालों से और दुनिया भर के तमाम अंडू-पंडू से कौन उलझने जाएगा? 'कौन लोग थे? अरे हटाओ!'।

अगर तुम अपनेआप को आध्यात्मिक कहते हो और फिर भी तुम्हारे पास बेवकूफ़ियों के लिए वक़्त है, तो इसका मतलब, प्रेम नहीं जानते तुम। प्रेमियों को हमेशा वक़्त की तंगी रहती है। रहनी चाहिए। नहीं तो प्रेम कहाँ है? प्रेमी तो हमेशा इधर-उधर भागता-फिरता, गिरता-पड़ता ही नज़र आएगा। कहेगा—'अरे बाप रे! ये जो मिली है जानेमन, ये कहती है—तेरा एक-एक पल चाहिए। फ़ुर्सत ही नहीं मिलती अब।'

बुद्ध का अफ़साना चल रहा है जंगल में। बात आ रही है समझ में? और प्रियतमा है—शांति। अब परेशान मत करना। सुंदर जोड़ा है। इससे प्यारा जोड़ा नहीं देखा होगा तुमने। 'बुद्ध और शांति'।

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