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लेख
क्या बुद्ध या कृष्णमूर्ति को मोक्ष आसानी से प्राप्त हो जाता है? || आचार्य प्रशांत (2016)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, बुद्ध या कृष्णमूर्ति को मोक्ष आसानी से क्यों प्राप्त हो गया?

अचार्य प्रशांत: ये प्रश्न पूछकर के कि क्या कुछ लोगों को ज़्यादा आसानी से उपलब्ध हो जाता है? कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम अपनेआप को यह सांत्वना देना चाहती हो कि जीवन तुम्हारे लिए अत्यधिक रूप से कठिन रहा है? और अतः यह ठीक ही है कि तुम वैसे ही जियो जैसे जी रही हो।

वो दूसरे लोग होंगे जिन्हें अस्तित्व ने कुछ सहूलियतें दे दी। उन्हें सुविधा थी, उन्हें शायद कोई ईश्वर प्रदत्त वरदान मिला हुआ था। शायद उनके जो पुराने कर्म थे वो बेहतर थे। बहुत इस तरह के तर्क उठ आएँगे।

मन कहता है, ‘मैं कृष्णमूर्ति थोड़े ही हूँ। देखो, कृष्णमूर्ति को तो एनी बेसेंट का सहयोग कितनी कम अवस्था में मिल गया, मुझे थोड़े ही मिला है। अरे! मैं बुद्ध थोड़े ही हूँ, बुद्ध तो राजघराने में पैदा हुए थे। अरे! मैं मीरा थोड़े ही हूँ, मीरा भी राजपुत्री थीं। मैं चूँकि ये सब नहीं हूँ, इसीलिए मैं अनन्या रह सकती हूँ।’ अब अनन्या को बदलने कि कोई ज़रूरत नहीं।

तुम्हें अपनी कहानी देखनी है और मात्र अपनी कहानी।

तुम कभी नहीं जान पाओगी कि बुद्ध के साथ क्या घटा, तुम कभी नहीं जान पाओगी कि मीरा के साथ क्या घटा। तुम यह फ़ैसला नहीं कर सकती कि उसके लिए क्या आसान था, क्या मुश्किल था।

गौतम बुद्ध के लिए पत्नी को छोड़ना कितना मुश्किल था, ये बुद्ध ही जान सकते हैं, क्योंकि बुद्ध का उनकी पत्नी से जो सम्बन्ध था वो तुम कभी नहीं जान पाओगी। एक व्यक्ति पर, एक मृत देह को देखने से जो प्रभाव पड़ता है वह प्रभाव दूसरे व्यक्ति पर नहीं पड़ेगा। तो यदि जा रही है कोई अर्थी और बुद्ध उसे देखते हैं, तो उसको देखने से उनपर क्या गुज़री? ये स्वयं बुद्ध जानते हैं, कोई और नहीं।

वो कहानी तुम तक आती है तो उस कहानी को तुम अपने परिपेक्ष में देखती हो, और फिर उसमें से अर्थ निकालती हो। इसीलिए वो कहानी बहुत दूर तक नहीं ले जानी चाहिए। उसका उपयोग सीमित है। जितना उसका उपयोग है उतना करो, उसके आगे मत ले जाओ।

हम सब अपने-अपने संसार में रहते हैं। और कठिन या आसान वो हमारे ही संसार के पैमानों द्वारा निर्धारित होता है। कभी भी तुलना करके नहीं कह सकती हो कि कुछ तुम्हारे लिए मुश्किल रहा और बगल वाले के लिए आसान रहा। उसके अपने अलग युद्ध हैं, वो दूसरे मोर्चों पर उलझा हुआ है।

तुम तो बस अपनी बात करो कि तुम्हारे लिए अभी क्या है जो सहज है? और क्या है जो दुष्कर है?

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