आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
जो बुद्ध नहीं, वो प्रयासशील रहेगा ही || आचार्य प्रशांत (2016)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
3 मिनट
113 बार पढ़ा गया

प्रश्न : आपने कहा कि कुछ प्रयास करने से कुछ नहीं होने वाला। तो मतलब अगर आध्यात्मिकता की तरफ़ कोई प्रयास नहीं किया जाये तो ज़्यादा ठीक है?

आचार्य प्रशांत : अगर कोई आध्यात्मिक प्रयास नहीं कर रहा है तो दो बातें हो सकती हैं: पहला, वो बुद्ध ही है, वो आसीत् है, कहाँ जायेगा, क्या प्रयास करे? दूसरा, वो बुद्ध नहीं है, वो वही उलझा हुआ संस्कारित मायाग्रस्त मन है।

यदि वो ऐसा है तो प्रयास करेगा ही करेगा। आप कहेंगे कि वो प्रयास करता तो है, पर आध्यात्मिक प्रयास नहीं करता। मैं आपसे कह रहा हूँ: प्रयास करना ही आध्यात्म है। हर प्रयास आध्यात्मिक प्रयास है, नाम उसे आप कुछ भी दे दो। एक आदमी प्रयास कर रहा है कि उसका घर बन जाए, एक आदमी प्रयास कर रहा है कि वो तीर्थ कर आये, इन दोनों के प्रयासों में क्या कोई मूल अंतर है? दोनों को कुछ चाहिए, दोनों बेचैन हैं, और दोनों ही ढूंढ बाहर ही रहे हैं। बस बाहर जिन पतों पर ढूंढ रहे हैं वो पते ज़रा अलग-अलग हैं।

जो बुद्ध नहीं है वो प्रयासशील तो होगा ही होगा, बस फर्क ये है कि जो आदमी तथाकथित आध्यात्मिक प्रयत्न कर रहा होता है वो अपनेआप को ज़रा श्रेष्ठ समझने लगता है। वो कहता है कि, “पड़ोसी को देखो ये दिन-रात पैसा कमाने की कोशिश में लगे रहते हैं, हम कोशिश कर रहे हैं कि नया मंदिर बन जाए। हमारी कोशिश ज़रा ऊँचे दर्ज़े की कोशिश है।”, ना! पड़ोसी को मकान का प्रयास छोड़ना होगा, तुमको मंदिर का प्रयास छोड़ना होगा। और दोनों उस प्रयास में संलग्न हो हीं तो कुछ नया नहीं करना है, बस देखना है कि तुम क्या करने के पीछे उतावले हो रहे हो। जो कुछ भी करने के पीछे उतावले हो रहे हो — सांसारिक, या आध्यात्मिक — उससे बाज़ आओ। यही सच्ची आध्यात्मिकता है।

आध्यात्मिकता , इसीलिए करने का नहीं बल्कि ठहरने का नाम है।

जो कहे कि हम आध्यात्म करने चले हैं, वो आध्यात्म नहीं कर रहा, वो कुछ और है, वो अन-आध्यात्म है। आध्यात्मिकता करने का नाम नहीं है, करते तो तुम जा ही रहे हो। मुझे बताओ कौन है जो नहीं कर रहा? क्रियाओं के नाम अलग-अलग होंगे पर क्रियाएं तो सभी कर रहे हैं ना! अब कोई बोले कि, “उसकी तो बड़ी सांसारिक क्रिया है, हमारी श्रेष्ठ क्रिया है”, तो पागलपन की बात है। क्रिया माने क्रिया। क्रिया माने कर्ता, और कर्ता से ही तो मुक्ति चाहिए। पर क्रियाओं की खूब बाजारें लगी हुई हैं। कोई ये क्रिया सिखा रहा है, कोई वो किया सिखा रहा है; कोई समर्पण क्रिया सिखा रहा है, कोई प्रदर्शन क्रिया सिखा रहा है ।

बाज़ आओ।

ना होते ये क्रिया सिखाने वाले तो?

जो तुम हो, तुम तो हो ही ना? कर के अपने तक थोड़े ही पहुँचोगे।

क्या आपको आचार्य प्रशांत की शिक्षाओं से लाभ हुआ है?
आपके योगदान से ही यह मिशन आगे बढ़ेगा।
योगदान दें
सभी लेख देखें