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लेख
इंसान
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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इंसान,

लगता है बहुत आक्रामक होते जा रहे हो तुम,

गिद्ध सी तुम्हारी पैनी नज़र

तेंदुए सा तुम्हारा हमला,

सिंह सा प्रहार,

अपराजेय तुम,

शक्तिशाली, सामर्थ्यवान ।

सिद्धांत?

मात्र दो :

सफलता का कारक बहुधा अविश्लेषित रहता है।

प्रहार करे जो प्रथम, सफल भी बहुधा वही रहता है।

अतः हे प्रहारक,

सर्वसामर्थ्यशाली जीव,

प्रणाम ।

प्रहार?

पर क्यों ?

प्रहार?

पर किस पर ?

आक्रामक ?

पर आक्रमण की आवश्यकता क्यों ?

रचनाकार की सृष्टि का प्रत्येक अंश

शत्रु प्रतीत होता है तुम्हें ?

कौन सा भाव है ह्रदय में,

जो दृष्टि में सदा संदेह ही बसाता है ?

भय किस का है मन में ?

कहीं उस का तो नहीं

जो है साक्षी तुम्हारे प्रत्येक कर्म का ?

~ प्रशान्त (अक्टूबर, १९९५)

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