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लेख
भोग-प्रौद्योगिकी, महाविनाश || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2014)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
11 मिनट
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प्रश्न: सर, जैसा कि हम सुनते हैं कि प्रौद्योगिकी के बहुत नुकसान भी हैं। तो क्या हमें प्रौद्योगिकी का प्रयोग बिल्कुल नहीं करना चाहिए और इसे यहाँ ही रोक देना चाहिए?

वक्ता: तुम बताओ बेटा, क्या करोगे। तुम्हारे सामने और कोई चारा है? और क्या करोगे तुम?

श्रोता १: तो सर क्या हमारे सामने कोई और विकल्प नहीं है क्या?

वक्ता: तुम्हारे सामने दो विकल्प हैं- अगले चालीस साल में विलुप्त हो जाओ या अपने रास्ते बदल दो। बोलो क्या करना है?

श्रोता २: सर, आज-कल प्रौद्योगिकी तो हर चीज़ में इस्तेमाल हो रही है और ये विकास के लिए भी बहुत आवश्यक है।

वक्ता: ये जो प्रौद्योगिकी इस्तेमाल हो रही है (माइक की ओर इंगित करते हुए), वो ये कहने के लिए हो रही है कि प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कम से कम करो। अगर यहाँ ऐसे लोग बैठे होते जिन्हें यह सुनने की आवश्यकता ही नहीं थी तो करना क्या है इस माइक का। यहाँ वो लोग बैठे हैं जिन्हें यह सुनने की आवश्यकता है कि प्रौद्योगिकी तुम्हारा कितना नुकसान कर रही है। अपनी जवानी में ही ख़त्म हो जाओगे। इस कारण बोलना पड़ रहा है।

एक आदमी को गोली लगती है, तो गोली ने क्या किया? – शरीर छेद दिया, और वो शरीर में जा कर के बैठ गई। उसके बाद डॉक्टर आता है, वो भी सर्जरी के अपने उपकरण ले कर के आता है। अब डॉक्टर भी शरीर को क्या कर रहा है? जैसे गोली ने शरीर को काट दिया वैसे डॉक्टर भी तो शरीर को काट ही रहा है न। क्या तुम डॉक्टर को यह तर्क दोगे – कि यदि शरीर को काटना बुरा था तो आप भी तो वही कर रहे हो। डॉक्टर क्या बिल्कुल वही काम नहीं कर रहा जो गोली ने करा था? गोली ने क्या करा था? शरीर को छेद दिया था। मांस को चीर करके अन्दर चली गयी थी। डॉक्टर भी यही करेगा, वो भी मांस को चीर करके अन्दर जाएगा। पर डॉक्टर को तुम्हारे मांस को चीर कर भीतर क्यों जाना पड़ रहा है? क्योंकि वहाँ एक गोली बैठी हुई है। नहीं तो डॉक्टर को कोई आवश्यकता नहीं थी।

अगर यहाँ पर ऐसे लोग होते जिन्हें सुनने की आवश्यकता नहीं थी तो दोपहर का समय है, मौसम अच्छा है, तो मैं भी कहीं घूमूँगा-फिरूंगा। मैं माइक का क्या करूँगा? या माइक को मैं अपने कंधे में फिट करके घूमूँगा? माइक तो छोड़ दो, हो सकता है यहाँ पाँच हज़ार लोग बैठे हों, तो मुझे और बड़ी प्रौद्योगिकी चाहिए होगी। ठीक वैसे ही जैसे अगर दो-चार गोलियां न घुसी हों, सत्तर गोलियां घुसी हों, तो डॉक्टर को सत्तर जगह छेदना पड़ेगा तुम्हें, और तुम कहोगे कि क्या डॉक्टर है! इसने मेरे सत्तर घाव किए। डॉक्टर तुम्हारे घाव नहीं कर रहा है।

श्रोता २: सर, ये तर्क तो सभी देते हैं। हम भी गाड़ियों में घूमते हैं जिनमें जीवाश्म इंधन का इस्तेमाल होता है, तो हमें भी उन गाड़ियों की ज़रूरत है, तो हम क्या करें?

वक्ता: मुझे समझाओ साफ़-साफ़ कि जीवाश्म इंधन जलाने से, मैंने कहा कि अगर अभी मैं प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर रहा हूँ तो उससे तुम्हें ये समझ में आ रहा है कि आगे और नाश नहीं करना है। अब मुझे ठीक-ठीक समझाओ कि तुमने कहा, हथियार और जीवाश्म इंधन की बात करी। मुझे बताओ कि हथियार और जीवाश्म इंधन जलाने से किस प्रकार वातावरण की सुरक्षा होती है? एक भी तर्क दे दो।

श्रोता २: तो क्या सर हम जो सब गाड़ियाँ इस्तेमाल कर रहे है हैं, वो हमें इस्तेमाल करनी बंद कर देनी चाहिए?

वक्ता: बेटा, कुतर्क पर मत आओ जल्दी से – कि क्या कर देना चाहिए। तुम पहले ये देखो कि स्थिति क्या है और उसमें तुम्हारे सामने विकल्प क्या हैं। अगर नहीं करोगे तो क्या होगा ये बता दो। तुम करो, पर अगर कर रहे हो तो फ़िर क्या होगा ये बता दो।

श्रोता ३: सर, अगर करना है तो विकल्प ढूँढने पड़ेंगे और अगर नहीं करना है तो सब ऐसे ही चलता रहेगा।

वक्ता: दोनों में से क्या चुनना चाहते हो कि तीस-साल में विनाश, सब कुछ ख़तम, या जीने का कोई और तरीका? और जीने के और तरीके हो सकते हैं। तुमने आज़माए भले ही ना हों पर हो सकते हैं। लेकिन यदि एक बार सम्पूर्ण नाश हो गया तो फिर कोई तरीका उपलब्ध नहीं रहेगा, या रहेगा?

श्रोता ३: नहीं रहेगा।

वक्ता: जीने के दूसरे तरीके तो खोजे जा सकते हैं। यदि जीवन है तो तरीके आ जाएँगे। पर यदि नाश ही हो गया, तो फ़िर कहाँ से लाओगे तरीके। लौटा के लाओ उस एक प्रजाति को भी जो तुमने अब नष्ट कर दी है। लौटा के लाओ।

तो आवश्यकता है आज कि नए तरीके खोजे जाएं।

मुझे यह बताओ कि क्यों ज़रूरी है कि हर उभरता हुआ देश उपभोग के उसी स्तर को पा लेना चाहता है जिसपर कुछ विकसित देश बैठे हैं? – जैसे की अमेरिका। क्यों ज़रूरी है कि उपभोग के उसी स्तर को पाया जाए? सपना सबका वही है, पर जानते हो अगर तुमको उसी स्तर का उपभोग करना है जिस स्तर का उपभोग एक आम अमेरिका का नागरिक करता है तो उसके लिए तुमको दस या बारह पृथ्वियाँ चाहिए। पृथ्वी पर उतने संसाधन ही नहीं हैं। एक आम अमेरिका का नागरिक जितनी बिजली इस्तेमाल करता है, जितनी गैस इस्तेमाल करता है, जीवाश्म इंधन, उतना ये पृथ्वी तुम्हें दे ही नहीं सकती। पर सपना सबका वही है।

यदि आज से बीस-साल पहले तक दफ़्तरों में बिना वातानुकूलन के काम चल जाता था, तो आज ये हमें ध्यान से देखना नहीं चाहिए कि कितना वातानुकूलन ज़रूरी है और कितना फ़ालतू ही है। पर याद रखना एक-एक एयर कंडीशनर धरती को डुबो रहा है।

एयर कंडीशनिंग बहुत ज़बरदस्त भूमिका निभा रही है ‘ग्लोबल वार्मिंग’ में।

क्या वाकई तुम्हारे लिए दूसरे देशों की यात्रा इतनी आवश्यक है? ये जो हवाई जहाज़ से यात्रा हो रही है, ये बहुत बड़ी भूमिका निभा रही है। इसका बड़ा हाथ हैं इस धरती को नष्ट करने में। हिन्दुस्तान में तुम कहीं से कहीं तक भी अगर रेलगाड़ी से जाओ तो सामान्तः एक रात में पहुँच सकते हो। हाँ, अगर तुम कश्मीर से कन्याकुमारी जा रहे हो तो बात अलग है अन्यथा अगर तुम दिल्ली से मुंबई भी जा रहे हो तो तुम एक रात के सफ़र में पहुँच जाओगे। तुम्हें क्यों हवाई जहाज़ से उड़कर जाना है? और क्या तुम हवाई जहाज़ से सिर्फ़ तब जाते हो जब बिल्कुल आपातकालीन होता है या तुमने एक शौक बना लिया है? तुमने एक वासना बना ली है?

तुम्हारे उस शौक से दुनिया तबाह हो रही है। तुम्हें देखना पड़ेगा न कि तुम्हारी ज़रूरत कहाँ तक है और तुम्हारा लालच कहाँ तक है। तुम्हारा लालच तबाह कर रहा है।

तुम्हें क्या वाकई ज़रूरत है कि एक-एक घर में चार-चार गाड़ियाँ हों। तुम जीवाश्म इंधन की बात कर रहे थे न। तुम्हें देखना पड़ेगा कि वो चार गाड़ियाँ तुम्हारी ज़रूरत थीं या तुम्हें पड़ोसी को प्रभावित करना था। बात समझ में आ रही है?

बेटा, तुम्हें एक खुशहाल जीवन देने के लिए, तुम्हारी मूलभूत ज़रूरतें पूरा करने के लिए पृथ्वी के पास है, वो कर देगी। पर तुम्हारे लालच की सीमा नहीं है। पृथ्वी तुम्हें उतना नहीं दे सकती। और तुमने पृथ्वी को नष्ट कर दिया है।

जानते हो ग्लोबल वार्मिंग को क्या कहते हैं, उसे कहते हैं पृथ्वी को बुखार हो गया है। तुमने उसके साथ ऐसा दुर्व्येव्हार कर रखा है कि उसको बुखार आ गया है। उसका तापमान बढ़ता ही जा रहा है। वो गर्म होती जा रही है। क्योंकि तुम्हारा आचरण गलत है। तुम उसका शोषण कर रहे हो। तुम जहाँ तक पैदल जा सकते हो क्या वहां तक जाने के लिए तुम्हें कार की ज़रूरत है?

अब तुम कहो कि सर ऐसे तो प्रौग्योगिकी रुक जाएगी। तुम कर क्या रहे हो उस प्रौग्योगिकी का?

बन्दर के हाथ में तलवार।

ये जो मोबाइल फ़ोन है, क्या हमें इमानदारी से अपने आप से पूछना नहीं चाहिए कि इसका कितना इस्तेमाल वाकई हमारे गहरी ज़रूरत है और कितना इस्तेमाल हमारा लालच, वासना और दुर्व्येवाहार है। ये जो इन्टरनेट और 3G सेवाएँ हैं, इनका एक बहुत बड़ा हिस्सा जानते हो किस बात में उपयोग होता है? युवा वर्ग जो है वो अश्लील फिल्में डाउनलोड करता है और उसी से ये मोबाइल कम्पनियाँ कमा रही हैं। अब तुम कहो कि सर प्रौग्योगिकी की तो बहुत ज़रूरत है। किसलिए? – ताकि तुम रात में अश्लील फिल्में देख सको? तुम कर क्या रहे हो उस प्रौग्योगिकी का? फिर तुम कहो कि सर उसके बिना तो ज़िन्दगी नहीं चल सकती, आदिवासी बन जाएं। तुम आदिवासी नहीं हो तो क्या हो? वो कर क्या रहे हो तुम। आदिवासी भी ये हरकत नहीं करता। आदिवासी तो बड़ा सुसंस्कृत होता है।

अब बैठे हुए हैं मोबाइल को लेकर और फेसबुक एक के बाद एक रिफ्रेश कर रहे हैं। ये तुम्हारी ज़रूरत है या तुम्हारे दिमाग का पागलपन है, ठीक-ठीक बताओ। और यदि न हो फेसबुक इसमें, तो क्या बिगड़ जाएगा तुम्हारा? क्या वाकई कुछ बिगड़ जाना है? पर तुम कहो कि सर प्रौद्योगिकी तो और बढ़नी चाहिए और ज़्यादा स्मार्ट फ़ोन आने चाहिए। तुम करोगे क्या उसका? और ज़्यादा तेजी से अश्लील फिल्में डाउनलोड कर लोगे और क्या करोगे। अभी पाँच मिनट की फिल्म देखते हो फिर पचास मिनट की देखोगे और क्या करोगे। फेसबुक पर अभी सिर्फ़ चित्र आते हैं फिर आवाज़ भी आएँगी। और क्या कर रहे हो?

उस प्रौद्योगिकी से तुम कर क्या रहे हो, ये बताओ न। तुम्हें क्या वाकई ज़रुरत है उस प्रौद्योगिकी की? पर उस प्रौद्योगिकी के चलते, तुम्हें क्या लगता है – इन्टरनेट है, तुम इन्टरनेट पर जो कुछ भी करते हो, मान लो तुमने इन्टरनेट पर किसी को बस ‘हाय’ बोला। तुम्हें क्या लगता है वो बस ‘हाय’ है। विज्ञान के विद्यार्थी हो, बी.टेक. कर रहे हो, तो थोड़ा जानना चाहिए तुम्हें ये सब कुछ। तुमने जो ‘हाय’ बोला, वो ‘हाय’ नहीं है, वो किसी सर्वर में जाता है। उस सर्वर में बिजली लगती है। उस बिजली को लाने के लिए कहीं कोयला जलाया जा रहा है। और जहाँ कोयला जलाया जा रहा है उससे ग्लोबल वार्मिंग हो रही है। तुम ये जो चैटिंग भी कर रहे हो न, तुम्हारी एक-एक चैटिंग से न जाने कितने पौधे, न जाने कितने जानवर मर रहे हैं।

सर्वर-फार्म्स होते हैं, नाम सुना है तुमने? बहुत बड़े क्षेत्र में फैले हुए सर्वर हैं। तुम सोचो, इतना जो डाटा रोज़ तुम पैदा करते हो, वो डाटा कहीं न कहीं जमा तो होता होगा। इतना डाटा रोज़ जो हम पैदा कर रहे हैं वो डाटा कहीं जमा होता होगा। वो जो सर्वर-फार्म है, वो इतनी गर्मी पैदा करता है कि उसे ठंडा भर करने के लिए बड़ी ऊर्जा जलानी पड़ती है। यहाँ तक हो रहा है कि बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ अपने सर्वर-फार्म्स को समुद्र के नीचे बना रही हैं कि समुद्र का पानी इसे ठंडा करेगा। पर इतना विज्ञान तो तुमने भी पड़ा है और तुम अच्छे से जानते हो कि पानी अगर किसी चीज़ को ठंडा कर रहा है तो पानी खुद क्या होगा?

श्रोता ३: गरम।

वक्ता: और ये सब क्यों हो रहा है, क्योंकि तुम रात में बैठ के बोल सको – ‘हाय, मैं बहुत सुन्दर लग रहा हूँ।’ और फिर तुम कहते हो आदिवासी हो जाएँ।

विवेक का अर्थ क्या होता है? विवेक का अर्थ होता है – कहाँ तक जाना है और कहाँ तक नहीं जाना है। समय आ गया है जब इंसान को अपनी सीमा निर्धारित करनी होगी। ‘इतना ही चाहिए, इससे ज़्यादा नहीं चाहिए मुझे’।

जो तुम्हारी मूलभूत ज़रूरतें हैं, वो तुम्हें आसानी से मिल जाएंगी। पर तुम पहले होश में आओ और ध्यान में देख कर कहो कि मुझे इतना ही चाहिए, इससे ज़्यादा मुझे नहीं चाहिए। आ रही है बात समझ में?

~ ‘शब्द योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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