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लेख
बेरोज़गार क्यों बैठे हो? || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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जब तुम अपने-आप को बेरोज़गार कहना शुरू कर देते हो, आंतरिक पतन होने लगता है। और वैसे ही पतन होने लगता है उन गृहणियों का जिनके ऊपर अब गृहस्थी की कोई खास ज़िम्मेदारी नहीं है, फिर भी वह घर पर ही बैठी हुई हैं।

मैं समझ सकता हूँ आप काम कर रहीं थी, आप गर्भवती हो गईं, दो साल, चार साल के लिए आपके लिए संभव नहीं रहा काम करना। पर आप चालीस वर्ष की हो चुकी हैं, बच्चे बड़े-बड़े हो गए हैं, वो अपनी-अपनी ज़िंदगी देख रहे हैं, और सुबह नौ बजे से शाम के आठ बजे तक वास्तव में आपके पास कोई काम नहीं है। आपका बड़ा पतन होगा, यह खाली समय आपको लील जाएगा।

मैं उन गृहणियों के बारे में नहीं कह रहा जिनके पास वास्तव में आर्थिक तंगी है और जिन्हें घर के सारे काम स्वयं करने पड़ते हैं। तो ग़लत मत समझिएगा, मैं उनके बारे में कह रहा हूँ जो नौ बजे, दस बजे के बाद खाली हो जाती हैं और शाम तक कुछ नहीं है करने को। या तो सोना है या टीवी देखना है। मैं बेरोज़गार युवाओं और ऐसी गृहणियों सबसे कह रहा हूँ “कुछ करो!”

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