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लेख
बेकार के काम न करो तो दोस्त ताना मारते हैं || आचार्य प्रशांत (2019)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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प्रश्न: प्रणाम आचार्य जी। कई दिनों से मैंने व्यर्थ की जगहों पर समय बिताना छोड़ दिया है। फ़िज़ूल की बातों से दूर रहने लगा हूँ। पुराने दोस्तों से भी बेकार की बातें भी करना छोड़ दिया है। जो भी समय मिलता है पूरी कोशिश करता हूँ कि काम में लगे। इसके चलते आजकल ताने सुनने को मिलते है:

कोई कहता है कि कितना बदल गया है, कोई और कहता है कि अब तू बिज़ी (व्यस्त) हो गया है। दोस्त कहते हैं, "दोस्ती का मतलब ही भूल गया है और कठोरता से बात करता है।“ तो अपने पर शक होने लगता है, ऐसे में कैसे पता चले कि अब सही रास्ते पर चल रहा हूँ? कृपया मार्गदर्शन करें।

आचार्य प्रशांत: सब ऐसे ही हैं तुम्हारी ज़िन्दगी में ‘रोहित(प्रश्नकर्ता)?’ कैसी ज़िन्दगी जी रहे थे? कोई ढंग का काम किया नहीं कि ताने पड़ने लगे, दोस्त दुश्मन होने लगे, फ़ब्तियाँ कसने लगे। अच्छा है! कोई और मिलेगा। दोस्त कोई अमरबेल का फूल थोड़ी ही होता है, जो कभी मुरझाएगा नहीं।

आमतौर पर हम जिनको दोस्त कहते हैं वो संसार की ही तरह अनित्य होते हैं, आवत- जावत, क्षण- भंगुर, दुनिया में कुछ है जो टिकता है? तो ये दोस्त कहाँ से टिक जाएँगे। ये भी आये दो-चार दिन महके, फूले, मदमाये और फिर झड़ गये। ये छूटेंगे तभी तो कोई बेहतर दोस्त मिलेगा न।

तुम इनको दोस्त कह भी क्यों रहे हो मुझे तो यही ताज्जुब है। फिर से पढ़ना इनके क्या-क्या लक्षण बताए हैं? प्रश्न पुन: दोहराया जाता है: “कहते हैं, कितना बदल गया है। कोई कहता है कि अब तू बिज़ी हो गया है, कोई कहता है कि दोस्ती का मतलब ही भूल गया है, कठोरता से बात करता है।“

आचार्य: ये दोस्ती की फ़िल्मी यूनिवर्सिटी (फ़िल्मी विश्वविद्यालय) है। ये सब उसके स्नातकोत्तर छात्र हैं, अब इसके बाद ये यहाँ से पीएचडी करके निकलेंगे। ये बड़ा ज्ञान रखते हैं, दोस्ती में, बता रहे हैं कि तू दोस्ती का मतलब भूल गया है, तू बदल गया है। प्रभावित भी इनसे इसीलिए हो रहे हो क्योंकि अभी बहुत हद तक इन्हीं के जैसे हो। पर इतना अपनेआप को प्रभावित होने की अनुमति मत दे देना कि इन्हीं के जैसे रहे ही आओ। दूसरा भी तुम पर प्रभाव, तुम्हारी सहमति से ही डालता है। पर चिंता मत करो, मिलेंगे लोग जो वास्तव में दोस्त कहलाने के अधिकारी हैं।

‘एक धुत्त शराबी को दूसरा नशेड़ी मिल गया, तो ये मित्रता थोड़े ही कहलाएगी— ये एक-दूसरे की क्या मदद करेंगे? ये तो अपनी मदद नहीं कर सकते। ये दूसरे को क्या कहेंगे कि तू पहले जैसा है; या बदल गया, ये तो ख़ुद को ही नहीं जानते।‘ ये सब बातें व्यर्थ की हैं ‘रोहित।’ अगर सच्ची राह चल रहे हो, दुनिया को विवेक से, जीवन को समझदारी से देखना शुरू किया है, तो आगे बढ़ते रहो, रुकना नहीं।

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