आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
आशा में
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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वह

हँसने की चाह में कितना रोता है

वह

समझता है कि

हँसा जा सकता है

हर बात पर और हमेशा

कुछ यही बात

समझाता है

वह सब को

लोग नहीं समझते

पर वह

समझाता रहता है

तब तक

जब तक

या तो लोग हँस नहीं देते

या

वह

वह रो नहीं पड़ता

फूट-फूट कर रोता है

सब के न हँसने पर

पर फिर

चुप हो जाता है

क्योंकि

उसे हँसना जो है ।

~ प्रशान्त (जून १२, १९९६) [object Object]

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