पिछले कोर्स में हमने यज्ञ का वास्तविक अर्थ जाना था। इस बार श्रीकृष्ण ने एक नई पहेली अर्जुन के सामने रख दी है। इस श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं–
''सृष्टि के आरंभ में ही ब्रह्मा ने कहा था कि यज्ञ के द्वारा ही वृद्धि को प्राप्त करोगे। यह यज्ञ ही तुम लोगों को अभीष्ट फल देगा और कामधेनुतुल्य सर्वाभीष्टप्रद होगा।''
इस श्लोक को पढ़ते ही मन में बहुत सारे प्रश्न उठते हैं जैसे –
प्रजापति मानें ब्रह्मा कौन है?
सृष्टि मानें क्या?
आरंभ मानें क्या?
वृद्धि मानें क्या?
इष्ट क्या है?
हमने सीखा था पुराने कॉर्सेस में कि बात कितनी भी लंबी चौड़ी हो वह तीन में टूट जाती है – अहम्, आत्मा और प्रकृति। क्या आप अब इस श्लोक को समझ पा रहे हैं? अगर हाँ, तो इस कोर्स में और भी गहरी बातों को समझ पाएंगे। अगर नहीं, तो यह कोर्स आपके लिए है।
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