गीत तो हम सब बहुत चाव से सुनते हैं, गुनगुनाते हैं, और उन गीतों पर कदम थिरकाने से पीछे भी नहीं हटते हैं। शादियों में, पार्टियों में या किसी भी त्योहार पर हम हर जगह गीतों का शोर ही सुन रहे होते हैं।
मगर यही गीत के बोल जब गुरु के मुख से निकलते हैं तो वह गीत भजन और सुमिरन में बदल जाते हैं। गुरु गीत के बोलों को इस तरह से समझते और समझाते हैं मानों इंसान हर क्षण बस उसकी ही तलाश कर रहा है, उसको ही पाना चाहता है। वह गीत जो शोर और वासनाओं से भरे होते थे, गुरु यह समझा देता है कि हमारा मन जाना तो वहीं चाहता है जहांँ जाने से मन सबसे ज्यादा कतराता है— परमात्मा तक।
आचार्य प्रशांत संग हम जानेंगे गीतों के गूढ़ अर्थ इस सरल से कोर्स में।
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