थोड़ी देर के लिए भूल जाइए कि आप तीस या चालीस या पचास के हैं; बच्चे हो जाइए, बिलकुल बच्चे हो जाइए। अब बच्चे का दिन बिताइए। बच्चे हो गये हैं न अब आप, तो उसका दिन बिताइए। और भूलिए नहीं वो बच्चा है, बल्कि आप बच्चे हैं। अब देखिए कि आप तक क्या-क्या पहुँच रहा है, कौन-कौनसी बीमारियाँ, और कहीं बाहर नहीं, अक्सर घर के अंदर ही।
माँ-बाप बातचीत कर रहे हैं, उनको वो बहुत साधारण बात लग सकती है, पर क्या वो बात बच्चों के लिए साधारण है?
जो बातें वर्जित होती हैं कि बच्चे सिनेमा हॉल की स्क्रीन (पर्दा) पर न देखें, बताइए क्या उससे ज़्यादा हिंसायुक्त बातें और दृश्य बच्चे अपने घर में और मोहल्ले में ही नहीं देख रहे होते?
यह कुछ सवाल अगर आपको सोचने पर मजबूर कर देते हैं तो अपनी सोच को मजबूती दीजिए इस कोर्स के संग।
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