सुंदर रूप से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित होने पर भी निजधर्म श्रेष्ठतर है। अपने धर्म के पालन में मृत्यु भी कल्याणकारी है, दूसरों का धर्म भययुक्त या हानिकारक है। 3.35
अपने धर्म में तुम आज मर भी जाओ अर्जुन, तो कोई बात नहीं’ – “स्वधर्मे निधनं श्रेयः” – ‘पर इंद्रियों के धर्म पर मत चलने लग जाना! आत्मा के धर्म पर चलते हुए मर जाओ, कोई बात नहीं, मन के धर्म पर मत चलने लग जाना! मन को अपना काम करने दो।‘
‘मन रोएगा, मन शोक करेगा। सामने द्रोण हैं, उनको जब तुम्हारा बाण लगेगा, हो नहीं सकता अर्जुन कि तुम रोओ नहीं। मन को शोक होगा, आँखों को अश्रु होंगे, बिलकुल ठीक है। मन को अधिकार है न अपना काम करने का? आँखों को भी अधिकार है न रोने का? आँखें रोएँ, गला रूँधे, वो उनका धर्म है। निभाने दो उन्हें उनका धर्म, उनके धर्म में भी तुम हस्तक्षेप मत करना; लेकिन तुम्हारा धर्म इस समय तीर की नोंक पर बैठा है, तुम अपने धर्म से भी पीछे मत हटना।‘
यह कोर्स उनके लिए जिन्हें धर्म का वास्तविक अर्थ और पौरुष का गहरा अर्थ जानना हो।
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