कर्म में आसक्त होकर अज्ञानी लोग जिस तीव्रता से कर्म करते हैं, ज्ञानी को अनासक्त रहकर जगत के कल्याण हेतु उसी तीव्रता के साथ कर्म करना चाहिए। बुराई पूरी ताक़त, पूरे अनुशासन, पूरे संकल्प, पूरी इच्छाशक्ति के साथ बेहतर से बेहतर होती जा रही है। कसाईघर, बूचड़खानें बेहतर से बेहतर होते जा रहे हैं। जिधर ज्ञान है, जिधर समर्पण है उधर लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं। ये तब भी होता था और तब भी ज्ञान देना पड़ता था कि "बेटा! वो तो पापी है और वो मोह, आसक्ति और लालच में कर्म कर रहा है, पर उसकी तेज़ी देखो, कितना तेज़ है। और तुम अपनेआपको ज्ञानी बोलते हो और अपनी शिथिलता देखो, अपना आलस देखो, अपनी अकर्मण्यता देखो।"
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