श्रीकृष्ण बार बार बताते हैं कि स्थितप्रज्ञ हो जाओ, योगी हो जाओ, और अब कह रहे हैं कि युक्त हो जाओ। आख़िर कैसा होता होगा युक्त व्यक्ति का मन? क्यों कह रहे कि अब युक्त हो जाओ? युक्त होने से कुछ लाभ भी है?
ऐसे सवाल अर्जुन के मन में भी आए होंगे। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अयुक्त व्यक्ति कैसा होता है। अयुक्त व्यक्ति कामना के पीछे पागल हो कर भागता है। संसार की ओर टकटकी लगाकर पाने की निगाहों से देखता रहता है और संसार पर ही भरोसा करता है। तो प्रश्न उठता है कि हम जिनके भरोसे हैं क्या वह इस लायक नहीं हैं कि उनपे भरोसा किया जाए?
तब श्रीकृष्ण प्रेम से अर्जुन को समझाते हैं कि निष्ठा उन पर रखो जो तुम्हारी तरह न हो।
तो क्या करें फिर कि मन शांति को प्राप्त हो जाए यह सवाल जवाब का खेल समाप्त हो। इस दो के खेल में, तुम्हारे और संसार के खेल में कैसे शांति को प्राप्त हों जब संसार रचने वाला ही अयुक्त हो, अयोग्य हो?
कृष्ण ने क्या कहा है योगी के लिए, युक्त के लिए जानेंगे इस सरल से कोर्स में।
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