आम आदमी के पास आप लेकर के जाइए — वेदान्त की, दर्शन की प्रस्थानत्रयी होती है, आम आदमी फिर कहता है, ‘रखो अपनी शुद्धता अपने घर में भाई, वो मेरे किस काम आयी? मुझे अगर मेरे तल पर आकर, मेरी भाषा में, मेरे अनुसार समझा सकते हो, तो ही बात करो।’
और उपयोगी वही हो पाएगा जो प्रसिद्ध हो पाएगा। प्रसिद्ध वही हो पाएगा जो लोगों से लोगों की भाषा में बात करेगा, जिसकी भाषा में लोगों का दर्द होगा, जो समझेगा रसोई क्या चीज़ होती है और बच्चे क्या चीज़ होते हैं और पति-पत्नी का व्यवहार क्या बात होती है और सास क्या होती है और ससुर क्या होता है।
तो इसीलिए बहुत सारी ऐसी बातें ऋषि कभी बोल ही नहीं पाते जो समाज के लिए बहुत ज़रूरी हैं। समाज जिन जगहों पर फँसा होता है, अक्सर उन जगहों का ऋषियों को पता ही नहीं होता। लेकिन आप जब संतों का भजन गाएँगे तो ये नहीं हो पाएगा कि जानते कुछ नहीं और गाते गये। भजन समझ में आता है, वो हमारी भाषा में बात करता है। उसमें हमारे बर्तनों की खटपट है, उसमें चिमटा है, कढ़ाई है, तेल है, यही तो चलता है, बाज़ार-हाट है, गन्दे कपड़े हैं, धुलाई है, ननद है, भौजाई है, वो सब वहाँ मौजूद है।
ऐसा ही आप कबीर साहब के भजन (पिया मोर जागे मैं कैसे सोई री) में पाएंगे। चलिए सुनते हैं सुंदर भजन और जानते हैं उनका अर्थ आचार्य प्रशांत संग।
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