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अर्जुन तब कहलाओगे जब एक अच्छे शिष्य बनोगे

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 48 प्रश्नोत्तरी पर आधारित
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1 घंटा 55 मिनट
हिन्दी
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पठन सामग्री
आजीवन वैधता
Contribution: ₹199 ₹500
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परिचय
लाभ
संरचना

समझने की प्रक्रिया हमेशा विनम्रता की प्रक्रिया होती है। विनम्रता के बिना बोध नहीं हो सकता, ह्यूमिलिटी के बिना लर्निंग नहीं हो सकती। वो (विनम्रता) हममें होती नहीं है, हमको बुरा और लग जाता है जब ये सिद्ध होता है कि हम गलत हैं। और आपके ऊपर इससे बड़ा अहसान कोई नहीं कर सकता कि वो आपको साबित कर दे कि आप गलत हो। लेकिन अहसान मानना तो दूर छोड़िए, हमारे भीतर से उठता है विरोध। हमको लगता है हम पर आक्रमण हुआ है, तो फिर हम प्रतिकार करते हैं, हम प्रतिघात करते हैं, हम समझाने वाले को चोट ही पहुँचा देना चाहते हैं।

कुछ अगर सीखोगे, ऊपर को उठोगे, तो जो निचली चीज़ें तुमने पकड़ रखी थीं, उनकी व्यर्थता को स्वीकार करके ही उठोगे। जिसमें ये साहस नहीं, जिसमें ये सत्यनिष्ठा नहीं, कि वो अपनी पुरानी व्यर्थताओं को व्यर्थ जाने, ईमानदारी से स्वीकारे और साहस के साथ फिर त्यागे, वो जिस निचले तल पर पड़ा है उसी पर पड़ा रह जाएगा, कुछ सीखकर कभी ऊपर नहीं उठ पाएगा।

इस कोर्स में अध्याय 2 के श्लोक संख्या 48 से संबंधित प्रश्न पूछे गए हैं। आचार्य प्रशांत संग हम सीखेंगे की सीखने की प्रक्रिया कैसी होती है।

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