जीवन कुछ ऐसा है कि वह आपको लगातार व्यस्त ही रखे है, उलझाए ही हुए है, जीवन सरिता लगातार गतिमान है। कुछ-न-कुछ नया लगातार आपके सामने आ रहा है। कोई-न-कोई चुनौती आपके सामने है। कोई पल ऐसा नहीं है जिसने आपको छुट्टी दे दी हो कि अभी कोई दायित्व नहीं, अभी कोई लंबित देयता नहीं। हमेशा कोई न कोई बात अधूरी है, कुछ न कुछ समस्या बनी ही हुई है।
आत्मज्ञान का मतलब होता है ठीक तब जब जीवन की गति चल रही है, आप इस बात के प्रति जागरूक हो जाएँ कि आप बिना उस गति को रोके भी उस गति से बाहर हो सकते हैं। प्रकृतिगत गति चलती रहती है और आप उस गति के मध्य भी शून्य और शांत हो सकते हैं। जब आप उस गतिशीलता से दूर होकर, बाहर होकर खड़े हो जाते हैं तो आपको दिखाई देने लग जाता है कि यह चल क्या रहा है। चलना माने गतिमान होना, यह ग़लती किसकी है, कौन कर रहा है, यह हरकतें कौन कर रहा है, यह काम पर किसने डाला—यह आत्मज्ञान है। आत्मबोध के प्रकाश में अपने जीवन को एक नई दिशा दीजिए, आचार्य प्रशांत के साथ इस सरल कोर्स में।
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