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Book Details
Language
hindi
Print Length
223
Description
श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान कोई शब्दिक चर्चा या सैद्धांतिक ज्ञान नहीं बल्कि रणक्षेत्र में खड़े एक योद्धा के लिए कहे गए शब्द हैं।
भगवद्गीता का जन्म किसी शान्त, मनोरम जंगल में नहीं, बल्कि कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था। अर्जुन के सामने एक तरफ़ धर्म था तो दूसरी तरफ़ नात-रिश्तेदार और गुरुजनों का मोह। बड़ा कठिन था अर्जुन के लिए निर्णय लेना।
अर्जुन कोई जीवन से विरक्त शिष्य नहीं था जो संसार का मोह त्यागकर कृष्ण के पास आया हो। वह युद्ध के मैदान में खड़ा था। उसे निर्णय करना था कि युद्ध करे कि न करे।
अर्जुन ने धर्म नहीं बल्कि मोह और स्वार्थ चुना था। कृष्ण के समक्ष एक ऐसा हठी शिष्य था जो सुनने को राज़ी नहीं था क्योंकि अर्जुन का भी मन एक साधारण मन ही था, अपनों पर बाण चलाना उसके लिए आसान नहीं था।
श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्याय कृष्ण द्वारा हठी अर्जुन को मनाने का प्रयास है।
हमारी भी स्थिति अर्जुन से अलग नहीं है। हमारे भी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जहाँ निर्णय लेना आसान नहीं होता।
यदि हमें कृष्ण का साथ नहीं मिला तो जीवन के कुरुक्षेत्र में हम हार ही जाएँगे क्योंकि कृष्ण के बिना जीत असम्भव है।
आचार्य जी की यह पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता' आपके लिए इसीलिए प्रकाशित की गई है ताकि आप अपने जीवन में कृष्ण का संग पा सकें।
Index
1. अर्जुन की निरपेक्षता (श्लोक 1.20-1.22)2. क्या कृष्ण भी पापी हुए? (श्लोक 1.36)3. पाप माने क्या? क्या मात्र स्त्रियाँ ही पापी हैं? (श्लोक 1.40-1.41)4. सत्य की फिक्र छोड़ो, तुम बस ग़लत को ठुकराते चलो (श्लोक 2.6)5. असली ब्राह्मण कौन? (2.11, 2.46)6. कृष्ण की बात हम समझ क्यों नहीं पाते? (श्लोक 2.12)
श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान कोई शब्दिक चर्चा या सैद्धांतिक ज्ञान नहीं बल्कि रणक्षेत्र में खड़े एक योद्धा के लिए कहे गए शब्द हैं।
भगवद्गीता का जन्म किसी शान्त, मनोरम जंगल में नहीं, बल्कि कुरुक्षेत्र के मैदान में हुआ था। अर्जुन के सामने एक तरफ़ धर्म था तो दूसरी तरफ़ नात-रिश्तेदार और गुरुजनों का मोह। बड़ा कठिन था अर्जुन के लिए निर्णय लेना।
अर्जुन कोई जीवन से विरक्त शिष्य नहीं था जो संसार का मोह त्यागकर कृष्ण के पास आया हो। वह युद्ध के मैदान में खड़ा था। उसे निर्णय करना था कि युद्ध करे कि न करे।
अर्जुन ने धर्म नहीं बल्कि मोह और स्वार्थ चुना था। कृष्ण के समक्ष एक ऐसा हठी शिष्य था जो सुनने को राज़ी नहीं था क्योंकि अर्जुन का भी मन एक साधारण मन ही था, अपनों पर बाण चलाना उसके लिए आसान नहीं था।
श्रीमद्भगवद्गीता के अठारह अध्याय कृष्ण द्वारा हठी अर्जुन को मनाने का प्रयास है।
हमारी भी स्थिति अर्जुन से अलग नहीं है। हमारे भी जीवन में ऐसे क्षण आते हैं जहाँ निर्णय लेना आसान नहीं होता।
यदि हमें कृष्ण का साथ नहीं मिला तो जीवन के कुरुक्षेत्र में हम हार ही जाएँगे क्योंकि कृष्ण के बिना जीत असम्भव है।
आचार्य जी की यह पुस्तक 'श्रीमद्भगवद्गीता' आपके लिए इसीलिए प्रकाशित की गई है ताकि आप अपने जीवन में कृष्ण का संग पा सकें।
Index
1. अर्जुन की निरपेक्षता (श्लोक 1.20-1.22)2. क्या कृष्ण भी पापी हुए? (श्लोक 1.36)3. पाप माने क्या? क्या मात्र स्त्रियाँ ही पापी हैं? (श्लोक 1.40-1.41)4. सत्य की फिक्र छोड़ो, तुम बस ग़लत को ठुकराते चलो (श्लोक 2.6)5. असली ब्राह्मण कौन? (2.11, 2.46)6. कृष्ण की बात हम समझ क्यों नहीं पाते? (श्लोक 2.12)