"शून्यता सप्तति" आचार्य नागार्जुन द्वारा रचित ग्रंथ है जिसमें उन्होंने महात्मा बुद्ध के शून्यता के संदेश को 73 छंदों में प्रकट किया है। आचार्य नागार्जुन न केवल एक दार्शनिक थे, बल्कि रसायनविद्, खगोलशास्त्री, और तंत्रविद्या के भी गहन ज्ञाता थे। माने मनुष्य के मन के साथ-साथ बाहरी दुनिया का भी ज्ञान रखते थे। उन्होंने तर्क को महत्व दिया, और आज भी पूरी दुनिया उन्हें सम्मान से याद करती है।
समसामयिक समय में आचार्य प्रशांत द्वारा "शून्यता सप्तति" के छंदों पर की गई व्याख्या इसी शृंखला को सहज और सरल शब्दों में आप तक पहुँचाने का एक प्रयास है। प्रस्तुत पुस्तक इस शृंखला का दूसरा भाग है जिसमें छंद 13 से छंद 23 पर आचार्य जी के व्याख्यानों को संकलित किया गया है। आचार्य प्रशांत ने प्रत्येक छंद को आज के जीवन से जोड़कर इतनी सरलता से समझाया है कि यह गहन दर्शन हर किसी के लिए सहज और उपयोगी बन जाता है। यह पुस्तक न केवल शून्यता को समझाती है, बल्कि इसे जीवन में उतारने का मार्ग भी दिखाती है।
Index
CH1
समस्या को नहीं, स्वयं को बदलो
CH2
अनुभव एक झूठ है
CH3
मान्यता: सच की विरोधी
CH4
लगता है मेरा है, पर है नहीं
CH5
जो मुक्त नहीं, वह है ही नहीं
CH6
सच के प्रेमी को दुनिया के प्रति बेवफ़ा होना पड़ता है