यूट्यूब और टिकटॉक पर गालीगलौज वायरल क्यों? || आचार्य प्रशांत (2020)

Acharya Prashant

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यूट्यूब और टिकटॉक पर गालीगलौज वायरल क्यों? || आचार्य प्रशांत (2020)

प्रश्न: आजकल यूट्यूब और आम ज़िन्दगी में गालीगलौज इतनी क्यों बढ़ गई है? कारण क्या है? अभी यूट्यूब और टिकटॉक पर पिछले कुछ दिनों से एक वीडियो वायरल हो रहा है जो गालियों से ही भरपूर है, उसमें और कोई मुद्दे की बात की नहीं गई है।

आचार्य प्रशांत: बेटा, गालियाँ एक तरह की बातचीत होती हैं - कम्युनिकेशन (संप्रेषण)। गालियाँ बढ़ गईं हैं उनको नैतिकता के ही तल पर मत देखो, गालियाँ भी बात करने का एक तरीक़ा हैं।

कई तल होते हैं बात करने के ना? दूसरे से संवाद करने के, संपर्क करने के, वार्ता करने के कई तरीक़े होते हैं। और ये तरीक़े दो चीज़ों पर निर्भर करते हैं - तुम कैसे हो, और वो दूसरा व्यक्ति कैसा है।

ऊँचे-से-ऊँचे तरीक़ा तो मौन भी बताया गया है कि - कुछ बोलो नहीं, तो भी बातचीत हो जाती है। फिर एक तरीक़ा होता है स्पर्श का, कि कई बार बस किसी को ज़रा-सा ऐसे इशारा कर दो, या छू दो इतना-सा, इतने से उसको पता चल जाता है कि कहना क्या चाहते हो। फिर एक तरीक़ा होता है भाषा का, और फिर एक तरीक़ा होता है ध्वनि का।

तो तुम किस तरीक़े से अपनी बात दूसरे तक संप्रेषित करते हो, वो इस पर निर्भर करता है कि तुम कौन हो, और दूसरे को क्या समझ रहे हो।

अब ऐसे समझो, दो उदाहरण देता हूँ। 

मान लो तुम गधे हो। अब तुम्हें किसी इंसान से कोई भी बात करनी है, तो कैसे करोगे? कोई भी बात करनी है, तो कैसे करोगे? रेंककर ही तो करोगे? - ढेंचू-ढेंचू, क्योंकि तुम्हारे पास कोई विकल्प ही नहीं है। तुम गधे को यह थोड़ी बोलोगे कि - "तू ढेंचू-ढेंचू क्यों बोल रहा है?" क्योंकि वो गधा है, उसे और कुछ आता नहीं, तो वो 'ढेंचू-ढेंचू' बोल रहा है। उसे जो कुछ भी बोलना है, वो 'ढेंचू' की ही भाषा में बोलेगा।

अब मान लो तुम इंसान हो और तुम्हें गधे से बात करनी है, तो तुम संस्कृत में करोगे? तुम इंसान हो, तुम्हें गधे से बात करनी है, तो तुम किस भाषा में करोगे? तुम्हें गधे की भाषा में ही बात करनी पड़ेगी ना? और गधे की भाषा क्या है? या तो उसे कुछ इशारा कर दो, या थपथपा दो, या एक हाथ लगा दो उसको। उससे तुम अगर शुद्ध हिंदी, अंग्रेज़ी भाषा में बात करो, तो उसे समझ में ही नहीं आएगा।

तो इसी तरीक़े से गालियाँ भी एक भाषा होती हैं।

गालियों की भाषा अगर तुम इस्तेमाल करते हो, तो दो वजह हो सकती हैं। पहली ये कि तुम इंसान ही नहीं हो, आधे जानवर हो। इंसान की एक ख़ूबी होती है - भाषा। अगर तुम्हारे पास भाषा परिपूर्ण और अच्छी है ही नहीं, तुम्हारा शब्दकोष अगर विस्तृत नहीं है, समृद्ध नहीं है, तुम्हारी वोकैबुलरी (शब्दकोष) अगर समृद्ध नहीं है, तो तुम क्या करोगे? तुम्हें कुछ भी बोलना है, तो तुम गाली दे दोगे। और क्या करोगे? जो तुम बोलना चाहते हो उसके लिए तुम्हारे पास शब्द तो हैं नहीं, तो तुम गाली देने लग जाते हो, क्योंकि तुम आधे जानवर हो।

या यह हो सकता है कि तुम जिससे बात कर रहे हो उसको साफ़ भाषा समझ में ही नहीं आती। तुमने साफ़ भाषा का प्रयोग करके देख लिया, उसको तुम्हारी बात नहीं समझ आ रही क्योंकि साफ़, और सुन्दर, और अच्छी भाषा बोल रहे हो, तो फिर तुम्हें गाली देनी पड़ जाती है, क्योंकि वो ये ही भाषा समझता है।

तो तुम अगर पाते हो कि यूट्यूब, टिकटॉक पर गाली-गलौज वाले वीडियो आजकल वायरल हो रहे हैं, तो दो वजह हो सकती हैं - जो लोग इन वीडियो में हैं या तो वो खुद गधे हैं, या तुम्हें गधा समझते हैं। क्योंकि अगर वो इंसान होते तो उनके पास शब्द होते।

जो बात शब्द से हो सकती है उसके लिए गाली क्यों देनी पड़ती है? और एक से बढ़कर एक शब्द हैं। ऑक्सफ़ोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी (शब्दकोष) में क़रीब अंग्रेज़ी के पाँच लाख शब्द हैं। लेकिन जानते हो, आम आदमी के शब्दकोष में आज से लगभग चालीस-पचास साल पहले तक तक़रीबन एक लाख शब्द हुआ करते थे? आज वो संख्या घट के करीब दस हज़ार हो गई है।

आपकी भाषा कितनी समृद्ध है इससे बहुत हद तक ये पता चलता है कि आप इंसान कितने समृद्ध हैं। आपकी भाषा कितनी ऊँची है इससे पता चलता है आप इंसान कितने ऊँचे हैं।

आज की जो जवान पीढ़ी है इसके पास शब्द ही नहीं है, इसकी पूरी वोकैबुलरी सिमट के कुल दस हज़ार शब्दों की रह गई है, अंग्रेजी में। हिंदी में भी यहीं हाल होगा, हालाँकि हिंदी में आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

तो अब ये कुछ कुछ बोलना चाहते हैं, इनके पास शब्द ही नहीं हैं। और मान लो इन्हें कोई बात बोलनी है जो क्रोध को सूचित करती है, तो क्या करेंगे? अब शब्द तो हैं नहीं, ना ही वो सोफिस्टिकेशन है, वो सूक्ष्मता है, वो बारीकी है कि मुहावरे के तौर पर कुछ बोल दें। भाषा की वो नज़ाकत भी तो नहीं है ना, कि जो बात कहना चाहते हैं वो कह भी दें, और धृष्टता  और बदतमीज़ी भी ना करनी पड़े। जानवर जैसा हाल है, तो जानवर क्या करेगा? गाली बकेगा। गधा रेंकेगा और इंसान अगर जानवर हो गया है तो गाली बकेगा, तो ये गाली बकते हैं।

ये ख़ुद भी गधे हैं, तुम्हें भी गधा समझते है। तो ये रेंकते हैं और इन्हें पूरा भरोसा है कि ये जो रेंक रहे हैं, उस रेंकने में ये जो बात कह रहे हैं, वो बात तुम्हें बखूबी समझ आ रही होगी। और इनका भरोसा तुमने सच्चा ठहरा दिया है, कैसे? वीडियो को वायरल करा के। कोई गालीगलौज करे, और तुम उसके वीडियो को वायरल कर दो, इससे क्या पता चलता है? कि तुम को गालीगलौज की भाषा ही समझ आती है, माने - वो जितना बड़ा जानवर, उतने ही बड़े जानवर तुम भी हो।

वरना तुम्हें ताज्जुब होगा ना? तुम कहते, "आप जो बात कहना चाहते हैं महानुभाव, वो बात कहने के लिए तो भाषा में दस शब्द मौजूद हैं। आप कितने जाहिल, कितने अनपढ़, कितने गंवार हो कि आपको वो शब्द ही नहीं मिले? आप कैसे आदमी हो कि उस शब्द की जगह आप बात-बात पर क्या बोलते हो, हर वाक्य में, अर्ध-विराम, पूर्ण-विराम की जगह आप एक गाली चमका देते हो?" और गालियाँ भी कुल मिला करके आठ-दस, पंद्रह-बीस हैं, वही चल रही हैं। कुछ भी बोलना हो, वही गाली।

पानी चाहिए, गाली। पानी नहीं चाहिए, तो भी गाली। किसी को अच्छा बोलना है, गाली। "तू मेरा सबसे बड़ा (कोई गाली) दोस्त है।" किसी को बुरा बोलना है, तो भी गाली। कारण ये है कि उसके पास, उस गधे, उस जानवर के पास शब्द ही नहीं हैं, उसकी मजबूरी समझो। भाई गधे को पानी चाहिए, तो भी क्या बोलेगा? - ढेंचू। और घास चाहिए तो भी क्या बोलेगा? - ढेंचू। गधे के सामने शेर आ गया और डर गया, तो भी क्या बोलेगा? और गधे को चूहा दिखाई दे रहा है तो भी क्या बोलेगा? तो इस आदमी के पास और कोई शब्द ही नहीं हैं। जो कुछ भी इसके सामने आ रहा है उसको दिए जा रहा है गाली पर गाली। और ये बिल्कुल सही कर रहा है, क्योंकि तुम इसका वीडियो वायरल कर रहे हो।

कोई लड़का गाली दे रहा हो लड़कियाँ तुरंत उसकी अर्धांगिनी बनने को तैयार बैठी हैं - "मुझे अपने घर ले चल।" कोई लड़की गाली देने लग जाए तो फिर तो पूछो ही मत। लड़के इस कदर दीवाने हो जाएँगे कि आधे तो मर जाएँ। मर जाएँ माने मर ही जाएँ, प्राण पखेरू उड़ गए। कह रहे हैं, "बस! इतनी हसीन गाली सुन ली अब ज़िन्दगी में करने को बचा क्या है? जा रहे हैं।" तो कुल मिला जुलाकर ये बताता है कि हमारी सभ्यता, हमारी चेतना, हमारी ज़िन्दगी का स्तर कितना गिरता जा रहा है।

जॉर्ज ओरवेल का उपन्यास था '1984', उसमें उन्होंने कहा था वहाँ जितने लोग हैं, वो सब हिंदी, अंग्रेज़ी, जितनी प्रचलित भाषाएँ हैं, वो सब छोड़ चुके थे, बल्कि उन पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था, उन सब भाषाओं पर। और वहाँ एक अलग ही भाषा चलती थी, जिसका नाम था 'न्यू स्पीक'। और उस भाषा में मुहावरे नहीं होते थे। ये जो आजकल के लोग हैं, इनसे पूछो, "हिंदी के मुहावरे पता हैं?" नहीं पता होंगे। तुम मुहावरा पूछोगे नहीं कि किसी गाली में जवाब दे देंगे। ये मुहावरा इन्हें पता है कुल मिला के। और जहाँ इन्होंने कहा नहीं मुहावरे के नाम पे (कोई गाली), वहाँ तुमने ताली बजाना शुरू कर दिया; लड़का है तो लड़कियों ने नाचना शुरू कर दिया कि - "आहाहा, ये कितना बोल्ड, कितना क्यूट, कितना फनी (मज़ाकिया) है।"

अरे! तुझे इसी में बोल्ड, क्यूट, फनी लग रहा है, तू फिर शादी-ब्याह भी क्यों करेगी? गालियों का ऑडियो चालू कर लिया कर। उसी से ब्याह कर ले न। वो कुछ नहीं, सुबह-श्याम बस तुम्हें गालियाँ सुनाएगा। "कितना अच्छा लगा, आहाहा क्या गालियाँ दी हैं।" मुद्दे की बात कुछ नहीं, गालियाँ-गालियाँ, और इस पर फ़िदा हो गया भारत।

और ऐसा आज नहीं हो रहा है, ये चीज़ दशकों से चल रही है, बस अब जाकर के ये चीज़ और ज़्यादा घातक रूप से विस्तृत हो गई है। इसको अक्सर कह देते हैं, "नहीं साहब, ये तो दिल्ली का कल्चर (संस्कृति) है या पंजाबी कल्चर है।" क्यों तुम पंजाब को बदनाम करते हो? और दिल्ली में और भी बहुत कुछ है, तुम्हें दिल्ली का संबंध  गालियों से ही जोड़ना था? और अभी मैं इस मुद्दे पर तो जा भी नहीं रहा कि तुम्हारी जितनी गालियाँ होती हैं, ये सब की सब औरतों का ही अपमान कर रही होती हैं। वो मुद्दा ही अलग है, उस पर जाऊँगा तो फिर और एक लंबी बात करनी पड़ेगी।

यूँ ही नहीं होता कि दो लोग आपस में बैठकर के सभ्य, सुसंकृत भाषा में बात कर रहे हों। जब दो लोग आपस में बैठ करके अच्छी, ऊँची, सुसंस्कृत भाषा में बात करते हैं, तो इसका मतलब होता है दोनों की चेतना का स्तर ऊँचा है।

अगर दो लोग बात कर रहे हों, और उसमें गालीगलौज हो रही हो, तो तीन संभावनाएँ  हो सकती हैं, तीनों में से कोई एक ज़रूर है। पहली, दोनों ज़लील हैं। दूसरी, जो सुन रहा है वो ज़लील है। तीसरी, जो बोल रहा है वो ज़लील है। तो आप अगर देख रहे हों कि आपके पास इस तरह के बहुत वीडियो आ रहे हैं जो गालियों से भरपूर हैं, तो आप देख लीजिए कौन ज़लील है।

लेकिन इतना पक्का समझिए कि - जिस समाज में लोगों की भाषा का स्तर गिरने लगता है वो समाज, वो देश सब गिरने लग जाते हैं।

आज के युवाओं की वोकैबुलरी, शब्दकोष बहुत-बहुत छोटा, महीन, लघु, संकुचित होता जा रहा है, डाइल्यूटेड होता जा रहा है - ये बहुत ख़तरे की बात है। साधारण शब्द अगर बोल दिया जाए, हिंदी का, तो वो भी लोगों को समझ में नहीं आता; अर्थ नहीं पता होते। मैंने कहा कि आज के आम हिंदुस्तानी युवा की, जो अपने आप को अंग्रेज़ी में पारंगत बोलता है, वोकैबुलरी दस हज़ार शब्दों से ज़्यादा की नहीं है अंग्रेज़ी की। मैं जिस रिसर्च (शोध) का हवाला दे रहा हूँ, वो पश्चिम में कहीं की है। वहाँ पर ही दस-बीस हज़ार शब्दों से ज़्यादा की नहीं निकली जवानों की, तो भारत में तो दस हज़ार से ज़्यादा नहीं ही निकलेगी।

हिंदी की बात करेंगे, तो स्थिति और भी ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है। हिंदी के तो शायद आम हिंदुस्तानी को, और मैं अभी उत्तर भारतीय की बात कर रहा हूँ, दो हज़ार शब्द भी ना पता हों। और शर्म भी नहीं आती, क्योंकि हिंदी का शब्द नहीं पता, तो अंग्रेज़ी का शब्द उसमें लगा देंगे। और अगर हिंदी का शब्द भी नहीं पता, अंग्रेज़ी का शब्द भी नहीं पता, तो गाली दे देंगे। गाली तो है ना? गाली आलू है, वो हर जगह चल जाती है।

जैसे कि आप मान लीजिए किसी रेस्त्रां में गए हैं, आपको कुछ मँगाना है। और जो मँगाना है, आपको उसका नाम नहीं पता, तो आप गाली दे दीजिए। वो समझ जाएगा वेटर कि ये मँगाया होगा। ये नौबत आने जा रही है कि डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन लिखेंगे, उसमें गालियाँ लिखी होंगी। क्या हो गया? दवा का नाम भूल गए, गाली लिख दो; वो तो आलू है, वो तो हर जगह चलती है।

शब्द नहीं हैं क्योंकि तुम्हारा जीवन ग़रीब है, तुम्हारी भाषा ग़रीब है। तो शब्दों की कमी को पूरा कर दो गालियों से। चेतना और दिमाग और बुद्धि के दिवालिएपन को छुपा दो गाली देकर।

और अब तो फ़िल्मी गानों में भी क़रीब-क़रीब गालियाँ आने ही लग गई हैं। पिछले कुछ सालों ऐसे कुछ गाने निकले हैं ना जो गालियों से भरे हुए थे? और हिंदी गानों में अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग तो अब आम हो गया है।

ये सब इशारे एक ही तरफ़ के हैं - इंसान का स्तर गिरता जा रहा है।

किसी ने ऐसे वीडियो बनाए तो बनाए, समाज में जानवर हमेशा से रहे हैं, लेकिन ऐसे वीडियोज़ का वायरल होना बहुत बड़े ख़तरे की निशानी है।

हमारी पूरी जवान कौम बर्बाद हो रही है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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