आचार्य प्रशांत: हम बहुत हर्षित होते हैं अगर हमारा बच्चा टीवी पर पहुँच जाए। कि देखो इसमें कितनी प्रतिभा है, यह गाना गा रहा है! और गाना क्या गा रहा है? आठ साल का है इनका सोनू और पहुँच गया टीवी पर। कौनसा गाना गा रहा है? वो टीवी पर गा रहा है 'मुन्नी बदनाम हुई...।' यह हो सकता है कि थोड़ा सा अति का उदाहरण हो। लेकिन मुझे बताओ कौनसा फ़िल्मी गाना है जो एक आठ साल के बच्चे के लिए उपयुक्त है? बता दो न कौनसा है? कौनसा है?
और वहाँ बैठे हुए हैं एक से एक संगीत शिरोमणी! वो दाद दे रहे हैं कि 'वाह, वाह, वाह! यह लड़का कल भारत का नाम रोशन करेगा। वाह!' वह बिलकुल सिर झुकाकर कह रहा है "बस आपकी कृपा रहे, अगली बार मैं 'चोली के पीछे क्या है...' तैयार करके आऊँगा।"
या नचा रहे हैं उसको, मान लो सिर्फ़ नचा रहे हैं। अब बच्ची है छोटी सी, उसको नचा रहे हैं। और नाचने में वो कौन सी अदाएँ ले रही है? कौन से स्टेप्स ? कूल्हे मटकाना, छाती हिलाना। यह बलात्कार नहीं है तो क्या है? वह आठ साल की है। और तुम उसे नचा रहे हो 'धक-धक करने लगा…' और ऑडियंस (दर्शक) में उसके माताजी-पिताजी बैठे ताली बजा रहे हैं। कैमरा जब उनकी ओर जा रहा है तो वे वेव (हाथ हिलाकर अभिवादन) कर रहे हैं, 'हमीं हैं, हमीं हैं, हमने पैदा करी है।'
ये काम सिर्फ़ टैलेंट शोज़ पर नहीं हो रहा है। ये काम मध्यम वर्ग के क़रीब-क़रीब हर घर में, हर ड्राइंग रूम में हो रहा है। 'बेटा आना अंकल को ज़रा टैलेंट दिखाना।' अब बेटा आती है और टैलेंट दिखाकर चली जाती है अंकल को। और अंकल टैलेंट देख कर काफ़ी उत्तेजित हो जाते हैं। और फिर हमें ताज्जुब होता है कि बच्चों के यौन शोषण की घटनाएँ इतनी बढ़ क्यों गई हैं। 'क्योंकि वो टैलेंटेड हैं न! माँ-बाप ने उनमें कूट-कूट कर टैलेंट भरा है न, इसलिए बढ़ गई हैं।'
आठ साल की बच्ची, सोलह साल की दीदी से प्रेरणा ले रही होगी, सीख ले रही होगी। सोलह साल की दीदी उसके दिमाग को कचरे से भरे दे रही होंगी। और सबसे ज़्यादा कचरा भरा जाता है शादी-विवाह आदि उत्सवों में। वो जो शादी का एक महीना होगा, वो लड़के और लड़की को बर्बाद करने के लिए बहुत है। अगर कोई आठ-दस साल का बच्चा एक महीने शादी वाले घर में रह ले, वो बर्बाद हो गया। शादी वाले घर में भगवद्गीता का पाठ तो होता नहीं, पर 'पाठ' वहाँ बहुत होते हैं। और एक-एक पाठ, वो बच्ची, वो बच्चा, सोख रहे होंगे बिलकुल। कोक-शास्त्र में स्नातक हो गए वो इस एक महीने में।
फिर अब तो घर-घर में नेटफ्लिक्स है। उसमें तो यह भी नहीं कि सेंसर बोर्ड बेचारा कुछ कर सकता है। या कुछ कर सकता है? अब तो सीधे घर में होती है स्ट्रीमिंग भाई। स्ट्रीम माने नदी। न जाने यह कौन सी नदी है जो हर घर में खुल रही है अब। देख तो लो उस नदी के माध्यम से आ क्या रहा है तुम्हारे घर में। और होगा क्या तुम्हारे घर का।
जो चीज़ें खुलेआम थिएटर में नहीं दिखायी जा सकतीं, वो मुझे बताया गया, मैंने देखा नहीं है — न मेरे पास अमेजन प्राइम है न नेटफ्लिक्स है, कुछ नहीं — पर मुझे बताया गया है कि वो सब कुछ चलती हैं इन सब माध्यमों पर, जो ये नये-नये आए हैं। कौन देख रहा है? आप जब देखते हैं तो क्या आप बच्चों को घर से निकाल देते हैं या किसी और कमरे में बंद कर देते हैं, कहिए? और आप तो जब देख रहे होते हैं तो आप टीवी के साथ इतने एक हो जाते हैं कि आपको पता ही नहीं होता कि आप टीवी को देख रहे हैं, आपके बगल में आपका बच्चा भी है, वह भी वही सबकुछ देख रहा है। आप बच्चों को न भी नचाएँ अश्लील गानों पर, तो भी वो गाने आप तो सुन ही रहे हैं न अपने घरों में। सुन तो रहे ही हैं।
वो जो स्पीकर से आवाज़ निकल रही है वो बस आपके कानों तक जा रही है? घर में बच्चे भी हैं। वो नहीं सुन रहे हैं?
आपको तो बड़ा आनंद आ रहा है सुनने में, 'जुस्तजू जिसकी थी उसको तो न पाया हमने।' वो बच्चा भी कुछ सीख ग्रहण कर रहा है। और सीख से पूरा भर जाएगा, पूरा।
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