वेदव्यास - महाभारत के रचयिता || महाभारत पर

Acharya Prashant

8 min
419 reads
वेदव्यास -  महाभारत के रचयिता || महाभारत पर

प्रश्नकर्ता: प्रणाम, आचार्य जी। व्यास ही रचयिता हैं महाभारत के और महाभारत के एक पात्र भी हैं, इसका क्या मतलब है?

आचार्य प्रशांत: इसका मतलब यह है कि कुछ सीखो। जिन्हें वेदव्यास कहते हो तुम, कृष्णद्वैपायन उनका नाम था, भीष्म के भाई लगे वो। तो एक तो महाभारत में उनका यह स्थान है कि वो भीष्म के भाई हैं। शांतनु और सत्यवती का विवाह हुआ था, उससे पहले ही सत्यवती को महर्षि पाराशर के द्वारा एक पुत्र मिला हुआ था, जिसका नाम था कृष्ण, कृष्णद्वैपायन—साँवले रंग का था, तो नाम कृष्ण रख दिया था—तो इस नाते वो भीष्म के भाई हैं। भीष्म के भी भाई हैं, और फिर सत्यवती से शांतनु को जो दो बेटे हुए, चित्रांगद और विचित्रवीर्य, उनके भी भाई हैं।

तो एक तो उनका ये स्थान, हलका-फुलका स्थान नहीं है, पितामह के भाई हैं तो वो भी पितामह ही हुए, और फिर उनका काम आगे भी है। चित्रांगद युद्ध में मारे गए, विचित्रवीर्य बीमार होकर चल बसे, अब सत्यवती का अर्थात् शांतनु का वंश कौन बढ़ाएगा? अब कहने को तो भीष्म भी सत्यवती के बेटे ही हुए, लेकिन सत्यवती ने तो ख़ुद ही उन्हें प्रतिज्ञा दिला दी थी, क्या? कि आजीवन अब वो कुँवारे ही रहेंगे। तो माँ है और एक बेटा है, और दूसरे बेटे की बहू है घर में, यही तीन बचे हैं। माँ कौन? सत्यवती। बेटा कौन? भीष्म। और बहू बैठी हुई है एक।

फिर माँ को याद आया अपना वो बेटा जो विवाह से पहले का है, उसका क्या नाम? वेदव्यास। वेदव्यास क्यों बोलते हैं उनको? क्योंकि वेद पहले चार हिस्सों में विभक्त नहीं थे, तो व्यास ऋषि ने वेदों का जो पूरा साहित्य था, जो सारी ऋचाएँ थीं, उनको चार हिस्सों में बाँटा ताकि पढ़ने में सुविधा हो जाए, ताकि उनको आत्मसात करना थोड़ा और सरल हो जाए, तो इसलिए वो वेदव्यास कहलाए।

तो फिर माँ को अपना वो पहला, वो सबसे बड़ा बेटा याद आया। तो सत्यवती ने बुलावा भेजा कि “आओ, बेटा। तुम्हारे छोटे भाई की पत्नी घर में बैठी हुई है और वंश चलाने वाला कोई नहीं। आकर के गर्भ दो इसको।“ तो वेदव्यास आए—वैसे तो ऋषि हैं, पर उन दिनों में ये चलता था—तो वेदव्यास आए और फिर जो रानियाँ थीं, उनको एक-एक बेटा दिया। एक दासी भी कहीं से लपेटे में आ गई, उसको भी एक बेटा दे दिया, उसी बेटे का नाम फिर पड़ा विदुर। तो वेदव्यास इस हद तक इस पूरी कहानी में सम्मिलित हैं। वास्तव में ये पूरी कहानी वेदव्यास के खानदान की है, क्योंकि धृतराष्ट्र, पाण्डु, सब किसके बेटे हुए?

श्रोता: वेदव्यास के।

आचार्य: ये वेदव्यास के बेटे हुए। तो ये सारी जो कहानी है, ये वेदव्यास के खानदान की कहानी है। हम कहते ये हैं कि ये राजा भरत की कहानी है, तो बोलते हैं ‘महाभारत’, पर ये वास्तव में वेदव्यास के खानदान की कहानी है। इस हद तक गुत्थमगुत्था हैं इस कहानी में वेदव्यास।

और अब समझो पते की बात, सीख लो। सीख ये है कि जो आदमी इस हद तक इस कहानी में लिप्त है, उसमें इतना साक्षी भाव भी है कि इस पूरी कहानी को जस-का-तस कह पा रहा है। भीष्म का तो वास्तव में खानदान नहीं था, भीष्म तो ताऊ थे, ये सब उनके बेटे नहीं थे, भीष्म तात थे बस। वेदव्यास तो पिता हैं, और पिता होते हुए भी उन्होंने कहा, “आया था, माँ सत्यवती, तूने कहा मेरी बहुओं को पुत्र प्रदान करो, मैंने पुत्र दिया। और अब मैं चला जंगल। मुझे तुम्हारे महल से, और राजनीति से और घरौंदे से कोई लेना-देना नहीं।"

तो एक तरफ़ ये वेदव्यास हैं, जिनका अपना पूरा खानदान है, जिनका कह सकते हो कि खून दौड़ता है धृतराष्ट्र की और पाण्डु की रगों में; दुर्योधन भी उन्हीं का बेटा है और अर्जुन भी उन्हीं का बेटा है। तो वास्तव में ये जो लड़ाई हो रही है, ये वेदव्यास के बच्चों की आपसी लड़ाई है। और वेदव्यास निर्लिप्त हैं, उन्होंने कहा, “माँ, तूने एक काम के लिए बुलाया था, मैं जंगल छोड़कर आया, तीन बेटे दिए तुमको, मैं जंगल चला। मेरे पास बहुत बड़ा काम है, बहुत बड़ा उपक्रम है, बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है मेरे पास। और क्या काम है मेरे पास? मैं चार वेद तैयार कर रहा हूँ, ये छोटा काम है?”

उन्होंने कहा, “तुमने थोड़ी देर को सहायता माँगी, मैं आ गया। पर ये सब मेरा काम नहीं है कि महलों में रहूँ और बच्चे बड़ा करूँ, ये सब मेरा काम नहीं है। तुम्हें बच्चे चाहिए थे, मैंने दे दिए, अब मैं जा रहा हूँ, तुम पालती-पोसती रहो। मैं जा रहा हूँ, मैं अपना काम करूँगा।“

कृष्णद्वैपायन को वेदव्यास होना है, व्यास को महर्षि व्यास होना है; वही स्वभाव है उसका, वो चला जाएगा। वहाँ वो अपना काम कर रहा है, वहाँ पर वो वेदों की पूजा में, सत्य की आराधना में हैं, और यहाँ ये पूरा परिवार आपस में सिर फुटौवल कर रहा है; इसको तो करना ही है, और क्या करेगा? जहाँ परिवार, वहाँ जूतम-पैजार। चल रही है महाभारत, और इस पूरी महाभारत के वेदव्यास मात्र दृष्टा हैं, मात्र साक्षी हैं।

इशारा समझना, जो वेदों के साथ रहेगा, वो हर महाभारत का साक्षी हो जाएगा। चल रही होगी बहुत बड़ी महाभारत, व्यास साक्षी मात्र रहेंगे, जबकि व्यास जानते हैं कि ये जो पूरी महाभारत है, ये उन्हीं के कुनबे की है, उन्हीं के बच्चों की है। व्यास कह रहे हैं, “हमें कोई लेना-देना नहीं। हम हाल बता देंगे, हम लिख तो देंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियों को सबक मिले, लेकिन हम जाएँगे नहीं बीच में लिप्त होने, शामिल होने; इस पूरी बेवकूफ़ी में हम शुमार नहीं होने वाले। किसी ने मदद माँगी थी तो हम आ गए, बस इतना ही काम था हमारा। मदद दे दी, अब हम वापस जा रहे हैं, अब अपना झमेला तुम ख़ुद सँभालो।" बात समझ रहे हो?

जो वेदों के साथ है, वो हर महाभारत का दृष्टा हो जाता है। इसी को तुम कहते हो कि व्यास ऋषि बैठे हैं और अपनी दिव्य दृष्टि से महाभारत की पूरी घटना देख रहे हैं और लिखते जा रहे हैं बात, और लिखते जा रहे हैं, और लिखते जा रहे हैं। और युद्ध भर का नहीं लिखा, उन्होंने सब कुछ लिखा है, शुरू से लेकर अंत तक। बड़ी-से-बड़ी लड़ाई का, बड़े-से-बड़े संघर्ष का, अपने ही कुनबे के संघर्ष का। अपने ही घर की सिर फुटौवल का साक्षी वो हो जाएगा जिसको वेदों की संगति मिल गयी। और जिसके पास वेदों की संगति नहीं, उसको सज़ा ये मिलेगी कि वो साक्षी नहीं होगा, वो लिप्त रहेगा। अब तुम देख लो तुम्हें क्या चाहिए, साक्षित्व या सहभागिता।

बड़ा अच्छा लगता कि वेदव्यास इधर-से-उधर दौड़ रहे हैं। भाई, पोता है। दुर्योधन कौन हुआ उनका? पोता। और अर्जुन भी कौन हुआ उनका? और इस पोते के पास जा रहे हैं, उस पोते के पास जा रहे हैं, कह रहे हैं, “देखो, तुम दोनों मेरा ही रक्त हो, कृपा करके न लड़ो।“ उन्हें कोई मतलब नहीं।

भूलना मत कि महाभारत तुम्हें कौरवों-पांडवों ने नहीं दी है, महाभारत तुम्हें वेदव्यास ने दी है, और ये भी याद रखना कि श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत ग्रंथ का ही एक अंश है। वेदव्यास सिर्फ़ महाभारत के ही रचयिता नहीं हैं, गीता का भी संकलन उन्होंने ही किया है। न होते वेदव्यास तो गीता भी तुम तक नहीं पहुँचती। समझ में आ रही है बात?

और व्यास अगर व्यास होते तो भी गीता नहीं पहुँचती तुम तक। व्यास अगर व्यास ही होते, व्यास अगर कृष्णद्वैपायन ही होते, तो भी गीता नहीं पहुँचती; वेदव्यास थे, इसलिए गीता पहुँची तुम तक। प्रस्थानत्रयी में गीता को वही स्थान दिया गया है जो उपनिषदों का है, और उपनिषद् माने वेद, वेदों के ही अंग हैं उपनिषद्। तो ये कोई संयोग भर नहीं है कि जिसने तुम्हें वेद दिए, उसी से तुम्हें गीता भी मिली। पचड़ों-झमेलों से दूर रहना हो तो जाओ गीता की शरण में, जाओ उपनिषदों की शरण में।

वेदव्यास को याद रखो—इतनी बड़ी महाभारत और वेदव्यास उससे असंपृक्त।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories