वैराग्य क्या है? || आचार्य प्रशांत (2013)

Acharya Prashant

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वैराग्य क्या है? || आचार्य प्रशांत (2013)

वक्ता : आप राग और वैराग्य की बात कर रहे थे न। राग, वैराग्य का विपरीत नहीं है। राग का अर्थ होता है – अटैचमेंट (आसक्ति), आकर्षण। वैराग्य का मतलब नॉन-अटैचमेंट (अनासक्ति) नहीं है। वैराग्य का अर्थ है अटैचमेंट (आसक्ति) और अटैचमेंट (आसक्ति) के ऑपोज़िट (विपरीत) – दोनों से बियॉन्डनेस (परे)। समझ रहे हो? अटैचमेंट (आसक्ति), अटैचमेंट (आसक्ति) का ऑपोज़िट (विपरीत) क्या होता है? हम दो ही चीजें जानते हैं – या तो अटैचमेंट (आसक्ति) जानते हैं या अटैचमेंट (आसक्ति) के बाद हम इन्डिफ़रेंस (उदासीनता) जानते हैं या इन्डिफ़रेंस (उदासीनता) के बाद हम हेट्रेड (घृणा) जानते हैं।

तो मन जो है वो तीन ही अवस्थाओं में रहता है:

  1. या तो किसी ऑब्जेक्ट (वस्तु) के प्रति आकर्षित रहता है।
  2. या फिर उसे भूले हुए रहता है कि अभी उसका मुझे कुछ पता ही नहीं है।
  3. या फिर उससे घृणा करता है।

वैराग्य का मतलब है तीनों से एक ट्रांस्सेन्डेंस (श्रेष्ठता), बियॉन्डनेस (परे)। वैराग्य का मतलब यह नहीं है कि आप अटैचमेंट (आसक्ति) से इन्डिफ़रेंस (उदासीनता) पर चले गए। या यह मतलब नहीं है कि पहले आप अटैच्ड (जुड़े हुए) थे अब आप उससे दूर भाग रहे हो। आ रही है बात? वैराग्य या संन्यास गंदे शब्द इसीलिए बन गए हैं क्यूंकि उनका अर्थ यह लिया जाता है कि – भई पहले आप अच्छे कपड़ों के प्रति आकर्षित थे, अब आप अच्छे कपड़ों से दूर भागते हो। वैराग्य का यह सब कोई मतलब नहीं है।

राग का ऑपोज़िट (विपरीत) है ही नहीं वैराग्य। वो एक ही प्लेन (तल) पर नहीं है तो ऑपोज़िट (विपरीत) होने का सवाल ही नहीं पैदा होता। वैराग्य डुएलिटी (द्वैत) का शब्द नहीं है। वैराग्य वैसा ही शब्द है जैसे ट्रुथ (सत्य), फ्रीडम (आज़ादी) या लव (प्रेम)। उसका कोई डुअल (द्वैत) ऑपोज़िट (विपरीत) होता नहीं है। वो बियॉन्डनेस (परे) है एक।

(श्रोता को संबोधित करते हुए) पहली चीज़ जो इन्होनें बोली थी, तुमने क्या बोली थी, आख़िरी बात जो इन्होनें कही थी, कि सन्यासी अगर नाच नहीं रहा है तो सन्यासी है नहीं वो। कहा था न कि शिवलिंग नहीं होनी चाहिए, संकुचित मत हो जाना। अगर आप मस्त नहीं दिखाई दे रहे हो तो कुछ न कुछ भूल हो रही है।

मस्ती बड़ी ज़रूरी है, बड़ी सरल मस्ती।

आपको अगर नॉलेज (ज्ञान) ने, लर्निंग (अधिगम) ने, रीडिंग (पाठ) ने , हियरिंग (श्रवण) ने, इन सब चीज़ों ने सीरियस (गंभीर) जैसा कुछ बना दिया है, मुँह उतरा हुआ है, जीवन में एनर्जी (ऊर्जा) नहीं है, तो बड़ी दिक्कत की बात है। एक चीज़ मुझे पक्की है – मरा हुआ, मुर्दा इंसान, किसी के काम का नहीं होता अपने भी काम का नहीं होता। एक अच्छा शरीर, बढ़िया, एक शार्प (तेज़) मन, जो जब कैल्कुलेट (गणना) भी करे तो बड़ी तेज़ी से कर ले। यही है वैराग्य।

या यह कह लो कि यह वैराग्य की शर्त है, प्री-रेक्वीज़िट (पूर्व अपेक्षित), इसके बिना नहीं हो सकता। और एक आउटरेजियस (एक उच्छृंखल जीवन) ज़िन्दगी। आउटरेजियस (एक उच्छृंखल जीवन) ज़िन्दगी। मैं डीविएन्ट (पथभ्रष्ट) नहीं कह रहा। मैं छोटे-मोटे बाय-पास (उपमार्ग) लेने की बात नहीं कर रहा। मैं यह नहीं कह रहा कि सीधे चल रहे थे, १५ डिग्री (मात्रा) मुड़ गए। रहे लेकिन X-Y प्लेन (एक्स-वाइ आयाम) में ही। मैं आउटरेजियस (एक उच्छृंखल जीवन) ज़िन्दगी की बात कर रहा हूँ कि सीधे चल रहे थे X-Y प्लेन (एक्स-वाइ आयाम) में और पर्पेंडिकुलर (सीधा) Z एक्सिस (ज़ैड धुरी) में लाँच (प्रक्षेपण) हो गए। आउटरेजियस (एक उच्छृंखल जीवन), यह क्या हो रहा है। यह है वैराग्य।

श्रोता १: लिव हार्डकोर (कट्टर होकर जीना) का भी यही मतलब होता है न?

वक्ता: लिव हार्डकोर (कट्टर होकर जीना)! छोटा-मोटा नहीं कि सब गाड़ी में चलते हैं, हमने बस में चलना शुरू कर दिया। कदम छोटे-छोटे ही होंगे। इसमें उल्टा मत सुन लेना। यह नहीं कहा जा रहा है कि एक कदम में ही.., हर कदम छोटा ही होता है। लाइक अ लाॅयन (शेर के जैसे), लाइक एन एम्परर (सम्राट के जैसे )। आउटरेजिअस (एक उच्छृंखल जीवन)। बड़ी मज़ेदार चीज़ पढ़ रहा था। तुम्हें पता है सिक्खों को यह पाँच जो होते हैं, पाँच कतार, यह क्यों दिए गए थे? गोविन्द सिंह, जो आखिरी गुरु थे, उनसे पहले के कोई गुरु थे, एक्ज़ैक्ट्ली (ठीक-ठीक) कौन से थे अभी नहीं याद आ रहा, जब वो मरे मुघलों के हाथों, तो इतना डर था कि…

श्रोता २: एंड (अंतिम) समय पर कोई आया नहीं।

वक्ता: हाँ…! कि उनके अंतिम समय पर कोई आया नहीं उनसे मिलने या उनकी लाश को जलाने। क्रिया-कर्म करने भी कोई आया नहीं। लोगों को डर था कि पहचान लिए जाएँगे। क्या डर था? कि पहचान लिए जाएँगे। अगर मैं आ रहा हूँ इनके पास तो मैं भी इनके साथ का हूँ। गोविन्द सिंह ने कहा, ‘मैं तुम्हें छुपने ही नहीं दूंगा, मैं तुम्हें ऐसा कर दूँगा कि तुम छुप ही ना पाओ।’ यह चाल अपने साथ खेल लो। ऐसे हो जाओ कि छुप ही न सको। तुम्हारे साथ अभी दिक्कत यह है न कि तुम ऐसे हो कि सबके जैसे दिखते हो। तो सब सोच लेते हैं कि उन्हीं के जैसे हो। फिर इसीलिए तुम पर दबाव पड़ते हैं दस तरीके के। ऐसे हो जाओ कि छुप ही न सको। कम्पलसरी (अनिवार्य) वैराग्य। अब मन चाहे भी कि वैरागी नहीं होना है, तब भी होना ही पड़ेगा। यह एक टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) है। यह जो पगड़ी है, यह एक टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) है। बड़ी ज़बरदस्त टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) है कि छुपाओगे कहाँ? कैसे छुपाओगे? कहाँ? कितना छुपा लोगे? दिखाई दे जाएगी। कहाँ छुपाओगे कड़े को और कहाँ छुपाओगे दाढ़ी को?

श्रोता २: पर उसका उल्टा भी हो सकता है न कि मुझे ऐसा लगे कि मुझे मारा जा रहा है?

वक्ता: वो तो कुछ भी हो सकता है। हर टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) एक ख़ास तरह की परिस्थिति के लिए बनाई जाती है। वो परिस्थिति अगर बदल गई है तो वो टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) वेस्ट (खराब) हो जाएगी। हर टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) एक परिस्थिति के लिए बनाई जाती है। यह जो पंखा है, यह एक टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) है जो किस परिस्थिति के लिए बनाई गई है?

श्रोता ३: गर्मी के लिए।

वक्ता: गर्मी के लिए। तुम इसको जाड़े में चला दोगे, तो मरोगे। हर टेक्नोलॉजी (प्रौद्योगिकी) सिर्फ़ एक विशेष परिस्थिति में एप्लिकेबल (उपयुक्त) होती है

ऐसे हो जाओ कि छुप ही ना सको। कोई आएगा ही नहीं परेशान करने।

जब से कुर्ता पहना है, ट्रेन में सोने में सहूलियत हो गयी है। टी.टी. आइडेंटिटी प्रूफ ही नहीं माँगता। (टिकट देखने वाला पहचान पत्र ही नहीं मांगता) नहीं आप रहने दो। (हँसते हुए) आप रहने दीजिये। ठीक है। वाकई बता रहा हूँ। आएगा सबसे चेक करेगा, दो-चार बार देखा है, नहीं रहने दीजिये, आप रहने दीजिये। आप बैठे हुए हो वहाँ पर और खोल कर के किताब पढ़ रहे हो। वहीं, संवाद से आ रहे हो, कुर्ता धारण कर रखा है, और तुम्हारे कोच (बगि का डब्बा) वाले कोशिश भी नहीं करते गॉसिप (गपशप) करने की तुम्हारे साथ कि शक्ल पर ही लिखा है कि नहीं करेगा। अब तुम ऐसे जा कर बैठ जाओ, तो तुम्हारे साथ गॉसिप (गपशप) नहीं करेंगे तो क्या करेंगे? हूँ तुम्हीं में से एक। आओ! कर लो जो आपस में करते हो, मेरे साथ कर लो। मुझसे कौन करेगा गॉसिप (गपशप)?

(हँसते हुए) कौन करेगा? कोई नहीं करता।

~ ‘शब्द योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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