ISRO की हर उपलब्धि पर सभी देशवासी ख़ुशी से झूम उठते हैं। लेकिन बधाइयों के सैलाब में, और ढोल-नगाड़ों के बीच, आपने ध्यान दिया?
सारे परीक्षण जिस जगह पर होते हैं, उसे कहते हैं "सतीश धवन स्पेस सेंटर "।
ये 'सतीश धवन' जी कौन हैं? उनका क्या योगदान होगा ISRO की यात्रा में, जो उनके नाम पर इतनी महत्वपूर्ण जगह को नाम रखा गया?
आज 25 सितंबर को उनका जन्मदिन है। चलिए, आज आपको उनसे मिलवाते हैं:
🔸 पढ़ाई से उनका प्रेम: गणित और भौतिकी में BA, अंग्रेज़ी साहित्य में MA, मैकेनिकल में B.Tech और एयरोनाटिक्स व गणित में PhD। ये सूची देखकर सब हैरान हो जाते हैं। उनके सहकर्मी बताते हैं कि कैसे बड़े-से-बड़े तकनीकी दस्तावेज़ों में भी, वे अंग्रेज़ी की कोई गलती बर्दाश्त नहीं करते थे। भाषा से उन्हें उतना ही प्रेम था जितना विज्ञान से।
🔸 उनकी बदौलत भारत अंतरिक्ष में पहुँचा: कोई भी वाहन या विमान कितनी गति पकड़ेगा, और उसे कैसे बढ़ाया जाए, इसमें काम आती है "fluid dynamics"। वे इस विषय के विश्वभर में शीर्ष वैज्ञानिक माने जाते हैं। भारत में इस क्षेत्र में शोध की शुरुआत उन्होंने ही की थी। ये कहना गलत नहीं होगा कि उनके शोध की बदौलत ही भारत ने इतने कम समय में अंतरिक्ष में पहुँचा।
🔸 स्पेस प्रोग्राम की कमान सम्भाली: वर्ष 1971 में श्री विक्रम साराभाई की अचानक मृत्यु हो गई। स्पेस प्रोग्राम अधर में लटक गया, ऐसे में श्री सतीश धवन ने स्पेस प्रोग्राम का नेतृत्व किया। साराभाई जी के काम को एकत्रित किया, व ISRO में अहम बदलाव किए। पूरे तंत्र को नौकरशाही से दूर रखा, जिससे वैज्ञानिकों का पूरा ध्यान शोध में लगे। और सरकारी पाबंदियों का कोई दुष्प्रभाव वैज्ञानिकों पर ना पहुँचें।
🔸 ISRO को बंगलौर लाए: जब उन्होंने ISRO का नेतृत्व सम्भाला, तो वे पहले ही IISc-बंगलौर निर्देशक थे। उन्हें पहले ही बंगलौर शोध संस्थानों के लिए एक सम्यक जगह लगती थी। और देश के शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों (IISc, NAL, HAL, BEL) के पहले से वहाँ होने से, ISRO को सहायता मिल सकती है। उनके इस निर्णय का लाभ ISRO को आज भी मिल रहा है।
🔸 'आर्यभट' व 'PSLV' के निर्माण में अहम भूमिका: आज पूरी दुनिया भारत की 'सैटेलाइट लॉनचिंग तकनीक की वाहवाही करती है। वे सतीश धवन ही थे जिन्होंने बीच मिशन में नेतृत्व सम्भालते हुए भारत की पहली सैटेलाइट 'आर्यभट' को उसकी कक्षा तक पहुँचाया। साथ ही, PSLV के शुरुआती डिज़ाइन पर भी काम किया। जिसके कारण पूरी दुनिया ISRO का लोहा मानती है।
🔸 विज्ञान हर देशवासी के लिए होना चाहिए: ISRO के शुरुआती दिनों में ही उन्होंने ये बात पूरे संस्थान के रग-रग में घोल दी। 'आर्यभट' की सफलता के बाद उन्होंने 'भास्कर' सैटेलाइट प्रोजेक्ट की शुरुआत की। 'रिमोट सेंसिंग' जैसी जटिल तकनीक कैसे देश के गरीब किसान की मौसम से जुड़ी दिक्कतों का समाधान कर सकती है - ये बात 1970 में वैज्ञानिक भी नहीं समझते थे। उन्होंने ये बारीकियाँ सरकारों को समझाई और ऐसे दूरदर्शी प्रोजेक्ट्स को सीमित संसाधनों में सफल भी बनाया।
🔸 महान वैज्ञानिक, और उच्च कोटि के प्रबंधक: वे 1962 से 1981 तक IISc के निर्देशक रहे, 1972 से 2002 तक ISRO के चेयरमैन रहे, व 1972 से 2002 तक भारतीय स्पेस कमीशन के चेयरमैन भी रहे। इसके अतिरिक्त अन्य कई संस्थानों में उन्होंने समय-समय पर अहम भूमिका निभाई।
🔸 श्री एपीजे अब्दुल कलाम का सुनाया क़िस्सा: अब्दुल कलाम जी ने अपने करियर के शुरुआती दिनों में सतीश धवन जी के अधीन काम किया था। वे बताते थे कि किस तरह ISRO की असफलताओं में सतीश धवन जी सबसे आगे आकर ज़िम्मेदारी लेते थे, और सफल परीक्षणों के वक्त पीछे रहकर संस्थान के अन्य सदस्यों को बढ़ावा देते थे।
3 जनवरी 2002 को उनका देहांत हुआ। वे तब 82 वर्ष के थे, आख़िरी समय तक वे सभी पदों पर कार्यरत रहें।