उत्साहित, उमंगित जीवन कैसा? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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उत्साहित, उमंगित जीवन कैसा? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

आचार्य प्रशांत: जो एक पैशनेट लाइफ़ होती है न, वो एक *पर्टिकुलर एक्ट तक ही पैशनेट नहीं होती; वो पैशनेट लाइफ़ ही होती है।

तुम्हें ड्रम बजाना अच्छा लगता है, तुम कितने घंटे ड्रम बजा सकते हो? दिन में कितने घंटे ड्रम बजा सकते हो, चार-पाँच? और दिन कितने घंटे का होता है?

प्रश्नकर्ता: चौबीस घंटे का।

आचार्य: चलो आठ घंटे सो लिये, तब भी बचे दस घंटे जब ड्रम नहीं बजा रहे हो। और तुम कह रहे हो कि मेरा सारा पैशन (जुनून) तो ड्रम बजाने में है। तो बाकी दस घंटे तुम्हारी ज़िन्दगी कैसी हो जाएगी? बोरिंग (उबाऊ), फ्रस्ट्रेटिंग (निराश)।

पैशनेट (जुनूनी) लाइफ़ (जीवन) होती है; पैशनेट एक्ट (कार्य) नहीं होते। पैशनेट इंटरेस्ट (रूचि) नहीं होते। आप ये नहीं कह सकते हो कि मुझे सिर्फ़ ये करने में ही मज़ा आता है।

मेरी बात समझ रहे हो, मैं क्या कहना चाहता हूँ?

जब लाइफ़ पैशनेट होती है तो आप कहते हो कि मैं जो भी कर रहा हूँ उसे पूरे तरीक़े से करूँगा। और ज़िन्दगी बहुत बड़ी है, उसमें हर काम के लिए जगह है।

एक शब्द होता है पौलीमैथ पौलीमैथ का अर्थ होता है कि एक ऐसा बंदा जो एक से ज़्यादा फ़ील्ड्स (क्षेत्र) में एक्सीलेंट (उत्कृष्ट) हो। लिओनार्डो दा विंची का नाम सुना है? वो मैथमैटिशियन (गणितज्ञ) था, पेंटर (चित्रकार) था, आर्किटेक्ट था, साइंटिस्ट (वैज्ञानिक) था, रिलिजन (धर्म) जानता था, ऑथर (लेखक) था, कोई ऐसा काम नहीं था जो वो नहीं करता था। और तुम कह रहे हो, 'मैं इंजीनियरिंग (अभियांत्रिकी) और पेंटिंग एक साथ कैसे करूँ? या इंजीनियरिंग और म्यूज़िक (संगीत) एक साथ कैसे करूँ?'

रवीन्द्रनाथ टैगोर को तुम सिर्फ़ इसलिए जानते हो क्योंकि गीतांजलि लिखी और नोबेल (पुरस्कार) पा गये। तुम्हें ये नहीं पता कि शांतिनिकेतन के अकाउंटेंट (मुनीम) भी थे ख़ुद ही वो। अब यह सोचना ही बड़ा मुश्किल है कि पोएट (कवि), जो अपनी दुनिया में खोया रहता है, वो डेली (प्रतिदिन) का हिसाब-किताब भी लिखता है — दो रूपया यहाँ दिया, पाँच पैसे इधर दिये!

ज़िन्दगी एक काम तक ही थोड़ी सीमित है कि मैं सिर्फ़ ड्रम बजाता हूँ तो ड्रम बजाने में ही मेरा सारा पैशन है। बहुत कुछ करा जा सकता है। हम अपना समय ख़राब करते रहते हैं, नहीं तो दिन बहुत लंबा है। दिन में एक नहीं, अनेक कामों के लिए जगह है। पर हम वह जगह निकाल नहीं पाते।

बहुत सारे लोग हैं, मैं और नाम भी बता सकता हूँ, तुम उनकी ज़िन्दगीयों में जाओगे तुम हैरान हो जाओगे। तुम कहोगे, ‘अरे!’। तुम आइंस्टीन को सिर्फ़ इतना ही जानते हो — स्पेशल और जनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी । क्या तुमको पता हैं कि आइंस्टीन एक बहुत अच्छे पियानो प्लेयर भी थे? क्या तुमको पता हैं कि जब इज़राइल बना, तो इज़राइल का पहला प्रेसिडेंट (राष्ट्रपति) बनने का ऑफ़र(मौका) भी आइंस्टीन को था? क्या तुमको पता है कि आइंस्टीन पॉलिटिकली (राजनैतिक) भी एक्टिव थे? अब तुम इमेजिन कर सकते हो क्या कि जिसने तुमको E=mc2 (भौतिक का सिद्धांत) दिया, वो पॉलिटिशियन भी है? और तुम कहते हो कि मैं इंजीनियरिंग और म्यूज़िक एक साथ कैसे कर लूँ। अरे, वो आदमी साइंस (विज्ञान) और पॉलिटिक्स (राजनीति) एक साथ कर रहा है, तुम इंजीनियरिंग और म्यूज़िक के साथ नहीं कर सकते?

आइंस्टीन, जर्मन जीउ (यहूदी) थे। फॉर पॉलिटिकल रीज़न्स ही लेफ्ट जर्मनी (कुछ राजनैतिक कारणवश उन्होने जर्मनी छोड़ दिया)।

कहा जाता है, ज़िन्दगी उसी ने जी, समझना बेटा, जिसने एक ज़िन्दगी में हज़ार ज़िन्दगीयाँ जी ली। इसी को इम्मोर्टालिटी भी कहते हैं, इसी को कहते हैं अमर हो जाना। ज़्यादातर लोग एक ज़िन्दगी में एक ज़िन्दगी जीते हैं इसलिए उनकी उम्र सिर्फ़ सत्तर साल होती है, फिर वह मर जाते हैं। कुछ लोग होते हैं जो सात हज़ार साल जीते हैं। तुमने किसी को देखा है कभी सात हज़ार साल जीते? नहीं देखा न? मैं बताता हूँ सात हज़ार साल कैसे जिया जाता है, इम्मोर्टल (अमर) कैसे हुआ जाता है। एक ज़िन्दगी में सौ ज़िन्दगीयाँ जियो, सत्तर-सत्तर साल की, तुम सात हज़ार साल जिए। एक ज़िन्दगी में सौ ज़िन्दगीयाँ जियो न — मैं दोस्त भी हूँ, मैं बाइकर भी हूँ, मैं माउंटेन क्लाइम्बर (पर्वतारोही) भी हूँ, मैं फ्लोरिस्ट (फूलवाला) भी हूँ, मैं कूक (रसोइया) भी हूँ, मैं साइंटिस्ट भी हूँ, मैं टेक्नोलॉजीस्ट भी हूँ और मैं सबकुछ एक साथ हूँ। मैं एक साथ सौ ज़िन्दगीयाँ जी रहा हूँ। इसका अर्थ यह हुआ कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूँ, उसीमें पूरे तरीके से हूँ। मैं हर पल को पूरा-पूरा जी रहा हूँ।

मैं यह नहीं कह रहा कि सिर्फ़ यही काम ही मेरी रुचि का है, बाकी तो जीवन बेकार है। बाकी सब बोरिंग हैं। न! तब मज़ा हैं ज़िन्दगी का।

मैं जब फुटबॉल के मैदान में हूँ, तो मैं रोनाल्डो हूँ; मैं अगर क्लास रूम (कक्षा) में हूँ, तो मैं सिर्फ़ स्टूडेंट (विद्यार्थी) हूँ; मैं जब जाकर के अपने लिए ब्रेड भी टोस्ट कर रहा हूँ, तो मैं एक एक्सपर्ट शेफ़ (जानकार रसोइया) हूँ; जब डेट पर हूँ, मैं लवर (प्रेमी) हूँ; जब मैं बाइक चला रहा हूँ, मैं सिर्फ़ बाइकर हूँ। अब आप बहुत कुछ हो और एक साथ हो और एक ही ज़िन्दगी में हो। आपकी कोई एक सीमित आइडेंटिटी (पहचान) नहीं है जिसने आपको रोक रखा है। आप पूरे फ़ैल गए।

पर हमें उल्टा पढ़ाया गया है। हमें क्या पढ़ाया गया है? कि पढ़ोगे-लिखोगे तो बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो बनोगे खराब। हमें कहा गया है कि नहीं एक काम करो और दुसरे काम को मत करो।

मैं तुमसे कह रहा हूँ कि सब कुछ करो और सबकुछ डूब कर करो। सबकुछ का मतलब यह नहीं है कि जो नहीं भी करना है, उसमें कूद गए। बहुत कुछ दिनभर करते ही हो न? किसी भी काम को छोटा मत समझो। जो भी कर रहे हो उसको पूरी तरह से करो। टीवी देख रहे हो तो उसको फिर पूरी तरह ही देखो। ऐसा नहीं हैं कि टीवी भी देख रहे हो और इधर फ़ोन पर भी लगे हुए हो। मूवी देखने गए हो, सिर्फ़ मूवी देखो, बी एन एक्सपर्ट मूवी वाचर (एक विशेषज्ञ फिल्म दर्शक बनें)। तुम्हारी एक्सपर्टीज़ (विशेषज्ञता) किसमें है भई? मेरी एक्सपर्टीज़ मूवी देखने में है। उनकी एक्सपर्टीज़ होगी मूवी बनाने में, हमारी एक्सपर्टीज़ हैं मूवी देखने में। और यह कोई छोटा काम नहीं हैं। कोई यह दावा न करे कि जो मूवी बनाता है वही बड़ी आदमी है। हम भी उतने ही बडे आदमी है। हम मूवी देखते हैं। तुम मूवी ध्यान से बनाते हो, तुम पूरी जान लगाकर मूवी बनाते हो और हम पूरी जान लगाकर मूवी देखते हैं। यह भी बहुत बड़ी एक्सपर्टीज़ है, टू बी एन आर्ट कनौज़ियर, टू बी एन आर्ट कनौज़ियर

एज़ फार एज़ मनी गोज़, डैट वाज़ पार्ट ऑफ़ योर क्वेश्चन। सी मनी कम्स। मनी इज़ मोर ऑफ़ अ मेंटल ओब्स्ट्रक्शन, देन अ रियल कंसर्न । हमको अक्सर ऐसा लगता है कि पैसा बहुत बड़ी चीज़ है। पैसा महत्नवपूर्ण है। पैसा न हो तो तुम यहाँ नहीं बैठे होगे, और मैं यहाँ नहीं बैठा होऊंगा, बात बिलकुल ठीक है। पैसा न हो तो लाइटें जलनी बंद हो जाएँगी। बात ठीक है।

लेकिन पैसा इतना भी महत्त्वपूर्ण और इतना भी मुश्किल नहीं है जितना हम उसको बनाए रखते हैं। मैंने देखा है कि फ़र्स्ट इयर (पहली साल) के स्टूडेंट होते हैं, वे अभी से सोच रहे होते हैं, प्लेसमेंट कैसा होगा। यार इतनी भी औकात नहीं है पैसे की कि तुम इतना भी उसके लिए परेशान हो जाओ। ठीक है, ज़रूरी है पैसा, पर इतना ही ज़रूरी है कि आदमी का काम चलता रहे। पैसा लेकर के मरना थोड़े ही है साथ में। ज़्यादातर लोग क्या करते हैं, खूब सारा पैसा कमातें हैं और जब बहुत सारा इकठ्ठा हो जाता है, तो क्या करते हैं? मर जाते हैं। तुम देखो न, ज़्यादातर लोगों के कमाए पैसे का हश्र क्या होता है। आप कमाते जाते हो, कमाते जाते हो, पैसा बढ़ता जाता है, बढ़ता जा रहा है। और जब बिल्कुल पीक पर पहुँच गया है, तो आप क्या करते हो?

श्रोतागण: मर जाते हैं।

आचार्य: अब उस पैसे का क्या होगा? और आपने जो ज़िन्दगी लगाई है वो पैसा कमाने के लिए, उस ज़िन्दगी का क्या हुआ? मैं बहुत सारा खाना बनाऊँ, बहुत सारा खाना बनाऊँ और जब खाना खाने का टाइम(समय) आये तो मैं मर जाऊँ। तो मैंने जितना खाना बनाया, वो क्या हुआ?

श्रोतागण: वेस्ट (व्यर्थ)।

आचार्य: तो ज़्यादातर लोगों की ज़िन्दगी क्या होती है?

श्रोतागण: वेस्ट

आचार्य: क्योंकि इतना सारा पैसा तुमने इकठ्ठा तो करा। तो एक नियम समझ लो — एक भी रुपया छोड़कर मत मरना। मरते-मरते एक रुपया भी बचाओ तो उसको! अरे यार, इस एक रुपया को कमाने में जो ज़िन्दगी लगी थी, वो ख़राब थोड़े ही जानी चाहिए। और बात मज़ाक की नहीं है, मज़ाक से आगे जा रही है यह बात।

तो तुम्हें खाने भरके लिए जितना पैसा चाहिए, मैं जमा करने के लिए नहीं कह रहा हूँ। जमा करने की तो कोई सीमा ही नहीं है। लोग जमा करते जाते हैं, करते जाते हैं, करते जाते हैं। पर तुम्हें अपने मस्त रहने के लिए, ठीक से ज़िन्दगी बिताने के लिए जितना पैसा चाहिए, वो पैसा बहुत ज़्यादा नहीं है। वह तुम्हें मिल जाएगा। उसके लिए तुम इतना परेशान क्यों होते हो?

ईमानदारी से पूछो, ठीक-ठाक ज़िन्दगी जीने के लिए कि तुम मौज में रह सको, तुम्हें कितना चाहिए यार? हाँ अगर तुम्हें कलेक्ट करना है तो फिर तो कोई सीमा नहीं है, तुम्हें कितना भी चाहिए। पर अगर तुम्हें सिर्फ़ मौज में जीना हैं, तो उतना तुम्हें आराम से मिल जायगा, उसके लिए परेशान क्यों हो रहे हो? वो तो कुछ भी करके मिल जाएगा। हमें परेशानी इस बात की नहीं होती है कि जीएंगे कैसे। तुम ध्यान से देखना, हमें परेशानी इस बात की होती है कि पैसा इकठ्ठा कहाँ से हो और दूसरों को दिखायें कैसे।

जब मेरा प्लेसमेंट चल रहा था, आईआईएम की बात है, अहमदाबाद की, तो वो आज से दस साल पहले था, इकोनॉमी (अर्थव्यवस्था) के लिए बहुत अच्छे दिन नहीं थे। ‘9/11’ हुआ था। फर्म्स, हायरिंग पर नहीं जा रही थी ज़्यादा। और आप (आईआईएम) अहमदाबाद आए हो, तो आपको लगता है, आपको तो क्या लगता है, घरवालों को ज़्यादा लगता है कि कम-से-कम इतने लाख़ का तो पैकेज लगेगा ही लगेगा। अब मज़े की बात, जो कुछ मार्केट(बाज़ार) में अफ़वाह होती है कि इतने की नौकरियाँ लगती हैं और ऐसा होता है वैसा होता है, असलियत हमेशा उस से अलग होती है। वो सब बातें ज़्यादातर सिर्फ़ बताने की, सुनाने की होती है। उतने पैकेज होते नहीं। पहले भी नहीं होते और उन दिनों तो दिन खराब चल रहे थे तो और भी कम थे। तो अब ये साहब है मेरे साथ, बैचमेट है, इनकी नौकरी लगी हैं, पाँच लाख़ का इनका पैकेज है। तो ये घर फ़ोन करेंगे बताएँगे, “पापा आठ लाख की लग गई।“ मैं कह रहा हूँ “भई, क्यों बता रहा है यह तू?” बोलता है, “अरे दिल टूट जाएगा बाप का। कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि मुझे मिल कितना रहा हैं, ये बताना ज़रूरी है कि आठ लाख मिल रहा है।“ मैंने कहा, “अच्छा ठीक है।“

मोबाइल उन दिनों नए-नए स्टूडेंट के पास आने शुरू हुए थे, कम ही रहते थे। और अब अगले दिन यह फिर मेरे साथ चल रहा है तो उसके मामा के लड़के का फ़ोन आता है। वो बोलता है, “क्या भईया मरवा रहे हो।“ वह बोलता है, “क्या हुआ?” बोलता है, “मैं फ़लाना कोर्स करना चाहता था, पापा मेरे पीछे पड़ गए है कि एम.बी.ए करो।“ वह बोलता है, “तो इस में मैं क्यों मरवा रहा हूँ?” यह इसके मामा के लड़के का फ़ोन है। बोलता है, “मैंने कैसे मरवा दिया?” वह बोलता है, ‘कल आपने पापा को बताया था न कि आपकी बारह लाख़ की जॉब लग गई है।“

इसको गुस्सा आई, “मैंने बारह लाख कब बोला?” तो उसने अपने पापा को फ़ोन मिलाया। बोलता है, “आठ बोला था न आपको?” ये बोल रहे हैं, “पप्पू कसम से, मैंने तेरे मामा को दस बोला था। उसने अपने बेटे को बारह बताया।“

तो पैसे का ये खेल चलता है। तुम पाँच का आठ करते हो, पापा आठ का दस करते हैं और मामा दस का बारह कर देता है और यह सारा खेल क्यों चल रहा है? ताकि हम एक दूसरे से झूठ बोल सकें और एक दूसरे को धोखे में रख सकें। वही झूठी रीस्पेक्ट , झूठी इज़्ज़त।

वह तुमने पहला ही सवाल पूछा था न? सब झूठा। जितना तुमको आराम से खाने-कमाने के लिए, प्यार से रहने के लिए चाहिए, वह तो बहुत ज़्यादा है ही नहीं। वह तुम्हें मिल जाएगा, बिलकुल फ़िक्र छोड़ दो। एक अच्छे देश में हो, जहाँ पर एक इकॉनमी (अर्थव्यवस्था) है, जो अच्छे ग्रोथ रेट पर चल रही है। तुम में से कोई भी भूखा नहीं मरने वाला। कोई बहुत समय के लिए बेरोज़गार नहीं रहेने वाला। सब कमा-खा लोगे। तो पैसे की तो फ़िक्र ही छोड़ दो।

तुम दूसरी बातों की फ़िक्र करो जो ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है। तुम ज़िन्दगी की फ़िक्र करो, जीवन कैसा बीत रहा है। पैसा-वैसा छोड़ो, पैसा आ जाएगा।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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