तुम्हारी जांबाज़ी बूढ़े-बुज़ुर्गों की मौत बनेगी || आचार्य प्रशांत, कोरोनावायरस पर (2020)

Acharya Prashant

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तुम्हारी जांबाज़ी बूढ़े-बुज़ुर्गों की मौत बनेगी || आचार्य प्रशांत, कोरोनावायरस पर (2020)

प्रश्नकर्ता: सन्तों ने कहा है कि भय बड़ा उपयोगी हो सकता है अगर उसका इस्तेमाल सही से किया जाए। प्रधानमन्त्री ने जब दूसरी बार देश को सम्बोधित करा तो उन्होंने भाषण में एक नहीं, कई दफ़ा डराने का प्रयास किया, ऐसा मुझे लगा कि चलो इन्हें तथ्य बताये जाएँ ताकि ये डरें। आदमी को जब डराया जाएगा तो घर पर रहेगा, उपद्रव नहीं करेगा, बाहर नहीं जाएगा।

मुझे बाकी देशों का तो ये अनुभव नहीं है पर ये भारतीय कैसा है जो डर नहीं रहा है?

आचार्य प्रशांत: नहीं, ऐसा नहीं है कि डर नहीं रहा है।

प्र: वीडियोज़ आ रहे हैं जिसमें लड़के गाड़ियाँ ले-लेकर पर्यटन के लिए निकल रहे हैं।

आचार्य: नहीं, वो अभी बस कुछ दिनों की बात है।

प्र: ऐसे ही वीडियोज़ बन रहे हैं, जिसमें पीछे गाने चल रहे हैं, “जान जानी है जाएगी।”

आचार्य: ये सब, ये सब दो टके की हीरोबाज़ी है और कुछ नहीं, जो हमारी घटिया फ़िल्मों ने हमको सिखायी है। जहाँ बुद्धि से ज़्यादा और विवेक से ज़्यादा महत्व दिया जाता है भावनाओं को और वृत्तियों को और भाषणबाज़ी को और करामातबाज़ी को; जादूगरी, बाज़ीगरी को, ये सब है। अभी दो-चार इन्हीं के, आजू-बाजू वाले बीमार पड़ेंगे तो ये सब जवान लोग जो अभी हीरो बन रहे हैं और अफलातून बन रहे हैं अभी सबसे पहले इन्हीं के छक्के छूटेंगे।

प्र: डब्लूएचओ से और इटली जैसे देशों से बार-बार ये खबर आ रही है कि जो जवान लोग हैं हो सकता है वो बीमार न पड़ें, उनमें सिम्प्टम्स (लक्षण) भी न दिखें पर उनकी बड़ी ज़िमेदारी है कि वो अपनेआप को क्वारंटीन रखें ताकि वो वायरस दूसरों तक न पहुँचे।

आचार्य: नहीं, ऐसा नहीं है कि बीमार नहीं पड़ते। बस मरने से बच जाते हैं और चौदह दिन बहुत होते हैं सड़-सड़कर भुगतने के लिए। और दूसरी बात, कौनसे लोग हो भाई तुम कि जिनको ज़रा भी खयाल नहीं है अपने माँ-बाप का और नाना-नानी का और दादा-दादी का? भारत में तो अभी भी बहुत संयुक्त परिवार हैं। घर का जवान आदमी अगर ये वायरस घर लेकर के आ रहा है, संक्रमण का वाहक बन रहा है तो वो तो घर के सब बुज़ुर्गों का काल बन गया न। वो यही कहते रह जाएँगे, ‘हमारा नाती, हमारा पोता, हमारा राजू।’ और उनको क्या पता कि राजू उनका उनकी मौत बनकर आया है। राजू उनका बाहर निकला था हीरोबाज़ी में और बाहर से वायरस उठाकर के लाया है। और उस वायरस से राजू तो नहीं मरा, राजू की बेचारी दादी ज़रूर ऊपर पहुँच गयी। तो ये कैसे लोग हैं जिन्हें दो पैसे की मानवता नहीं है अपने परिवार के ही वृद्धजनों के प्रति भी।

प्र: अगर इन लोगों को नियन्त्रित रखने के लिए पुलिस लाठीचार्ज इत्यादि करती है तो क्या वो सही है?

आचार्य: देखिए, जो कुछ हो कानूनन हो। ये पहले ही सब नागरिकों को बता दिया जाए कि पुलिस को इस विशेष समय में किस तरह के आपत अधिकार दे दिये गए हैं जो कि सिर्फ़ इस विशेष समय में लागू होते हैं। तो ये बात पुलिस वालों को भी और आम जनता को भी पहले ही पता होनी चाहिए कि पुलिस के पास इस-इस तरह के अधिकार हैं। फिर ठीक है, बिलकुल ऐसा होना चाहिए।

देखिए, जो मन सच नहीं समझ रहा, जो अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं कर रहा, वो तो फिर डर पर ही चलेगा क्योंकि वो डर पर ही चल सकता है, कोई विकल्प नहीं है उसके पास। दूसरी बात, वो जैसा है सो है, वो दूसरों के लिए खतरा न बन जाए इसके लिए ज़रूरी है कि उस पर बल प्रयोग भी करना पड़ेगा तो किया जाएगा। लेकिन जो कुछ भी किया जाए कानूनन किया जाए। पुलिस बल को इस समय पर कुछ विशेष अधिकारों की ज़रुरत पड़ेगी, उनको वो विशेष अधिकार दे दिये जाएँ लेकिन ये भी बता दिया जाए कि जो आपको विशेष अधिकार दिये गए हैं आप इनका उल्लंघन न करें।

ये भी नहीं होना चाहिए कि कोई पुलिसकर्मी बिलकुल मनचला होकर अपनी मनमर्ज़ी से लाठी भाँज रहा है, कुछ कर रहा है। वो फिर अपनेआप में ही एक नये तरीके का विधानकर्ता हो गया, वो अपना ही कानून चला रहा है, ये चीज़ नहीं होनी चाहिए।

साथ-ही-साथ मैं ये भी चाहता हूँ, कि जैसा कहा, कि खास समय है, इस खास समय में पुलिसबलों को अगर कुछ खास अधिकार देने की ज़रुरत हो तो उन्हें ज़रूर दिये जाने चाहिए, बस वो अपने अधिकारों का फिर उल्लंघन न करें।

प्र: आचार्य जी, आपके समक्ष बैठना था, इस मुद्दे पर बात करनी थी तो थोड़ा शोध किया, मुख्यतः टिक-टॉक पर देख रहा था कि इन दिनों भारी मात्रा में कोरोना वायरस संक्रमण से सम्बन्धित बड़े हँसी-मज़ाक के विडिओज़ आ रहे हैं। तो इस पूरे हास्य के खेल को आप कैसे देखते हैं?

आचार्य: नहीं, बहुत अच्छी बात है बस तब भी हँसते रहना जब तुम्हारे इर्द-गिर्द बीमारी और मौत नाचे। ये हँसी थमनी नहीं चाहिए। हँसने में कोई बुराई नहीं है। हँसने का मतलब ये है कि आप शरीर से सम्बन्धित इस खेल को, इस माया को गम्भीरता से नहीं ले रहे हो जो कि अपनेआप में प्रशंसनीय बात है। लेकिन सिर्फ़ तभी मत हँसो जब दूसरे मुल्क बीमार पड़े हैं और जब बाकी पूरी दुनिया में बीस हज़ार मौतें हो चुकी हैं, तुम तब भी हँसो फिर जब खुद बीमार पड़े हो और तुम्हारे आस-पास भी मृत्यु का तांडव हो रहा है। तब भी हँसते रहना। तब हँसते रहो तब मानेंगे कि तुममें कुछ दम है।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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