तुम कैसे? तुम्हारी भाषा जैसे || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

Acharya Prashant

6 min
63 reads
तुम कैसे? तुम्हारी भाषा जैसे || आचार्य प्रशांत के नीम लड्डू

आचार्य प्रशांत: आपकी भाषा कितनी समृद्ध है इससे बहुत हद तक ये पता चलता है कि आप इंसान कितने समृद्ध हैं। आपकी भाषा कितनी ऊँची है इससे पता चलता है आप इंसान कितने ऊँचे हैं। आज की जो जवान पीढ़ी है, इसके पास शब्द ही नहीं हैं, इसकी पूरी वोकैबुलरी सिमट के कुल दस हज़ार शब्दों की रह गई है, अंग्रेज़ी में। हिंदी में भी यही हाल होगा, हालाँकि हिंदी में आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।

तो अब ये कुछ कुछ बोलना चाहते हैं, इनके पास शब्द ही नहीं हैं। और मान लो इन्हें कोई बात बोलनी है जो क्रोध को सूचित करती है, तो क्या करेंगे? अब शब्द तो हैं नहीं, ना ही वो सॉफिस्टिकेशन है, वो सूक्ष्मता है, वो बारीकी है कि मुहावरे के तौर पर कुछ बोल दें। भाषा की वो नज़ाकत भी तो नहीं है न कि जो बात कहना चाहते हैं वो कह भी दें और धृष्टता और बदतमीज़ी भी ना करनी पड़े। जानवर जैसा हाल है, तो जानवर क्या करेगा? गाली बकेगा। गधा रेंकेगा, और इंसान अगर जानवर हो गया है तो गाली बकेगा, तो ये गाली बकते हैं। ये खुद भी गधे हैं, तुम्हें भी गधा समझते हैं। तो ये रेंकते हैं और इन्हें पूरा भरोसा है कि ये जो रेंक रहे हैं, उस रेंकने में ये जो बात कह रहे हैं, वो बात तुम्हें बखूबी समझ आ रही होगी। और इनका भरोसा तुमने सच्चा ठहरा दिया है, कैसे? वीडियो को वायरल करा के। कोई गाली-गलौज करे और तुम उसके वीडियो को वायरल कर दो, इससे क्या पता चलता है? कि तुम को गाली-गलौज की भाषा ही समझ आती है। माने वो जितना बड़ा जानवर, उतने ही बड़े जानवर तुम भी हो। समझ में आ रही है बात? वरना तुम्हें ताज्जुब होगा न? तुम कहते, "आप जो बात कहना चाहते हैं महानुभाव, वो बात कहने के लिए तो भाषा में दस शब्द मौजूद हैं। आप कितने जाहिल, कितने अनपढ़, कितने गंवार हो कि आपको वो शब्द ही नहीं मिले? आप कैसे आदमी हो कि उस शब्द की जगह आप बात-बात पर क्या बोलते हो? हर वाक्य में अर्ध-विराम, पूर्ण-विराम की जगह आप एक गाली चमका देते हो।”

और गालियाँ भी कुल मिला करके आठ-दस, पंद्रह-बीस हैं, वही चल रही हैं। कुछ भी बोलना हो, वही गाली। पानी चाहिए, गाली! पानी नहीं चाहिए, तो भी गाली! किसी को अच्छा बोलना है, गाली! “तू मेरा सबसे बड़ा (कोई गाली) दोस्त है”। किसी को बुरा बोलना है, तो भी गाली! कारण ये है कि उसके पास, उस गधे, उस जानवर के पास शब्द ही नहीं हैं, उसकी मजबूरी समझो! भाई गधे को पानी चाहिए तो भी क्या बोलेगा? ढेंचू! और घास चाहिए तो भी क्या बोलेगा? ढेंचू! गधे के सामने शेर आ गया और डर गया, तो भी क्या बोलेगा? और गधे को चूहा दिखाई दे रहा है तो भी क्या बोलेगा? तो इस आदमी के पास और कोई शब्द ही नहीं हैं। जो कुछ भी इसके सामने आ रहा है उसको दिए जा रहा है गाली पे गाली... और ये बिल्कुल सही कर रहा है क्योंकि तुम इसका वीडियो वायरल कर रहे हो।

कोई लड़का गाली दे रहा हो लड़कियाँ तुरंत उसकी अर्धांगिनी बनने को तैयार बैठी हैं – “मुझे अपने घर ले चल”। कोई लड़की गाली देने लग जाए तो फिर तो पूछो ही मत! लड़के इस कदर दीवाने हो जाएँगे कि आधे तो मर जाएँ। मर जाएँ माने मर ही जाएँ, प्राण-पखेरू उड़ गए। कह रहे हैं, “बस! इतनी हसीन गाली सुन ली अब ज़िंदगी में करने को बचा क्या है? जा रहे हैं!”

तो ये सब कुल मिला-जुलाकर ये बताता है कि हमारी सभ्यता, हमारी चेतना, हमारी ज़िंदगी का स्तर कितना गिरता जा रहा है। जॉर्ज ओरवेल का उपन्यास था - '1984', उसमें उन्होंने कहा था। वहाँ जितने लोग हैं वो सब हिंदी, अंग्रेज़ी, जितनी प्रचलित भाषाएँ हैं, वो सब छोड़ चुके थे, बल्कि उन पर प्रतिबंध लगा हुआ था, उन सब भाषाओं पर। और वहाँ एक अलग ही भाषा चलती थी जिसका नाम था 'न्यू स्पीक' और उस भाषा में मुहावरे नहीं होते थे। ये जो आजकल के लोग हैं, इनसे पूछो - हिंदी के मुहावरे पता हैं? नहीं पता होंगे। तुम मुहावरा पूछोगे नहीं कि किसी गाली में जवाब दे देंगे। ये मुहावरा इन्हें पता हैं कुल मिला के। और जहाँ इन्होंने कहा नहीं मुहावरे के नाम पे (कोई गाली), वहाँ तुमने ताली बजाना शुरू कर दिया। लड़का है तो लड़कियों ने नाचना शुरू कर दिया कि, "आहाहा! ये कितना बोल्ड, कितना क्यूट, कितना फनी है?" अरे! तुझे इसी में बोल्ड, क्यूट, फनी लग रहा है, ऑर्गाज़्म हुआ जा रहा है? तो तू फिर शादी-ब्याह भी क्यों करेगी? गालियों का ऑडियो चालू कर लिया कर। उसी से ब्याह कर ले न! वो कुछ नहीं, सुबह-श्याम बस तुम्हें गालियाँ सुनाएगा। "कितना अच्छा लगा, आहाहा! क्या गालियाँ दी हैं?"

मुद्दे की बात कुछ नहीं, गालियाँ-गालियाँ, और इस पर फ़िदा हो गया भारत! और ऐसा आज नहीं हो रहा है, ये चीज़ दशकों से चल रही है, बस अब जाकर के ये चीज़ और ज़्यादा घातकरूप से विस्तृत हो गई है। इसको अक्सर कह देते हैं, “नहीं साहब, ये तो दिल्ली का कल्चर है या पंजाबी कल्चर है”। क्यों तुम पंजाब को बदनाम करते हो? और दिल्ली में और भी बहुत कुछ है, तुम्हें दिल्ली का सम्बन्ध गालियों से ही जोड़ना था? और अभी मैं इस मुद्दे पर तो जा भी नहीं रहा कि तुम्हारी जितनी गालियाँ होती हैं, ये सब की सब औरतों का ही अपमान कर रही होती हैं। वो मुद्दा ही अलग है, उस पर जाऊँगा तो फिर और एक लम्बी बात करनी पड़ेगी।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
Categories