प्रश्नकर्ता: नमस्ते आचार्य जी। मेरा सवाल सामाजिक मुद्दे को लेकर है। जो ट्रांसजेंडर कम्युनिटी होती है उसमें मैंने कई बार देखा कि हम जब समाज में बाहर निकलते हैं तो वो लोग पैसे माँगते हैं या ट्रेन में भी जाते हैं तो वो काफ़ी परेशान करते हैं, पैसे दो यह करके। या कोई कार्यक्रम जैसे जब किसी के घर में बच्चा होता है तो वहाँ भी आ जाते हैं या कहीं कोई मरा है तो वहाँ भी आते हैं। तो मैंने इसके ऊपर पूछा था तो लोग इसे बताते हैं कि इन्हें समाज में कोई काम नहीं मिला है तो इसलिए यह ठीक है जो हो रहा है। पैसे माँग रहे हैं तो ठीक है।
तो मैं इस मुद्दे को समझ नहीं पा रहा हूँ। मैं ट्रेन में सफ़र कर रहा हूँ और मुझे आकर के कोई बोल रहा है मुझे तुम्हें पैसे देने पड़ेंगे क्योंकि मेरे साथ शोषण हुआ है। तुम मुझे पैसे दो नहीं तो मैं तुम्हें यहाँ अजीब महसूस कराऊँगी। और तुम्हें यह देने पड़ेंगे। तो इस चीज़ का मतलब क्या है?
आचार्य प्रशांत: रामकृष्ण मिशन के अभी आप भवन में हो। रामकृष्ण कहा करते थे कि मनुष्य की जो मूल वृत्ति होती है, वह उसे दो ही दिशाओं में फेंकती है। मनुष्य के लिए दो ही चीज़ें हैं जो महत्वपूर्ण बनती हैं। और आदमी उन्हीं को क़ीमत देकर, महत्व देकर ज़िंदगी भर ढोता रहता है। किन दो चीज़ों को? कंचन और कामिनी। कंचन माने पैसा, कामिनी माने सेक्स। यह आज की नहीं बात है, यह आज से डेढ़ सौ साल पहले की बात है।
तो आज की बात हो या आज से डेढ़ सौ साल पहले की बात हो, यही दो चीज़ें हैं जो आम आदमी की ज़िंदगी बन जाती हैं। इनसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हमें कुछ समझ में आता ही नहीं है, पैसा और सेक्स। तो पुरुषों से बोला होगा तो कामिनी बोल दिया, कि कंचन-कामिनी में फँसे हुए हो तुम। पर कामिनी माने नारी ही नहीं, मनुष्य में देह की जो इतनी लिप्सा होती है, देह को हम जो इतना महत्व देते है, उसका प्रतीक है कामिनी।
तो पैसा और सेक्स, ये दो चीज़ें आदमी के लिए सबसे महत्वपूर्ण होती हैं। तो आपको कोई अजनबी मिलता है, आप कौनसी दो चीज़ें उसमें देखते हो? कोई भी आपके लिए महत्वपूर्ण बना बैठा है तो यही दो बातें होंगी, या तो उससे आपको पैसे की उम्मीद होगी या देह की। या तो उससे आपका पैसे का रिश्ता होगा या देह का रिश्ता होगा, कंचन-कामिनी। हम किसी की पहचान ही इन्हीं दोनों के आधार पर बनाते हैं, वह देह से कैसा है और उसके पास पैसा कितना है।
तो अब घर में कोई पैदा हो गया और वह देह से विशेषलिंगी है। न उसको नर बोल सकते हैं, न नारी बोल सकते हैं। वह एक विशेष लिंगी है। तो यही बात हमारे लिए बड़ी विशेष हो गयी। क्योंकि हमारे लिए तो इंसान की पहचान ही क्या है? कि उसका लिंग क्या है, उसकी देह कैसी है। उसकी बुद्धि कैसी है, उसका ज्ञान कैसा है, उसकी प्रज्ञा कैसी है, उसमें और तमाम तरह की कुशलताएँ क्या हैं, इनसे हमें बहुत कम मतलब है। हमें क्या से मतलब है? लिंग क्या है, लिंग बताओ लिंग।
आपको जब भी कोई दिखता है तो सबसे पहले आप उसका लिंग ही तो देखते हो कि अच्छा! ठीक है। भाषा भी देखो न, भाषा ही पहले बता देती है कि ही है कि शी है। आ रहा है कि आ रही है। व्यक्ति का निर्धारण ही सबसे पहले आप उसके लिंग से कर देते हो न, देह से कर देते हो। सरकार भी आपसे फॉर्म भरवाती है तो नाम के बाद सबसे पहले क्या पूछती है, एम या एफ ? तो जब वही सबसे बड़ी चीज़ है तो हमने उनको विशेष बना दिया, अन्यथा इसमें कुछ विशेष नहीं है।
आप जिनको ट्रांसजेंडर बोलते हो वास्तव में उनमें विशेष क्या है, कुछ भी विशेष नहीं है। लेकिन चूँकि हमारे लिए लिंग विशेष है, इसीलिए हमारे लिए यह बात बहुत महत्वपूर्ण बात हो जाती है कि कोई ट्रांसजेंडर है, 'अरे! यह तीसरे लिंग का है!' नहीं तो क्या ख़ास है, बताओ न। कोई व्यक्ति है, अब उनकी बुद्धि पर तो कोई लकवा नहीं मार गया है। जैसे सब शिक्षा लेते हैं वह बच्चा भी शिक्षा ले सकता है। जैसे दुनिया में सब काम करते हैं वह भी कर सकता है।
यह भी हो सकता है कि वह व्यक्ति बिलकुल प्रगाढ़ प्रतिभा का धनी हो किसी भी क्षेत्र में। वह व्यक्ति आध्यात्मिक भी हो सकता है। लेकिन हमें उसकी प्रतिभा से, उसके अध्यात्म से, उसके किसी गुण से कोई मतलब नहीं है। हमें मतलब है तो बस उसके लिंग से। और फिर हम उसको समाज में अलग ही बैठा देते हैं और उसको एक विशेष, एक अलग ही दर्ज़ा दे देते हैं। और छोटी सी उसको एक जगह दे दी है, सीमा बना दी है कि तुम यह हो, तुम यहाँ रहोगे, तुम यही करोगे। क्यों? क्योंकि तुम्हारा लिंग अलग है। इंसान की और पहचान ही क्या है? उसका लिंग। इतने लोग हैं दुनिया में जो अपनी देह की ही तो खा रहे हैं। इतने लोग हैं दुनिया में जो अपनी देह की ही खा रहे हैं।
आज बात हो रही थी सुबह, टीवी सीरियल्स की एक अदाकारा हैं वह आयी हुई थीं। सांवले रंग की हैं, बोल रही थी कि यह जो रंग है यही महत्वपूर्ण बन गया है मेरी इंडस्ट्री में। क्योंकि हमें किसी में और कुछ दिखाई ही नहीं देता रंग के अलावा, रंग क्या है। ख़ास तौर पर लड़की है तो रंग क्या है, गोरी है कि नहीं है। अभी आईआईटी में जब महोत्सव हुआ था तो वहाँ पर आया एक अच्छा, बढ़िया लड़का। हर तरीक़े से आप उसकी प्रशंसा करें, ऐसा लड़का। वह बोल रहा है मेरा कद थोड़ा छोटा है, मैं हीन-भावना में रहता हूँ। कद को लेकर वह परेशान है। तेरे कद से क्या लेना-देना भाई!
ये सब किस ओर इशारा कर रहे हैं? कि हमारा मन पूरे तरीक़े से देह केंद्रित है। हमें जिस्म के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता और जिस्म में भी लिंग। आँखें लिंग को तलाशती रहती हैं बस। फिर इसीलिए उसको इतना ढँक कर रखना पड़ता है। बाक़ी सब तो उघाड़ भी दो शरीर में, लेकिन लिंग-सूचक जो आपके अंग होते हैं उनको आप बिलकुल ढँक कर रखते हो। ढँक कर रखने की ज़रूरत क्या पड़ती है? क्योंकि आते-जाते की आँखें बस वही तलाश रही हैं। अब कान है, कान तो कोई नहीं ढँकता, क्योंकि कान तो स्त्री-पुरुष के एक बराबर होते हैं, लिंग-सूचक नहीं होते। तो कान चलो खुले हैं, कोई बात नहीं। नाक भी कोई नहीं ढँकता। लेकिन छाती ढँकते हो, क्यों ढँकते हो, क्योंकि वह लिंग-सूचक है।
तो जब तक इंसान की आँख ऐसी रहेगी कि उसे किसी भी व्यक्ति में पहली बात सिर्फ़ देह दिखाई देगी। यह नहीं कहोगे इंसान आ रहा है, क्या कहोगे? पुरुष आ रहा है या स्त्री आ रही है। इंसान नहीं दिखाई दे रहा है, क्या दिखाई दे रहा है? पुरुष या स्त्री दिखाई दे रहे हैं। तो तब तक आप उनको ऐसे ही किनारा करते रहोगे, कभी बोलोगे किन्नर हैं, कभी कुछ और बोलोगे उनको। लेकिन आप उनको परेशान करे ही रहोगे।
और फिर वो क्या कर रहे है? हमने क्या कहा, सेक्स के अलावा दूसरी कौनसी चीज़ होती है हमारे लिए महत्वपूर्ण? पैसा। तो कह रहे हैं जब तुमने हमें विशेष बना ही दिया है तो इसी विशेषता का लाभ उठाकर हम पैसा कमाएँगे। तो लो, कंचन-कामिनी दोनों की बात हो गयी। तुमने उनको देह की दृष्टि से देखा, तो उन्होंने कहा लो इसी बात का फ़ायदा उठाकर हम पैसा कमा लेंगे।
ये चल रहा है कुल खेल और इन दोनों तक ही सीमित है पूरी इंसानियत का खेल। पूरी मानवता बस यही खेल खेल रही है —सेक्स और पैसा, सेक्स और पैसा। और सेक्स माने सिर्फ़ यही नहीं होता, सेक्स माने देह सम्बन्धित जितनी भी तुम्हारी वृत्तियाँ होती हैं वो सब सेक्स के अंतर्गत ही आ जाती हैं। आ रही है बात समझ में?
यह जो पूरी व्यवस्था है न सामाजिक व्यवस्था, यह पूरी उलट-पुलट जाए, एकदम अलग हो जाए, अगर हम इंसान का मूल्यांकन उसके शरीर और उसके पैसे से हटकर, उसके ज्ञान और उसके गुण से करना शुरू कर दें। कितने ही लोग हैं जो सिर्फ़ अपने शरीर की खा रहे हैं, कितने ही हैं। और मुझे समझ में नहीं आता कैसे, क्यों।
मैं बहुत छोटा था, टीवी में आ रही थी रिपब्लिक डे परेड। तो वहाँ किसी विदेशी राष्ट्र के राष्ट्रपति आये हुए थे। हर बार होता है न, उनको बनाया जाता है मुख्य अतिथि, तो वह बने हुए थे। तो वह खड़े हुए थे और भारत की सशस्त्र सेनाओं की सलामी ले रहे थे। ठीक है? वहाँ से टैंक गुज़रते हैं, सैनिक गुज़रते हैं, गणतंत्र दिवस के उस परेड में होता है न। मैं छोटा था, मैंने देखा उनके साथ में एक देवी जी खड़ी हुई हैं। तो मैंने पूछ लिया ये क्यों खड़ी है, ये कौन हैं। तो वह बोले कि ये उनकी 'हैं'। मैंने कहा, 'तो?' मेरे देश की सेनाएँ उनको क्यों सलामी ठोक रही हैं? ये उनकी हैं, तो? वो बोले, ऐसा ही है, उनका उनका आपस में देह का रिश्ता है। वो इसी की खा रही हैं। अब उनको भी सलामी मिलती है। उन्होंने कुछ नहीं किया है ज़िंदगी में, बस एक काम करा है, देह का रिश्ता बना लिया है एक से।
शादी भी ज़रूरी नहीं है। फ्रांस के राष्ट्रपति आये थे। बड़ा झगड़ा हुआ था भारत में। वो अपनी गर्लफ्रेंड को लेकर आना चाहते थे। यहाँ बोले, 'अरे! वह तो शादी भी नहीं करी, वह भी यहाँ आकर खड़ी हो जाएँगी ऊपर?' आप पढ़िएगा, मेरे ख़याल से दस-बीस साल पहले की बात होगी। अब याद नहीं आ रहा उसका अंज़ाम क्या हुआ था, शायद वह ले ही आये थे या नहीं लाये थे। शायद ले आये थे, पर उन्होंने साथ में बस फोटो खिंचायी थी, वहाँ इंडिया गेट लेकर नहीं पहुँचे थे। तो बोले, देखो देह का चलेगा, लेकिन ऊपर-ऊपर कुछ इज़्ज़त रखनी पड़ती है न। या तो शादी करके ले आओ, फिर हम सलामी दे देंगे। (श्रोतागण हँसते हैं)
भारत है भाई! संस्कारों वाला देश है। वो फ्रेंच, उनको समझ में ही नहीं आये कि मेरी गर्लफ्रेंड है तो ला रहा हूँ, इसमें समस्या क्या है! बोले, 'नहीं, ऐसे मत करिए।'
यहाँ ज्ञान की और गुण की कौन खा रहा है, देह की खायी जा रही है। और देह में यही नहीं आता कि सेक्सुअली अट्रैक्टिव है या नहीं। आपको मस्तिष्क मिल गया है, वह भी देह में ही आता है न। बचपन से ही आपका आईक्यू तीक्ष्ण है और आप उसी का फ़ायदा उठा कर के फिर कमा-खा रहे हो। यह भी तो देह को ही बेचकर सौदा किया जा रहा है न। देह वाला कार्यक्रम थोड़ा हट जाए, तो बहुत लोग जो सिहांसनों पर चढ़े बैठे हैं वो बिलकुल नीचे आकर गिरेंगे और बहुत लोग जिन्हें ऊपर होना चाहिए वो ऊपर उठ जाएँगे।
समाज क्योंकि सम्मान इन्हीं दो चीज़ों को दे रहा है — पैसा और देह। और एक हो तो अक्सर दूसरी चीज़ मिल जाती है। जिनके पास पैसा होता है वो देह खरीद लेते हैं। और जिनके पास देह होती है उनको देह के कारण पैसा मिल जाता है।
इंसान को चेतना की तरह देखना सीखो, शरीर की तरह नहीं और विशेषकर लिंग की तरह नहीं। इंसान को चेतना की तरह देखना सीखो। कोई लिंग हो, क्या फ़र्क पड़ता है। कोई उम्र हो, क्या फ़र्क पड़ता है। क्या नाम है, क्या मज़हब है, क्या फ़र्क पड़ता है। देखो कि चेतना कैसी है उसकी, इस आधार पर उसका मूल्यांकन करो। आ रही है बात समझ में?