तीन रास्ते और हज़ार योनियाँ || (2021)

Acharya Prashant

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तीन रास्ते और हज़ार योनियाँ || (2021)

आचार्य प्रशांत: एक मार्ग है झूठे सच का। झूठे सच का मार्ग; इसको तमसा का मार्ग भी कह सकते हैं। तमसा क्या है? झूठा सच। झूठा सच कैसे? आपने अपने आपको आश्वस्त कर लिया है कि जो है यही सच है। आपने अपने-आपको आश्वस्त कर लिया है कि जो कुछ आख़िरी है वो आपको मिल ही गया है। आप आत्मविश्वास से भरपूर हैं। आपने अपने-आपको एक छद्म संतुष्टि दे दी है। आपने अपने-आपको एक प्रमाण पत्र दे दिया है कि आपकी ज़िंदगी में और संसार में लगभग सब कुछ ठीक ही है। यह एक मार्ग है।

दूसरा मार्ग क्या है? वो राजसिक्ता का मार्ग है। इस मार्ग को आप कह सकते हैं झूठे झूठ का मार्ग। झूठे झूठ का मार्ग क्यों है? क्योंकि इसमें आपको यह तो दिख रहा है कि आप झूठ में हैं, आप अपने झूठ को सच नहीं बोल पा रहे। तो आपको अपनी स्थिति को बदलने की, कुछ और बेहतर पाने की ज़रूरत अनुभव हो रही है। स्वीकार भी कर रहे हैं कि भाई चीज़ें बदलनी चाहिए। "कुछ और करते हैं न। अभी जो कुछ है उसमें मज़ा नहीं आ रहा, बेचैनी सी रहती है।" लेकिन आप एक झूठ से उछलकर के बस दूसरे झूठ पर जा बैठते हैं। दूसरा झूठ जैसे आपको प्रलोभित करता हो सच बन कर के। झूठ से झूठ पर आप जाते हैं।

ना तो आप यह कह पा रहे कि झूठ ही सच है जैसे तामसिक व्यक्ति कह देता है। क्या कह देता है वो? कि, "मेरा तो झूठ ही सच है।" ना तो आप यह कह पा रहे कि आपका झूठ सच है, ना जो सच है वो आपकी नज़र में कहीं दूर-दूर तक है। तो आपके जीवन में कुल क्या है? झूठ ही झूठ। तो मैं कह रहा हूँ कि ये जो दूसरा मार्ग है ये झूठे झूठ का है। इसमें तो झूठा सच भी मौजूद नहीं है। इसमें तो सच्चा झूठ भी मौजूद नहीं है। कुछ भी नहीं है। ना तो आप यह कह पा रहे हैं कि आपकी अभी जो अभी हालत है वो आनंद की है और ना ही आपको आनंद कहीं और दिखाई दे रहा है। आप बस बेचैनी से बेचैनी तक की यात्रा कर रहे हैं, हज़ारों बेचैनियाँ हैं। जीवन आसानी से कट जाता है एक बेचैनी से दूसरी के सफ़र में।

तीसरा मार्ग है, वो फिर क्या है? तीसरा मार्ग है यह देख लेने का कि मैं जहाँ हूँ वह भी झूठ है। और मैं, मैं रहते हुए जहाँ जा सकता हूँ वह भी झूठ है। तामसिक व्यक्ति क्या बोल रहा है? "मैं जहाँ हूँ यही सच है।" राजसिक क्या बोलता है? "मैं जहाँ हूँ वो तो झूठ ही है पर शायद उधर कहीं कुछ हो जाए।" पर वहाँ जाता है तो वहाँ भी क्या पाता है? यह भी झूठ है।

तीसरा मार्ग कहता है — यहाँ हूँ यह भी झूठ है, और जैसा हूँ वैसा रहे-रहे कहीं और जाऊँगा वह भी झूठ है। वास्तव में झूठ ना यहाँ है, ना कहीं और है। झूठ मेरे अंदर है। मैं यहाँ रहूँगा तो भी झूठ है, मैं वहाँ रहूँगा तो भी झूठ है, क्योंकि यहाँ भी मैं ही रहूँगा, वहाँ भी मैं ही रहूँगा। झूठ तो मेरे अंदर है। जगहें बदलने से क्या होगा? जैसे कि कोई कैंसर का मरीज़ एक होटल से चेकआउट करके दूसरे में चेकइन करे, यह सोचकर के कि अब कैंसर नहीं रहेगा। भाई तेरे भीतर है। होटल का कमरा बदलने से क्या होगा? पिछले कमरे में था क्या? पर उसका तर्क यही है, "पिछले कमरे में कैंसर था न। अभी बढ़िया होटल किया है इसमें नहीं होगा।"

तीसरा रास्ता वो होता है जब तुम समझ जाते हो कि तुम ही कैंसर हो। वो मुक्ति का मार्ग है। तुम्हें अपनी स्थिति नहीं बदलनी, तुम्हें अपना केंद्र बदलना है। बहुत अंतर है। नहीं समझ में आता, एकदम नहीं समझ में आता। सुन लेते हैं, लिख लेते हैं, जीवन में नहीं उतरता। स्थिति नहीं बदलनी। केंद्र बदलना है, केंद्र।

"वह प्राणों का अधिपति, जीवात्मा, अपने कर्मों के अनुसार विविध योनियों में गमन करता है।"

विविध योनियों में गमन करता है माने — ये जितनी योनियाँ हैं ये सब प्रकृति के तीन गुणों का ही उत्पाद हैं। ये उन तीन गुणों का ही प्रतिनिधित्व करती हैं। उन्हीं गुणों का एक प्रकार का मेल घास बन जाता है। उन्हीं प्रकार का एक मेल खरगोश बन जाता है। वही गुण हैं जो हिरण बन गए हैं, वही गुण हैं जो हाथी बन गए हैं। और जो भीतर का बेचैन अहम् है वो हर एक चीज़ को आज़मा लेना चाहता है क्योंकि किसी भी एक चीज़ पर तो उसको चैन मिल रहा नहीं न। तो अगर इन तीन गुणों के अलग-अलग अनुपातों और अलग-अलग तरीक़े के मेलों से मान लो दस-हज़ार तरह के अलग-अलग उत्पाद संभव हैं। तो तुम्हारा अहम् क्या करता है? उन दसों-हज़ारों उत्पादों को आज़माता है एक-एक करके। क्योंकि किसी में भी उसको शांति और ठहराव तो मिलता नहीं, कि मिलता है?

अरे बाबा, तीन चीज़ें हैं इनको मिलाकर के तुम कितनी चीज़ें बना सकते हो? अ, ब, स के रैखिक संयोजन से कितनी चीज़ें निकल सकती हैं? अनन्त। नहीं निकल सकती? X(a) + Y(b) + Z(c) इसका अगर सेट लो तो कितना हो सकता है? कुछ भी हो सकता है। नहीं हो सकता? वैसे ही दुनिया में जो कुछ है वो इस तीन को अलग-अलग तरीके से जोड़ करके पैदा हुआ है। इन्हीं तीन को।

अब अहम् को सब कुछ आज़माना है। एक दुकान है जिसमें दस-हज़ार चीज़ें रखी हैं। और तुम लालायित हो, वो एक चीज़ पाने के लिए जो तुम्हें तृप्त कर देगी। तो तुम क्या करोगे? वो जितनी चीज़ें हैं सबको आज़माओगे। मान लो दस-हज़ार तरीके के कपड़े रखे हैं और तुमको वो एक ख़ास कपड़ा चाहिए जिसमें तुम कतई परमात्मा हो जाओ। कैसी भी उम्मीद हो सकती है। आप घुस गए हो गारमेंट स्टोर में, मेगा स्टोर है बहुत बड़ा। वहाँ पर दस-हज़ार तरीके के अलग-अलग कपड़े रखे हैं। तुम्हारी उम्मीद ये है कि इनमें से कोई तो ऐसा होगा जिसको डाल लूँगा अपने ऊपर तो एकदम अंतर्यामी बन जाऊँगा। उम्मीद बहुत बड़ी है, बिलकुल एकदम सघन। तो तुम पहला कपड़ा डालते हो उसमें बात बनी नहीं। फिर क्या करते हो? फिर दूसरा डालते हो, तीसरा डालते हो, चौथा डालते हो।

पहला जो कपड़ा डालते हो उसपर लिखा है 'चींटी', तुम चींटी बन गए। बन नहीं गए। ये बात भौतिक नहीं मानसिक है। मैटेरियल नहीं मेंटल है। बन नहीं गए, ऐसा नहीं है कि तुम चींटी बन कर घूमने लग गए। पर अभी तुमने अपने भीतर चींटी तो प्रवेश कराया ये सोचकर के इससे फायदा हो जाएगा। तो तुमने चींटी बन कर भी देख लिया। चींटी बन कर देख लिया, मतलब क्या बन कर देख लिया? चींटी क्या करती है? चींटी शक्कर का दाना लेकर के भागती है। जितना उसका वज़न होता है उसेसे बड़ा वो दाना लेकर के भागी जा रही है। लोगों को चींटी जैसा देखा है कि नहीं देखा है? तो तुमने चींटी बनना भी आज़माया है और निराशा पाई है। हममें से कोई ऐसा नहीं जो कभी-न-कभी चींटी ना बन चुका हो। या बार-बार बनता हो। बहुत लोग बार-बार बनते हैं। चींटी को क्या करते देखा है? एक के पीछे एक कतार जा रही है। और सब चीटियों ने उठा रखा है, कतई कुलियों की फौज। ऐसा इंसानों को करते देखते हो कि नहीं देखते हो? तो वो सारे इंसान क्या हैं उस वक़्त? चींटी हैं। तो इसका मतलब ये नहीं है कि तुम्हें मर करके चींटी योनि में जन्म लेना होगा। तुम चींटी जैसा काम कर रहे तो तुम चींटी हो गए। याद रखना ये बात भौतिक नहीं मानसिक है।

अब तुमने वो कपड़ा उतार दिया चींटी वाला। दूसरा ब्रांड उठाया वो पहना। वो है *रेयर रैबिट*। उसका क्या काम है? उसका काम है कान खड़े करना। कोई आ रहा है। क्या कर रहा है, पता नहीं। तुमने लोगों को देखा है ऐसा कि नहीं देखा? उनके बात-बात पर कान खड़े रहते हैं। कहाँ क्या चल रहा है। इधर का कान, उधर का कान, सट्ट से भागते हैं। गाजर कहाँ गिरी। तो अभी तुम खरगोश हो गए। इसका मतलब ये नहीं कि तुम्हें मर कर खरगोश योनि में जन्म लेना पड़ेगा। तुम जिस तरीके का काम करने लग गए, तुम उसी योनि के हो गए। ये जो एक जन्म है तुम्हारा इसी जन्म में तुम सब योनियाँ भोग लेते हो अपने कर्मों के अनुसार। यह बात कह रहा है उपनिषद्। इसी जन्म में सारी योनियों के भोक्ता हो तुम। मर कर किसी दूसरी योनि में नहीं जन्म लेने वाले।

अब तुमने तीसरा उठाया कपड़ा। उसका क्या नाम है? उसका नाम है स्लाई फॉक्स ब्रांड है। क्या नाम है? *स्लाई फॉक्स*। तुम क्या हो गए? तुम लोमड़ी हो गए। लोमड़ी कैसी है? चालू। लोमड़ी जैसा इंसान देखे हैं कि नहीं देखे हैं? कतई चालू। तो तुम मर कर लोमड़ी नहीं बनोगे। तुम इंसानी जिस्म में लोमड़ी हो। क्यों लोमड़ी हो? क्योंकि तुमने कर्म ऐसे करे। जो जैसा कर्म करेगा वो वैसा जानवर बन जाएगा। तो तीनों गुणों के मेल से, संगम से जितनी योनियाँ संभव हो सकती हैं, अहंकार उन सब योनियों को आज़माता है कि क्या पता किस योनि में शांति मिल जाए। मिलती कहीं नहीं है। कभी ये बन लो, कभी वो बन लो, कभी कुछ बन लो। क्या मिलना है?

गधे से लेकर हाथी तक सब तो बन लिए। मछली बन लिए, पेड़ बन लिए, पक्षी बन लिए, चील बन लिए। बहुत ऊँचा उड़े, देख तो नीचे ही रहे हो। तुम पृथ्वी से बहुत दूर भी कुछ भेजते हो, देख कहाँ रहा होता है? नीचे ही देख रहा होता है। ये तुम चील बन गए। तुमने पृथ्वी से जितने भी अभियान भेजे, अंतरिक्ष में वो नीचे वालों के फायदे के लिए ही भेजे हैं न। नीचे कौन? वो जो पृथ्वी पर बैठा इंसान है। तो तुम चील जैसे ही तो हो जो बहुत ऊँचा जाती है लेकिन देखती नीचे ही रहती है। नीचे क्या देखती रहती है? मरा हुआ चूहा हो, मेंढक मरा हुआ हो। कुछ पड़ा हो ऐसे ही छोटा-मोटा। वैसे ही सब तुम्हारे सेटेलाइट ऊपर घूम रहे हैं बहुत बड़े-बड़े, पर वो देख कहाँ रहे हैं? नीचे ही तो देख रहे हैं। किसके घर में क्या चल रहा है, फलाने को चमाट मारना है जैसे ही घर से बाहर निकलेगा।

वो वहाँ से ऊपर से देख रहा है कि वो अपने घर से बाहर निकले और वो वहाँ से मिसाइल दाग दे उसके ऊपर। ये बड़े बच्चों का काम है मिसाइल से मारते हैं वो। छोटे बच्चे होते तो चमाट मारते, पर काम तो एक जैसा ही है न। कि जैसे दूसरी मंज़िल पर गुल्लू रहता है, और पहली मंज़िल पर टुल्लू। गुल्लू बड़ा बच्चा है वो ऊपर से नीचे देखता रहता है कि टुल्लू घर से बाहर निकले और मैं नीचे जा कर इसको चमाट लगा दूँ। यही काम तो सेटेलाइट कर रहे हैं। ऊपर से देख रहे हैं कि वो अपने घर से बाहर निकले और तुमने पट्ट से लगाया एक। ये सब यही खेल है योनियों का और कुछ नहीं। अभी तुम चील हो, ऊपर से देख रहे हो कि नीचे कुछ निकले और मैं फट से पकड़ लूँ उसको। नाम तुम्हारा बहुत बड़ा हो गया। क्या हो गया? *एस्ट्रोनॉट, स्पेस एक्सप्लोरर*। पता नहीं क्या कर रहे हैं। ये कर रहे हैं, वो कर रहे हैं। है वो कुछ नहीं, चील का बच्चा है बस। मरा चूहा चाहिए उसको। क्योंकि नज़र तो नीचे ही है न, गए होगे बहुत ऊपर। ऊपर भी बस नीचे वाले के लिए गए हो। ऊपर वाले के लिए ऊपर नहीं गए तुम। तुम नीचे वालों के लिए ऊपर गए हो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant.
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