Grateful for Acharya Prashant's videos? Help us reach more individuals!
Articles
सुरति माने क्या? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
8 min
19 reads

सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे*∼ पौड़ी : अनंदु साहिब, नितनेम ∼ *

अनुवाद: हमारे परमपिता सर्वसामर्थ्यवान हैं प्रत्येक कर्म करने के लिए तो क्यों हम मन से उन्हें भूल जाते हैं?

वक्ता : सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे

किउ विसारे। क्यों विस्मृति में जाते हो ? “सभना गला समरतु सुआमी सो क्यू विसारे।”उस समर्थ स्वामी को क्यों विसारते हो।

अमनदीप (श्रोता) ने यह पुछा है कि गुरुद्वारों में, मंदिरों में लोग लगातार उसका नाम ही ले रहे हैं, इससे उनको कुछ मिलता तो दिखाई देता नहीं, तो ये तो बस एक विधि है, नाम लेना, जपना। उसके नाम की फिर महत्वता क्या है?

कहा क्या जा रह है-‘क्यू विसारे’। मुंह याद रखेगा क्या, अगर मुंह से जप रहे हो तो? जप क्या है? होंठ का चलाना? सुमृति क्या है? नाम लेना बार-बार कोई? किन्ही शब्दों का उच्चारण, ये है?

आत्म-पूजा उपनिषद ने क्या कहा था? जप क्या है? ‘निश्चलं आसनं ज्ञानम्’ उस जगह पर निश्चल हो करके बैठ जाना । बस यही तो है। किसका बैठ जाना शरीर का? मुँह का रटना?

हर नाम में एक ही नाम की सुरति बनी रहे, यही तो जप है ।

जप का यह अर्थ नहीं है कि एक ही नाम लिया; जप का अर्थ यह है कि जो भी नाम लिया उसके पीछे गूँज एक ही नाम की थी। मुँह है, मन है, तो ये तो विविधता में ही जीएंगे, हज़ार तरीके के नाम लेंगे। शब्द होते ही विविध हैं। ऐसा तो कर नहीं पाओगे कि कोई एक नाम ले रहे हो। और कोई एक नाम लोगे भी तो वो भी तो एक शब्द ही तो है। कौन सी बड़ी ख़ास बात हो गई।

कुछ भी कहते हैं नाम उसी का लेते हैं। कुछ भी कहते हैं याद वही रहता है।

तो मंदिरों में, गुरुद्वारों में जो लोग नाम लेते दिखते हैं उन्हें कुछ याद है?

श्रोता : सर बार-बार वही शब्द दोहरा कर मन में तो रहता ही होगा कुछ।

वक्ता : स्मृति में रहता है, स्मृति से क्या हो गया? स्मृति तो अतीत है – मुर्दा, उससे क्या हो जाएगा? रटने से कुछ हो जाता फिर तो क्या बात थी।

श्रोता २ : सर ये कहा गया है कि “भजन कह्यो ताते भजो, भजो ना एको बार” अर्थात जिसको भजने के लिए कहा ‘ताते भजो’ माने भाग गए, उससे दूर हट गए। भजो न एको बार, एक बार भी स्मरण नहीं किया। भजन करने के लिए बैठे थे और वही नहीं किया।

वक्ता : सारे शब्द बोल दिए, दिन में सौ दफे बोल दिए पर भजा तो तब भी नहीं। हम भजने पे कई दफा बात कर चुके हैं कि भजने का वास्तविक अर्थ क्या है? भजने का अर्थ ये थोड़े ही है कि कोई यांत्रिक प्रक्रिया चल रही है, होठों में, ज़बान में, गले में। सुना है न कबीर का – ‘भजो रे भैया राम-गोविन्द-हरी’। कह रहे हैं सस्ते में सब हो जाता है उसमें – *‘लगत नहीं गठरी’*। एक पैसा नहीं लगता ‘भजो रे भैया राम-गोविन्द-हरी’।

तुमने विधि की बात करी थी। कोई भी विधि तुम्हारी अनुमति के बिना काम नहीं करेगी। विधियाँ दी जा सकती हैं पर विधि को काम करने की अनुमति तो तुम्हें ही देनी है न। तुम मंदिर में बैठे हो पर दिल तुम्हारा अभी अटका ही हुआ है दुकान में और मकान में तो तुमने अपने आप को अभी अनुमति ही नहीं दी है कि यह विधि तुम्हें फायदा दे। विधि की कोई गलती नहीं है। जिन्होंने विधियाँ बनाई उन्होंने ठीक-ठाक बनाईं पर विधि तुम पर काम करे कैसे? और अगर तुम पूर्ण अनुमति दे दो तो फिर विधि की ज़रूरत भी नहीं है। अनुमति जितनी खुली होती जाएगी विधि की आवश्यकता उतनी कम होती जाएगी।

मैं विधियाँ तो बनाता ही रहता हूँ, तुम अनुमति कहाँ देते हो उन्हें सफल होने की? तुम्हारे आगे हर विधि हारी है। तुम्हारा अपना ही विधान चलता है। अनुमति तो तुम्हें ही देनी है न, मालिक तो तुम ही हो। “तुम तय कर लो पर हम होने नहीं देंगे” तो किसी माई के लाल में दम नहीं है कि कर के दिखा दे।

तुम्हें मुक्ति के पीछे नहीं भागना है बस मुक्ति के रास्ते से हटना है।

कहते हैं मुझे मुक्ति चाहिए; ये चाहिए वो चाहिए, उन्हें चाहना थोड़ी होता है, उन्हें पाना थोड़ी होता है, रास्ते से हटना होता है बस। रास्ते में तुम खुद खड़े हो, अपना पूरा समूचा ज़ोर ले कर के। ‘होने नहीं देंगे, कर के दिखाओ’ और क्या कह रहे हो- ‘मुझे मुक्त करना है तो मेरी लाश पर से गुजरना होगा।’

ठीक कह रहे हो, करना तो यही पड़ेगा। इसीलिए मृत्यु को महामुक्ति कहा गया है क्योंकि तुम्हें मुक्त करने के लिए तुम्हारी लाश पर से गुज़रना होगा। जितनी ताकत है लगाए पड़े हो, किसी तरह कहीं हो न जाए; रोक के रखा हुआ है कि कहीं हो न जाए। पूरी जान लगा के खड़े हो कि होने नहीं देंगे। और फिर कहते हो कि हम तो नन्हे-मुन्ने हैं, हमें तो कुछ नहीं आता।

{तंज कंस्ते हुए} तुम सूरमा हो, लड़ाके हो, तुमने युद्ध छेड़ रखा है और तुम बड़ी लड़ाई लड़ रहे हो। छोटा-मोटा विरोधी तुम्हें पसंद नहीं, तुम परम से लड़ रहे हो। शत-शत नमन है तुमको! तुमसे बड़ा धुरंधर कौन होगा? तुमने लड़ने के लिए भी चुना है तो कौन? सीधे उससे लड़ रहे हो| “होने नहीं दूंगा। कर के दिखा।”

श्रोता : सर जैसे ये शब्दों और मंत्रो की हम बहुत बात कर चुके हैं। एक बार किसी ने पूछा था कि जैसे ॐ शब्द है, ऐसे शब्दों के क्या मायने हैं तो आपने कहा था कि ये अब सिर्फ धार्मिक चिह्न बनकर रह गए हैं। अब इनकी बस एक छवि होती है मन में। तो मैं ये पूछना चाहता हूँ कि क्या शब्दों और मंत्रो में क्या सामान्य अन्तर यह होता है कि शब्दों के अर्थ होते हैं और मंत्रो में तरंगें (वाइब्रेशन)? और इन मंत्रो के उचारण मात्र से ही बदलाव हो सकता है?

वक्ता : ये सब बातें पंडितो के छल हैं, जिससे तुम नहीं समझो कि मंत्र क्या कह रहा है और बस उसको दोहराए जाओ तो उसके लिए तुमको एक झुनझुना थमा दिया गया है कि देखो समझने की ज़रूरत नहीं है, इसमें से तरंगें निकलती हैं वो फायदा कर देंगी।

क्या होता है *वाइब्रेशन ?*कान में पड़ती हुई एक ध्वनी ही तो है, एक सेंसरी इनपुट ही तो है, एक इन्द्रियगत अनुभूति ही तो है। अगर ये बात है भी कि उसमें से कुछ तरंगें हैं विशेष; तो तरंग कहाँ पड़ रही है? नाक पे, कान पे, यहीं तो पड़ रहीं हैं, तो क्या हो जाना है उससे? वैसे भी हजारों तरंगें होती हैं। तुम यहाँ बैठे हो तुम्हें पता भी है इस कमरे में कितना विकिरण (रेडिएशन) भरा हुआ है? कौन-कौन सी तरंगें हैं जो यहाँ भरी हैं? माइक्रो से लेकर कॉस्मिक तक सारी तरंगें भरी हुई हैं। तरंगों से तुम्हें क्या मिल रहा है? किसी प्रकार की कोई तरंग नहीं है जो इस कमरे में मौजूद नहीं है। उससे क्या हो गया ?

मानसिक चीज़ें हैं ये, इनसे कुछ मिल नहीं जाना हैं। और देखो ये क्या करते हैं हम, हम हर बात को खींच के, घसीट के इन्द्रियगत वस्तु बना ही देते हैं। मंत्रो को हमने क्या बना दिया? कि उसमें से तरंगे निकती हैं। अब वो मन को मौन में ले जाने का साधन नहीं बचा, वो मन को किसी और आयाम में ले जाने के लिए नहीं हुआ, अब वो भी एक खिलौना बन गया।

मैं फिर कहूँगा कि मामला एक सीधी, सरल आंतरिक इमानदारी का है। उसको क्यों इतना कठिन बनाते हो?

मन है, मन का विस्तार है, और मन का केंद्र है। इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है। और जो कुछ है वो इन्हीं तीनो में समाया हुआ है।

मन, मन का विस्तार, मन का केंद्र; इनके अतिरिक्त अगर कोई और बात पढ़ो तो समझ जाना कि मामला गड़बड़ है।

~ ‘शब्द योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light