Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles

सुनने का वास्तविक अर्थ || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)

Author Acharya Prashant

Acharya Prashant

5 min
195 reads
सुनने का वास्तविक अर्थ || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)

सुणिए हाथ होवै असगाहु

जपुजी (नितनेम)

वक्ता: जो हासिल किया नहीं जा सकता, जो बात दुष्प्राप्य है, वो भी सुनने से हाथ आ जाता है। जो तुम्हें अन्यथा कतई न मिलता, वो सुनने से मिल जाता है। क्या आशय है?

श्रोता 1: सुनने से कुछ मिलेगा की जगह इसको ऐसे करें कि जो भारीपन है, वो जाता नहीं है। अगर हम ऐसे मान लें कि हर सेकंड एक ग्राम भारीपन बढ़ ही रहा है, तो जिसको हम सत्संग कहते हैं – सत्य का संग – तो उसमें आप कुछ सुनते नहीं हो, कुछ और एक ग्राम बढ़ता नहीं है और जो बाहर से आम तौर पर एक ग्राम बढ़ रहा था, वो भी नहीं बढ़ता है। तो एक तरीके की सफ़ाई होती रहती है, जिसमें कि बढ़ौत्री नहीं होती। तो वो एक तरीके से क्लीनर का काम करता है।

श्रोता 2: हमारा जो रोज़ का सुनना है, उसमें कर्ता भाव भी होता है। उसमें चयन होता है कि क्या सुनें। लेकिन असली सुनना जो होगा, वो निर्विकल्प होगा।

श्रोता 3: आपने कई बार कहा है कि, ‘’ साइलेंस इज़ द साउंड्स बिहाइंड आल साउंड्स। ’’

वक्ता: बहुत बढ़िया। कल कोई पूछ रहा था कि कबीर ने कहा है कि, ‘ ही इज़ इन द ब्रेथ ऑफ़ आल ब्रेथ्स। ’ तो वो वही है। ‘न काबे कैलास में, मैं सांसन की साँस में। ’ ‘’मैं सांसन की साँस में हूँ, और मैं हर आवाज़ के पीछे हूँ। ’’

एक बात अच्छे से पकड़ लो। विचार, विचार को पकड़ता है और मौन, मौन से जुड़ता है। मन शब्दों के अलावा कुछ सुन नहीं सकता, मौन को मौन ही सुनेगा। कीमत सिर्फ़ मौन की है। सुनने का अर्थ है इधर के मौन ने, उधर के मौन से एका कर लिया। मौन, मौन से जुड़ गया; अनंतता, अनंतता से मिल गई। सुनने का अर्थ है: ‘’मैं, मैं न रहा, तू तू न रहा; मैं भी खाली, तू भी खाली।’’ खाली, खाली से मिल गया; पूर्ण पूर्ण से मिल गया। अपूर्ण कभी पूर्ण से नहीं मिल पाएगा। अपूर्ण और पूर्ण तो आयाम ही अलग-अलग हैं, उनका कोई मिलन नहीं होता। पूर्ण से मिलने के लिए, पूर्ण ही होना पड़ता है। मौन को सुनने के लिए, मौन ही होना पड़ता है।

मैं अभी बोल रहा हूं तो दो तल पर घटना घट रही है। एक तल पर मेरे शब्द हैं, और एक तल पर मेरा मौन है। और तुम सब दो तलों पर बैठे हो अभी। जिनका मन सक्रिय है, वो अभी मेरे शब्द सुन रहे हैं, दूसरे जो मौन में हैं, वो आत्मा से जुड़ गए, वो मौन से जुड़ गए। विचार, विचार से जुड़ता है; मौन, मौन से जुड़ता है। जो जैसा है, वो उसी से जुड़ता है। जो जिस तल पर है, वो उसी से तो जुड़ेगा न! विचार के तल पर सिर्फ़ विचार है। विचार और विचार, जैसे दो मुर्दा चीज़ें हैं, जैसे रेत से रेत मिला हो एसा जुड़ना है उनका।

जैसे पानी से पानी मिला हो, ऐसे मिलता है मौन से मौन। जैसे सागर से सागर मिल गया हो। रेत से रेत मिल कर भी कभी, एक नहीं हो पाती। कितनी भी लगे कि इकट्ठा है, पर वो अपना मौजूद कायम रखती है। एक-एक कण अपना प्रथक अस्तित्व कायम रखता है। और जब पानी से पानी मिलता है, तो पूरा एक हो जाता है। अलग-अलग नहीं कर पाओगे अब। विचार कितना भी सूक्ष्म हो, सूक्ष्मतम रेत का दाना बन जाएगा। पर उसमें उसकी जड़ता, उसकी ठसक, उसकी रिजिडिटी कायम रहती ही है, वही तो अहंकार है। वो कभी अपनेआप को गलने नहीं देगा। इसीलिए शब्दों को सुनना, सुनना है ही नहीं।

समझ रहे हैं न बात को?

शब्दों को कौन सुनेगा? आप ही सुनेंगे। जब आप कहते हो कि, ‘’मैं शब्दों को सुन रहा हूँ,’’ तो इसका मतलब कि मन सक्रिय है। और जब आप मौन को सुनते हो, तो उसका अर्थ इतना ही है कि आप भी मौन हो गए हो। मौन हो, तो मौन ही सुनाई देगा। वही असली मिलन है। अपूर्ण और अपूर्ण का मिलन लगता है कि हो गया, पर कभी होता नहीं। होता भी है, तो एक भ्रम की तरह, दुःख देता है बस क्यूँकी अपेक्षाएँ टूटती हैं। तुमने जो सोचा होता है कि मिलकर के मिल जाएगा, वो कभी होता नहीं। अपूर्ण, अपूर्ण का ऐसा मिलन। और पूर्ण पूर्ण का मिलन, कल्पना मात्र है। तुम कल्पना कर सकते हो कि, ‘’मेरा योग हो गया।’’ और बहुत घूम रहे हैं जिन्होंने कल्पना बाँध रखी है कि, ‘’मुझे तो मोक्ष हो गया है। ’’

वो यही कर रहे हैं: अपूर्ण हैं और दावा यह है कि पूर्ण से मिलन हो गया है। पति-पत्नी का समझ लो ऐसा सम्बन्ध है कि अपूर्ण और अपूर्ण मिले। तुम्हारे ये जो योगी-सन्यासी घूम रहे हैं, इनका ऐसा सम्बन्ध है कि जैसे अपूर्ण से पूर्ण मिले। जब पति कहता है कि पत्नी से मिल गया, तो वो इतना ही कहता है कि अपूर्ण से अपूर्ण मिले। पर ये जो तथाकथित सन्यासी कहते हैं कि, ‘’मुझे परम मिल गया,’’ तो ये कहते हैं कि अपूर्ण को पूर्ण मिल गया। ये दोनों ही बेवकूफियां हैं और सन्यासी की बेवकूफियां ज़्यादा बड़ी बात है।

मिलन तो मात्र पूर्ण से पूर्ण का होता है। मौन से मौन मिला। चुप तुम रहो, चुप हम रहे, खामोशी को खामोशी से बात करने दो।

YouTube Link: https://youtu.be/UbWaHITfUjE

GET UPDATES
Receive handpicked articles, quotes and videos of Acharya Prashant regularly.
OR
Subscribe
View All Articles