आचार्य प्रशांत: कृष्ण से, क्राइस्ट से, राम से, बुद्ध से प्रेम करना बड़ी विरल बात है; नहीं होता है। हम उनका नाम भी बस इसलिए ले लेते हैं क्योंकि भई नैतिकता का तकाज़ा है। स्कूल में बताया गया था, घर में सिखाया गया था कि अच्छे बच्चे ‘जय राम जी’ की बोलते हैं। “नुन्नु बोलो, जय राम जी की।" तो तब से नुन्नु जय राम जी की बोल रहे हैं, अब चालीस साल के हो गए।
उनके मन में राम के प्रति कोई प्रेम थोड़े ही है वास्तव में। वो तो जब गोद में भी फिरते थे, चचा उन्हें गोद में लेकर फिर रहे हैं और सामने से कोई और आता दिख गया तो तुरंत बोलते थे नुन्नु से, “नुन्नु, चलो जय करो!” नुन्नु बोलते थे, “जय लाम जी की।” तो वही चल रहा है अभी तक। ये प्रेम से थोड़े ही हो रहा है। ये तो इसलिए हो रहा है क्योंकि एक बार नहीं बोले थे जय राम जी की तो चांटा पा गए थे। तो तब से ये बात भीतर बैठ गई है कि जो मिले उसको बोलो, “जय लाम जी की।”
राम से प्रेम करने के लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए और बड़ा रक्तरंजित कलेजा चाहिए। जब दिल बिल्कुल खून-खून हो गया हो, चिथड़े हो गया हो तब राम से प्रेम उठता है। नहीं तो तुम कितना भी बोलते रहो “जय श्री राम!” तुम बस अपने अहंकार की उद्घोषणा कर रहे हो।
कारण समझ लो अच्छे से। कारण ये है कि राम से प्रेम करने का मतलब होता है: बस राम से प्रेम करना। राम से प्रेम करने का मतलब होता है कि अब और कोई चीज़ मुझे लुभाती नहीं, खींचती नहीं। आप ये नहीं कर सकते कि मुझे राम से भी प्रेम है और बिस्तर से भी प्रेम है और कद्दू की सब्जी से भी प्रेम है, और पड़ोस की शीला से भी प्रेम है। इसीलिए रामों, कृष्णों को, बुद्धों को, महावीरों को प्रेम बहुत कम मिलता है, बहुत कम।
दो तरह का प्यार होता है: एक वो जो ताकत से किया जाता है और एक वो जो कमज़ोरी से किया जाता है। हम जब प्यार करते हैं तो हम प्यार करते ही दूसरे की कमज़ोरी से हैं। गौर से परखिएगा। आप जब किसी से प्यार करते हो न तो करते ही प्यार उसकी कमज़ोरियों से हो और बुद्ध के पास कोई कमज़ोरी तो है नहीं तो उनसे प्यार कैसे करोगे?
ताकत तो हमें डराती है, ताकत के प्रति तो हममें ईर्ष्या उठती है। आपका प्रेमी बहुत ताकतवर होने लगे तो आपका रिश्ता टूटने लगेगा। रिश्ता चल ही तब तक सकता है जब तक आपकी और उसकी कमज़ोरी बराबर की है। जब तक वह आपसे बहुत आगे नहीं निकल गया—अगर वो आगे निकलने लगे तो आपको चिंता होने लग जाएगी कि ये तो रिश्ता टूटा, ये तो आगे निकल रहा है।
इसी को तो कहते हैं न शादी-ब्याह बराबर वालों में किया जाता है। इसका मतलब समझिए। इसका गहरा मतलब क्या है? जो आपसे आगे निकलने लग जाए आप उससे रिश्ता रख नहीं पाओगे। इसका मतलब है कि आपका प्रेमी भी अगर आपसे आगे निकलने लग जाए तो आप तत्काल उसको रोकोगे, “आगे मत निकलना।”
हमें दूसरों में आमतौर पर उनकी कमज़ोरियाँ ही आकर्षित करती हैं।
और अब सावधान हो जाइए। सबसे बड़ी कमज़ोरी सुनने के लिए: “मुझे तुझसे प्यार है क्योंकि तू मेरी ओर आकर्षित हुआ। इससे मुझे तेरी कमज़ोरी पता चल गई।”
क्या?
“तू मेरी ओर आकर्षित हो जाता है यही तो तेरी कमज़ोरी है। जैसे ही तू मेरी ओर खींचा, मैं तुरंत समझ गया कि तू बहुत कमज़ोर आदमी है। तू कमज़ोर आदमी न होता तो मेरे जैसे की ओर खींचता?”
ये कितनी खौफनाक बात है। तेरी कमज़ोरी, तेरी गलती ही यही है कि तू मेरी ओर आकर्षित हुआ। जैसे ही तू मेरी ओर आकर्षित हुआ मैं धीरे-से मुस्कुरा दिया, मैंने कहा “मैं तुझे समझ गया बच्चू तू कौन है। तू भी मेरे ही जैसा है। तू भी मेरे ही तल का वासी है।”
तू अगर कहीं आगे का होता, तुझमें ज़रा-भी ताकत होती, ज़रा भी ऊंचाई होती तो तुझे क़ायदे से मेरी उपेक्षा कर देनी चाहिए थी क्योंकि मैं इस लायक हूँ ही नहीं कि कोई मुझ पर ध्यान दे। हम प्यार ही दूसरे की कमज़ोरियों से करते हैं। कमज़ोरियाँ हट जाएँ, रिश्ता टूट जाएगा।
दूसरा आपकी ओर खिंचा आता है, आप दूसरे की ओर खिंचे जाते हो, ये आपकी ताकत है क्या वास्तव में? आमतौर पर ये खिंचाव वासना का ही होता है। ये कमज़ोरी ही तो है न? और इसी कमज़ोरी के आधार पर वो रिश्ता खड़ा हुआ है। अब बुद्ध से कैसे करोगे प्यार, बोलो? वो तो खिंचने से रहे तुम्हारी ओर। तुम जाओ उन्हें जितना लुभाना हो लुभा लो, वो नहीं खिंचेंगे। अब उनसे प्यार कैसे करोगे, बोलो?
आमतौर पर यही प्यार होता है: जो जितना कमज़ोर है उसको उतना प्यार दो। चाहे फिर वो रोगी हो, वृद्ध हो, या छोटा बच्चा हो। जहाँ कमज़ोरी देखी वहीं स्नेह दिया। इसीलिए हमारा सबसे ज़्यादा स्नेह बरसता ही दूसरे पर तब है जब उसकी कमज़ोरी का क्षण होता है। अपने-आपको टटोलिए, देखिए कि भीतर ही भीतर हम भी अपने आसपास वालों को कमज़ोर ही देखना चाहते हैं। वो ताकतवर हों भी तो बस इतने हों कि उनकी ताकत से हमें लाभ हो जाए। बहुत ताकतवर हो गए तो दिक्कत हो जाएगी।
अब बोलो बुद्ध से कैसे करोगे प्यार? वहाँ तो कोई नहीं है कमज़ोरी। दुनिया में सबसे कम प्यार किनको मिला? जो सबसे ज़्यादा प्यार के अधिकारी थे। जिन्हें सबसे ज़्यादा प्यार मिलना चाहिए था, उन्हें सबसे ज़्यादा नफरत मिलती है और जो सब गए-गुज़रे होते हैं उन्हें इसीलिए प्यार मिलता है क्योंकि वो गए-गुज़रे हैं।
“अलेले! लेले! मेरा शोमू कितना स्टूपिड (मूर्ख) है?” अरे! स्टूपिड है तो ये बोलने के लिए भी काहे को रुकी कि शोमू स्टूपिड है? भाग! जान बचाकर भाग! पर शोमू क्यूट ही इसीलिए है क्योंकि वो स्टूपिड है। ये तो अजीब बात है! तुमको पता है वो स्टूपिड है, तुम तब भी उसके साथ गठबंधन कर रहे हो, ये क्या माजरा है?
और गौर से देखना कि तुम्हें स्टूपिडिटी (मूर्खता) जितनी पसंद है, इंटेलिजेंस (समझदारी) से, बोध से तुम उतना ही घबराते हो। तुम्हारा शोमू अगर समझदारी की गहरी, बोधजनित आध्यात्मिक बातें करने लग जाए तो तुम कहोगी “शोमू! आर यू ऑल राइट बेबी? (तुम ठीक हो?)" वो जब तक एकदम महाबेवकूफी बघार रहा है तब तक तो वो क्यूटी पाई (प्यारा) है और जहाँ उसने दो-चार ढंग की बातें करी, तुम्हारे एंटीने खड़े हो जाएँगे। कहोगे “गया, निकला! क्योंकि समझदार हो गया तो मेरे पास काहे को रुकेगा? मेरे पास तो कोई बेवकूफ़ ही आ सकता है।” ऐसा है हमारा प्यार। जो होता ही कमज़ोरियों के तल पर है।
इसीलिए जिन्होंने जाना उन्होंने प्यार के लिए दो नाम दिए: अपरा प्रेम और पराप्रेम। ये जो कमज़ोरियों से प्यार किया जाता है इसको कहते हैं — अपरा प्रेम। ये साधारण, सांसारिक, भौतिक प्रेम होता है, जो प्रेम है ही नहीं। ये एक तरह की दुश्मनी है। जिससे दुश्मनी निकालनी हो, उसको तुम कहने लग जाते हो मुझे इससे बहुत प्यार है और जो वास्तविक प्रेम होता है फिर जानने वालों ने उसको नाम ही अलग दे दिया। उसको कहा परम-प्रेम या परा-प्रेम कि ये असली प्रेम है। लेकिन चूँकि प्रेम शब्द अब गंदा कर दिया है दुनिया वालों ने तो इसको हम नाम दूसरा देंगे, इसको हम कहेंगे परा-प्रेम, परम प्रेम।