Grateful for Acharya Prashant's videos? Help us reach more individuals!
Articles
स्त्री का विकास, परंपरा, और आधुनिकता || डॉक्टरों व मेडिकल छात्रों के संग (2018)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
8 min
45 reads

प्रश्नकर्ता: भारतीय समाज में पुराने ज़माने में महिला त्याग, संस्कार, और विनम्रता की मूर्ति हुआ करती थी। आज की आधुनिक महिला ग़लत को 'ग़लत' और सही को 'सही' बोलती है। क्या सही है? वो सही था, या ये सही है?

आचार्य प्रशांत: जो सही है, वो सही है। ना वो सही है, ना ये सही है, जो सही है वो सही है। आवश्यक थोड़े ही है कि इसमें और उसमें ही कोई सही हो, ये भी तो हो सकता है कि जो सही हो, वो कोई तीसरा हो। ये भी तो हो सकता है कि सच्चाई कहीं बीचों-बीच हो, इधर-उधर हो; आप ज़मीन पर खोज रही हैं, दाएँ या बाएँ, सच्चाई आसमान में हो। किसी और आयाम में भी तो कुछ हो सकता है न। बैठिए, बात करते हैं।

देखिए, पहली बात तो ये है कि नारी विमर्श में आज पुरानी नारी को जितनी दयनीय हालत में दर्शाया जाता है, उतनी दयनीय हालत में वो थी नहीं। निश्चित रूप से उसका शोषण भी होता था, निश्चित रूप से उसके अधिकार भी कुछ कम थे, निश्चित रूप से उस पर कुछ वर्जनाएँ थी, पर जितना आधुनिक विमर्श में उसको बेचारगी की हालत में दिखाया जाता है, उतनी बेचारगी की हालत में वो कभी नहीं थी।

आप पुराने ग्रंथों को देखें, आप कहानियों को देखें, जो उस समय के समाज का खाँका आपके सामने खींचती हों, प्रतिबिंबित करती हों। उसमें आपको दिखाई देगा कि महिलाओं के भी अपने पुख़्ता हक थे, और बहुत मजबूत महिलाएँ भी हुआ करतीं थीं। ऐसा ही नहीं था कि वो बेचारी बस दमित ही थीं और पुरुष वर्ग उनका लगातार शोषण ही करे जा रहा था। ये तो हमने कहानी को पूरा पोत दिया एक काले रंग से।

दीवार पर कई रंग थे, पर चूँकि हमें ये दिखाना था कि हम सफ़ेद हैं, तो हमने उस पुरानी दीवार को पूरा ही काला पोत लिया। जब जिसका तुम विरोध कर रहे हो, वो पूरा काला दिखाई देता है, तो तुम्हारी सफ़ेदी में और रौनक आ जाती है न, "देखो, वो कितने काले थे, हम कितने सफ़ेद हैं!" नहीं।

स्त्री के विकास के लिए वास्तव में जो ज़रूरी है, वो निश्चित रूप से होना चाहिए, पर ये ना कर दीजिएगा जिसे अंग्रेज़ी में कहते हैं - *थ्रोइंग द बेबी आउट विद बाथ वॉटर*।

बहुत कुछ ऐसा भी था स्त्री में जो सम्माननीय था, अनुकरणीय था, और आधुनिकता के नाम पर स्त्री उसको खोती चली जा रही है। जो कमियाँ थीं, उनको दूर करिए; जहाँ अन्याय था, उसको हटाइए; जो कुप्रथाएँ थीं, उन्हें दरवाज़ा दिखाइए; पर ऐसा ना हो कि आप त्याग को, सहनशीलता को, क्षमा को, और प्रेम को ही पुरानी बातें समझ करके, दक़ियानूसी बातें समझ करके ख़ारिज कर दें।

और यही हो रहा है।

नारी का पहले जिन-जिन तरीक़ों से शोषण हुआ, उन सब तरीक़ों की ख़िलाफ़त होनी बहुत ज़रूरी है। पर उस ख़िलाफ़त का अर्थ ये नहीं है कि नारी में जिन गुणों को पहले प्रोत्साहित किया जाता था, उन गुणों को भी व्यर्थ समझ कर कचरे में डाल दिया जाए। सहनशीलता क्या बुराई है? अगर सहनशीलता बुराई है, तो सब आधुनिक लोग सहिष्णुता और टॉलरेंस की क्यों बात करते हैं? धैर्य क्या बुराई है? बोलिए।

तो अगर भारतीय परंपरा ने स्त्री में इन गुणों को पूजनीय माना, तो क्या आप उस पूरी परंपरा को ही अस्वीकार कर देना चाहते हो? नहीं साहब, अस्वीकार नहीं किया जाता, बेहतर बनाया जाता है।

अतीत में बहुत कुछ है जो अच्छा है, सुंदर है, उसे ग्रहण करिए। आधुनिकता के नाम पर सब उठाकर मत फेंक दीजिए।

और ऐसा भी नहीं है देखिए कि आधुनिकता के नाम पर आप सब कुछ फेंक देते हैं। आधुनिकता के नाम पर आप बस वो फेंक देते हैं जो ये तथाकथित आधुनिकतावादी और बुद्धिजीवी आपको फेंकना सिखाते हैं। आधुनिकता के नाम पर आप पचास चीज़ें ग्रहण भी कर लेते हैं, और उन चीज़ों को आपने अपने होश में नहीं चुना है; वो चीज़ें आपको किसी ने बता दी हैं कि - "बढ़िया हैं।"

ये किस तरीक़े से अच्छा है कि कोई भी व्यक्ति—चाहे वो स्त्री हो या पुरुष हो—विनय से, विनम्रता से, कोमलता से रिक्त हो जाए? बताइए। ये किस तरीक़े से अच्छा है कि लज्जा को तो आप बुरी बात मान कर फेंक दें, बहिष्कृत कर दें कि - "लज्जा बेकार की बात है, लज्जा शोषण का यंत्र है" - और आप प्रोत्साहित करने लग जाएँ लज्जा की जगह देह के कामुक प्रदर्शन को? लज्जा में हो सकता है शोषण निहित रहा हो, पर जिस चीज़ को आप अब ला रहे हो लज्जा को विस्थापित करके, लज्जा के सब्सीट्यूट के तौर पर, वो चीज़ तो लज्जा से भी घटिया है।

पुरानी नारी लजाती थी। चूँकि लजाती थी, इसीलिए उसका कई बार शोषण हो जाता था। वो इतना भी लजा जाती थी कि उसको अगर रोग होते थे, वो डॉक्टर के सामने भी नहीं आती थी, ख़ासतौर पर अगर स्त्रीरोगों की बात हो। उस लज्जा ने उसका बड़ा अपकार किया। और आज की नारी बिलकुल नहीं लजाती है। लज्जा को हटाकर के जो लाए हो, तुम मुझे बताओ, तुमने क्या पाया क्या खोया?

ये काले-सफ़ेद की बात नहीं है कि पुराना सब गंदा-गंदा था और नया सब अच्छा-अच्छा है। इस भ्रम में मत रह लीजिएगा। ना पुराना सब गंदा-गंदा था, ना नया सब अच्छा-अच्छा है। अच्छाई जहाँ मिले, उसे ग्रहण करो। अतीत में मिले, तो उसे इसलिए मत ठुकरा दो कि वो अतीत की है।

तुम्हारे इतिहास में, तुम्हारी परंपरा में बहुत कुछ ऐसा है जो कालातीत है, जो आज भी अच्छा है और सदा अच्छा रहेगा; उसे कभी भी ठुकरा मत देना, चाहे आधुनिकतावादी और बुद्धिजीवी और लिबरल तुम्हें कितना बताएँ कि भारत का इतिहास तो सिर्फ़ शोषण का इतिहास है।

नहीं साहब, ऐसी बात नहीं है।

**जिस देश में उपनिषद् रचे गए हों, और जिस देश में अहिंसा लायी गयी हो, वहाँ का इतिहास सिर्फ़ शोषण का इतिहास नहीं हो सकता। बाकी चाँद पर भी धब्बे होते हैं, आसमान में तरह-तरह के बादल होते हैं—खुला आकाश सदा नहीं दिखता।

कोई क़ौम ऐसी नहीं है, कोई देश ऐसा नहीं है, जिसके इतिहास में सब कुछ स्वर्णिम ही हो। भारत के इतिहास में भी बहुत कुछ ऐसा है जो नहीं होना चाहिए था, जो हमारी बदनसीबी है, जिसके लिए हमें अपने ही लोगों से क्षमाप्रार्थी होना चाहिए। लेकिन उतना ही हटाओ न! तुम तो सब कुछ हटा दे रहे हो। और ये सब कुछ हटाना बहुत भारी पड़ेगा — *थ्रोइंग द बेबी आउट विद बाथ टब*।

(आचार्य जी चिकित्सकों की एक सभा को सम्बोधित कर रहे हैं) आप डॉक्टर हैं। सर्जरी करते हैं ब्रेन की, तो पूरा भेजा ही निकाल कर फेंक देते हैं क्या? जितना हिस्सा सड़ गया है, ट्यूमर का हो गया है, उतना ही निकालते हैं न? बाँह में सेप्टिक होने लगा है, तो पूरी बाँह ही काट देते हैं? क्या कोशिश करते हैं? कि - "जितना हटाया जाना ज़रूरी है, बस उतने की सर्जरी कर दें; बाकी बचाओ भई, बाकी कीमती है।"

पर हवा कुछ अलग ही चल रही है - चीज़ अगर पुरानी है, तो बस हटा ही दो, क्योंकि पुरानी है।

ये सब मत करिएगा।

अगर आप वो सबकुछ हटाना चाहेंगे जो पुराना है, तो आपको दो इकाईयाँ हैं जिन्हें हटाना पड़ेगा। सबसे पहले अपने आपको, क्योंकि आप बहुत पुराने हैं। अगर हम पढ़े-लिखे हैं, अगर हम जानते हैं, तो हमें पता है कि हमारी एक-एक कोशिका कितनी पुरानी है। हम बहुत पुराने हैं।

और दूसरा आपको हटाना पड़ेगा सच्चाई को, क्योंकि सच्चाई भी आज की नहीं है, बहुत पुरानी है। वो इतनी पुरानी है कि जब समय भी नहीं शुरू हुआ था, वो तब भी थी।

हर पुरानी चीज़ को गर्हित ठहराने की कोशिश बड़ा बेहूदापन है।

इससे सावधान रहिएगा।

Have you benefited from Acharya Prashant's teachings?
Only through your contribution will this mission move forward.
Donate to spread the light