सिद्धियों और शक्तियों का क्या महत्त्व || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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सिद्धियों और शक्तियों का क्या महत्त्व || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: अक्सर ऐसा सुनने में आता है कि किसी के पास कोई सिद्धि है और किसी के पास कोई शक्ति है। आध्यात्मिक जगत में ऐसे चर्चे बड़े सुनने को मिलते हैं। जीवन में मुमुक्षा जागृत हो या समाधि प्राप्त हो, इन सब में इन सिद्धियों का क्या महत्व होता है?

आचार्य प्रशांत: जिन्होंने सिद्धियों की बात करी है उन्होंने भी साफ़-साफ़ कहा है कि सिद्धियाँ मुक्ति के रास्ते में लाभप्रद तो नहीं ही होतीं, वो विचलन का एक कारण ज़रूर बन जाती हैं। जिन लोगों ने सिद्धियों की हस्ती में, सत्ता में विश्वास भी करा है, उन्होंने भी यही कहा है कि सिद्धियाँ होती हैं, पर इनके चक्कर में मत पड़ना क्योंकि तुम्हें सिद्धि नहीं मुक्ति चाहिए।

और सिद्धियों में बड़ा आकर्षण होता है। सिद्धियाँ इस तरह की कि किसी का मन पढ़ लिया, कि अपना शरीर छोड़ करके किसी और के शरीर में प्रविष्ट हो गए, इन्हीं सब को सिद्धि इत्यादि माना जाता है। आसमान में उड़ने लग गए, अभी यहाँ हैं, तत्काल कहीं और किसी दूसरे देश पहुँच गए, पानी पर चलने लग गए, रोगी को छू करके स्वस्थ कर दिया – ये सब सिद्धियाँ मानी जाती हैं। ठीक है? तो ये सिद्धियाँ हैं भी तो बताने वालों ने सावधान करा है कि इनके लालच में मत पड़ना, क्योंकि तुम्हें सिद्धि नहीं मुक्ति चाहिए।

और सिद्धि बड़ी आकर्षक होती है, उसमें ताक़त होती है न, दूसरे प्रभावित होते हैं, तुम्हारे हाथ में बल आ जाता है। जिसको सिद्धि मिल गई, वो फिर सिद्धि-सिद्धि ही खेलता रहता है।

जहाँ तक मेरी बात है, सिद्धि जैसी कोई चीज़ मैं मानता ही नहीं, ख़ासतौर पर उस तरह की सिद्धि जिसपर पारंपरिक रूप से विश्वास किया जाता है और जिसका उल्लेख कई ग्रंथों-पुस्तकों में भी आता है। न कोई पानी पर चल सकता है, न कोई किसी के शरीर में प्रवेश कर सकता है, न कोई बैठे-बैठे मन की गति से, कल्पना की गति से एक स्थान से दूसरे स्थान में पहुँच सकता है, न किसी को भविष्य का ज्ञान हो सकता है, न कोई अपनी देह से बाहर आ करके पूरी दुनिया का दृष्टा बन सकता है। ये सब बातें अधिक-से-अधिक काव्यात्मक हैं, ये सब बातें अधिक-से-अधिक प्रतीकात्मक हैं, इनमें कोई तथ्यता नहीं है, इन बातों में कोई यथार्थ नहीं है।

जहाँ तक शरीर की बात है, विज्ञान पर भरोसा करो।

प्र: आपसे अनुरोध है कि ये बताएँ कि सद्गुरु जीवन में कब प्रकट होते हैं, और ये घटना आंतरिक है या स्थूल? शिष्य कैसे जान पाता है कि जीवन में सद्गुरु प्रकट हो चुके हैं?

आचार्य: शिष्य जब सच्चाई, शांति, मुक्ति की खोज में व्याकुल ही हो जाता है, जब उसका मन पचास जगह भटकने की जगह एक केंद्र की तरफ़ बढ़ने लगता है, सच्चाई चाहिए, उसी की तरफ़ मन बढ़ने लगता है, तब अंदर की इन घटनाओं के फलस्वरूप बाहर भी कोई मिल ही जाता है। पर बाहर कोई मिले, उसके लिए आवश्यक है कि पहले ललक भीतर उठे।

भीतर की जब तैयारी पूरी होती है तो ये नियम है कि बाहर मिल जाएगा पथप्रदर्शक। और भीतर की तैयारी पूरी नहीं है, तो बाहर आपके कृष्ण, क्राइस्ट, बुद्ध, महावीर, कोई घूमते रहें, आप उन्हें महत्व ही नहीं देंगे।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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