शिक्षा माने क्या? बच्चे को कैसे बताएं?

Acharya Prashant

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शिक्षा माने क्या? बच्चे को कैसे बताएं?
शेक्सपियर क्यों पढ़ा रहे हो बताओ? और होगा कोई वाजिब कारण। निश्चित रूप से है। बाद में दिखाई पड़ता है कि हां एक माकूल, सही उचित वजह थी। पर उस वक्त अगर उसको ये बात नहीं पता चल रही है तो उसके लिए चीज उबाऊ हो जाती है। ये अंग्रेजी भी नहीं है। ‘दाऊ शाल्ट’— एक तो हिंदी में बात कर ले यार तू। ‘दाऊ शाल्ट’। प्यार, स्पष्टता ये सब एक साथ चलते हैं। आजादी, जिज्ञासा ये सब एक साथ चलते हैं। सबसे बड़ा नुकसान यह है कि आपकी जिंदगी प्यार से वंचित रह जाती है। और इससे बड़ी सजा दूसरी नहीं होती। यह सारांश प्रशांतअद्वैत फाउंडेशन के स्वयंसेवकों द्वारा बनाया गया है

प्रश्नकर्ता: नमस्ते सर। सर आपने कहा था कि हमें काम से प्रेम नहीं होता है। इसलिए हम काम से दूर भागते हैं। सर बच्चों के नजरिए से देखा जाए तो उनका जो है जैसे बड़ों का काम होता है ऑफिस का काम करना और यह सब तो बच्चों के लिए उनकी शिक्षा जो होती है स्कूल आना जाना। यह चीज उनके जीवन में बहुत ज्यादा होती है और डेली डेली एक्टिविटी होती है। तो एक बहुत कॉमन पैटर्न देखा गया है समाज में कि बच्चों को पढ़ाई से बहुत ज्यादा लगाव होता नहीं है। मतलब ज्यादातर जगह में ये होता है। ये चीज शुरुआत में मेरे साथ भी रही थी काफी टाइम तक। तो इस चीज को हम कैसे टैकल कर सकते हैं कि बच्चे जो है पढ़ाई की तरफ आगे बढ़े।

आचार्य प्रशांत: बच्चे और बड़े में अंतर है बहुत। बड़ा काम से दूर भागता है क्योंकि उसने काम चुना ही स्वार्थ के लिए है। बड़े ने चुना है। खुद बस स्वार्थ से चुना है। प्रेम से नहीं चुना है और बच्चे ने तो चुना ही नहीं है। उसको तो पता ही नहीं है कि उसे पढ़ना क्यों है।

आप जब दफ्तर जाते हो तो आपको पता है आप क्यों जा रहे हो। आप सैलरी के लिए जा रहे हो। वो जो पांच साल का है उसको आप जब बस में फेंक रहे हो। उसको तो पता भी नहीं है कि उसे क्यों फेंका जा रहा है बस में। आप जब अपने आप को बस में फेंक रहे हो तो आपको पता है आप जा रहे हो तो आपको सैलरी मिलेगी। उसको तो यह भी नहीं पता कि क्या मिलेगा। तो ठीक है। आपका प्रेम नहीं है तो कम से कम स्वार्थ है। उसका तो स्वार्थ भी नहीं है। उसका तो बस क्या है? हैं या आज फिर फेंक दिया बस में। हम खुद ही नहीं जानते शिक्षा क्या है? उसको कैसे बताएंगे शिक्षा माने क्या? कैसे बताएं? और शिक्षा अगर वाकई इंसान के लिए अच्छी चीज होती है तो बच्चा खुद आगे बढ़-बढ़ के कूद-कूद के पढ़ेगा।

ये मैं कई बार सोचता था। सोचा था कि कोई भी चैप्टर शुरू होने से पहले यह होना चाहिए कि यह चैप्टर क्यों पढ़ाया जा रहा है तो ज्यादा मन लगेगा। बस ऐसे ही आपने बता दिया। लो ये पढ़ लो एलसीएम निकाल लो। क्यों निकालूं? और वो दोनों साथ चलते हैं हमेशा। एलसीएम और एचसीएफ। क्यों? क्यों? बहुत काम के चीज हो सकते हैं। पर कभी बताया नहीं कि किस लिए निकाल रहे हैं? तो पता नहीं होता कि उपयोगिता क्या है और फिर उसका नतीजा यह होता है कि आप बड़े भी हो जाते हो।

मैंने तीस-तीस साल वालों को वीडियो बनाते देखा है। और वो वीडियो ऐसे बनाते हैं जैसे उन्होंने पता नहीं कितनी बड़ी बात बोल दी। उसपे तीन-चार मिलियन लाइक्स वाइक्स आ जाएंगे उन्हीं जैसों के। ऐसे आएगा शुरू करेगा। बोलेगा ये देखो sin² थीटा + cos² थीटा = 1

इसी के मारे मेरा बोर्ड एग्जाम फेल हो गया था। पर आज कोई यह बता दे कि इस चीज की प्रैक्टिकल लाइफ में कहीं कोई वैल्यू है? कोई फर्क पड़ता है? इस मूर्ख को पता ही नहीं है कि पूरी दुनिया उसी पे चल रही है। इस मूर्ख को पता नहीं है कि तेरे कपड़े भी ना बने अगर sin² थीटा, cos² थीटा वन ना हो। फ्लाई ओवर भी ना बने। प्लेन तो बहुत दूर की बात है। एक सुई भी ना बने। पर ये इसको बचपन में ही बता दिया जाना चाहिए था ना। बेसिक ट्रिग्नोमेट्री आप किसी को क्यों पढ़ा रहे हो? ये बात बचपन ने बता देते। नहीं बताओगे तो 30 साल का हो के गंदी गंदी रील्स बनाएगा वो। और वो कहेगा ये देखो, नहीं समझ में आता। मैथ्स का मजाक उड़ाते हैं कभी कहेंगे वो ‘एक्स्ट्रा 2ab।’

बचपन में उस बेसिक आइडेंटिटी से पहले ये बता दिया गया होता कि भाई (a+b)² या (a+b)³ इसका मतलब क्या है? वरना वो एब्स्ट्रैक्ट हो जाता है ना। a क्या है? b क्या है और स्क्वायर क्या है? मतलब a + b को a + b से ही क्यों आप मल्टीप्लाई कर रहे हो? बात क्या है? ये किसके प्रतीक है? वो प्रतीक कभी समझाए नहीं जाते। आपको बस ये लगता है तो अलजेब्रा है। तो अलजेब्रा माने क्या? अलजेब्रा क्या मतलब? जिसको पता होगा उद्देश्य वो जान जाएगा महत्व। फिर वह खुद करेगा। आगे बढ़ के डूब के करेगा। नए-नए तरीकों से करेगा। हो सकता है कि वह कुछ उसमें से नया खोज के ही निकाल दे।

हिस्ट्री पढ़ाई गई। आपको बताया गया क्यों? क्यों आपको पता हो? 1172 में क्या हुआ था? 1526 में क्या हुआ था? 1757 में क्या हुआ था? क्यों पता होना चाहिए? बताइए। क्यों? पर यह आपकी इतिहास की किताब में शुरू में लिखा नहीं होता है। ना प्रश्न पत्र में यह पूछा जाता है कि आप हिस्ट्री पढ़ क्यों रहे हो? बच्चों को यह बता दो तो फिर वो ज्यादा मजे में पढ़ेंगे। अच्छा ऐसी बात है। अच्छा इसलिए पढ़ना होता है। फिर तो पढ़ेंगे। फिर तो देखते हैं।

भूगोल पढ़ रहे हो आप। स्टैलेगमाइट्स, स्टैलेक्टाइट्स। क्यों पढूं? किस लिए पढ़ना है? बताओ ना कि क्यों पढ़ना है?

शेक्सपियर पढ़ा रहे हो आप। आठवीं में हमें लगता था आठवीं आठवीं, नौवीं, दसवी, ग्यारहवी, बारहवी: शेक्सपियर क्यों पढ़ा रहे हो बताओ? और होगा कोई वाजिब कारण। निश्चित रूप से है। बाद में दिखाई पड़ता है कि हां एक माकूल, सही उचित वजह थी।

पर उस वक्त अगर उसको ये बात नहीं पता चल रही है तो उसके लिए चीज उबाऊ हो जाती है। उसके लिए बोझ जैसी हो जाती है कि मुझे जबरदस्ती ये देखो। ये अंग्रेजी भी नहीं है। ‘दाऊ शाल्ट’— एक तो हिंदी में बात कर ले यार तू। ‘दाऊ शाल्ट’।

प्यार, स्पष्टता ये सब एक साथ चलते हैं। आजादी, जिज्ञासा ये सब एक साथ चलते हैं। और बहुत खेद की बात है कि हम में, हमारी संस्कृति में, हमारे राष्ट्र में इन सब चीजों का बड़ा अभाव आ गया है। उसको दूर करना पड़ेगा। मैं कह सकता हूं कि बहुत सारे नुकसान होते हैं। अगर आप दूर नहीं करते। कह सकता हूं आर्थिक प्रगति नहीं होती। कह सकता हूं सामरिक प्रगति नहीं होती। वैज्ञानिक तकनीकी प्रगति नहीं होती। बहुत तरह के मैं नुकसान गिना सकता हूं।

पर सबसे बड़ा नुकसान यह है कि आपकी जिंदगी प्यार से वंचित रह जाती है। और इससे बड़ी सजा दूसरी नहीं होती। ‘लिविंग अ लवलेस लाइफ।’ वो नहीं होना चाहिए। प्यार ना हो तो टेक्नोलॉजी भी किसी काम की नहीं। टेक्नोलॉजी ना हो, साइंस ना हो, इकोनॉमिक्स ना हो, चल जाएगा एक बार को काम। जिंदगी में कुछ ऐसा है ही नहीं जिसके लिए दिल धड़के तो फिर काम नहीं चलता है।

प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी।

आचार्य प्रशांत: हां जी।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी। आज से एक साल पहले यही हमारा सत्र हुआ था। सेम न्यू ईयर पे। उसके बाद आपके पास से जाने के बाद बहुत सारी चीजें अपनी लाइफ में बदलाव किया है। बहुत सारी चीजें से आगे बढ़ी हूं। अभी काफी स्वतंत्र हूं। काफी ऊर्जा मिली है आपसे। लिखने में और ऐसे मन ही मन में आपसे बहुत बात करती हूं। पर जब सामने से बात करने की बारी आती है तो डर लगने लगता है या जब कम्युनिटी पे पोस्ट लिखती हूं तो लगता है अगर कभी आप पढ़ोगे तो लगेगा कि कितना गलत लिखती है।

पर हिंदी लिखने में बोलने में और बहुत सारी चीजें करने में सुधार किया है और बस उसी के लिए आपको थैंक यू बोलना चाहती हूं। थैंक यू सो मच आचार्य जी फॉर गिविंग मी न्यू लाइफ। थैंक यू सो मच टू बीइंग माय बोध फादर। आई लव यू सो मच।

आचार्य प्रशांत: इसीलिए माइक नहीं दे रहा था मैं। जो चीज असली होती है उसको बस मौन रहने दो और जिंदगी को बेहतर बनाकर दिखाओ। ठीक है?

प्रश्नकर्ता: जी।

आचार्य प्रशांत: कुछ चीजों को ना बोला जाए तो कुछ घट नहीं जाता। वो उसका प्रदर्शन अपनी जिंदगी में अपनी ऊंचाई में हो जाता है। हम बेहतर हो रहे हैं। उसी से बात पता चल गई। भाई थैंक यू हो गया। उसको ऐसे शब्दों में बोलने की बहुत जरूरत नहीं होती।

चलो ठीक है। चलिए।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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