प्रश्नकर्ता: नमस्ते सर। सर आपने कहा था कि हमें काम से प्रेम नहीं होता है इसलिए हम काम से दूर भागते हैं। सर बच्चों के नज़रिए से देखा जाए तो उनका जो है जैसे बड़ों का काम होता है ऑफिस का काम करना और यह सब तो बच्चों के लिए उनकी शिक्षा जो होती है स्कूल आना जाना। यह चीज उनके जीवन में बहुत ज़्यादा होती है और डेली डेली ऐक्टिविटी होती है। तो एक बहुत कॉमन पैटर्न देखा गया है समाज में कि बच्चों को पढ़ाई से बहुत ज़्यादा लगाव होता नहीं है मतलब ज़्यादातर जगह में ये होता है। ये चीज शुरुआत में मेरे साथ भी रही थी काफ़ी टाइम तक तो इस चीज को हम कैसे टैकल कर सकते हैं कि बच्चे जो है पढ़ाई की तरफ़ आगे बढ़ें।
आचार्य प्रशांत: बच्चे और बड़े में अंतर है बहुत। बड़ा काम से दूर भागता है क्योंकि उसने काम चुना ही स्वार्थ के लिए है। बड़े ने चुना है ख़ुद बस स्वार्थ से चुना है। प्रेम से नहीं चुना है और बच्चे ने तो चुना ही नहीं है। उसको तो पता ही नहीं है कि उसे पढ़ना क्यों है।
आप जब दफ्तर जाते हो तो आपको पता है आप क्यों जा रहे हो आप सैलरी के लिए जा रहे हो। वो जो पाँच साल का है उसको आप जब बस में फेंक रहे हो उसको तो पता भी नहीं है कि उसे क्यों फेंका जा रहा है बस में। आप जब अपनेआप को बस में फेंक रहे हो तो आपको पता है आप जा रहे हो तो आपको सैलरी मिलेगी उसको तो यह भी नहीं पता कि क्या मिलेगा।
तो ठीक है आपका प्रेम नहीं है तो कम से कम स्वार्थ है। उसका तो स्वार्थ भी नहीं है। उसका तो बस क्या है? हैं या आज फिर फेंक दिया बस में। हम ख़ुद ही नहीं जानते शिक्षा क्या है? उसको कैसे बताएँगे शिक्षा माने क्या? कैसे बताएँ? और शिक्षा अगर वाकई इंसान के लिए अच्छी चीज़ होती है तो बच्चा ख़ुद आगे बढ़-बढ़ के कूद-कूद के पढ़ेगा।
ये मैं कई बार सोचता था।
सोचा था कि कोई भी चैप्टर शुरू होने से पहले यह होना चाहिए कि यह चैप्टर क्यों पढ़ाया जा रहा है तो ज़्यादा मन लगेगा।
बस ऐसे ही आपने बता दिया। लो ये पढ़ लो एलसीएम निकाल लो, क्यों निकालूँ? और वो दोनों साथ चलते हैं हमेशा। एलसीएम और एचसीएफ। क्यों? क्यों? बहुत काम के चीज़ हो सकते हैं पर कभी बताया नहीं कि किसलिए निकाल रहे हैं? तो पता नहीं होता कि उपयोगिता क्या है और फिर उसका नतीजा यह होता है कि आप बड़े भी हो जाते हो।
मैंने तीस-तीस साल वालों को वीडियो बनाते देखा है और वो वीडियो ऐसे बनाते हैं जैसे उन्होंने पता नहीं कितनी बड़ी बात बोल दी। उसपे तीन-चार मिलियन लाइक्स वाइक्स आ जाएँगे उन्हीं जैसों के। ऐसे आएगा शुरू करेगा बोलेगा ये देखो sin² थीटा + cos² थीटा = 1
इसी के मारे मेरा बोर्ड एग्जाम फेल हो गया था। पर आज कोई यह बता दे कि इस चीज़ की प्रैक्टिकल लाइफ में कहीं कोई वैल्यू है? कोई फ़र्क पड़ता है? इस मूर्ख को पता ही नहीं है कि पूरी दुनिया उसी पे चल रही है। इस मूर्ख को पता नहीं है कि तेरे कपड़े भी ना बने अगर sin² थीटा, cos² थीटा वन ना हो। फ्लाई ओवर भी ना बने प्लेन तो बहुत दूर की बात है एक सुई भी ना बने। पर ये इसको बचपन में ही बता दिया जाना चाहिए था ना। बेसिक ट्रिग्नोमेट्री आप किसी को क्यों पढ़ा रहे हो? ये बात बचपन में बता देते। नहीं बताओगे तो तीस साल का हो के गंदी-गंदी रील्स बनाएगा वो। और वो कहेगा ये देखो, नहीं समझ में आता।
मैथ्स का मज़ाक उड़ाते हैं कभी कहेंगे वो ‘एक्स्ट्रा 2ab।’ बचपन में उस बेसिक आइडेंटिटी से पहले ये बता दिया गया होता कि भाई (a+b)² या (a+b)³ इसका मतलब क्या है? वरना वो एब्स्ट्रैक्ट हो जाता है ना। a क्या है? b क्या है और स्क्वायर क्या है? मतलब a + b को a + b से ही क्यों आप मल्टीप्लाई कर रहे हो? बात क्या है? ये किसके प्रतीक है? वो प्रतीक कभी समझाए नहीं जाते। आपको बस लगता है ये तो ऐलजेब्रा है तो ऐलजेब्रा माने क्या? ऐलजेब्रा क्या मतलब?
जिसको पता होगा उद्देश्य वो जान जाएगा महत्त्व। फिर वह ख़ुद करेगा आगे बढ़ के डूब के करेगा, नए-नए तरीकों से करेगा। हो सकता है कि वह कुछ उसमें से नया खोज के ही निकाल दे।
हिस्ट्री पढ़ाई गई आपको बताया गया क्यों? क्यों आपको पता हो? ग्यारह सौ बहत्तर (११७२) में क्या हुआ था? पंद्रह सौ छब्बीस (१५२६) में क्या हुआ था? सत्रह सौ संतावन (१७५७) में क्या हुआ था? क्यों पता होना चाहिए बताइए। क्यों? पर यह आपकी इतिहास की किताब में शुरू में लिखा नहीं होता है। ना प्रश्न पत्र में यह पूछा जाता है कि आप हिस्ट्री पढ़ क्यों रहे हो? बच्चों को यह बता दो तो फिर वो ज़्यादा मज़े में पढ़ेंगे। अच्छा ऐसी बात है अच्छा इसलिए पढ़ना होता है, फिर तो पढ़ेंगे फिर तो देखते हैं।
भूगोल पढ़ रहे हो आप। स्टैलेगमाइट्स, स्टैलेक्टाइट्स। क्यों पढूँ? किस लिए पढ़ना है? बताओ ना कि क्यों पढ़ना है? शेक्सपियर पढ़ा रहे हो आप। आठवीं में हमें लगता था आठवीं, नौवीं, दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं — शेक्सपियर क्यों पढ़ा रहे हो बताओ? और होगा कोई वाजिब कारण निश्चित रूप से है। बाद में दिखाई पड़ता है कि हाँ एक माकूल, सही उचित वजह थी।
पर उस वक़्त अगर उसको ये बात नहीं पता चल रही है तो उसके लिए चीज़ उबाऊ हो जाती है। उसके लिए बोझ जैसी हो जाती है कि मुझे ज़बरदस्ती ये देखो ये अंग्रेजी भी नहीं है। ‘दाऊ शाल्ट’— एक तो हिंदी में बात कर ले यार तू। ‘दाऊ शाल्ट’।
प्यार, स्पष्टता ये सब एक साथ चलते हैं। आज़ादी, जिज्ञासा ये सब एक साथ चलते हैं।
और बहुत खेद की बात है कि हम में, हमारी संस्कृति में, हमारे राष्ट्र में इन सब चीज़ों का बड़ा अभाव आ गया है। उसको दूर करना पड़ेगा। मैं कह सकता हूँ कि बहुत सारे नुकसान होते हैं अगर आप दूर नहीं करते। कह सकता हूँ आर्थिक प्रगति नहीं होती, कह सकता हूँ सामरिक प्रगति नहीं होती, वैज्ञानिक तकनीकी प्रगति नहीं होती। बहुत तरह के मैं नुकसान गिना सकता हूँ पर सबसे बड़ा नुकसान यह है कि आपकी ज़िन्दगी प्यार से वंचित रह जाती है।
और इससे बड़ी सजा दूसरी नहीं होती। ‘लिविंग अ लवलेस लाइफ।’ वो नहीं होना चाहिए। प्यार ना हो तो टेक्नोलॉजी भी किसी काम की नहीं। टेक्नोलॉजी ना हो, साइंस ना हो, इकोनॉमिक्स ना हो, चल जाएगा एक बार को काम। ज़िन्दगी में कुछ ऐसा है ही नहीं जिसके लिए दिल धड़के तो फिर काम नहीं चलता है।
प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी।
आचार्य प्रशांत: हाँ जी।
प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, आज से एक साल पहले यही हमारा सत्र हुआ था सेम न्यू ईयर पे। उसके बाद आपके पास से जाने के बाद बहुत सारी चीज़ें अपनी लाइफ़ में बदलाव किया है। बहुत सारी चीज़ें से आगे बढ़ी हूँ। अभी काफी स्वतंत्र हूँ काफी ऊर्जा मिली है आपसे। लिखने में और ऐसे मन ही मन में आपसे बहुत बात करती हूँ। पर जब सामने से बात करने की बारी आती है तो डर लगने लगता है या जब कम्युनिटी पे पोस्ट लिखती हूँ तो लगता है अगर कभी आप पढ़ोगे तो लगेगा कि कितना गलत लिखती है।
पर हिंदी लिखने में बोलने में और बहुत सारी चीज़ें करने में सुधार किया है और बस उसी के लिए आपको थैंक यू बोलना चाहती हूँ। थैंक यू सो मच आचार्य जी फॉर गिविंग मी न्यू लाइफ़, थैंक यू सो मच फॉर बीइंग माय बोध फादर। आई लव यू सो मच।
आचार्य प्रशांत: इसीलिए माइक नहीं दे रहा था मैं।
जो चीज़ असली होती है उसको बस मौन रहने दो और ज़िन्दगी को बेहतर बनाकर दिखाओ।
ठीक है?
प्रश्नकर्ता: जी।
आचार्य प्रशांत: कुछ चीज़ों को ना बोला जाए तो कुछ घट नहीं जाता। उसका प्रदर्शन अपनी ज़िन्दगी में अपनी ऊँचाई में हो जाता है। हम बेहतर हो रहे हैं उसी से बात पता चल गई। भाई थैंक यू हो गया उसको ऐसे शब्दों में बोलने की बहुत ज़रूरत नहीं होती। चलो ठीक है। चलिए।