प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, शराब से मुक्ति मिलेगी क्या?
आचार्य प्रशांत:
हर चीज़ से मुक्ति मिल जाती है इस संसार में। बस होता ये है कि इंसान एक तरह की शराब छोड़कर दूसरे तरह की शराब पीने लग जाता है। तो शराब से मुक्ति चाहिए, तो मिल जाएगी। ‘मुक्ति’ चाहिए क्या? ये दोनों बहुत अलग-अलग बातें हैं।
शराब से मुक्ति चाहिए, बिलकुल मिलेगी। अ-शराब से ब-शराब पीने लग जाओ, हो सकता है वो समाज स्वीकृत हो, नैतिक शराब हो। उससे भी अगर मन भर जाए, तो अ-शराब और ब-शराब के बाद, स-शराब की ओर चले जाओ। उससे भी ऊब जाओ, तो फ़िर कुछ और, फ़िर कुछ और। मुक्तियों के सिलसिले-दर-सिलसिले हैं।
‘मुक्ति’ मात्र अलग बात है। शराब से मुक्ति एक चीज़ है, और ‘मुक्ति’ मात्र अलग चीज़ है। ‘मुक्ति’ मात्र क्या है? ‘मुक्ति’ मात्र है – उसपर हँसने लग जाना, जो शराब माँगता है।
आज वो शराब माँगता है, कल वो कुछ और माँगेगा। जो वस्तु माँगी गई है, वो बदल गई है, माँगने वाला तो नहीं बदला न? आज वो शराब माँग रहा था, कल कुछ और माँगेगा, परसों वो कुछ और माँगेगा। तो सतह-सतह पर मुक्तियों के दौर चलते रहेंगे। व्यक्ति कहेगा, “जान बची तो लाखों पाए।” फिर वो कहेगा, “चलो इससे छूटे।” फ़िर वो कहेगा, “चलो, वहाँ बचे।” भीतर-ही-भीतर, वो, जिसको किसी-न-किसी नशे से लिप्त रहना है, वो लिप्त रहा रहेगा।
‘मुक्ति’ तब है, जब उसके बचकानेपन को, उसकी व्यर्थता को देख लो।
उसका पक्ष लेना छोड़ दो, उसे गंभीरता से लेना छोड़ दो। उसकी उपेक्षा करने लग जाओ। कौन है ‘वो’ जिसकी हम बात कर रहे हैं? वो, वो है, जिसे हम ‘मैं’ बोलते हैं।
अभी-भी शराब को छोड़ना चाहते हो, शराब के प्रति तिरस्कार के, और क्रोध के, और अपमान के भाव से भरे हुए हो – “शराब गन्दी चीज़ है, शराब छोड़ दो।” पर ये जो छोड़ने का भाव है, इसके प्रति बड़ी गंभीरता है, बड़ा सम्मान है। ‘मैं’ शराब छोड़ना चाहता हूँ” – शराब बुरी है, ‘मैं’ अच्छा है।
ऐसे नहीं चलेगा।
ये जो इकाई है, ये जो ‘मैं’ है, ये जो इरादा कर रहा है शराब छोड़ने का, इसके इस नेक इरादे में भी बदनियती छुपी हुई है, इस पर हँसना सीखो। क्योंकि ये कह तो रहा है कि – “शराब छोड़नी है”, और ये, ये नहीं कह रहा। वो बात यह है कि – कुछ और पकड़ लेना है।
इसके साथ आगे मत बढ़ो।
अभी इसकी बात बड़ी भली, बड़ी उपयोगी लग रही है, क्योंकि बात ही ऐसी साफ़-सुथरी है कि – ‘शराब छोड़नी है।’ उसे कहो, “न। तेरा तो काम ही यही है – एक कुँए से यदि निकालना, तो दूसरे कुएँ में डालने के लिए। तू छूट गया तो दुनिया की सब शराबें छूट जाएँगी, और तू रह भी आया तो शराब छोड़ने से कोई फ़ायदा नहीं। कोई ज़्यादा घातक शराब फ़िर पकड़ लेगा तू। शराब नहीं छोड़ूँगा, तुझे छोड़ूँगा।”
‘उसको’ छोड़ो।
कैसे छोड़ते हैं उसको? मैंने कहा, उसकी अवहेलना करके, उसका समर्थन न करके। धिक्कारोगे नहीं उसे। उसे चुटकुला समझकर हँसो उसपर। फिर ‘वो’ छूट जाएगा।