सीधा साफ़ अध्यात्म चाहिए, या ऐसे ऊटपटाँग अंधविश्वास? || आचार्य प्रशांत (2020)

Acharya Prashant

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सीधा साफ़ अध्यात्म चाहिए, या ऐसे ऊटपटाँग अंधविश्वास? || आचार्य प्रशांत (2020)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैंने हिमालय के योगियों की ज़बरदस्त सिद्धियों के बारे में सुना है। मैंने सुना है कि वो लोग शून्य से बीस डिग्री नीचे के तापमान पर नंगे घूमते हैं, पानी पर चलते हैं, आग से गुज़रते हैं, दूसरे के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं, आँख बन्द करके संकल्प करके किसी को भी वरदान या नुक़सान दे सकते हैं। जब भी, जहाँ चाहें, संकल्प शक्ति से तुरन्त वहाँ पहुँच सकते हैं। मुझे ये सब बातें बड़े गौरव की लगती हैं और बहुत प्रभावित करती हैं पर विज्ञान इनसे सहमत नहीं है। कुछ कहिए।

आचार्य प्रशांत: मैं क्या कहूँ? तुम्हें इन बातों पर अगर सच्ची दृष्टि रखनी होती, तो तुममें प्रश्न पहले उठता न! तुममें प्रश्न तो बाद में उठ रहा है। तुममें तो पहले गौरव उठ रहा है, तुम्हें अच्छा लग रहा है। और यही सारी समस्या है। इस तरह की व्यर्थ बातें प्रचलन में इसीलिए रह जाती हैं क्योंकि हिन्दू धर्म और भारतीय गौरव के नाम पर हम इनको कभी ख़ारिज नहीं करते।

हम कहते हैं कि देखो, हमारा धर्म इतना ऊँचा है और हमारा देश इतना ऊँचा है कि बड़े ज़बरदस्त योगी होते हैं हमारे यहाँ। माइनस ट्वेंटी तापमान में वो नंगे घूम रहे हैं। क्या बात है!

फ़लाने योगी हैं, वो मरे ही नहीं, कोई उनकी उम्र की गणना नहीं कर पाया। वो कम-से-कम आठ लाख साल पुराने हैं, कम-से-कम। और अभी नया-ताज़ा निकलकर आ रहा है कि आठ लाख तो कुछ भी नहीं है। क्योंकि उनके एक शिष्य का कहना है कि दस लाख साल तो उसकी ख़ुद की उम्र है, तो योगी बाबा जी की उम्र दस लाख साल से ज़्यादा ही होनी चाहिए, कम नहीं हो सकती। दस-दस साल तक ऐसे योगी हैं, जिन्होंने अन्न का एक दाना नहीं खाया, पानी की एक बूँद नहीं ली। अहाहा! मेरा भारत महान! गौरव तुम्हें हो जाता है पहले।

तो फिर, तुम्हारे इसी गौरव को और ईंधन देने के लिए इस तरह के अन्धविश्वास और फैलाये जाते हैं। और ऐसे ही अन्धविश्वासों का नतीजा है कि भारत को इतना ज़्यादा ग़ुलाम रहना पड़ा, जिसकी कोई इंतेहा नहीं है। जब तुम्हारी नज़र में यथार्थ से ज़्यादा बड़ी कल्पना है, तो तुम मुझे बताओ कि तुम यथार्थ शक्ति पैदा ही क्यों करोगे? तुम क्यों कहोगे कि मुझे आर्थिक दृष्टि से एक समृद्ध राष्ट्र बनना है?

भई, मैं मेहनत करके आर्थिक दृष्टि से समृद्ध क्या बनूँ? एक-से-एक योगी बैठे हैं, मैं जाऊँगा, उनकी शरण लूँगा। वो शूॅं-शाॅं करेंगे और हाथ में स्वर्ण भस्म आ जाएगी। वो मुझसे कहेंगे ले बच्चा, जा!

दुश्मन आक्रमण करने आ रहे हैं, मैं क्या सैन्य शक्ति बढ़ाऊँ? मैं सेना को क्या मज़बूत करूँ? मैं जाऊँगा योगी जी के पास, योगी जी उड़ते हुए साँप फ़ायर किया करते हैं। दुश्मन के पास अधिक-से-अधिक क्या है? तीर-तलवार है, तोपें हैं। हमारे पास तो इच्छा शक्ति से उड़ने वाले साँप हैं, ‘इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक रैप्टाइल्स’।

वो यहाँ से फ़ायर होंगे और जाएँगे सीधे अफ़ग़ानिस्तान में गिरेंगे, ईरान में गिरेंगे, चीन में गिरेंगे। ज़रूरत क्या है फिर सेना की ताक़त में इज़ाफ़ा करने की? क्यों तक़नीकें विकसित की जाएँ कि कृषि में पैदावार बढ़े?

हम तो जाऍंगे बाबा जी के पास, ‘बाबाजी सूखा पड़ा है, दुर्भिक्ष है, भूख से मर रहे हैं।’ बाबा जी कहेंगे, ‘कोई बात नहीं बच्चा, देख, उधर देख!’

और हम उधर देखेंगे, तो वहाँ पर दाल के और चावल के और गेहूँ के विशाल हमें ढेर दिखायी देंगे। जय बोलो बच्चा, बाबा जी की!

तुम पढ़े-लिखे आदमी हो और ये सवाल अंग्रेज़ी में आया है, इसको मैंने अभी हिन्दी में आपसे कहा भर है। ये साहब पढ़े-लिखे आदमी हैं। और मैं देख रहा हूँ, अंग्रेज़ी पढ़े-लिखे लोगों में तो अन्धविश्वास का एक अलग ही स्तर होता है। वो फिर बताते हैं, हर चीज़ लॉजिक (तर्क) से नहीं चलती।

मुझ पर इल्ज़ाम लग रहा है ये। ‘ये लॉजिकल (तार्किक) बहुत हैं, इंटेलेक्चुअल (बौद्धिक) बहुत हैं।’ अरे! जो लॉजिकल नहीं हो सकता, उसको जानवर बोलते हैं, जानवर इंसान! तू इल्ज़ाम लगा रहा है? कि ये प्रशांत, न! बहुत लॉजिकल है। ये आध्यात्मिक कैसे हो सकता है? ये तो लॉजिकल है।

तो अध्यात्म का क्या मतलब होता है? इल-लॉजिकल (अतार्किक) हो जाना? मूर्खता भरी बातें करना? कि योगीराज ने ऑंख बन्द करी और वो तत्काल बृहस्पति ग्रह पर पहुँच गये। और प्रकाश शर्माकर के, तड़पकर दम तोड़ गया। क्योंकि उस बेचारे को यही पता था कि प्रकाश की गति से ज़्यादा किसी की हो ही नहीं सकती थी। योगीराज ने एक झटके में धूल चटा दी बच्चू को! अगले दिन सुर्ख़ियों में था, प्रकाश ने आत्महत्या कर ली। अपने ही घर में लटक गया, पंखे से, ससुरा! गति कुल कितनी थी उसके पास? तीन गुणा टेन रोज़ टू दी पावर एट मीटर पर सेकंड (3x108 meter/second)

ये कोई बात है? योगीराज ने कहा कि शूऽऽऽ!

कैसे पहुँचे? कैसे पहुँचे? बृहस्पति ग्रह पर इतनी जल्दी कैसे पहुँचें, योगीराज?

उनके पास उड़ता हुआ साँप है, उस पर बैठे फट से, एक टाॅंग इधर डाली, एक टाँग उधर डाली। और साँप की मुंडी पकड़कर के झटके से टॉप गियर लगाया…..शूऽऽऽ।

अच्छा साँप इतनी तेज़ी से कैसे बढ़ गया? कैसे बढ़ गया? किस ईंधन पर चलता है वो? क्रायोजनिक साँप है? कैसे भागा? बोले, नहीं वो ज़बरदस्त एक गाय होती है जो बस योगियों को मिलती है, कामधेनु गाय, उसका दूध पिलाया था। महाराज का काम है, साल में एक दो दिन होते हैं जब सैकड़ों किलो दूध वो ऐसे ही बहाया करते हैं। इसी से तो उनकी सब यौगिक शक्तियाँ आती हैं।

हिन्दुस्तान इन सब बेवकूफ़ियों का अड्डा बनकर रह गया। जब पश्चिम अपनी ऊर्जा लगा रहा था स्टीम इंजन बनाने में, उस समय हिन्दुस्तान अपनी ऊर्जा लगा रहा था, साँप उड़ाने में। और खेद की बात है कि वो चलन आज भी जारी है। और उससे भी ज़्यादा ख़तरनाक बात है कि वो चलन पढ़े-लिखे लोगों में घर कर चुका है। तुमने अध्यात्म को किस तल पर गिरा दिया भाई?

अध्यात्म बहुत सीधी, साफ़, सरल बात है। अहंकार से छुटकारा पाना ही अध्यात्म है। और जहाँ तक तुमने योग की बात करी, जाओ ऋषि पतंजलि से पूछो, योग क्या है। तुम तो उनकी भी नहीं सुनते। वो बोलेंगे, चित्त में जितनी गड़बड़ बैठी हुई है, उसको ठीक करना ही योग है।

क्या है पहली बात योग सूत्र में?

चित्त वृत्ति निरोध।

अब ये जो तुम बता रहे हो कि आग पर चलते हैं और पानी पर चलते हैं और यहाँ से उड़ते हैं और वहाँ जाकर के गिरते हैं। हवा हवाई लैंड करते हैं, ये बातें चित्त की वृत्तियों का निरोध हैं या चित्त की वृत्तियों की उत्तेजना हैं, बताओ?

चित्त की वृत्तियों का निरोध दिख रहा है इन बातों में या चित्त की वृत्तिया और ज़्यादा उत्तेजित दिख रही हैं? और ये वृत्तियों की उत्तेजना ही नहीं है ये तो वृत्तियों की विक्षिप्तता है कि तुम ये सब बातें करने लग जाओ।

कि आम आदमी तो जीवन में छोटी-मोटी छलाॅंगें मारने की सोचता है। तुमने आध्यात्मिक होकर के इतनी ऊँची-ऊँची छलाँगें मारनी शुरू कर दीं कल्पना की, कि ये उपलब्धि मिल जाए? इसका तो फिर कोई काट ही नहीं है।

कि देखो, तुम मुझसे दुश्मनी करोगे तो यहीं बैठे-बैठे, मैं यह पानी है न पानी है, इसमें ऐसे हाथ डालूॅंगा और ऐसे कुछ छींटे फेंकूँगा…शूऽऽऽ। और तुम अमेरिका में बैठे हो, तत्काल वहीं पर तुम गिर जाओगे, मिट्टी बनकर। ऐसे मार दूँगा मैं तुमको। ये चित्त की वृत्ति का निरोध हो रहा है? या ये और ज़्यादा घटिया और गन्दे चित्त की निशानी है, बताओ?

खेद की बात ये है कि असली अध्यात्म की जगह भारत में अध्यात्म का मतलब, ये सब मम्बो-जम्बो बन कर रह गया। और जहाँ अध्यात्म का मतलब मम्बो-जम्बो हो जाएगा, वो देश, वो जाति, वो समुदाय, वो धर्म कहीं का नहीं बचेगा, ग़ुलाम हो जाएगा। और वही चीज़ भारत के साथ हुई है क्योंकि धर्म ही तो प्राण होता है न लोगों का!

अगर उन प्राणों में ही दूषण लग गया, दीमक लग गयी, घुन लग गया; तो बताओ लोगों में जान कहाँ से बचेगी? वो लोग कमज़ोर हो जाऍंगे। अन्धविश्वास भरे धर्म ने भारत को भीतर से कमज़ोर करके रख दिया है। बहुत बड़े गुनहगार हैं वो जो धर्म के नाम पर इस तरह के अन्धविश्वास फैला रहे हैं लगातार।

हिन्दुस्तान का दुश्मन उनको मत मानो जो सीमा पार से आक्रमण कर रहे हैं। हिन्दुस्तान के अपराधी वो बाद में हैं, जिन्होंने बाहर से आक्रमण करा और यहाँ लूटमार करी और क़त्लेआम किया। भारत के पहले अपराधी वो हैं जो भारत में ही रहे, भारत के बीचोंबीच बैठकर के जिन्होंने भारत को कमज़ोर करा; वो हैं भारत के पहले अपराधी।

वो सबसे ख़तरनाक हैं। खेद ये रहा कि हम अतीत में उनको कभी पहचान नहीं पाये, उनके विरुद्ध सावधान नहीं हो पाये। और ख़तरा ये है कि वो लोग आज भी हमारे बीच मौजूद हैं, लगातार हमको कमज़ोर किए जा रहे हैं और हम आज भी उनको पहचान नहीं पा रहें हैं। बल्कि हम अपराधियों को विभूषित कर रहे हैं। उनको सरकारी उपाधियाँ दी जा रही हैं। जिन्हें जेल में होना चाहिए, उन्हें देश के नागरिक सम्मान दिये जा रहे हैं। ये लक्षण अच्छे नहीं हैं।

अगर भारतीय मन की यही दशा रही तो भारत का भविष्य भी, भारत के पिछले हज़ार सालों की दुर्दशा से ज़्यादा भिन्न नहीं होने वाला। अगर आपको भारत से वाक़ई प्रेम है; सच से प्रेम करना तो भई, हमको थोड़ी सी बहुत दूर की बात लगती है न, एब्स्ट्रैक्ट (अमूर्त) बात लगती है। तो मैं नहीं कह रहा कि आपको सच से प्रेम है, मैं कह रहा हूँ अगर आपको भारत से भी प्रेम है तो आपकी पहली ज़िम्मेदारी ये है कि भारतीय मन में जो अन्धविश्वास जड़ें जमा चुका है अध्यात्म के नाम पर, उसको हटाऍं।

अध्यात्म और अन्धविश्वास का आपस में कोई सम्बन्ध नहीं है। अध्यात्म का मतलब है खुली और कड़ी जिज्ञासा करना, सच को जानना। और अन्धविश्वास का मतलब है, इस तरीक़े का जन्तर-मन्तर फैलाना। कि हिमालय पर वो फ़लानी पहाड़ी पर विशेष चट्टान रखी है जो मंगल ग्रह से आकर के गिरी है और अगर तुम उस पर बैठ जाओगे तो ज़बरदस्त वाइब्रेशन (कम्पन) मिलने लग जाऍंगे तुमको।

जो समुदाय, जो लोग इस तरह की बातों में यक़ीन करते हों, बड़े अफ़सोस की बात है कि वो न तो कभी आध्यात्मिक रूप से तरक़्क़ी करेंगे, न भौतिक रूप से। उनकी नियति यही रहेगी कि वो लगातार ग़ुलाम बने रहेंगे। कभी सामरिक रूप से, राजनैतिक रूप से, कभी आर्थिक रूप से। नहीं तो, निश्चित रूप से, मानसिक रूप से। उनको और कोई ग़ुलामी हो न हो। हो सकता है राजनै‌तिक रूप से लगे कि वो स्वतन्त्र हैं, हो सकता है आर्थिक रूप से भी लगे कि स्वतन्त्र हैं; पर मानसिक रूप से तो वो ज़रूर ही ग़ुलाम रहेंगे। और जो मानसिक रूप से ग़ुलाम है, राजनैतिक रूप से भी ग़ुलाम होने में उसे देर नहीं लगेगी।

समझ में आ रही है बात?

योग इसलिए नहीं है कि आप हवा में उड़ना शुरू कर दें। वही कद्दू के कारनामे। योग इसलिए है ताकि मन समाधि तक पहुँच सके; समाधि माने समाधान।

मन की, जीवन की समस्याऍं सुलझ सकें। कितनी ईमानदारी से और कितने सुन्दर तरीक़े से ऋषि पतंजलि कहते हैं, शुरू में ही समझा देते हैं कि योगसूत्र किस उद्देश्य से लिखे गये हैं कि तुम्हारे चित्त में तमाम गन्दी वृत्तियाँ हैं, दोष हैं, जो तुम्हें ही नुक़सान पहुँचाते हैं; उनका समाधान करना है। वो ये थोड़े ही कहते हैं कि इंटरकॉन्टिनेंटल साँप फ़ायर करना है इसलिए तुम योगी बनो। योग शब्द का ही हमने बड़ा दुरूपयोग कर डाला। और फिर उसका दंड भी हमें मिला। खामियाज़ा भी हम ही भुगत रहे हैं।

देखो, इन सब चीज़ों के पीछे का मनोविज्ञान समझो। आम आदमी चाहता है कुछ ऐसा, जो बहुत ज़बरदस्त हो। विशेष हो, असाधारण हो। है न? क्योंकि आम आदमी ज़िन्दगी भर किसी असाधारण, एक्स्ट्राऑर्डेनरी चीज़ का ही तो पीछा करता है, न।

ज़िन्दगी हमारी कैसी होती है? साधारण।

तो हम किस चीज़ का पीछा करते रहते हैं? कि कुछ असाधारण मिल जाए, कुछ नया, कुछ एक्स्ट्राऑर्डेनरी मिल जाए।

मन की इसी चाहत का, मन कि इसी दुर्बलता का, ये ढोंगी बाबा फ़ायदा उठाते हैं। ये कहते हैं कि तुम कुछ एक्स्ट्राऑर्डेनरी चाहते थे न? मैं तुझे कुछ एक्स्ट्राऑर्डेनरी बता दूँगा। और जैसे ही तुम्हारे सामने कुछ एक्स्ट्राऑर्डेनरी आया नहीं कि तुम दब जाते हो, झुक जाते हो, प्रभावित हो जाते हो। उनको पता है तुम किस बात से दबोगे, वो तुमको वही चीज़ दिखाते हैं।

तुम राजनैतिक ताक़त से दबते हो, वो तुम्हें दिखाते हैं कि देखो, मेरे भी राजनैतिक सम्बन्ध हैं। मुख्यमन्त्रियों से, प्रधानमन्त्रियों से मेरे सम्बन्ध हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि तुम दबते हो राजनैतिक ताक़त से। तुम पैसे के आगे दबते हो न? तो वो तुमको दिखाते हैं कि देखो, मेरे पास कितना पैसा है, अपना मेरा हेलीकाप्टर है; मैं बाबा हूँ तो क्या हुआ? मैं अमेरिका घूम रहा हूँ। सत्ताईस लाख की मोटरसाइकल है मेरे पास। क्योंकि उन्हें पता है तुम पैसे से दबते हो।

और तुम ऐसे हो कि पूछते भी नहीं कि आपकी संस्था को मैंने जो डोनेशन दी थी, इसलिए दी थी कि आप अमेरिका घूमों? और सत्ताईस लाख की मोटरसाइकल पर मटरग़श्ती करो? ये पैसा कहाँ से आया? ये तुम पूछते ही नहीं। ये तुम नहीं पूछते क्योंकि डरा हुआ आदमी, कोई भी साहसी जिज्ञासा कर ही नहीं सकता। इसी तरीक़े से उन्हे पता है कि तुम्हारा मन अन्धविश्वास से भरा हुआ है और अगर वो तुम्हें कोई पारलौकिक कहानी सुना देंगे तो तुम तुरन्त दब जाओगे।

मैं उदाहरण देता हूँ: तुम्हारे सामने एक आदमी आकर कहे, ‘मैं ईमानदार हूँ।’ तुम पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। क्योंकि ईमानदारी को तुम क़ीमत ही नहीं देते। ठीक है? जबकि ईमानदारी सबसे बड़ी बात है। सबसे ऊॅंची। कोई आदमी आकर के कहे कि मेरी खूबी ये है कि मैं ईमानदार हूँ, तुम पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा ही नहीं।

और एक दूसरा आदमी आकर के कहे कि मेरी खूबी ये है कि मैं साँप उड़ाना जानता हूँ। तुम तत्काल उस आदमी से प्रभावित हो जाओगे, दब जाओगे, थोड़ा डर भी जाओगे उस आदमी से। तो कोई फिर तुम्हारे सामने अपनी ईमानदारी क्यों बताएगा? ईमानदारी की तो तुम वैसे भी क़द्र नहीं करते।

फिर कोई बेईमान आएगा तुम्हारे सामने, साँप उड़ाएगा और तुम उसकी खूब क़द्र करोगे। कोई तुम्हारे सामने आकर के कहे कि मैंने एम.बी.बी.एस. एंट्रैन्स पार करने के लिए दो साल जमकर पढ़ाई करी। उसके बाद इस कॉलेज से, उस कॉलेज से करके, पिछले दस साल, पन्द्रह साल मैंने डॉक्टरी सीखी है। और अब मैं रिसर्च कर रहा हूँ। तुम पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। तुम बोलगे, ‘अच्छी बात है, ठीक है, बढ़िया, गुड’ , बस इतना।

और कोई बाबा तुम्हारे सामने आकर के खड़ा हो जाए बोले, ‘मेरा घुटना टूट गया था, और मैंने उस पर हाथ फेरा, और मेरी टूटी हुई हड्डी जुड़ गयी।’ तुम तुरन्त इम्प्रेस हो जाओगे, प्रभावित हो जाओगे। उनको ये बात पता है कि किसी ने अगर वास्तविक मेडिसिन पढ़ी है, मेहनत करके, पन्द्रह साल लगाकर के; और वो फिर बता रहा है कि घुटना जुड़ने में कम-से-कम दो महीना लगता है तो इस बात से तुम पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ता।

तुमको अगर प्रभावित करना है, इम्प्रेस करना है तो कोई एक्स्ट्राऑर्डेनरी चीज़ सुनानी पड़ेगी। तो वो तुरन्त आकर बता देंगे कि टूटा हुआ घुटना था, हाथ फेरा वो तुरन्त जुड़ गया। और तुम तुरन्त झुक जाते हो।

तुम सच्चे आदमी होते, तो तुम झुकते नहीं, तुम सवाल पूछते। पर सवाल पूछना तुमने सीखा नहीं। प्रयोग करना तुम जानते नहीं। भीतर बस एक डर बैठा रहता है, क्या पता इसकी बात सही हो? क्या पता वास्तव में कोई पानी पर चलता हो? क्या पता वास्तव में कोई आग के फूल खा लेता हो?

पहले तो बाबा जी ने बताया कि आग के फूल होते हैं फ़लानी पहाड़ी पर। फिर बताया कि मैं तो बस वो आग का फूल खाता हूँ। न अन्न खाता हूँ, न जल लेता हूँ, मैं तो बस आग का फूल खाता हूँ। और तुम ये नहीं कर रहे कि दो लगाओ इस धूर्त के।

तुम्हारे भीतर तुरन्त डर उठ जाता है, क्या पता सही ही बोल रहा हो। क्या पता इसके पास कोई ज़बरदस्त छुपी हुई शक्तियाँ हों। कहीं ये मेरा नुक़सान न कर दे। तो चलो, रिस्क कौन ले। मान ही लेते हैं इसकी बात। जय बाबा जी की!

तुम करते रहो जय बाबा जी की। और व्यक्ति के तौर पर, समाज के तौर पर, धर्म के तौर पर, और देश के तौर पर, बनते रहो बार-बार ग़ुलाम। यही नतीजा होता है आन्तरिक खोखलेपन का और अन्धविश्वास का।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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