वक्ता (मुस्कुराते हुए): बड़ा ही भारी सवाल आया है| गीता ने पूछा है कि सत्य क्या है|
(सभी हंसी के साथ तालियाँ बजाते हैं)
वक्ता: (सभी की ओर देखते हुए) देखो गीता, सत्य का नाम सुनते ही कैसी हलचल मचती है| कहीं सत्य वास्तव में जान गये तो सोचो क्या होगा| बड़ी दिक्कत हो जायेगी|
(सब ख़ामोश हो जाते हैं)
वक्ता: बहुत-बहुत परेशानी हो जानी है| क्योंकि असत्य को जब सत्य का पता चलता है तो वो उसकी मौत होती है| भूत(वैम्पायर) पर जब रोशनी पड़ती है, तब भूत(वैम्पायर) मरता है या रोशनी? बात समझ रहे हो? सत्य रोशनी है| सत्य प्रकाश है| और हमने जीवन बिताया है गहरे अँधेरे में|
रूमी की एक कविता है, जिसमें एक आदमी उनसे बार-बार पूछ रहा है कि मुझे बताओ कि ये नूर क्या है, जो चमक रहा है, वो नूर क्या है| रूमी इधर की बात करते हैं, उधर की बात करते हैं| वो कहते हैं, ‘नूर है और उसके आगे पर्दा पड़ा हुआ है’| तो वो कहता है कि इतना तो बता दो कि नूर पर, सत्य पर पर्दा क्यों पड़ा होता है| तो अंत में रुमी उससे यही कहते हैं कि तू सह नहीं पायेगा बेपर्दा नूर को| ‘बेपर्दा नूर तू बर्दाश्त ही नहीं कर पायेगा’|
बड़ी दिक्कत हो जानी है| तो गीता, अभी बस हम इतना ही देख लेते हैं कि सत्य क्या नहीं है| जो शेष रह जायेगा, जान लेना वही सत्य है| सत्य क्या नहीं है? जो तुम्हारा मन है, उसमें दो प्रक्रियाएं एक साथ हो रही हैं| प्रक्षेपण और अनुभव, प्रोजेक्शन एंड एक्सपीरिएंस|
(मस्तिष्क की तरफ इशारा करते हुए) ये जो है, एक सिनेमा हॉल की तरह है जिसमें ये प्रोजेक्टर भी है और स्क्रीन भी| यही प्रोजेक्ट करता है और यही देखता भी है| तुम सोचते हो कि जो तुम्हें दिख रहा है चारों ओर, संसार, जगत, ये असली है| तुम इस बात को बिल्कुल ही नहीं जान पा रहे हो कि वो वैसा ही दिख रहा है, जैसा तुम देख रहे हो| इसके लिए तुम्हारा मस्तिष्क प्रोग्राम्ड है| उसे वैसा ही देखने के लिए मस्तिष्क विन्यस्त है| ये सब कुछ देखने के लिए, एक प्रकार से देखने के लिए तुम्हारा मस्तिष्क विन्यस्त है| तुमने मान रखा है कि ये जो तीन-आयामी(थ्री-डाईमेन्शनल) स्थान है, ये असली है| है ना?
तुम ये सब कुछ देखते हो तीन-आयाम(थ्री-डाईमेन्शन) में, क्योंकि तुम्हारा मस्तिष्क थ्री-डाईमेन्शन में ही देख पाता है| स्थान और समय (स्पेस और टाइम) बाहर नहीं हैं, तुम्हारे मन के भीतर हैं| यही उनको प्रक्षेपित(प्रोजेक्ट) कर रहा है| ये जो मन है, एक बंद व्यवस्था है जिसमें वो पुरुष (सब्जेक्ट) भी है और विषय(ऑब्जेक्ट) भी| यही दिखाता है और यही देखता है| सत्य इसके बाहर है क्योंकि ये मस्तिष्क तो वही देख पा रहा है जो ये ख़ुद ही दिखा रहा है| ये सत्य को नहीं देख रहा| ये सिर्फ वो देख रहा है जो वो स्वयं ही प्रक्षेपित कर रहा है|
ऐसे समझो कि एक संख्या है १२३| इस संख्या का क्या अर्थ है? तुम कहोगे कि सर इस संख्या का अर्थ है एक सौ तेईस, वन हण्ड्रेड एंड ट्वेन्टी थ्री| बात ठीक नहीं है| ये संख्या अगर तीन कंप्यूटर सिस्टम में फीड की जाये, तो इसका अलग-अलग मूल्य आ सकता है| इस संख्या का मूल्य इस बात पर निर्भर करता है कि यंत्र कैसा है| अगर यंत्र बेस चार पर कार्य कर रहा है, तो १२३ का एक मूल्य होगा| और अगर सिस्टम बेस आठ पर कार्य कर रहा है, तो १२३ का कुछ और मूल्य होगा|
उसी तरीके से ये जो तुम पंखा देख रहे हो, ये पंखा तुम्हें ऐसा इसलिए दिख रहा है क्योंकि तुम्हारा मस्तिष्क इसको ऐसा देख रहा है| अगर कोई परजीवी(एलियन) हो तो उसको ये पंखा ऐसा दिखाई देगा ही नहीं| उसको स्थान हो सकता है दो-आयाम (टू-डाईमेन्शन) में या एन-डाईमेन्शन में दिखाई दे| या ये भी हो सकता है कि उसके मस्तिष्क में स्थान जैसी कोई चीज़ ही ना हो|
तुम अभी भी देख लो, जानवर दुनिया को हमसे बिल्कुल अलग देखते हैं क्योंकि उनका मस्तिष्क अलग है| जिस चीज़ को तुम एक रंग में देख रहे हो, वो उसे किसी और रंग में देख रहा है| जो आवाज़ें तुम सुन नहीं सकते क्योंकि तुम्हारे कान कनफिगर्ड नहीं हैं बीस हज़ार हर्टज़ के ऊपर और बीस हर्टज़ से नीचे सुनने के लिए, वो उन आवाज़ों को सुन रहे हैं| उनके लिए संसार बिल्कुल अलग है| तुम चार हज़ार से आठ हज़ार ऐंग्स्ट्रॉम के बीच में ही देख पा रहे हो और कह रहे हो कि ये रही दुनिया| इन्फ्रारेड और अल्ट्रावॉयलेट का तुम्हें कुछ पता नहीं और तुम्हारे लिए वो दुनिया से बाहर की बात है| पर जानवरों के लिए वो हैं| और ये तो बहुत छोटा उदाहरण है क्योंकि अंततः जानवर भी तीन-आयामी (थ्री-डाईमेन्शनल) असलियत देख रहा है|
ये जो मस्तिष्क है वो दुनिया के बीच की एक चीज़ नहीं है, इसी ने ही दुनिया को बना रखा है| यही बता रहा है कि ये कुर्सी, कुर्सी है| ये बदल जाये तो ये कुर्सी भी ऐसी नहीं रहेगी| ये बदल जाये तो ये कुर्सी भी बदलेगी| तो ये सब कुछ जो तुम्हें दिख रहा है, ये तो सत्य नहीं है क्योंकि ये सिर्फ मानसिक है|
जो कुछ भी मानसिक है वो सत्य नहीं है|
इसके आगे मैं और कुछ नहीं बोलूँगा क्योंकि…
सभी श्रोतागण (एक स्वर में): दिक्कत हो जायेगी|
(सभी मुस्कुराते हैं)
वक्ता: हाँ| तो इसलिए यहाँ पर रुकेंगे| ठीक है?
सभी श्रोतागण (एक स्वर में): जी सर|
-‘संवाद’ पर आधारित| स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं|
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