संगीत में छुपे खतरे || आचार्य प्रशांत (2019)

Acharya Prashant

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संगीत में छुपे खतरे || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्न: आचार्य जी, अध्यात्म में संगीत का क्या महत्त्व है?

आचार्य प्रशांत जी: न तुम्हें अपनी वृत्तियों का पता है, न तुम्हें सत्य का पता है। तुम्हारे लिए दोनों ही बहुत दूर की बातें हैं।

हम इतने अज्ञान में जीते हैं कि हमें दोनों का ही नहीं पता – न हमें मन की गहराईयों का पता है, न हमें आत्मा का पता है। मन के अंधेरों में जो वृत्तियाँ छुपी बैठी हैं हमें उनका कुछ पता नहीं। और हमें सत्य का भी पता नहीं। तो जब कुछ ऐसा होगा कि तुम्हारी वृत्तियाँ लपककर सामने आएँ, तो वो भी तुम्हें लगेगी नई बात ही।

इसका मतलब ये नहीं है कि सत्य का अनुभव हो गया।

किशोर लड़के को जब पहली बार कामोत्तेजना चढ़ेगी, तो उसका उसको कोई पूर्वानुभव होगा? पहली बार हुआ न? इसका मतलब ये थोड़े ही है कि कोई पारलौकिक घटना घट गई है। ये तो बस वृत्तियाँ हैं जो अब सामने आईं हैं।

‘अज्ञात’ और ‘अज्ञेय’ में अन्तर होता है। वृत्तियाँ हमारी हमसे अज्ञात रहती हैं, हमें उनका कुछ पता होता नहीं। पर समय-समय पर उनमें उभार आता रहता है, तो वो सामने आ जाती हैं, प्रत्यक्ष हो जाती हैं । सत्य अज्ञेय है, उसका कुछ पता हो ही नहीं सकता। वो कभी नहीं सामने आने वाला।

लेकिन ‘अज्ञात’ और ‘अज्ञेय’ में एक बात साझी है – पता दोनों का ही नहीं। हाँ अज्ञात, कभी-कभार ज्ञात के क्षेत्र में आ जाता है। अज्ञात, ज्ञात के क्षेत्र में जब आ जाए, तो उसको अज्ञेय मत मान लेना।

तुम कोई गाना सुनो और वो तम्हारे भीतर तमाम तरह की भावनाएँ उभार दे, इसका मतलब ये नहीं है कि वो दैवीय भावनाएँ हैं। इसका मतलब ये है कि उस गाने ने तुम्हारे भीतर की बहुत गहरी, प्रसुप्त वृत्तियों को अभिव्यक्ति दे दी है।

ये बात ख़तरनाक भी हो सकती है ।

जो कुछ भी असली होता है, वो तुम्हें कोई नए अनुभव नहीं कराता। तो तुम्हें बस शांत कर देता है, वो तुम्हें मुक्त कर देता है तुम्हारे पुराने अनुभवों से।

और ‘मुक्ति’ कोई अनुभव नहीं है। ‘मुक्ति’ बस मुक्ति है, ये अनुभवों से मुक्ति है। अनुभवों से मुक्ति को तुम नया अनुभव कैसे कह सकते हो?

अधिकाँशतः संगीत उत्तेजक ही होता है। जो सोया हुआ है उसको वो उत्तेजित कर देता है। तुम्हारे अन्दर जो बलहीन पड़ी हैं भावनाएँ, उनको वो बल प्रदान कर देगा, तेज प्रदान कर देगा। तो वो तुम्हारे सामने आ जाएँगी। इसका मतलब ये नहीं है कि वो कुछ दैवीय है, इसका मतलब यही है कि और ख़तरनाक है मामला।

अधिकाँशतः संगीत बिकता भी इसीलिए है, क्योंकि वो तुमको बड़े नए तरीक़े के अनुभव दे जाता है। जिस रूमानियत की तलाश में तुम भटक रहे हो, ख़ासतौर पर बनाया गया संगीत होता है, वो तुमको रुमानियत दे जाएगा। तुम आंतरिक तौर पर बड़ा गीला-गीला अनुभव करोगे।

ढूँढ रहे हो तुम कि कोई स्त्री मिल जाए, रूमानी मोहब्बत हो जाए, और कोई मिल नहीं रही। विकल्प के तौर पर तुम रात को दो बजे कोई गाना, कोई ग़ज़ल सुन लेते हो। अब बिलकुल तुम्हारे दिल में ऐसे भाव आने लगते हैं कि – ‘वाह मोहब्बत ही हो गई’।

ऐसे ही तो बिकता है संगीत। इसमें कोई मुक्ति या देवत्त्व नहीं है। ये तुमको और फँसाया जा रहा है।

मात्र विशिष्ट संगीत है जो बंधनों को काटता है। बहुत ही ख़ास स्त्रोत से आया हुआ। ध्यान से उठता है संगीत, तब उसमें वो विशिष्ट गुणवत्ता आती है। इसीलिए शास्त्रीय संगीत होता दूसरे आयाम का है।

या तो शास्त्रीय संगीत हो, या संतों के वचन हों। संतों के वचनों को तुम बेसुरा होकर भी गा दो, तो भी उनमें मुक्ति प्रदान करने की क्षमता रहती है। इनके अलावा बाकी सबकुछ जो संगीत के नाम पर चल रहा है, वो तुम्हारे आंतरिक कोलाहल को ही बढ़ाएगा ।

अब तो मामला और ज़्यादा स्पष्ट है, नंगा है। अब तो बात को ढकने की कोशिश भी नहीं की जाती। अधिकाँशतः जो गायक हैं, कुछ-एक अपवादों को छोड़कर, ख़ासतौर पर जो स्त्री स्वर को तुम सुनते हो आजकल, तुम्हें दिखाई नहीं पड़ता कि वो स्वर वही हैं जो तुम्हारे भीतर कामोत्तेजना बढ़ाते हैं। इसीलिए गायिकाएँ गाती ही नहीं हैं, सज-संवरकर गाती हैं। और गाती ही नहीं हैं, नाच-नाच कर गाती हैं। वो पूरा काम ही यही है कि कामवासना बिके। वहाँ संगीत थोड़े ही बेचा जा रहा है, वहाँ कुछ और बेचा जा रहा है।

हाँ, तुम जैसे नए-नवेले ये ज़रूर कहेंगे कि – “जब मैं उसको सुनता हूँ, तो कुछ नया-नया सा अनुभव होता है।” वो नया-नया नहीं है, वो बहुत पुराना है। वो डायनासोर में भी था, इतना पुराना है। डायनासोर के बड़े-बड़े अण्डे मिलते हैं। उन अण्डों में भी है वो, वो इतना पुराना है। उसी को वो उद्दीप्त करतीं हैं। उसी में वो आग लगाती हैं ।

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मैं आज से शास्त्रीय संगीत सुनूँगा। ये सही है न?

आचार्य प्रशांत जी: शास्त्रीय संगीत अलग आयाम का है, अलग जगह से आ रहा है। इसीलिए वो बाज़ारू नहीं होता। पर दुरुपयोग उसका भी किया जा सकता है।

इसीलिए सबसे सुंदरऔर प्रभावी जो मेल होता है, वो होता है शास्त्रीय संगीत पर संतों के वचन ।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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