प्रश्नकर्ता: मैं अपने डर को कैसे तोड़ सकता हूँ? जब तक मुझे बाहरी सहायता न मिले, मैं कैसे अपने ही द्वारा बनाए गए खेलों से, अपनी सीमाओं से बाहर आऊँ?
आचार्य प्रशांत: जीवन किसी बाहरी सहायता की प्रतीक्षा करने का नाम नहीं है। जीवन किसी ख़ास मसीहा के स्वागत के लिए खड़े रहने का नाम नहीं है। कोई मदद नहीं आने वाली बाहर से, सारा इंतज़ार व्यर्थ है।
अपनी मदद तुम्हें खुद ही करनी पड़ेगी।
ये जो डर है, ये जो सीमाएँ हैं, इन्हें तुम्हें स्वयं ही समझना पड़ेगा। हाँ, जिस दिन तुम स्वयं समझने को तैयार हो जाओगे, उस दिन पाओगे कि सारा अस्तित्व तुम्हारी सहायता करने के लिए तत्पर है। विपरीत मत समझ लेना। ये मत समझ लेना कि मदद पहले आती है और उस मदद से मुक्ति जन्मती है। इसका विपरीत होता है।
मन को जब मुक्ति दिखाई देती है, तो वो पाता है कि चारों तरफ़ से मदद आ ही रही है। और ये पक्का जानो कि मदद करने के लिए पता नहीं कितने लोग, कितनी स्थितियाँ तैयार बैठी हैं। दिक्क़त मदद के अभाव की नहीं है, दिक्क़त है कि तुम अभी तैयार नहीं हो। दिक्क़त ये है कि तुम अभी जान नहीं पा रहे कि ये सीमाएँ तुमने ख़ुद बनाईं हैं, कि अपने डर के कारण तुम खुद हो, कि अपने-आपको बाँधने वाले तुम ख़ुद हो।
जिस दिन सोच लोगे कि उड़ना है, उस दिन पाओगे कि सब कुछ उड़ने में ही मदद कर रहा है। कोई एक सहायक नहीं है, जीवन में सब कुछ तुम्हारी सहायता करने के लिए उत्सुक ही है, एक-एक परिस्थिति, एक-एक काम, एक-एक क्षण।
तुम तैयार तो होओ!
एक आदमी था, वो एक दरवाज़े पर दस्तक दिए जा रहा था, दिए जा रहा था, दिए जा रहा था। और दरवाज़ा था कि खुलने का नाम नहीं लेता था। एक दूसरा व्यक्ति बहुत देर से ये सब देख रहा था। वो उसके पास गया, उसने उससे कहा, “दोस्त, तुम किसको धोखा दे रहे हो? ये जो तुम लगातार दस्तक दिए जा रहे हो, ये तुम किसको छल रहे हो? क्या वाकई तुम्हारा इरादा है बाहर जाने का? क्या वाकई तुम खुले में उड़ना चाहते हो?”
उस पहले व्यक्ति ने कहा, “हाँ, मैं उड़ना चाहता हूँ, अन्यथा मैं इतनी दस्तक क्यों देता? क्या मेरे दस्तक देने से ही ये समझ में नहीं आ रहा कि मेरी कितनी अभीप्सा है उड़ जाने की?”
दूसरा आदमी हँसने लगा, उसने कहा, “झूठ बोल रहे हो। अगर वास्तव में उड़ ही जाना चाहते तो दिख जाता कि दरवाज़ा बंद है ही नहीं।" उसने कहा, “देखो! दरवाज़ा खुला ही हुआ है। तुम दस्तक दे क्यों रहे हो?”
और जिसे दरवाज़े के पार जाना होगा, वो दस्तक नहीं देगा। उसे दिख जाएगा कि दरवाज़ा खुला है, और वो निकल जाएगा और उड़ जाएगा। वो प्रतीक्षा नहीं करेगा। सारी प्रतीक्षा व्यर्थ है, और सारी प्रतीक्षा वर्तमान से भागने का उपाय है। प्रतीक्षा का अर्थ होता है कि भविष्य में कुछ ख़ास हो जाना है। जो होना है, अभी होना है, भविष्य तुम्हें कुछ नहीं दे सकता। वर्तमान के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं।
दूसरे पर निर्भरता भी उतनी ही व्यर्थ है, क्योंकि कोई दूसरा कभी किसी के काम आया नहीं। अभी भी मैं अगर तुमसे बोल रहा हूँ तो शब्द तो मेरे हैं, पर समझ किसकी है? तुम मुझे सुन रहे हो, ठीक, शब्द मेरे हैं, पर समझ किसकी है?
प्र: मेरी है।
आचार्य: मैं तुम्हारे काम नहीं आ रहा, यकीन जानो, तुम्हारी अपनी समझ तुम्हारे काम आ रही है। पर अगर तुम्हारी समझ उतनी ही जागृत रहे जितनी इस वक़्त है, तो मेरे बोलने की भी कोई ज़रूरत नहीं रह जाएगी। मेरा बोलना सिर्फ एक बहाना है, काम तो तुम ख़ुद अपने आए हो। और अगर तुम अभी फ़ैसला कर ही लो कि, “मुझे नहीं समझना है”, तो मैं कुछ कर लूँ, तुम नहीं समझ सकते।
दो बातें निकलकर आ रही हैं; पहला, भविष्य किसी के काम नहीं आता। दूसरा, कोई दूसरा किसी के काम नहीं आता। तुम्हें अपनी मदद खुद करनी है।
और कब करनी है?
प्र: अभी करनी है।
आचार्य प्रशांत: जो भविष्य पर टाल रहा है, वो सिर्फ़ अपने-आपको धोखा दे रहा है। जो किसी और की प्रतीक्षा कर रहा है, वो समझ नहीं रहा बात को।
हम सब असमंजस में रहते हैं, बेचैन रहते हैं। कुछ-न-कुछ है जो कचोटता रहता है। कोई कमी दिखाई देती है, कोई ख़ालीपन दिखाई देता है। ये इस बात का प्रमाण है कि जीवन जीने के तरीके में कोई भूल है। और अगर कोई भूल है तो उस भूल को ठीक भी तुम्हीं को करना पड़ेगा। अगर तुम में ठीक कर पाने की योग्यता न होती तो तुम्हें भूल का एहसास भी न होता। भूल का एहसास तो तुम्हें हो ही रहा है न? बोरियत अनुभव करते हो न? बेचैनी अनुभव करते हो न? मन इधर-उधर भागता है न? शंका रहती है न? दुविधा रहती है, निराशा रहती है। ये सब प्रमाण हैं इस बात के कि तुम्हें कुछ और चाहिए, कि तुम्हें वो नहीं होना था जो तुम अभी ख़ुद को मानकर बैठ गए हो। तुम वो हो ही नहीं।
और अगर तुमको इतना दिखाई पड़ रहा है, तो इसके आगे क्या हो सकता है, ये भी तुम्हें स्वयं ही देखना है। कोई और नहीं आएगा तुम्हारी मदद करने के लिए। किसी की प्रतीक्षा मत करना। तुम्हारे पास आँखें हैं, और तुम्हारे पास पूरी-पूरी काबिलियत है ये जान पाने की कि तुम्हें अब अगला कदम क्या उठाना है।
मदद मिलेगी, ख़ूब मिलेगी। ये मत समझना कि मैं कह रहा हूँ कि कोई मदद कहीं से उपलब्ध नहीं होगी। मदद पूरी मिलेगी, पर पहली मदद तुम्हें अपनी करनी पड़ेगी। और जो अपनी मदद करने के लिए तैयार नहीं है, उसे कोई और मदद नहीं दे सकता।
तुम अपनी मदद करो, फिर देखो कि हर दिशा से मदद आती है या नहीं।