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सच्चा रिश्ता सिर्फ़ एक || आचार्य प्रशांत, गुरु नानक पर (2014)
Author Acharya Prashant
Acharya Prashant
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सभ महि जोति जोति है सोइ

सब में प्रकाश है

~ सोहिला (नितनेम)

आचार्य प्रशांत: कल दोपहर जब हम लौट रहे थे कॉलेज से तो गाड़ी में कृष्ण कुछ बातें कह रहे थे, फिर मैंने सी.डी. प्लेयर बन्द कर दिया। जब तक वो जो कह रहे थे, वो चल रहा था, तब तक मेरे पड़ोस की सीट पर लोग सो रहे थे। जब मैंने बन्द कर दिया तो अचकचा कर उठ गये, ‘कुछ बदला? कुछ हुआ क्या?’ मैंने कहा, ‘कुछ नहीं, अभी मौक़ा नहीं है, सो ही लो।’

कृष्ण जो कह रहे थे, वो इतना क़ीमती था कि मैं नहीं चाहता था कि वो बात बीत जाए, इसको रोक दो। कृष्ण कह रहे थे कि तुम जिन देवताओं की उपासना करते हो, मैं ही वो हूँ जो उनमें तुम्हारी श्रद्धा को स्थापित करता हूँ। याद रखना, पूजा तुम देवताओं की कर रहे हो, देवताओं में कोई बात नहीं, देवता नकली हैं। हर देवता नकली है, किसी देवता का सत्य से कोई सम्बन्ध नहीं। लेकिन सत्य हो या असत्य, तुम्हारी यदि उसमें श्रद्धा है, वो अपनेआप में बड़ी बात है।

‘मैं वो हूँ जो मूर्त में भी तुम्हारी श्रद्धा को स्थापित करता हूँ।’

तो तुम कहोगे भले ये कि मैं फ़लाने देवता की पूजा करता हूँ लेकिन वास्तव में तुम पूजन मेरा (कृष्ण का) ही कर रहे हो क्योंकि तुम्हें उस देवता से जोड़ने वाला मैं ही हूँ। जिस किसी ने भी आज तक किसी से भी सच्चा सम्बन्ध जोड़ा है — प्रेम का हो कि सत्य का हो कि श्रद्धा का हो — वो सम्बन्ध एक से ही जोड़ा है। रूप अलग हो सकते हैं, मूर्ति अलग हो सकती है, पर सत्य एक ही होता है। सच्चा सम्बन्ध एक ही होता है।

कृष्ण कह रहे हैं, ‘अगर वास्तव में तुम्हें किसी से प्रेम है, तो तभी हो सकता है जब उसमें तुम मुझको देखो।’ कृष्ण कह रहे हैं, ‘अगर किसी देवता की तुम वास्तव में उपासना कर पाओगे तो तभी जब उस देवता में तुम्हें मैं दिखायी दूँ।’ और ‘मैं’ से उनका आशय, ध्यान रखिएगा, कृष्ण के चेहरे, कृष्ण के मोर पंख, कृष्ण की मुरली से नहीं है। कृष्ण का ‘मैं’ पूर्ण मैं है। कृष्ण का ‘मैं’ अस्तित्व की आवाज़ है।

ये अर्जुन का मित्र और देवकी का बेटा नहीं बोल रहा; ये बलराम का भाई नहीं बोल रहा; ये कौनसा कृष्ण है? ये वो कृष्ण नहीं है कि जिसके पाँव में तीर लगा था और मर गया था। पूर्ण की आवाज़ है ये।

‘तुम जब भी कुछ सच्चा सम्बन्ध जोड़ोगे, मुझसे ही जोड़ोगे। क्योंकि मेरे अलावा कोई सच्चा सम्बन्ध होता नहीं। तुम किसी पुस्तक में तभी डूब पाओगे जब उसमें तुम्हें मैं नज़र आऊँ। तुम्हें तुम्हारी पत्नी से भी प्यार सिर्फ़ तब हो सकता है जब उसमें तुम्हें मैं नज़र आऊँ। तुम पेड़ और पक्षियों से भी वास्तव में सम्बन्धित तभी हो सकते हो जब उनमें तुम्हें मैं नज़र आऊँ।’

पेड़ अगर पेड़ है तो उसकी कोई क़ीमत नहीं। पत्थर अगर पत्थर है तो कुछ रखा नहीं है उसमें। व्यक्ति अगर व्यक्ति है तो क्या हैसियत उसकी! कुछ भी अपनी क़ीमत सिर्फ़ उसी से पाता है। सिर्फ़ वो है जो मिट्टी को जीवन्त कर देता है, संसार को सत्य कर देता है।

ठीक यही बात यहाँ कही जा रही है: “सभ महि जोति जोति है सोइ”।

ज्योति सब में है पर एक ही ज्योति है, वही ज्योति है। जहाँ कहीं भी ज्योति देखना उसको अलग-अलग न मानना। तुम्हें नानक में ज्योति दिखती है, “जोति है सोइ”; तुम्हें कृष्णमूर्ति में ज्योति दिखी, “जोति है सोइ”; वो एक ही हैं। अगर तुम्हें अलग-अलग दिख रहे हैं तो तुम चेहरों पर अटके हुए हो, तुम नामों पर अटके हुए हो, तुम पन्थों पर अटके हुए हो।

एक ज्योत है, उसका ही प्रकाश चारों दिशाओं में फ़ैल रहा है। तुम्हारी सीमा ये है कि तुम किसी एक स्थिति से देखते हो, तुम्हें भेद दिखायी पड़ते हैं। तुम्हें वही दिखायी पड़ता है जो तुम्हारी दृष्टि के अनुरूप है, नहीं तो कोई भेद नहीं है।

“सभ महि जोति जोति है सोई।”

नहीं, कोई ऐसी जगह नहीं, कोई ऐसा समय नहीं, कोई वस्तु, व्यक्ति, विचार नहीं जो ज्योतिहीन हो। ज्योति है, लगातार है, निरन्तर है, उसके अतिरिक्त और कुछ है नहीं। और जहाँ कहीं भी ज्योति है, एक ही है। प्रेम हज़ार प्रकार का नहीं होता, सत्य के दस हिस्से नहीं होते, मुक्ति के पाँच तल नहीं होते, आनन्द समय पर निर्भर नहीं करता, वो सब एक हैं, “जोति है सोइ”।

और अगर अभी तुमको अलग-अलग दिखायी दे रहा है तो सावधान हो जाना।

कल बातचीत हो रही थी तो किसी ने मुझसे कहा कि सर, ऐसा क्यों है कि हममें से कुछ लोग तो बहुत खुल गये हैं और वो जो भी पढ़ते हैं, जो भी उनके सामने आता है, वो उसी को गा लेते हैं, वो उसी पर पोस्टर इत्यादि बना लेते हैं। पर कुछ लोग हैं जो अभी भी अपनी सीमाओं में हैं, वो जिस एक को पूजते हैं, जिसे समर्पित हैं, सिर्फ़ उसी की बात करते हैं, उसी का पोस्टर बनाते हैं, उससे आगे नहीं जाना चाहते।

मैंने कहा, कोई अन्तर नहीं पड़ता, ज्योति दिख रही है न, दिखना ज़रूरी है। तुम्हें आज कुरान में दिख रही है, कल उपनिषद् में भी दिखेगी। तो अगर आज कोई सिर्फ़ कुरान के पोस्टर बनाता है तो स्वागत करो उसका। ये बड़ी शुभ घटना घट रही है, कुरान पर तो बनाया। कितने मुसलमान हैं आज जो वास्तव में कुरान को भी क़ीमत देते हैं? आज का धर्म तो लालच और पैसा बन गया है। कुरान कहाँ क़ीमती रही!

तो अगर कोई मुसलमान कुरान पर पोस्टर बना रहा है तो ये आपत्ति मत करो कि सर, ये सिर्फ़ कुरान पर ही क्यों पोस्टर बनाते हैं। सर, हम तो बुल्ले शाह को भी गाते हैं, हम कुरान को भी गाते हैं। सर, ये गीता को क्यों नहीं गाते? छोड़ो इस बात को! कुरान को तो गाया, बड़ी बात। आसान नहीं है कुरान को गा पाना। हिन्दू के लिए तो छोड़ो, मुसलमान के लिए भी आज के युग में कुरान को गा पाना आसान नहीं है। आज भी मुश्किल है, हमेशा भी मुश्किल था।

कबीर कहते हैं न, “हरि हमेशा सूरमाओं के लिए रहा है।” कुरान कच्चे दिल वालों के लिए कभी नहीं रही; ठीक वैसे जैसे गीता कच्चे दिल वालों के लिए नहीं है। ज्योति और ज्योति में अन्तर मत करो। कोई अगर कुरान को गा रहा है तो प्रार्थना करो कि वो सच्चा मुसलमान बने।

सवाल ये नहीं है कि तुम दस रास्तों से परिचित हो कि नहीं। सवाल ये नहीं है कि तुमने बाइबल पढ़ी, कुरान पढ़ा, बुद्ध पढ़े, उपनिषद् पढ़े कि नहीं पढ़े। सवाल ये है कि जो भी पढ़ा, उसमें उस ज्योति को देखा कि नहीं देखा। तुम दस कमरों में भटक लो और हर कमरे में अंधेरा पाओ तो क्या पाया?

तुम मत पढ़ो गीता, तुम सिर्फ़ कुरान पढ़ो, पर पूरी पढ़ो, डूब जाओ उसमें और बनो सच्चे मुसलमान। याद रखना, सच्चा मुसलमान ठीक उसी मौन को प्राप्त होगा जिस मौन को एक सच्चा बुद्ध प्राप्त होगा। मौन और मौन में थोड़े ही अन्तर है।

हिन्दू बैठा है, मुसलमान बैठा है, वो जब तक चुप हैं, बताओ उनमें क्या अन्तर है? मौन और मौन में अन्तर नहीं होता। अन्तर तब शुरू होता है जब विचार आते हैं और शब्द आते हैं। मौन तो सदा एक होते हैं। किसलिए है कुरान? कि तुम शान्त हो सको, मौन हो सको।

‘इस्लाम’ शब्द का अर्थ ही है मौन। तुम उसके और कई अर्थ कर लोगे। शायद शब्दकोश देखोगे तो तुम्हें इस्लाम शब्द का दूसरा अर्थ दिखायी दे पर मैं तुमसे कह रहा हूँ, इस्लाम शब्द का वास्तविक अर्थ है ‘मौन’, और मुसलमान शब्द का वास्तविक अर्थ है ‘पूर्ण धर्म’, पूर्ण।

सारी ज्योतियाँ एक हैं। असल में ज्योतियाँ कहना ही अपनेआप में ठीक नहीं। ज्योति शब्द का कोई बहुवचन हो नहीं सकता। प्रकाश, प्रकाश है। आईने अलग-अलग होते हैं, उनमें परावर्तित होकर के तुम्हें ऐसा लग सकता है कि हज़ार सूरज हैं; एक है, एक। भूला न करो, एक, कई नहीं हैं।

तुम्हें क्यों अन्तर दिखायी पड़ता है कृष्ण की बात में और नानक की बात में? कृष्ण और अर्जुन के बीच में जो घट रही है, वो किसी भी गुरु और शिष्य के बीच घटी क़ीमती से क़ीमती घटना है। और सिक्ख शब्द का अर्थ ही ‘शिष्य’ होता है। कृष्ण और नानक अलग-अलग बात कैसे कह सकते हैं; दोनों मात्र गुरु हैं, दोनों मात्र आत्मा की आवाज़ हैं।

सिक्ख हो पाना आसान है? सिक्ख हो पाना उतना ही मुश्किल है जितना अर्जुन के लिए कृष्ण की बात को समझ पाना। सिक्ख हो पाने का मतलब है वो करो जो कबीर ने कहा है, कि पहले सिर काट कर अपना रख दो, तब शिष्य हो पाओगे। सिक्ख हो पाने के लिए पहले अपना सिर काटकर रख देना होता है, शिष्यत्व हासिल करना होता है, अर्जुन हो जाना पड़ता है। और बड़ा मुश्किल था अर्जुन के लिए।

तो ये सीमित बातें छोड़ो। उस दिन समझना कि थोड़ा भी सत्य को हासिल किया जिस दिन तुम्हें भेद दिखने बन्द हो जाएँ। जब तक तुम्हें भेद दिख रहे हैं, जब तक तुम्हारी हालत ये है कि तुम ’अल्लाह हू’ गाते हो और राम जी को गाते हो, तो मन में अन्तर, विकार पाते हो , तब तक समझना कि बड़े नकली आदमी हो। जो हिन्दू ‘अल्लाह हू’ नहीं गा सकता, वो हिन्दू नहीं है। जो मुसलमान ’जय श्री राम’ नहीं बोल सकता, वो मुसलमान नहीं है।

तुम अगर मुसलमान हो और पाते हो कि ये कहने में तुम्हारी ज़बान ऐंठती है कि “तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार”, तो तुम क्या ख़ाक मुसलमान हो? तुमने तो फिर दुनिया के ही दो हिस्से कर दिये — एक अल्लाह वाली दुनिया और एक काफ़िरों वाली दुनिया। अगर ख़ुदा है तो क्या वो सबका ख़ुदा नहीं है? या कोई और भी है जिसने दूसरों को बनाया? क्या दो स्रोत हैं?

तुम ही वहदत की बात करते हो न। तुम ही कहते हो कि शिर्क से बड़ा गुनाह नहीं, तो फिर तुमने कैसे सोच लिया कि राम और अल्लाह अलग-अलग हो सकते हैं? जब दो हैं नहीं तो तुमने दो बना कैसे दिये?

अगर कोई भटका हुआ है तो न वो हिन्दू है न मुसलमान है, वो सिर्फ़ भटका हुआ है। ये न कहा करो कि ये भटके हुए हैं, बस इतना कहा करो, ‘जो सामने है, वो भटका हुआ है।’ भटका, भटका होता है। सोया आदमी सोया हुआ होता है। भ्रमित आदमी भ्रमित होता है। उसको कोई और नाम मत दिया करो। उसको संस्कार मिले हैं, वो सिर्फ़ संस्कारित है। उसका और कोई धर्म नहीं है। उसका धर्म एक है बस, क्या? उसके संस्कार। उसने उसी को धर्म समझ रखा है कि जो प्रथा चली आ रही है, उसी का नाम तो धर्म है।

तुम कहते हो कि तुमने देखा कि कसाई जानवरों को मार रहे थे और उससे तुम्हारे मन में बड़ी ग्लानि उठी। तुम्हें क्या लग रहा है, वो कसाई किसी धर्म विशेष के हैं? उन कसाइयों का कोई धर्म नहीं है, बेटा। उनका एक ही धर्म है — जीवहत्या और पैसा कमाना। तुम ये क्यों सोचते हो कि कसाई मुसलमान होता है या हिन्दू होता है या कुछ भी और होता है? कसाई, कसाई है। ये संयोग की बात है कि जिन कसाइयों को तुम देख रहे हो उनके ऊपर एक ठप्पा लगा हुआ है।

कसाई तो सदा से रहे हैं। इस्लाम के पहले क्या कसाई नहीं थे? ईसाई देशों में क्या कसाई नहीं होते? ठीक है, मान लो काटने वाला कसाई, खरीदने वाला कौन है? और क्या खरीदने वाले भी सिर्फ़ एक मज़हब के हैं? और क्या काटा जाएगा अगर खरीदने वाले न हों?

प्रकाश भी एक है और अंधकार भी एक है। इसके अलावा और कोई भेद मत किया करो। एक प्रकाश, एक अंधकार। जो अज्ञानी है, वो सिर्फ़ अज्ञानी है। ये मत कहो कि मुसलमान अज्ञानी कि हिन्दू अज्ञानी कि कुछ और अज्ञानी, अज्ञानी तो अज्ञानी।

और जो जगा हुआ है, जो बुद्ध है, वो सिर्फ़ बुद्ध है। ये मत कहो कि मुसलमान सन्त कि हिन्दू सन्त कि सूफ़ी सन्त कि सिक्ख सन्त; सन्त, सन्त है और मूढ़, मूढ़ है। उसके अलावा और कोई भेद होता नहीं। रोशनी, रोशनी है, अंधेरा, अंधेरा है।

”सब महि जोति, जोति है सोइ”

एक ज्योति। अन्तर मत किया करो, क्षुद्रताओं में मत पड़ा करो। सब ये छोटे-छोटे अन्तर मिटा दो, एक अन्तर याद रखना — जगने और सोने का। और शनैः शनैः वो अन्तर भी हट जाएगा। पर अभी तुम उसको याद रखो। बस एक अन्तर — होश में हूँ कि नहीं हूँ? जगा हूँ कि सोया हूँ। बस यही अन्तर है, और कोई अन्तर नहीं। बाक़ी सारे भेद गौण हैं।

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