सभी धर्मों की सीख एक ही है तो विभिन्न धर्म क्यों? || आचार्य प्रशांत (2018)

Acharya Prashant

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सभी धर्मों की सीख एक ही है तो विभिन्न धर्म क्यों? || आचार्य प्रशांत (2018)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, जब सारे धर्मों की सीख एक ही है तो अलग अलग धर्मों की क्या आवश्यकता है? गुरु नानक जी ने कहा था कि सारे धर्म एक ही सीख दे रहें हैं। तो फिर उन्होंने अलग से एक नये धर्म की स्थापना ही क्यों की?

आचार्य प्रशांत: सारे धर्म एक ही सीख दे रहे हों, पर उन धर्म के अनुयायियों को ये लगने लगा हो कि हमारा धर्म दूसरे धर्म से अलग सीख देता है और अलग मंज़िल पर भी ले जाएगा तो फिर ये बताना ही नया धर्म हो जाता है न कि सारे धर्म एक ही जगह ले जाते हैं। समझो। अगर मैं तुमसे पूछूँ कि तुम्हारा धर्म क्या है, तुम कहो, ‘सारे धर्मों से अलग है मेरा धर्म।’ और तुमसे पूछूँ तुम्हारा धर्म क्या है तो तुम कहो, 'मेरा धर्म भी सारे धर्मों से अलग है और अलग सीख देता है।' तुमसे भी पूछूँ तुम भी कहो, 'मेरा धर्म बिल्कुल अलग सीख देता है।' और इस स्थिति में अगर मैं तुमको बताऊँ कि नहीं, सारे धर्म एक ही सीख देते हैं। तो ये बात नयी हो गयी न। तो नया धर्म आ गया।

सारे धर्म एक ही सीख दे रहे हैं, ये बात गुरुनानक देव को पता है न, गीता। ये बात क्या उन धर्मों के अनुयायियों को पता है। ये कौन कह रहा है कि सारे धर्म एक ही सीख देते हैं? क्या ये धर्म का जो सामान्य अनुयायी है, वो कह रहा है? उससे पूछोगे तो वो कहेगा, 'बिलकुल नहीं, मेरा धर्म श्रेष्ठतम है। और जो बात मेरा धर्म बोलता है, वो कोई दूसरा धर्म बोलता नहीं। जहाँ मेरा धर्म पहुँचा देगा, वहाँ कोई दूसरा धर्म पहुँचाएगा नहीं।' तो ये बात अभी सिर्फ़ गुरुनानक देव ही कह रहे हैं न उस समय पर कि सारे धर्म एक ही जगह पर ले जाते हैं। और तो कोई ये बात मान ही नहीं रहा था। और तो कोई ये बात कहता ही नहीं था। समाज में बड़े विभाजन थे, बड़ी लड़ाइयाँ। तो ऐसे समय पर गुरुनानक देव की जो बात थी, वो अनूठी थी, नयी थी। ऐसा नहीं कि उन्होंने पहली बार ये बात कही थी, पर उस समय वो बात कहने वाला और कोई नहीं था। गुरुनानक देव जी से पहले भी सैंकड़ों, हज़ारों विद्वानों, ज्ञानियों, ऋषियों, मुनियों ने इस बात को जाना था, समझा था, बताया भी था कि सत्य एक होता है, उसका वर्णन पचास तरीके से किया जाता है। लेकिन क्या उस समय पर कोई इस बात को याद रख रहा था? नहीं। उस समय पर कोई नहीं।

तो जब सब गलत रास्तों पर चल रहे हों, नये-नये गलत रास्ते बना लिए गये हों, तब सबको पुराने और सही रास्ते पर वापस लाना ही एक नये रास्ते की स्थापना है। रास्ता तो तयशुदा है, लेकिन वक्त के साथ रास्ते पर चलने वाले भटक जाते हैं। वो अपने लिए नये-नये, विचित्र और झूठे रास्ते तैयार कर लेते हैं। अब ऐसी स्थिति में, उन सब को पुराने रास्ते पर ले आना ही एक नये रास्ते की स्थापना बराबर हुआ।

वास्तव में कोई भी पैगम्बर, कोई ऋषि, कोई मसीहा कभी कोई नया रास्ता तो दिखाता ही नहीं। नये रास्ते तो सब अविष्कृत कर रखे होते हैं आम जनता ने। सबके पास अपने नये-नये तरीके होते हैं। गुरु हो कि पैगम्बर हो, वो तो आपको उस रास्ते पर लेकर आता है जो अनादि है। इतना पुराना है कि उसकी कभी शुरुआत ही नहीं पायी जा सकती। नयी-नयी बातें करने वाले तो हर समय बहुत लोग होते हैं। आज भी देखो न, अध्यात्म के नाम पर कितनी नयी-नयी बातें फैली हुई हैं। गुरु वो सच्चा जो तुम्हें पुराने रास्ते पर वापस ले जाए। क्योंकि सत्य अनादि है। नये सत्य नहीं हो सकते। हाँ, उसी सत्य की ओर इशारा करने वाले नये तरीके हो सकते हैं। नयी भाषा हो सकती है। नया मुहावरा हो सकता है। नयी विधियाँ हो सकती है। भाषा नयी हो सकती है, बात बहुत पुरानी रहेगी।

अगर किसी को पाओ कि वो बात ही नयी कर रहा है तो कहना, ‘तुम रहने दो। यहाँ नवीनता नहीं चाहिए।’ हाँ, भाषा नयी हो तो बढ़िया है। भई, नया समय है, नयी दुनिया है, इसके अनुसार भाषा भी नयी होनी चाहिए। पर ऐसे-ऐसे जादूगर भी होते हैं, जो भाषा तो नयी करते ही हैं, वो बात भी नयी कर डालते हैं और मंज़िल भी नयी दिखा देते हैं। इनसे बचना। समझ रहे हो?

परेश चला अपनी गर्लफ़्रेंड की ओर। कहाँ को चला? परेश चला अपनी गर्लफ़्रेंड की ओर। और जो ऑटोवाला है, उसने परेश से कहा कि जो पुराना रास्ता जाता था तुम्हारी गर्लफ़्रेंड के घर को, वो बन्द हो गया है। वहाँ निर्माण चल रहा है कुछ। तुम्हें नये रास्तों से लेकर जाऊँगा। परेश ने कहा, 'यहाँ तक तो ठीक है।' उसके घर की ओर अब वो सड़क जाती नहीं जो पहले जाती थी। वो सड़क पर कुछ काम चल रहा है। तो अब दूसरी सड़क लेनी पड़ेगी उसके घर को जाने को। परेश ने कहा, 'ठीक। ये भाई तूने सही कहा। ठीक है, नयी सड़क ले लेते हैं।' अब इसको वो नयी सड़कों के चक्कर लगा रहा है, लगा रहा है। परेश ने धीरज धरा, बोला, 'ठीक है।' समय बदल गया है, परिस्थितियाँ बदल गयी हैं, नये रास्ते लेने पड़ते हैं, भली बात। एक घंटे बाद क्या पता है कि एक घर के सामने, ऑटो जाकर रुकता है। परेश बोलता है, 'भाई, यहाँ कहाँ रोक दिया? मुझे अपनी गर्लफ़्रेंड के घर जाना था।' ऑटोवाला बोलता है, 'अरे यही अब तुम्हारी गर्लफ़्रेंड है। यही उसका घर है।' परेश को लगा शायद ये जानता हो। गर्लफ़्रेंड ने क्या पता घर बदल दिया हो। वो घंटी बजाते हैं। तो एक नयी ही लड़की बाहर आ जाती है। अब ये क्या करेगा? बोलो।

पगला होगा तो उसी घर में घुस जाएगा। होश होगा ज़रा तो ऑटोवाले को डाँट लगाएगा और बोलेगा, 'जो पता बताया है, वहीं लेकर चल।' गुरु में और नकली गुरु में यही अन्तर होता है। गुरु तुमको नये रास्तों से पुरानी मंज़िल की ओर लेकर जाता है। और नकली गुरु चाहे वो अपनेआप को जो बोले, ‘गुरुश्री’, ‘गुरुदेव’, ‘सद्गुरु’ कुछ भी बोले। नकली गुरु तुम्हारी मंज़िल ही बदल देता है। वो तुमसे बोल रहा है, 'अब ये जो नयी है, यही तुम्हारी गर्लफ़्रेंड है। इसी को अब तुम स्वीकार करो। इसी से प्रेम करो।' ऐसे सद्गुरुओं से सावधान। उन्हें तुम्हारे दिल का कुछ पता नहीं। इसका दिल किसके लिए धड़क रहा है? मीता के लिए। और वो ले किसके पास गया है इसको? रीता के पास। क्या करेगा वो? रीता के गले लग जाएगा? फिर? जूता उतार और गुरुदेव को बिलकुल चमका दे।

बात समझ में आयी?

रास्ता समसामयिक होना चाहिए। रास्ता समसामयिक, कंटेंपरेरी होना चाहिए। मंज़िल, वही पुरानी। अतिपुरातन। कालातीत। सही बात सुन रहे हो?

न्यू ट्रिक्स आर एक्सेप्टेबल, मॉन्किनेस इज़ नॉट। गो दिस वे, गो दैट वे, बट रीच देयर। द वे डज़ंट मैटर, द डेस्टीनेशन डज़। इनफ़ैक्ट द वे हैज़ टू बी वेरी स्किलफुली क्राफ़्टेड, अकॉर्डिंग टू द नीड्स ऑफ द आवर, अकॉर्डिंग टू द एसेसमेंट ऑफ द स्टूडेंट्स माइंड। द वेज़ आर बाउंड टू बी डिफरेंट। द डेस्टीनेशन मस्ट बी सेम। नेम द डेस्टिनेशन। इट्स कॉल्ड प्वाइंट ज़ीरो। व्हॉट इज़ इट कॉल्ड? प्वाइंट ज़ीरो। दैट्स व्हेयर वी हैव टू रीच। डज़न्ट मैटर व्हेयर फ़्रॉम यू कम टू, डज़न्ट मैटर हाऊ यू रीच देयर। यू मे कम फ़्रॉम हीयर, यू मे कम फ़्रॉम देयर, यू मे कम फ़्रॉम एनी व्हेयर, बट यू मस्ट रीच देयर। द रोड मे बी लैविश, वंडरफुल, स्मूथ, ब्रॉड; ऑफ़ व्हॉट यूज़ इज़ द रोड इफ़ इट डज़न्ट टेक यू टू योर डेस्टिनेशन?

(नयी तरकीबें स्वीकार्य हैं, लेकिन बन्दरबाँट स्वीकार्य नहीं है। इस रास्ते जाओ, उस रास्ते जाओ, लेकिन वहाँ पहुँचो। रास्ता मायने नहीं रखता, मंज़िल रखती है। वास्तव में, समय की माँग के अनुसार तथा विद्यार्थियों के मन के आकलन के अनुसार, मार्ग को बहुत ही कुशलता से तैयार किया जाना चाहिए। तरीके अलग-अलग होने ही हैं। मंज़िल एक रहनी चाहिए। मंज़िल का नाम बताओ। ये शून्य बिन्दु कहलाता है। क्या कहलाता है ये? शून्य बिन्दु। हमें यही पहुँचना है। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप कहाँ से आते हैं, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि आप वहाँ कैसे पहुँचते हैं। तुम यहाँ से आ सकते हो, तुम वहाँ से आ सकते हो, तुम कहीं से भी आ सकते हो लेकिन तुम वहाँ पहुँचने चाहिए। रास्ता कितना भी शानदार, अद्भुत, चिकना, चौड़ा क्यों न हो, अगर वो आपको आपकी मंज़िल तक न ले जाए तो उसका क्या फायदा?)

होगा बहुत सुन्दर रास्ता, साफ़-सुथरा, सुगम, पर अगर वो तुम्हें तुम्हारे गंतव्य तक नहीं पहुँचा रहा तो उस रास्ते का क्या मूल्य? बोलो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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