सार्थक काम में जूझे बिना नींद कहाँ आएगी? || आचार्य प्रशांत (2020)

Acharya Prashant

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सार्थक काम में जूझे बिना नींद कहाँ आएगी? || आचार्य प्रशांत (2020)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, प्रणाम! मन चलना नहीं छोड़ता, जिस कारण जाग्रत अवस्था में तो मुझे समस्या होती है, रात में नींद में भी बहुत ज़्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। पहली दफ़ा तो नींद आती ही नहीं और अगर कुछ संघर्ष के बाद रात को नींद उतरती है, तो वो बिलकुल भी गहरी नहीं होती है।

दवाइयाँ इत्यादि, मैं सो कॉल्ड मेडिटेशन , ये सब कोशिश करके छोड़ चुका हूँ। कहीं पर सुना था कि शरीर को पूरा थका दिया जाए तो नींद स्वतः उपलब्ध हो जाती है। ये भी कोशिश करी और इसके अलावा दुनियाभर के इधर–उधर के हैक्स भी आजमाए। पर कहानी यही है कि सोने में ही लगभग एक–दो घंटे लग जाते है और नींद जो आती है वो गहरी नहीं होती है।

आचार्य प्रशांत: काम क्या करते हो?

प्र: अभी मैं प्रॉडक्ट मैनेजर हूँ, मेकमायट्रिप में।

आचार्य: सो इसलिए नहीं रहे हो क्योंकि बिना सोए काम चल जाता है। जहाँ तक शरीर की बात है, खाना ख़ुराक़ है और नींद भी ख़ुराक़ है। अगर किसी की ख़ुराक़ कम हो, इसका मतलब क्या है? कम ख़ुराक़ में भी वो काम चला ले रहा है न?

ऊर्जा का आधिक्य है। तुम्हें चुनौती चाहिए; कोई उपक्रम, कोई अभियान, कोई बड़ा प्रोजेक्ट चाहिए। जो सवाल पूछा है, वो एक तरह की ख़ुशख़बरी है। तुम सोने की कोशिश कर रहे हो शायद सात घंटे, आठ घंटे। उतनी शायद तुम्हें नींद चाहिए नहीं अभी।

तुम कह रहे हो, सोने के प्रयास में एक–दो घंटे लग जाते हैं। ये तुम्हारे पास एक–दो घंटे अतिरिक्त फालतू हैं, तभी तो तुम इन्हें गँवाना बर्दाश्त कर लेते हो न? जिसके बाद ये एक–दो घंटे होंगे, वही तो इन एक–दो घंटे में कोशिश कर करके सोएगा न? हो ही न एक–दो घंटे तो? और ये एक–दो घंटे तुम्हारे पास क्यों है? क्योंकि इन एक–दो घंटों में करने के लिए तुम्हारे पास कोई सार्थक काम नहीं है।

तो अब काम है नहीं, रात के दस बज गए; अपने पास कोई सार्थक काम है नहीं, खा पी चुके, टीवी देख लिया, मोबाइल पर जो कर सकते थे सब कर लिया और बजे अभी कुल कितने है? दस। अब दस से ले कर रात के बारह बजे तक क्या करेंगे? करवटें बदली जा रही है। ये दस से बारह तक का समय खाली छोड़ क्यों रहे हो? करने के लिए कुछ क्यों नहीं है तुम्हारे पास?

जीवन को सार्थक उद्यम से इतना भर लो कि अगर शिकायत रहे भी तो ये — सोने के लिए वक्त थोड़ा कम ही मिल पाता है। फिर बड़ा मज़ा आता है। फिर पाओगे कि ऐसे खंभे की टेक ली, कहीं खड़े हुए और आधे घंटे के लिए सो गए। और नींद भी कैसे खुली?(सर को झटकते हुए)

यहाँ होता है न, संस्था में! मैं देखता हूँ,अपने साथ भी, औरों के साथ भी। आज अब रविवार है—यहाँ तो सालों से, दशकों से, कभी रविवार मना नहीं। छुट्टी क्या होती है पता नहीं। तो यहाँ कई दफ़े देखता हूँ। पाँच लोग गाड़ी में बैठेंगे, एक चला रहा है, वो बात कर रहा है, थोड़ी देर में पाएगा कि चार और बैठे हुए हैं, कोई जवाब क्यों नहीं दे रहा? तो चार के चार (सो गए का इशारा)। और अभी गाड़ी चले हुए हैं कोई साढ़े छः मिनट और साढ़े छः मिनट के अंदर चारों( सो गए)। क्योंकि काम है।

ये तो बात ही बड़ी लज्ज़त भरी है, दो घंटे फालतू मिल गए तुमको, क्यों मिल गए, भाई? जवान हों, ऊर्जा भी है, समय भी है, कुछ करो। और जिस जगह का तुमने नाम लिया कि काम कर रहे हो उससे पता लगता है कि शिक्षा भी पूरी हुई है तुम्हारी, पढ़े-लिखे हो।

तो जितनी क़ाबिलियत चाहिए, जो सामर्थ्य चाहिए, दुनिया में कुछ भी करने के लिए वो शायद अधिकतर तुम्हारे पास मौजूद है। अब तुम्हे दुनिया का अनुकरण करने की ज़रूरत नहीं है। दुनिया कैसे चलती है? दुनिया ऐसे चलती है कि नौकरी लग तो गयी। नौकरी लग गयी, कुछ कर रखा होगा। कहीं ग्रैजुएट हो गया, इंजीनियर हो गया, एमबीए वग़ैरा कुछ कर रखा होगा। क्या कर रखा है?

प्र: आइआइटी , दिल्ली से पहले कंप्यूटर साइंस किया था।

आचार्य: फच्चे हो मेरे, हाँ। कबके पास आउट हो?

प्र: आइआइएम , अहमदाबाद से भी।

आचार्य: तुम अहमदाबाद से भी हो? वहाँ से कब के हो?

प्र: अभी डेढ़ साल पहले।

आचार्य: 2018 पास आउट। और आइआइटी से? और आइआइटी से?

प्र: आइआइटी से 2014।

आचार्य: हॉस्टल कौनसा था?

प्र: सतपुरा।

आचार्य: मेरे समय में होते ही नहीं थे। और आइआइएम में किस डॉर्म से थे?

प्र: डाॅर्म अट्ठारह।

आचार्य: मालिक, बैच का अनुसरण मत करिए। बैच तो ये करता है कि अब प्लेसमेंट हो गया, लाखों हाथ में आ रहे होंगे, अब करना क्या है? जस्ट चिल। चिल नहीं मारने का, ठीक है?

आइआइटी , आइआइएम हो गया, इसका मतलब ये नहीं है कि आई हैव अराइवव्ड। वो अराइवल की फीलिंग से मुक्त रहो ज़रा। कुछ नहीं हुआ है, कहीं नहीं पहुँचे हो, कोई मंज़िल नहीं मिल गई है। अपनेआप को इस अभिमान में पड़ने भी मत दो कि बहुत हासिल कर लिया। कुछ नहीं हासिल कर लिया है। न आज कर लिया है, न आज से बीस साल बाद कर लोगे, आख़िरी साँस तक इस दंभ में मत पड़ जाना कि अब तो, मैं विश्राम कर सकता हूँ।

जहाँ तक देह की, तन की बात है, इन्हें चलने देना, इन्हें कभी रुकने मत देना। हमेशा सामने करने के लिए कुछ सार्थक होना चाहिए। जीव हो, मनुष्य हो। विश्राम का अधिकार मात्र आत्मा को है। बाकी सब चलेगा, ठीक है?

तो मैंने कहा, ‘बैच के जैसे मत हो जाओ।’ बैच तो कहता है कि अब हो गया—ये सब पैसा आने लग गया है, ब्रैंड मिल गया है, वीकेंड भी मिल जाते होंगे, ये सब नहीं।

अपनेआप को यही बताओ कि बहुत कुछ करना है। ये जो नौकरी मिल गई है, जो प्लेसमेंट मिल गया है, ये उसका बहुत छोटा हिस्सा है, बहुत-बहुत छोटा हिस्सा है, खोजो!

मुझे शायद बहुत ज़रूरत नहीं है तुमको बताने की। तुम्हारी सामान्य जागरूकता हो सकता है मुझसे थोड़ी ज़्यादा ही हो। जानते ही होंगे कि इस समय दुनिया में कौन सी चीज़ें हैं जो बहुत बहुत महत्त्व की हैं।

अच्छा नहीं लगता, शोभा नहीं देता कि जब दुनिया में इतना कुछ चल रहा है, बवंडर आया हुआ है, उस समय बस तुम मेकमाईट्रिप करो। अच्छा नहीं लगता है।

तो नौकरी के अलावा भी ज़िंदगी में बहुत समृद्धि होनी चाहिए, रिचनेस होनी चाहिए। अपने लिए अच्छा कोई प्रोजेक्ट खोजो और उसमें बिलकुल जान लड़ा दो। खींझ उठेगी, कई बार लगेगा भी कि ज़रूरत क्या है। डबल बैरल गन हूँ, आइआइटी , आइआइएम — सब कुछ तो मिल चुका है, अब क्यों मेहनत कर रहा हूँ? नहीं, तुमने अभी तक जितनी मेहनत करी है, उससे दूनी मेहनत करो। और सही दिशा में मेहनत करो, ठीक है?

उससे दो लाभ होंगे: पहली बात, नींद जल्दी आएगी। दूसरी बात, पाँच–छः घंटे की नींद बहुत होगी। गहरी नींद अगर हो, तो पाँच-छः घंटे में काम आराम से चल जाता है, ठीक है? उसे आज़माकर देख लेना।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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