अविवेकी जीव के मन में, ‘मैं’ और ‘मेरे’ का विचार उठता है, फिर रजस मन पर छा जाती है, उस मन पर जो वास्तव में, मौलिक रूप से सात्विक है।
~ उद्भव गीता, अध्याय १८, श्लोक ९
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