राजसिक आदमी का दुख || आचार्य प्रशांत, उद्धव गीता पर (2018)

Acharya Prashant

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अविवेकी जीव के मन में, ‘मैं’ और ‘मेरे’ का विचार उठता है, फिर रजस मन पर छा जाती है, उस मन पर जो वास्तव में, मौलिक रूप से सात्विक है।

~ उद्भव गीता, अध्याय १८, श्लोक ९

प्रसंग:

  • रज का क्या अर्थ होता है?
  • अविवेकी आदमी "मै" का भाव क्यों रखता है?
  • राजसिक आदमी कौन है?
  • क्या पूरी दुनिया रज है?
  • तमस का क्या अर्थ होता है?
  • तमस से मुक्ति कैसे?
  • सात्विक का मतलब क्या है?
  • सात्विक कैसे पाये?
  • रजस का मतलब क्या होता है?
  • तमस मन से सात्विक की ओर कैसे जाया जा सकता है?
  • क्या गुरु ही तीनो गुणों से आजादी दिला सकता है
  • प्रकृति में कितने गुण होते है?
  • त्याग के तीन प्रकार क्या होते हैं?

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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