ज्ञानी और अज्ञानी के बीच अंतर || आचार्य प्रशांत (2015)

Acharya Prashant

3 min
468 reads
ज्ञानी और अज्ञानी के बीच अंतर || आचार्य प्रशांत (2015)

प्रश्नकर्ता: ज्ञानी कौन है और अज्ञानी कौन है?

आचार्य प्रशांत: ज्ञानी वो जिसे ज्ञान है, अज्ञानी वो जिसे ये ज्ञान है कि वो अज्ञानी है। दोनों ज्ञानी हैं। अज्ञान कुछ नहीं होता।

प्र: किस चीज़ का ज्ञान?

आचार्य: चीज़ का ज्ञान, चीज़ कुछ भी हो सकती है। हर ज्ञान चीज़ का ही होता है, किसी भी चीज़ का ज्ञान हो। चीज़ कुछ भी होती रहे क्या फ़र्क़ पड़ता है? ज्ञान के मध्य में हमेशा चीज़ें ही होती हैं। व्यक्ति, वस्तु, विचार सब चीज़ हैं।

प्र२: इससे भी परे?

आचार्य: वो ज्ञान का विषय नहीं होता। ज्ञान में हमेशा विषय और विषयी होते हैं। ज्ञान का हमेशा विषय होता है, चीज़। जहाँ विषय है और विषयी हैं वो द्वैत हो गया न। परे जो है उसकी क्या बात करें और क्या नाम लें। उसे भी द्वैत के दायरे में ले आएँ? तो फिर कहें भी क्यों कि परे कुछ है?

प्र: तो फिर उसके परे विषय भी किस चीज़ का? अनुभूति का? या शब्दों का?

आचार्य: तुम जितनी भी बातें करोगे उन सबमें पीछे कोई बैठा होगा, अनुभव लेने वाला, शब्दों का अर्थ करने वाला, ज्ञानी। अज्ञान को ज्ञान से अलग मत समझ लेना। और ये धारणा बिलकुल मन से निकाल दो कि अज्ञानी दुःख पाता है इसीलिए कोई ज्ञान होना चाहिए। दुःख हमेशा ज्ञानी पाता है। ज्ञान ही दुःख है।

अज्ञान क्या है? ये ज्ञान कि मुझे ज्ञान की कमी है — इसे अज्ञान कहते हैं। अज्ञान का कोई अस्तित्व है ज्ञान से हटकर के? किसी को तुम कहो कि तू अज्ञानी”, तो तुम्हारा आशय क्या होता है? कि जितना ज्ञान तुझे है, कम है, कुछ और होना चाहिए। यही तो होता है?

कोई कहे, "मैं अज्ञानी", तो इसका अर्थ क्या है? वो कह रहा है, “जितना जानता हूँ कम है। और वस्तुओं का, चीज़ों का, व्यक्तियों का पता होना चाहिए। द्वैत का भण्डार मेरा और बढ़ना चाहिए।”

तो अज्ञान कुछ होता ही नहीं है। ज्ञान ही तुम्हारा बोझ है।

प्र: फिर दृष्टा और दर्शन के बीच में क्या है?

आचार्य: ध्यान है और क्या है। दृश्य, दर्शन, दृष्टा ये सब मिलकर क्या बनते हैं? यही तो ज्ञान है, यही ज्ञान की त्रिपुटी है।

तुम हो विषयी, सामने कोई विषय है जानने का और उनका एक सम्बन्ध बना है। इस सम्बन्ध को जानना कहते हैं, इस सम्बन्ध को ज्ञान कहते हैं। उसमें तुम अपने आप को ज्ञाता बोल देते हो, उधर वाले को ज्ञेय बोल देते हो और अपने रिश्ते को ज्ञान बोल देते हो। पर इन तीनों की सत्ता को तुमने सत्य मान लिया। अब एक नहीं कितने कर दिए? तीन, नहीं तो कम-से-कम दो तो कर ही दिए। खंडित कर दिया न एक को। ज्ञान का अर्थ ही है खंड कर देना।

पर जानने की भूख हममें खूब रहती है। "कुछ और ज्ञान मिल जाए, क्या पता इससे शान्ति मिल जाएगी!" जितना ज्ञान इकठ्ठा करोगे उतने अशांत होते जाओगे। जो इकट्ठा है ही उसकी निवृत्ति करो, और इकट्ठा करने के पीछे मत भागो।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories