परिपक्वता क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

Acharya Prashant

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परिपक्वता क्या है? || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)

प्रश्न: सर, परिपक्वता क्या है?

वक्ता: (१८-२२ वर्ष की आयु के विद्यार्थियों की सभा को संबोधित करते हुए)

यह शब्द ‘परिपक्वता’ हम सभी को अपने लिए महत्वपूर्ण लगता है, क्योंकि शारीरिक रूप से हम सभी परिपक्व हो गए हैं । अपने शरीरों को देखें तो दिखाई देगा कि हम सभी व्यस्क स्त्री या पुरुष बन चुके हैं। पर परिपक्वता वास्तव में क्या होती है? क्या परिपक्वता मात्र शारीरिक होती है?

श्रोता १: परिपक्वता का अर्थ है, समझ।

वक्ता: शारीरिक परिपक्वता का अर्थ है- अपने पाँव पर स्वयं चल पाने की क्षमता। और मानसिक परिपक्वता का अर्थ है- ऐसा मन जो अपनी समझ से दुनिया को देखे।

आप शारीरिक रूप से अपरिपक्व कहे जाओगे, अगर आपको खड़े होने के लिए किसी का सहारा लेना पड़े। और आप मानसिक रूप से अपरिपक्व कहे जाओगे, अगर आपकी ज़िंदगी लगातार किसी दूसरे पर निर्भर है। तो परिपक्वता का सीधा-सीधा अर्थ है- “मैं निर्भर नहीं हूँ। मैं गुलाम नहीं हूँ”। परिपक्वता का और कोई अर्थ नहीं है।

परिपक्वता का अर्थ इतना ही है- “मैं समझदार हूँ। मैं किसी का भी आँख बंद कर अनुसरण नहीं करता हूँ। हाँ अपने जीवन के शुरू के सोलह-सत्रह वर्ष औरों का अनुसरण किया। अपनी आँखें बंद कर उनका कहा माना, अनके कहे अनुसार संस्कारित हुआ । पर अब मैं उस स्थिति में हूँ जहाँ मैं अपने संस्कारित मन को देख सकता हूँ और उससे मुक्ति पा सकता हूँ”। यही परिपक्वता है। “मेरे पास एक स्वस्थ मन है”- यही परिपक्वता है।

मेरे ख्याल से इससे बहतर तरीके से समझा नहीं जा सकता। आप शारीरिक रूप से अपरिपक्व हो अगर आप किसी का सहारा लेकर खड़े हो। और आप मानसिक रूप से अपरिपक्व हो अगर आपको ज़िंदगी में सहारे की ज़रुरत है। और उन सहारों के क्या-क्या रूप होते हैं? एक रूप है, दूसरों से मान्यता। “अगर दूसरे मुझे मान्यता देते हैं, तो मैं खुश हूँ। और नहीं देते हैं तो मैं ऐसा हो जाता हूँ कि मेरे साथ ये क्या हो गया”।

“तुमने कह दिया, ‘तुम ख़ास हो’, तब तो मैं खुश हूँ । और तुम्हीं ने अगर ये कह दिया, तुम बेवक़ूफ़ हो’, तो मेरी हालत ख़राब हो गयी। यह है मानसिक रूप से अपरिपक्व होना। तो कौन है अपरिपक्व: वो जो संस्कारित है या वो जो मुक्त है?

श्रोतागण: वो जो मुक्त है।

वक्ता: जो मुक्त है, वो परिपक्व क्यों है?

श्रोता २: जो मुक्त है वो परिपक्व इसलिए है क्योंकि वो अपनी समझ से सब काम करता है। वो दूसरों पर निर्भर नहीं है।

वक्ता: अच्छा। अच्छा है कि तुमने इन शब्दों का प्रयोग किया, ‘अपनी समझ से सब काम करना’। ‘अपनी समझ से सब काम करना’- इसका क्या मतलब है? क्या इसका मतलब है अपनी मन मर्ज़ी करना?

श्रोता २: इसका मतलब है अपने संस्कारों के आधार पर कोई काम न करना, दूसरों के प्रभाव में आकर कोई काम न करना।

वक्ता: बढ़िया। ठीक है? इस भूल में मत रहना कि ‘अपनी समझ’ का अर्थ है अपनी मस्ती में रहना और अपनी मर्ज़ी का काम करना। आत्म-निर्भर होने का ये मतलब बिल्कुल भी नहीं है। आत्म-निर्भर नोने का अर्थ है- “मैं अपने संस्कारों का गुलाम नहीं हूँ, मैं दूसरों से प्रभावित नहीं हूँ”। ‘अपनी करनी’ का मतलब है- अपनी समझ से करना। “मैं जो कर रहा हूँ, वो मेरी गहरी समझ से निकल रहा है।”

क्या संस्कार तुम्हारे अपने होते हैं? क्या संस्कार तुम्हारी अपनी समझ से आते हैं?

(एक श्रोता की ओर इंगित करते हुए) अभी तक तुम सुन रहे थे, सिर्फ दो सेकण्ड का विचलन हुआ, और सारा ध्यान गायब हो गया। ऐसा ही होता है ज़िंदगी में। जैसे कोई मधुर संगीत चल रहा हो, चल रहा हो, और अचानक बीच में बाधा आ जाये। जैसे कि एक डोर बंधी हो यहाँ से वहाँ तक, और अचानक से बीच में कोई उसको काट दे। ऐसा ही होता है, थोड़ा-सा विचलन सब गड़बड़ कर देता है।

‘समझ’ का मतलब है- “मैं अपना मालिक स्वयं हूँ । कोई मुझे विचलित या प्रभावित नहीं कर सकता । मेरा मन कूड़ेदान नहीं है कि उसमें कोई कुछ भी आकर डाल जाये”। ठीक है न? ये है परिपक्वता, ये है मुक्ति, ये है आत्म-निर्भरता।

“वैसे तो अगर कोई मेरे कुर्ते पर ज़रा-सा दाग लगा दे, तो मुझे बुरा लगेगा। और मेरे मन पर जो रोज़ दाग लग रहे हैं तो मुझे बुरा नहीं लगता। मेरे मन को दुनिया कूड़ेदान की तरह इस्तेमाल कर रही है, वो मुझे बुरा नहीं लगता। और उस सारे कूड़े को मैंने अपनी पहचान बना रखा है। क्या ये परिपक्वता है?”

“मेरे मन में मान्यताएँ भर दी गयीं हैं। ‘जीवन’ के कुछ अर्थ दे दिए गए हैं, ‘व्यवसाय’ के कुछ अर्थ दे दिए गए हैं, ‘सफलता’ के कुछ अर्थ दे दिए गए हैं, ‘संबंधों’ के कुछ अर्थ दे दिए गए हैं, ‘ज़िम्मेदारी’ के कुछ अर्थ दे दिये गये हैं, ‘पैसे’ के कुछ अर्थ दे दिये गये हैं। और वो सारा कूड़ा में लेकर घूम रहा हूँ। क्या ये परिपक्वता है?”

नहीं। परिपक्वता का अर्थ है- “मैं अपनी समझ से जीवन जीता हूँ। मैं अपनी सजग दृष्टि से दुनिया को देखता हूँ”।

– संवाद पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
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