निबन्धनी रज्जुरेषा या ग्रामे वसतो रतिः। छित्त्वैतां सुकृतो यान्ति नैनां छिन्दन्ति दुष्कृत:॥
ग्राम में रहने पर वहाँ के स्त्री-पुत्र आदि विषयों में जो आसक्ति होती है, यह जीव को बाँधने वाली रस्सी के समान है। पुण्यात्मा पुरुष ही इसे काटकर निकल पाते हैं। पापी पुरुष इसे नहीं काट पाते हैं।
~ पुत्रगीता, श्लोक २६