Acharya Prashant is dedicated to building a brighter future for you
Articles

ऊब कहीं बाहर से नहीं, तुम स्वयं से ही ऊबे हुए हो || आचार्य प्रशांत (2014)

Author Acharya Prashant

Acharya Prashant

4 min
67 reads
ऊब कहीं बाहर से नहीं, तुम स्वयं से ही ऊबे हुए हो || आचार्य प्रशांत (2014)

प्रश्न: सर, आपने बताया कि जो भी करने से तुम्हारा मन हल्का होता है वो करो। लेकिन अगर इस प्रक्रिया में ही मेरा मन भारी हो तो?

आचार्य प्रशांत: न भारी हो रहा है या मन का भारीपन सामने आ रहा है? इन दोनों बातों में फर्क करना पड़ेगा। मन भारी तो सदा से था पर ऐसे बेहोश थे कि अपनी ही बिमारी का पता नहीं था। बीमारी अचेतन में घुस करके बैठी हुई थी। ओर होश की प्रक्रिया है अचेतन को चेतन कर देने की कि कुछ भी छुपा ना रह जाए। तो हज़ार दुःख, दर्द, कष्ट, संताप जो कहीं गहरे जड़ जमाकर बैठे हुए हैं, वो बाहर आ सकते हैं। पर वो बाहर आ रहे हैं भीतर से या भीतर आ रहे हैं बाहर से?

श्रोता १: दूसरा वाला (भीतर आ रहे हैं बाहर से)।

वक्ता: भीतर आ रहे हैं बाहर से। यदि भीतर आ रहे हैं बहर से तो बचो, बिल्कुल बचो। पर ध्यान से देखोगे तो आम-तौर पर ऐसा होता पाओगे नहीं। यदि वास्तव में प्रक्रिया होश की है, अगर भ्रमित ही नहीं हो, तो तब जो कष्ट होगा, और ये बात बिल्कुल ठीक है, जागने में कष्ट होता है, पर जागने का जो कष्ट है, वो बहर वाला तुमको नहीं दे रहा, वो बहर से भीतर नहीं आ रहा, जागने का कष्ट है कि जग रहे हैं तो दिखाई दे रहा है कि कितनी मूढ़ता में जीवन बिता रहे थे, कि कितना व्यर्थ का भोज ढो रहे थे, कि मन के अंदर कितने सांप-बिच्छू पाल रखे थे।

वो सांप-बिच्छू जब तक मन के भीतर थे, तब तक का काम चल रहा था। अब जब वो अचेतन से, अर्ध्चैतन्य से, चैतन्य में आ रहे हैं तो डर लग रहा है। इस मौके पर पीछे मत हट जाना। क्योंकि ये उपचार चल रहा है, ये रेचन है, कैथ्र्सिस है एक प्रकार का। जब कैंप में अनहद हो रहा था, तो जो चीख-पुकार मच रही थी, जो रोना था, चिल्लाना था, वो ढोलक की थाप से नहीं तुम्हारे भीतर जा रहा था, वो रात के अंधरे या चाँद के प्रकाश से तुम्हारे भीतर नहीं जा रहा था, वो तुम्हारे ही भीतर था जो अब बाहर आ रहा था। और अच्छा है कि तुम्हारे भीतर जो है वो बाहर आ जाए। ये रेचन है, ये शुद्धि है। अंतर समझ रहे हो? कोई बाहर वाला आकर के तुम्हें ऐसा कष्ट नहीं दे रहा था कि तुम चीखे मारने लग जाओ या बेहोश होकर गिरने लग जाओ। यदि तुम चीख रहे थे, ओर रो रहे थे, ओर बेहोश होकर के गिर रहे थे, तो उसकी वजह थी तुम्हारे दिल में पहले से ही जमा हुआ गुबार जो उस स्थिति में अब बाहर आ रहा था। तुम भूल में मत पड़ जाना। ऐसी स्थितियों से भागने मत लग जाना कि ऐसी स्थितियों में तो बड़ा कष्ट होता है, कि हम रोने लग जाते हैं। तुम रोने लग नहीं जाते हो, तुम रो रहे ही हो। तुम्हारे आंसू उस क्षण में बस दिखने लग जाते हैं। तुम होश में आने लग जाते हो। तुम्हें तुम्हारी स्थिति साफ़-साफ़ दिखने लग जाती है। दोनों बातों में अंतर समझ रहे हो न?

तुम्हारे शरीर में पस भरा हुआ है, मल भरा हुआ है। उसका इलाज किया जा रहा है, वो बाहर आ रहा है। इसका अर्थ ये थोड़ी है कि गंदगी कहीं और से ला करके तुम पर डाली जा रही है। ओर तुम कहो कि “ये तो बड़ी गन्दी प्रक्रिया है। देखो, कितना सारा मवाद!”, ये मवाद तुम्हारा ही है। ओर भला है कि ये बाहर आ रहा है। तुम हलके हो जाओगे।

‘शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

YouTube Link: https://youtu.be/_YGmctW0904

GET UPDATES
Receive handpicked articles, quotes and videos of Acharya Prashant regularly.
OR
Subscribe
View All Articles