प्रश्नकर्ता: प्रणाम आचार्य जी, भारत-पाकिस्तान के बीच में युद्ध छिड़ चुका है। लगातार स्थितियाँ खराब हो ही रही हैं। आम जनता में आक्रोश है और कहीं ना कहीं सब ये चाह ही रहे हैं कि युद्ध शुरू हुआ है तो ये एक्सट्रीम तक ही जाए। क्या होगा अगर ये एक फुल ब्लोन वॉर में तब्दील हो जाएगा और अगले 15-20 दिन या अगले कुछ महीनों तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी।
आचार्य प्रशांत: आज भी आए थे मीडिया वाले इसी मुद्दे पर बात करने। देखो निर्दोषों पर अन्याय ना हो, जो जुल्म और अंधेरे के पक्ष में ही खड़ा हो गया है वो और ताकतवर ना हो जाए, इस उद्देश्य से युद्ध करना ठीक होता है — वो एक बात है। गीता का उदाहरण मैं देता हूँ बार-बार, कि श्री कृष्ण युद्ध वर्जित तो नहीं कर रहे हैं ना? वह तो स्वयं बोल रहे हैं — युद्धस्व लड़ो। वो धर्म युद्ध है और धर्म युद्ध करा जाता है ताकि पूरी दुनिया में सत्य की, शांति की, समता की, न्याय की स्थापना हो सके।
है वो युद्ध ही पर उसका उद्देश्य क्या होता है? ये साफ समझो। कि जब कोई और तरीका नहीं बचेगा तब दुनिया में सच्चाई को और ऊँचाई को स्थापित करने के लिए हम लड़ाई जरूर करेंगे। हम पीठ नहीं दिखाएँगे। अर्जुन तो पीठ दिखाना चाहते थे। श्री कृष्ण ने कहा नहीं, नहीं, नहीं, कुछ नहीं लड़ना तो पड़ेगा। वहाँ उद्देश्य क्या है? — वहाँ उद्देश्य ये है कि,भई कोई व्यक्तिगत मेरा अहंकार नहीं है।
बात ये है कि अगर दुर्योधन बैठ गया हस्तिनापुर पर — हस्तिनापुर उस समय के भारत का आर्यवर्त का केंद्र था, जितने सब राज्य थे उस समय छोटे-छोटे उनमें सबसे प्रमुख राज्य था। उस समय का समझ लो, जैसे भारत में दिल्ली कि भारत में यही रहा है ना आमतौर पर कि जो दिल्ली पर क़ाबिज़ रहा है वो पूरे भारत का ही हो गया है — बादशाह। तो वैसी बात थी।
तो पूरे देश को और वो जो देश माने ये नहीं था कि कोई एक विशेष खास देश, उसमें बहुत छोटे-छोटे सब थे। छोटे-छोटे स्टेट्स थे, उन सबको बचाने के लिए, उन सबकी एक साथ रक्षा करने के लिए कहा कि — हाँ लड़ो, ये युद्ध जरूरी है। तो युद्ध अपने आप में अनिवार्यता बुरा नहीं होता। युद्ध भी एक कर्म है। कोई कर्म अपने आप में अच्छा या बुरा नहीं होता। ये देखना होता है कि वो कर्म किस स्रोत से आ रहा है। तुम क्या बन के, क्या देख के किस नियत के साथ कर्म कर रहे हो। ये देखना होता है। ठीक है? तो ये तो पहली बात है।
अब अगर तुम्हारा कर्म जो आ रहा है वो आ रहा है तुम्हारी भीतरी हिंसा से, तुम्हारे द्वेष से, तुम्हारी इस भावना से कि — मैं ही मैं हूँ। और बाकी पूरी दुनिया को मैं अपने आधीन कर लूँगा, नष्ट कर दूँगा, गिरा दूँगा और इसलिए तुम युद्ध कर रहे हो तो फिर ये हिटलर वाला युद्ध हो जाता है। हिटलर बोल रहा था कि पूरी दुनिया पर आर्यों का शासन होना चाहिए। कोई बोल सकता है कि साहब पूरी दुनिया पर इस्लाम का शासन होना चाहिए।
ये एक अलग युद्ध है। इसकी तुलना श्री कृष्ण के गीता वाली युद्ध से नहीं हो सकती। वो युद्ध किस लिए था? क्या बोला था उन्होंने? किसकी संस्थापना के लिए “संभवामि युगे युगे?” — “धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।” वास्तविक धर्म की स्थापना के लिए स्थापित करने के लिए वो युद्ध था।
लेकिन कोई कहे कि आर्यन श्रेष्ठता के लिए कर रहा हूँ मैं, पूरा विश्व युद्ध थोप दिया था। कोई कहे इस्लामिक श्रेष्ठता के लिए कर रहा हूँ मैं, उसने भी — पूरी दुनिया पर बोले मैंने जिहाद बोल दिया है। तो ये वो युद्ध नहीं है। युद्ध और युद्ध में अंतर होता है। समझे? युद्ध और युद्ध में अंतर होता है क्योंकि, कर्म किस केंद्र से करा जा रहा है वो एक नहीं दो केंद्र होते हैं — एक समझदारी का और एक अज्ञान का।
एक युद्ध होता है — जो समझदारी के केंद्र से होता है, करुणा के केंद्र से होता है और एक युद्ध होता है — जो हैवानियत के केंद्र से होता है, पाश्विकता के केंद्र से होता है। मैं जानवर हूँ इसलिए मैं चढ़ जाना चाहता हूँ सब पर, पागल जानवर हूँ ये एक दूसरा युद्ध होता है।
दुर्भाग्य की बात ये है कि दुनिया में इस वक़्त कई युद्ध चल रहे हैं। द्वितीय युद्ध की हमने बात करी हिटलर वाले उसके बाद से भी दुनिया में कई युद्ध हुए हैं। और जो सबसे बड़ा युद्ध था वो तो शीत युद्ध था। वो तो पता भी नहीं चला कि मिसाइलें हैं नहीं है कुछ नहीं पर चल रहा था युद्ध। कोरिया में, वियतनाम में, इराक में, इराक- ईरान युद्ध न जाने कितने युद्ध हुए हैं। भारत-पाकिस्तान के ही कितने युद्ध हो गए हैं और जो अंतर-राज्य युद्ध हुए हैं, वो तो अलग ही हैं। अब श्रीलंका जाकर के किसी और देश से नहीं भिड़ रहा था पर श्रीलंका के भीतर ही भयानक रक्तपात चला है बीस सालों तक। अफ्रीका के न जाने कितने देशों में भीतर ही रक्तपात चलता रहा है। वहाँ ये आवश्यक नहीं रहा है कि एक देश दूसरे से भिड़ गया है। यह अलग तरह के युद्ध है — ये गीता वाला युद्ध नहीं है।
जो लोग आज कह रहे हैं कि हमें तो बिल्कुल अंत तक जाना है। उन्हें कुछ बातें समझनी होगी। हम कायरता का समर्थन तो कर ही नहीं सकते। आपके ऊपर कोई पागल बेहोश आदमी आकर चढ़ गया हो और आप उसको रोके नहीं उसको उसकी जगह ना दिखाएँ, ये तो संभव ही नहीं है ये तो आपको करना पड़ेगा। लेकिन जो इसकी अति है एक्सट्रीम है वो कहाँ तक जा सकती है ये लोगों को बात समझ में नहीं आ रही है। और ज़्यादा देर नहीं लगती है वहाँ तक जाने में बात को।
पाकिस्तान भारत की तुलना में छोटा देश है बहुत। आबादी उसकी भारत की 1/7 है, इकॉनमी भी उसकी बहुत छोटी है और छोटी इकॉनमी के साथ आप बहुत बड़ी जो फौज होती है वो तो चला नहीं सकते — तो उसकी फौज भी भारत से छोटी ही है। नतीजा क्या होने वाला है, समझो। अभी नतीजे में आने से पहले एक बात और वहाँ जनतंत्र नहीं है। वहाँ कोई नेता नहीं है जो अगर गड़बड़ कर दे तो डरेगा कि अगली बार मुझे वोट कौन देगा?
लोकतंत्र में नेता डर के चलता है कि अगर मैंने गड़बड़ कर दी तो अगली बार वोट नहीं पाऊँगा। क्योंकि पाँच ही साल के लिए आया हूँ। पाँच साल बाद तो संविधान अनुसार गद्दी छिन जानी है, और जनता के सामने जाकर के वोट माँगने पड़ेंगे और जनता कहे कि — हिसाब दो तब वोट देंगे। पाकिस्तान में क्या चला है? — मिलिट्री शासन। सेना चली है वहाँ पर। अब सेना को वोट माँगने तो आना नहीं है। सेना को जनता के दरबार में सफाई तो देनी नहीं है सेना कुछ भी कर सकती है। आप कहोगे नहीं अभी तो पाकिस्तान में डेमोक्रेसी है वहाँ पर प्रधानमंत्री ये सब है। कुछ नहीं। बेकार की बात।
पाकिस्तान में एक तरह से लगातार मिलिट्री रूल ही रहा है, कभी प्रत्यक्ष कभी परोक्ष। कभी सीधे-सीधे वहाँ पर तख्ता पलट हो जाता है जैसे जिया-उल-हक़ हो गए। जैसे परवेज़ मुशर्रफ़ हो गए। तो आपको दिख जाता है कि, भई इस वक़्त तो यहाँ पर प्रधान ही बनकर के मिलिट्री बैठ गई है। जब वहाँ पर सीधे-सीधे तख्तापलट नहीं होता है, मिलिट्री टेकओवर नहीं होता है तो वहाँ पर एक प्रॉक्सी पपेट डेमोक्रेटिक सरकार बैठा दी जाती है। लेकिन उसके सर पे सेना ही चढ़ी होती है और सेना में भी वहाँ पर एक तो वो सेना है जो आपके सामने आती है, बात करती है। उदाहरण के लिए मिलिट्री के जनरल्स और एक होता है वहाँ डीप स्टेट। जो सेना का भी एजेंडा तय करता है तो आपको दिखाई देता है प्रधानमंत्री लेकिन प्रधानमंत्री के ऊपर कौन बैठा हुआ है? — आर्मी चीफ़ और एक तरह से आर्मी चीफ़ के ऊपर भी कौन बैठा है? — *आईडियोलॉजी। और वो जो आईडियोलॉजी है वो वहाबीस्त है — वहाबीस्त आईडियोलॉजी।
ये तीन हैं जो वहाँ पर जाकर के मिल जाते हैं। पाकिस्तान गरीब देश है उसके पास बस मैन पावर है। आईडियोलॉजी वो उधार लेता है सऊदी अरेबिया से और मनी वो लेता है अमेरिका से। ये तीन मिलते हैं पाकिस्तान में आकर के।
मसल और मैन पावर — पाकिस्तानी।
पैसा — अमेरिका। अमेरिका माने जरूरी नहीं अमेरिका अपनी जेब से दे, इधर-उधर से दिलवा दिया, आईएमएफ (इंटरनेशनल मोनेटरी फंड) से दिलवा दिया।
आईडियोलॉजी — सऊदी। सऊदी माने वहाँ पर भी जो वहाबीज़्म वाली धारा है वो। ये वहाँ मिलते हैं। ये है पाकिस्तान। पाकिस्तान को समझना पड़ेगा।
तो उनको जनता को जवाब नहीं देना, कुछ भी कर सकते हैं। और जवाब कौन देगा? डीप स्टेट क्या है? तुम्हें पता है? फंडिंग करने वाला कौन है, तुम्हें पता है? तो कुछ बर्बादी हो भी गई तो बर्बादी किसके कारण हुई तुम्हें पता भी नहीं चलेगा। तुम माने पाकिस्तान की जो जनता है जो उनकी अपनी आवाम है। उन्हें भी नहीं पता चलेगा उन्हें बर्बाद किसने किया।
भारत में तो अगर बर्बादी हो जाती है तो तुम जाकर के अपने नेता का गला पकड़ लेते हो। पाकिस्तान की जनता को पता भी नहीं है कि गला पकड़े तो किसका पकड़े? वहाँ पर राज्य करने वाला कौन है यही स्पष्ट नहीं है। इसीलिए भारत भी जब पाकिस्तान से बात करता है तो बड़ी समस्या रहती है। हमारे प्रधानमंत्री हुए हैं पुराने उनकी जब बात हुई किसी ने कहा — अमेरिका ने दबाव बनाया। बोले यू मस्ट टॉक टू पाकिस्तान। — बोले विच पाकिस्तान? क्योंकि कई पाकिस्तान हैं।
प्रधानमंत्री से बात करूँ? आर्मी चीफ़ से बात करूँ? डीप स्टेट से बात करूँ? या पीछे जो आईडियोलॉजिकल आका बैठे हुए हैं उनसे बात करूँ? या इनको फाइनेंस करने वाले जो लोग और पीछे बैठे हैं उनसे बात करूँ। बोलो विच पाकिस्तान।
भारत में ऐसा नहीं है, भारत से बात करनी है तो भारत में आप प्रधानमंत्री से बात कर सकते हैं और प्रधानमंत्री को बचकर चलना पड़ेगा क्योंकि प्रधानमंत्री को आपके ही पास आना है वोट माँगने। प्रधानमंत्री ने कुछ ऐसा कर दिया कि आप बर्बाद हो गए, तो आप प्रधानमंत्री को पकड़ लोगे, कहोगे — जवाब दो।
पाकिस्तान में कोई जवाब माँगने वाला नहीं है। समझ में आ रही है बात? वहाँ कुछ भी करा जा सकता है क्योंकि किसी को जवाब देना ही नहीं है। वहाँ इतनी बर्बादी है। किसी को जवाब देना नहीं है। वो बड़ी दुर्दशा में जी रहे हैं। सचमुच, बड़ी खराब हालत है। अकड़ अलग चीज़ होती है। लेकिन जो जमीनी हालात है वहाँ बहुत बुरे हैं आम आदमी के। उसको पता भी नहीं चलता कि उसका राजा बदल गया। रातों रात उसका राजा बदल जाता है। इन भी छोड़ो। जो राजा बनकर बैठा होता है उसको ये भी नहीं पता होता कि यही राजा है या कठपुतली है। असली राजा इसके पीछे है। इतना अशक्त है पाकिस्तान का आम आदमी तो उसके हाथ में कुछ नहीं है।
जब आप कहते हो भारत-पाक युद्ध हुआ है। तो माने ये नहीं है कि जो पाकिस्तान की आम जनता है उससे आपका युद्ध हुआ है। वहाँ एक बहुत छोटा सा समुदाय है उससे आपका युद्ध हुआ है, जो छोटा समुदाय है — वो मिलिट्री है। मिलिट्री में भी जो एक और छोटी-छोटी काउटेरिस हैं। छोटे-छोटे दायरे हैं जो सारा पावर अपने में कॉन्सन्ट्रेटेड करके बैठे हैं। सिर्फ़ मिलिट्री पावर ही नहीं, इकोनॉमिक पावर भी, पॉलिटिकल पावर भी — उनसे युद्ध चल रहा है।
अब युद्ध होता है, आर्मी तो इनकी छोटी ही है, पैसे भी नहीं युद्ध करने के, भारत की सेनाएँ घुस जाती हैं। पहले भी घुस चुकी हैं। 1965 तक में घुस गई थी, लाहौर के दरवाजे पर जाकर बैठ गई थी जानते ही हो। 71 में तुमने लगभग 1 लाख प्रिज़नर ऑफ वॉर बनाए थे वो भी जानते हो। युद्ध तो जब भी हुआ है भारत ही भारी पड़ा है। ठीक है ना?
कारगिल में भी वो आकर के चढ़ गए थे। हमें भी बहुत नुकसान झेलना पड़ा पर भगा तो दिया ही सबको। ठीक है? होना इस बार भी वही है। बल्कि जो इकोनॉमिक और मिलिट्री एसिमेट्री है (असमानता) भारत और पाकिस्तान में, वो बढ़ ही गई है कारगिल के बाद से। लगातार बढ़ती रही है। आपको बहुत समय लगेगा नहीं पाकिस्तान को घुटनों पर लाने में। बताओ ये अच्छी खबर है कि बुरी खबर है? आपकी फौजें अब बढ़ रही हैं। मान लो लाहौर की ओर ही बढ़ रही हैं वही सबसे पास में है सीमा के। रावलपिंडी खबर पहुँचती है। जनरल हेड क्वार्टर्स पैनिक कर जाता है क्योंकि ये तो आप टेरिटरी लूज़ कर रहे हो। अपना प्रमुख एक शहर ही लूज़ करने जा रहे हो — लाहौर जाएगा। उनके पास नो फर्स्ट यूज़ की न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन नहीं है। भारत के पास है।
भारत ने कहा है — हम पहले नहीं चलाएँगे न्यूक्लियर वेपन। हम पर कोई चलाएगा तो हम चला देंगे। और हमारे पास इतनी स्ट्रेटेजिक डेप्थ है कि हम पर अगर पहले हमला हो भी गया आणविक तो भी उसके बाद हम इतने बचे रहेंगे कि हम पलट के वार कर सकें। पाकिस्तान के पास वो स्ट्रेटेजिक डेप्थ नहीं है। उन पर अगर पहले जाकर कोई न्यूक्लियर अटैक कर दे तो वो पूरे ही मटियामेट हो जाएँगे। तो उन्होंने नो फर्स्ट यूज़ रखा नहीं है। उन्होंने माने किसने? पाकिस्तान की आम जनता ने नहीं, वो तो डिसइंपावर्ड है। पाकिस्तान की आम जनता के हाथ में कुछ नहीं है, वो ऐसे ही है बिल्कुल, तो रखा नहीं है।
अब भारत की सेनाएँ बढ़ रही हैं, कल्पना कर लो — भारत की सेना बढ़ रही है पाकिस्तान अगर लाहौर गवा देता है या टेरिटरी गवा देता है तो ये सेना के लिए बड़े अपमान की बात होगी। क्योंकि सेना पाकिस्तान की आम जनता पर चढ़ी ही ये बोलकर रहती है कि हम ही सर्वे सर्वा हैं।
पाकिस्तान में कोई इंस्टीट्यूशन काम करता नहीं। एक ही इंस्टिट्यूशन है जो काम करता है — आर्मी। वहाँ कुछ भी होता है, वहाँ आर्मी ही आती है कुछ भी करने के लिए। वहाँ पर सब्जी भाजी की कंपनी भी आर्मी चलाएगी, जूते भी आर्मी बेच रही होती है, मार्केट पर भी आर्मी ने ही कब्ज़ा कर रखा होता है, सबसे ज़्यादा लैंड भी आर्मी ने ही दबा रखा है। जितने तरीके हो सकते हैं हर तरीके से आर्मी पाकिस्तान पर चढ़कर बैठी हुई है और क्या बोल के चढ़कर बैठी हुई है? — उस तरफ एक बड़ा भारी दुश्मन है। उससे तुम्हें हम बचाते हैं ना, तो चुपचाप हमारी बात मानो। नहीं समझे? वो उतना बड़ा दुश्मन हिंदुस्तान उधर है, उससे तुम्हें हम बचाते हैं। सुनो पाकिस्तानियों — चुपचाप हमारी बात माना करो।
जितना पैसा वहाँ आर्मी के पास है आप कल्पना नहीं कर सकते और भारत की जो सेना है इसके हमारे अफसर होते हैं, जवान होते हैं, वो एक मर्यादा में रहते हैं, एक अनुशासन में रहते हैं। पाकिस्तान की आर्मी का एक जूनियर ऑफिसर भी लाट साहब बनकर रहता है क्योंकि माइंडसेट भी जो है ना वो फ्यूडलिस्टिक है। समझ रहे हो बात को? हम कुछ हैं। और उसकी भी वजह है उसमें कास्ट एंगल भी है, उसमें क्षेत्रीयता का रीज़नल एंगल भी है। आर्मी जो है वहाँ बहुत ज़्यादा पंजाबियों से भरी हुई है और वहाँ ये भी बात है कि — पंजाबी श्रेष्ठता। हम बेहतर है ना, तो बाकी लोगों से, तुम ज़रा नीचे-नीचे रहो और इसी पंजाबी श्रेष्ठता के भाव के कारण ही तो बलूचिस्तान में फिर विद्रोह हो रहा है।
तो अब ये जो श्रेष्ठता का आप दंभ लेकर के बैठे हो। अगर इंडियन आर्मी घुसी चली आ रही है, जो कि घुसेगी क्योंकि पिछले युद्धों में भी हर बार घुसी है, इस बार भी घुसेगी। चली आ रही है। रावलपिंडी में हो जाएगी पैनिक और कुछ नहीं करेंगे — जो एकदम तुम्हारी जो एक फॉरवर्ड डिवीजन होगी उसके ऊपर समझ लो एक 10 किलो टन का टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन वो इस्तेमाल कर देंगे। 10 किलो टन ज़्यादा ईल्ड नहीं होती है, छोटा न्यूक्लियर वेपन वो इसलिए करेंगे, क्योंकि उनको रोका नहीं तो अगले 4 घंटे में लाहौर गया। क्योंकि उनके पास और कोई चारा नहीं है, वो और किसी तरीके से भारतीय सेना को रोक नहीं पा रहे तो वो वहाँ पर न्यूक्लियर वेपन चला देंगे।
समस्या अब ये है कि छोटे से छोटा भी जो न्यूक्लियर वेपन होता है ना 10 किलो टन बोल रहा हूँ। ये 10 किलो इतना होगा कि — 1 किलोमीटर के रेडियस में दायरे में रेत तक को पिघला करके शीशा बना देगा। इंसानों को छोड़ दो। माइक्रो ऑर्गेनिज्म्स तक मर जाएँगे मिट्टी के और हवा के। कितना भी छोटा वो टैक्टिकल वेपन होगा और टैक्टिकल वेपन चलाना पड़ेगा क्योंकि नो फर्स्ट यूज़ पॉलिसी भी नहीं है और जमीन जा रही है, लाहौर जा रहा है। मुँह क्या दिखाओगे पाकिस्तानियों को? सेना का वर्चस्व गया! — तो मरता क्या ना करता, वो अपने दंभ में आकर के चला देगा।
ये जो होने जा रहा है हम वो समझ रहे हैं।
वो चलाएगा क्योंकि उसका कुछ नहीं जाता है — चलाने वाले का जो बटन दबा रहा है, और अगर वो बटन दबाएगा तो भारतीय सेना के भी जवान जो आगे बढ़ रहे थे वो दसियों-हज़ारों में शहीद होंगे। दो, 400-500 की बात नहीं है। जो बचेंगे उन तक भी जो न्यूक्लियर रेडिएशन है वो पहुँचेगा, भारी क्षति होगी। साथ ही नो फर्स्ट यूज़ कहा था ना भारत ने, अब फर्स्ट यूज़ दूसरे ने कर दिया! फर्स्ट यूज़ कर दिया! और अब आपकी सेना के ऊपर न्यूक्लियर बॉम्ब चला दिया गया है, तो आप भी चुप नहीं बैठ सकते। नो फर्स्ट यूज़ भी अब इनवैलिड हो गया। अब आप क्या करोगे? 150-200 न्यूक्लियर वॉर हेड्स आप भी तैयार रख कर बैठे हो, आपको चलाने पड़ेंगे। आपकी मजबूरी हो जाएगी न्यूक्लियर वेपन का इस्तेमाल करना। लाहौर, इस्लामाबाद, कराची, सियालकोट, गुजरावाला, पेशावर। लेकिन आप कितनी भी कोशिश कर लो आपकी स्ट्राइक्स इतनी परफेक्ट नहीं हो सकती कि दुश्मन रिटैलिएट नहीं करेगा। अमृतसर, चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद।
यहाँ कहानी खत्म नहीं होती है, यहाँ से कहानी शुरू होती है! कहाँ से शुरू करूँ समझ में नहीं आ रहा। ये पृथ्वी का अंत है! और ये आने वाले 10 दिनों के भीतर हो सकता है क्योंकि पाकिस्तान के पास भारतीय सेना को झेलने की ताकत चार-पाँच दिन से ज़्यादा की नहीं है। चार-पाँच दिन के बाद भारतीय सेनाएँ उनका प्रतिरोध रेजिस्टेंस तोड़ करके उनके जमीन में प्रवेश कर जाएँगी। हताहत हमारी तरफ से ही बहुत लोग होंगे लेकिन हम चढ़ जाएँगे, अतीत में भी चढ़े हैं। ये अगले 10 दिन की कहानी है। अब यहाँ से क्या होता है? ये न्यूक्लियर स्ट्राइक्स है, सबसे पहले इसमें इमीडिएटली कितने मरेंगे ये बताओ? 10 से 15 करोड़ लोग। ये इमीडिएटली ये मरेंगे नहीं, ये भाप हो जाएँगे। ये भाप हो जाएँगे।
बम अगर मुंबई पर गिरता है तो मुंबई के आगे के जो इलाके हैं नवी मुंबई से लेकर के और फिर पुणे तक मुंबई तो वेपराइज़ हो जाएगी। पता ही नहीं चलेगा कि आप आगे के हैं, वहाँ ये जो खाल है ना ये खाल बस ऐसे गिरने लगेगी। खाल पहले ऐसे मिनटों के अंदर पहले ऐसे भयानक फफोले हो जाएँगे उसके बाद खाल ऐसे गिरेगी। ये जो न्यूक्लियर वेपन होता है आपके समझ के लिए बता दूँ — जब ये एक्सप्लोड करता है तो इसका तापमान सूरज की सतह पर जितना तापमान होता है, उससे ज़्यादा होता है। समझ लो सूरज जो है हमारा वो ठीक आपके सर पर आ गया है। आपका क्या होगा?
और ये सब करके पाकिस्तान तो विलुप्त हो चुका है, दुनिया के नक्शे से ही साफ हो गया है। दस से पंद्रह करोड़ तुरंत मरेंगे बाकी रेडियो एक्टिव लाशें बन जाएँगे। वो किसी तरह अगर जी भी गए लगभग 30-40 करोड़ और लोग तो कहते हैं — द लिविंग विल एनवी द डेड। वो कहेंगे हम मरे क्यों नहीं? हिरोशिमा नागासाकी आपको बच्चों की कहानियाँ जैसे लगेंगे। क्योंकि आज के जो न्यूक्लियर वेपंस हैं वो हिरोशिमा वाले से तो सौ हज़ार गुना ज़्यादा पावरफुल हैं। और जब न्यूक्लियर वेपन डाला जाता है ना छोटा नहीं डाला जाता। बताओ छोटा क्यों नहीं डाला जाता? क्योंकि आपको पता है अगर वो बच गया तो पलट के मारेगा। तो आप कहते हो जो बड़े से बड़ा वेपन डाल सकता हूँ वो डाल देता हूँ ताकि वो बचे ही ना। न्यूक्लियर एक्सचेंज ऐसा नहीं होता कि धीरे-धीरे ग्रेजुअली एस्केलेट करेगा।
जब न्यूक्लियर वेपन यूज़ होता है तो जो सबसे बड़ा होता है ना वो डाला जाता है कि दुश्मन पूरा खत्म हो जाए। क्योंकि अगर वो बच गया तो मुझे नहीं छोड़ेगा। धुआँ इतना निकलेगा, इतना निकलेगा, इतना निकलेगा कि भारत और पाकिस्तान दोनों के ऊपर एक बहुत लंबी रात छा जाएगी। राख छा गई है और वो रात सालों तक चलेगी। सूरज जैसी कोई चीज़ बचेगी नहीं, आपको सूरज दिखाई नहीं देगा। उसको न्यूक्लियर विंटर बोलते हैं। न्यूक्लियर विंटर — हमेशा के लिए जाड़ा हो जाएगा, सूरज दिखाई ही नहीं देगा। बारिश की तो कोई बात ही नहीं। ये नहीं कि उन दिनों मानसून नहीं आएगा, मानसून फिर कभी नहीं आएगा।
जो बच जाएँगे वो रोएँगे कि हम बच क्यों गए? कहीं अन्न का एक दाना नहीं उपज सकता। जो रेडियो एक्टिव ऐश है, सूट है वो जाकर के हिमालय पर पड़ेगी, वहाँ से वो जो रेडियोएक्टिव ऐश है वो सारी नदियों से प्रवाहित होगी। और ये नदियाँ जो हमारे लिए प्राण की धारा होती थी वो ज़हर की धारा बन जाएँगी — ये हमारी पवित्र नदियाँ। क्योंकि वो पानी ही रेडियो एक्टिव हो चुका है। आप उस पानी की एक बूंद भी पियोगे आप..
जो लोग धर्म युद्ध की जगह अहम् युद्ध करना चाहते हैं उनको ही नहीं समझ में आ रही है बात। मैं टीवी पर देख रहा हूँ। वो आ रहे हैं। वो उस दिन भी बोला था —— वो ऐसे खिलौना मिसाइलें ले आ रहे हैं और ऐसे- ऐसे कर रहे हैं, टीवी वाले भी दिखा रहे हैं — ऐसे जा रहा है, ऐसे मारेंगे, तुमने क्या है? वीडियो गेम समझ रखा है? मनोरंजन समझ रखा है? ये क्या है? न्यूक्लियर वेस्टलैंड बन जाएँगे ये दोनों देश हमेशा के लिए। जहाँ कभी कुछ पैदा नहीं हो सकता और जहाँ का रेडिएशन पूरी दुनिया को बर्बाद कर देगा। वो जो कालिमा छाएगी वो सिर्फ़ भारत पाकिस्तान तक थोड़ी सीमित रहेगी। वो धीरे-धीरे पूरी दुनिया पर फैलेगी। जो बच्चे पैदा होंगे उनके किसी के चार सर होंगे, पाँच आंखें होंगी, सब के सब डिफॉरमिटीज़ के साथ पैदा होंगे अगर वो बचे रह गए तो।
आमतौर पर जितनी महिलाएँ होती हैं जैसे ही रेडियोएक्टिव उन पर पड़ता है रेडिएशन, तुरंत उनका गर्भपात हो जाता है। पर अगर बच्चे बचे रह गए तो वो सब के सब डिफॉरमिटीज़ के साथ पैदा होंगे। जेनेटिक म्यूटेशन हो जाएगा, आप आज के लिए नहीं अगले पाँच सौ सालों के लिए ऐसे ही हो गए। आपकी प्रजाति ही कुछ और बन जाएगी और ये सब अगले दस दिन में हो सकता है।
और सुनो — ये सब जो जनरल और नेता लोग हैं जो बटन दबाएँगे — न्यूक्लियर बटन। ये बटन दबा के फ्लाइट ले के अमेरिका निकल जाएँगे कोई नेता नहीं मरने वाला, कोई जनरल नहीं मरने वाला। टीवी पर तो आ रहा था, एक पाकिस्तानी कोई था, सांसद था पता नहीं कौन था? उसने तो बोल ही दिया कि मैं तो जा रहा हूँ, यूके जा रहा हूँ। ये इधर बटन दबाएँगे और उधर फ्लाइट लेके बाहर निकल जाएँगे।
जहाँ-जहाँ बम गिर रहा है आप वहाँ तो वेपराइज़ हो जाओगे, भाप बन जाओगे और उससे सैकड़ों-सैकड़ों किलोमीटर दूर तक आप जलोगे नहीं, आप पिघलोगे। ज़रा सोचो ना सूरज पर कोई पतंगा पहुँच गया है उसकी क्या हालत हो रही है। सूरज आ गया आपके सर पर ठीक, वो जो न्यूक्लियर वेपन है वो फटेगा सूरज से ज़्यादा टेंपरेचर पैदा करता है, ठीक आपके सर के ऊपर। भारत, पाकिस्तान नहीं पूरा विश्व बर्बाद हो जाएगा। डराने के लिए नहीं बोल रहा हूँ ये यथार्थ है। सुनने में ऐसा लगेगा अरे ये तो क्या ऐसे फैला कर बता रहे हैं काल्पनिक बात। — काल्पनिक बात नहीं है। और
अगर पाकिस्तान में डेमोक्रेसी होती तो ये नौबत कभी आती भी नहीं। ये सब कुछ तब होता है जब कुछ लोगों के हाथ में निरंकुश सत्ता पड़ जाती है, तब वो कुछ भी कर सकते हैं बिना जवाबदेही के, कोई अकाउंटेबिलिटी नहीं बचती। जो बचे भी रह जाएँगे उनके लिए क्या इकोनमी, क्या अर्थव्यवस्था, सब कुछ पिघल चुका है। क्या सभ्यता, क्या संस्कृति, क्या ज्ञान — क्या खाओगे? कुछ पैदा ही नहीं होगा अब जमीन पर मास माइग्रेशन होगा।
जो बचे रह जाएँगे वो भागेंगे इधर-उधर। नेपाल में घुसने की कोशिश करेंगे, बांग्लादेश में घुसने की कोशिश करेंगे। पाकिस्तान वाले जो बचे रह जाएँगे वो उधर ईरान में, अफगानिस्तान में घुसने की कोशिश करेंगे। जो बचे रह जाएँगे उन्हें घुसने नहीं दिया जाएगा क्योंकि उनके शरीर तक रेडियो एक्टिव हो चुके होंगे। क्या करेंगे उन्हें घुसेड़ करके? जहाँ जाएँगे वो वहाँ मौत का कारण बनेंगे, अब वो चलते फिरते बम हैं। जो बहुत-बहुत दूर रहते हैं वो पाएँगे कि दो साल-चार साल के भीतर उन्हें कई तरह के कैंसर हो गए। जो बहुत-बहुत भी दूर थे उनको भी, मतलब जो सैकड़ों किलोमीटर दूर थे उनको भी।
ये आपको बता करके मैं कुछ साबित नहीं करना चाह रहा। पर दूसरा पक्ष आपके सामने रखा जाए बहुत जरूरी है क्योंकि अभी आपके सामने सिर्फ़ हॉक्स हैं, जो कि आपको बस आकर यही बता रहे हैं कि मार देंगे, गिरा देंगे, फाड़ देंगे।
फिर कह रहा हूँ — श्री कृष्ण भी अर्जुन को धर्म युद्ध लड़ने को कहते हैं, अंधा युद्ध लड़ने को नहीं कहते। धर्म युद्ध लड़ने को कहते हैं लड़ो, जरूर लड़ो। अर्जुन को धक्का देकर के कहते हैं कि लड़ना पड़ेगा। पर अहम् युद्ध लड़ने को थोड़ी कह रहे हैं कि अहंकार के नाते युद्ध लड़ो। और मैं जरा सी भी अतिशयोक्ति नहीं कर रहा हूँ। मैंने आपको जितनी बातें बोली हैं जाकर के पढ़ लीजिए, प्रचुरता में सामग्री उपलब्ध है बहुत इस पर रिसर्च हो चुकी है।
तो प्रश्न उठेगा कि फिर करें क्या? देखो जो पागल होता है, अन्यायी होता है ना, उसको सिर्फ़ युद्ध के मोर्चे पर ही हराया जाए, ये जरूरी नहीं है। युद्ध के मोर्चे पर भी उसको हार दे दो पर उसको ज़्यादा बड़ी हार, ज़्यादा बड़ी तकलीफ़ दूसरी तरीके से दी जाती है।
आप एक विकसित राष्ट्र बन पाओ जिसके पास ज्ञान हो, अपने इंस्टीट्युशंस हो, विश्वविद्यालय हो, शोध हो, रिसर्च हो, क्रिएटिविटी हो, संपन्नता हो — ये असली जीत होगी कि नहीं होगी? ये असली जीत होगी कि नहीं होगी कि आम पाकिस्तानी अपनी सरकार से बोले कि हमें भी हिंदुस्तान जैसा बनना है — ये होगी असली जीत कि नहीं होगी? बोलो।
कहा जाता है मुझे इस बारे में पक्का नहीं पता। पर कहते हैं कि पाकिस्तानी अपने आप को भारतीयों से लगातार श्रेष्ठ ही मानते रहे। कारण ये है कि सैंतालिस में जब विभाजन हुआ था ना, तो आबादी तो ज़्यादा भारत में रह गई थी और जैसा हमने कहा क्षेत्रफल पूरा ज़्यादा उधर चला गया था। और जो इधर के भी माने यूपी वग़ैरह के भी जो ज़्यादा अमीर जमींदार मुसलमान थे, वो सब अपना पैसा वैसा लेकर के जितना हो सका सब पाकिस्तान चले गए थे। तो पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय हिंदुस्तान से कहीं ज़्यादा थी आजादी के समय। ज़्यादा अमीर देश था पाकिस्तान और पाकिस्तानियों की पर कैपिटा इनकम हिंदुस्तानियों से ज़्यादा बनी रही लगभग नब्बे के दशक तक। क्यों बनी रही? क्योंकि पहले तो उनके पास विरासत का पैसा था आजादी के समय और उसके बाद उनके पास अमेरिका का पैसा आने लग गया — अफगान युद्ध के समय। तो पाकिस्तान में एक प्रोस्पेरिटी बनी रही और उनको यही लगता था कि भारत जो है वह गरीब देश है।
हालात बदलने, बड़ी रोचक सी बात है ये — तब शुरू हुए जब पाकिस्तान में जब क्रिकेट सीरीज़ हुई और उन क्रिकेट मैचेस में देखने के लिए वीज़ा ले के हिंदुस्तानियों ने पहुँचना शुरू कर दिया। इसी तरीके से हिंदुस्तान में जब मैच होने लग गए वो देखने के लिए वर्ल्ड कप वग़ैरह कुछ पाकिस्तानी आने लग गए, तो उन्होंने बताया — यार इंडियंस के पास तो बहुत पैसा आ गया। इनके शहर तो बहुत आगे निकल गए हैं — ये होती है असली जीत। बात आ रही है समझ में?
अमेरिका ने सोवियत संघ को परास्त करा था बिना एक भी बम गिराए। कैसे? क्योंकि टॉप यूनिवर्सिटीज़ सारी अमेरिका में थी, क्योंकि कटिंग-एज रिसर्च सारी अमेरिका में हो रही थी, क्योंकि अमेरिका की पर कैपिटा इनकम सोवियत संघ से कई गुना हो गई थी। एक भी बम नहीं गिराना पड़ा। सोवियत संघ ख़ुद ही टूट गया और अगर बम गिराया जाता तो क्या होता? बोलो — दोनों बर्बाद हो जाते। जो अमेरिका आप आज देख रहे हो विश्व का एकमात्र सुपर पावर वो अमेरिका बचता ही नहीं।
ये जानवरों का तरीका है कि जाकर के किसी से सीधे-सीधे शारीरिक रूप से, मटिरियल रूप से, मिलिट्री रूप से भिड़ जाओ। कई बार इस जानवरों वाले तरीके की जरूरत पड़ती है, हम जानते हैं। हमने गीता में कुरुक्षेत्र में देखा है कि वो भी करना पड़ता है पर उसको करने की भी एक मर्यादा होती है, एक अनुशासन होता है, एक तमीज़ होती है। ये थोड़ी होता है कि, तुम जाकर के जानवर के साथ जानवर बन गए। यू हैव टू डिफीट द मॉन्सटर विदाउट बिकमिंग अ मॉन्सटर।
असली जीत वो होगी कि नहीं होगी कि जिस दिन आम पाकिस्तानी पूछे कि हम हिंदुस्तान से अलग ही क्यों हुए थे? बताओ कि हम अलग हो गए। हिंदुस्तान इतना खुशहाल है हम बर्बाद हो गए। बताओ हम अलग ही क्यों हुए थे? असली जीत वो होगी कि नहीं होगी कि पाकिस्तानी अपने नेताओं से सवाल करें, पूछे कि गलती करी थी सैंतालीस में अलग हो के — वो होगी ना असली जीत।
युद्ध शुरू करना एक गणित है, पता होना चाहिए कि कब शुरू करना है और युद्ध कई बार शुरू करना पड़ता है। ठीक है? पर युद्ध को रोकना भी एक कला है, ये भी पता होना चाहिए कि अब कहाँ पर जाकर हमारे उद्देश्यों की पूर्ति हो गई है। अब इसको किसी तरीके से नीति से अब इसको रोको। इसको और बढ़ने मत दो। हमें जितना करना था हमें उसे जितना दंड देना था हमने दे लिया। अब और मत उलझो। और इसका मतलब ये नहीं है कि हम कायर हैं, इसका मतलब ये नहीं है हमने पीठ दिखा दी। इसका मतलब ये है कि अब हम ज़्यादा बड़ी जीत की तैयारी में हैं, छोटे युद्धों में उलझ करके आप एक बड़ी हार स्वीकार कर लो — ये कहाँ की बुद्धिमानी है?
दुनिया तो चाहती ही है विशेषकर चीन कि आप पाकिस्तान के साथ ही उलझे रह जाओ। ताकि आप रहे जाओ एक रीजनल पावर और चीन बन जाए ग्लोबल पावर और वो सफल भी हो रहा है अपने उद्देश्य में। भारत को अभी भी अधिक से अधिक एक क्षेत्रीय ताकत माना जाता है। कहते हैं हाइफनेटेड रिलेशनशिप इंडिया एँड पाकिस्तान। ये दोनों इंडिया पाकिस्तान, इंडिया पाकिस्तान, इंडिया पाकिस्तान और — चीन, उसने अपने आप को रख दिया है रूस और अमेरिका की श्रेणी में कहता है मल्टीपोलर नहीं दोबारा बायपोलर वर्ल्ड है जी2।
पाकिस्तान के साथ उलझ करके आप ज़्यादा बड़ी लड़ाई हार रहे हो। तो क्या बिल्कुल नहीं उलझे? नहीं उलझना भी पड़ेगा पर कब हट जाना है परे ये भी पता होना चाहिए और हम परे हट रहे हैं ताकि हम एक ज़्यादा बड़ी जीत हासिल कर सकें। ज़्यादा बड़ी जीत मालूम है क्या होती है?
फ्रांस में चार्ली हेबड्डो कांड हुआ था पता होगा। वहाँ पर अभिव्यक्ति की बड़ी आजादी है तो पाकिस्तान में किसी ने बोल दिया, कि पाकिस्तान को अपनी मिसाइलों का इस्तेमाल करना चाहिए फ्रांस को, पेरिस को उड़ाने के लिए। तो वहाँ पर जो फ्रेंच ऐंबैसडर पाकिस्तान में उन्होंने शिकायत कर दी। पाकिस्तान की पुलिस ने जाकर के उस भड़काऊ आदमी को पकड़ा और पाकिस्तान की अदालत ने उसको सजा भी दी। ये होती है असली ताकत।
इतनी हमारी ताकत है कि पाकिस्तान ख़ुद दाऊद इब्राहीम को सज़ा दे, कि पाकिस्तान ख़ुद मसूद अजहर को सजा दे। ऐसी ताकत चाहिए कि नहीं चाहिए? बोलो। और अगर ख़ुद ना सज़ा दे तो जब अमेरिका जैसा कोई घुस के घर में ओसामा बिन लादेन को मारे तो पाकिस्तान कुछ बोल भी ना पाए — चूँ भी ना कर पाए बल्कि सफाई दे बोले हमें तो पता भी नहीं था यहाँ रहता था। हमें नहीं पता था यहाँ रहता था, गलती हो गई हमें माफ कर दो। हम नहीं जानते थे यहाँ रहता था। ये होती है असली जीत, ऐसी जीत चाहिए कि नहीं चाहिए? ऐसी जीत तब आती है जब अमेरिका जैसी अर्थव्यवस्था बनाते हो, उनके जैसी यूनिवर्सिटीज़ बनाते हो, *रिसर्च इंस्टीट्युशंस बनाते हो, डेमोक्रेटिक सेटअप बनाते हो, इंडिपेंडेंट जुडिशरी बनाते हो, तब ऐसी ताकत आती है। नहीं तो उलझे ही रह जाओगे बस, पूरी दुनिया के लिए मज़ाक है।
वहाँ पर ट्रंप है, वो क्या वक़्तव्य दे रहे हैं? कोई ऊँचा आदमी तुम्हारा उपहास करे तो फिर भी झेल लो — ट्रंप जैसा आदमी, ये बोल रहा है। क्या बोल रहा है? — दिज़ टू हैव बीन फाइटिंग ईच अदर सिंस अ लॉन्ग टाइम। आई थिंक सिंस सेंचुरीज़ — ये किस भाषा में तुम मेरे देश के बारे में बात कर रहे हो? ऐसे बोल रहे हो जैसे नासमझ आदमी है, तुम्हें पता भी है भारत का इतिहास? तुम्हें पता है भारत ज्ञान का पालना है? पर तुम मज़ाक उड़ा रहे हो भारत का। कह रहे हो भारत पाकिस्तानी हैं ये तो लड़ते ही रहते हैं, पागल है हमेशा से लड़ रहे हैं। मेरे तो दोनों बराबर हैं मैं देख लूँगा, इफ दे नीड माई हेल्प मैं दे दूँगा।
दुनिया के सामने ऐसा बन जाना है? — इंडिया पाकिस्तान। ये कोई तुलना है? भारत की तुलना होनी भी चाहिए तो किससे चीन से होनी चाहिए पर खुश हो रहे हो कि पाकिस्तान को दबा दिया, दबा दिया, दबा दिया। वो इतना ख़ुद ही पीड़ित देश है कि उससे अपने आप को क्वारंटीन कर लो सीमा पर बाढ़ लगाओ, वो जरूरी है ज़्यादा। उनको यहाँ घुसने मत दो, वो जरूरी है ज़्यादा।
कम से कम डेढ़-दो सौ आतंकवादी अभी भी कश्मीर में मौजूद हैं — मैं जो बोल रहा हूँ उसका विकृत अर्थ करना बहुत आसान है। मिसइंटरप्रिटेशन बहुत आसान है खासकर जब नियत खराब हो। आप बहुत आसानी से मिसइंटरप्रेट कर लोगे कि मैं क्या बोल रहा हूँ। पर जो मैं बोल रहा हूँ वो बोलना जरूरी है क्योंकि आप तक सिर्फ़ एक बात पहुँच रही है और दूसरी बात है वो छुपाई जा रही है, कोई नाम नहीं ले रहा वो दूसरी बात आप तक आनी जरूरी है। आप तक आनी इसलिए भी जरूरी है क्योंकि ये जो सब कुछ चल रहा है तमाशा, ये आपके पैसों से चल रहा है और आपकी जान की कीमत पर चल रहा है।
एक राफेल ढाई हज़ार का आता है, ढाई हज़ार करोड़ समझते हो कितना होता है? युद्ध न्यूक्लियर थ्रेशोल्ड तक नहीं भी पहुँचा सिर्फ़ कन्वेन्शनल वॉर भी रहा तो भी, पचास हज़ार करोड़ का है। और ये बहुत कंजरवेटिव फिगर है, होने को ये पचास हज़ार प्रतिदिन का भी हो सकता है और ये आपका पैसा है। पर कुछ युद्धानुमादी लोग वॉर मोंगर्स वो आकर आपको भड़का रहे हैं, कहते — और, और, और तुम अपने घर से पैसा लाकर लड़ रहे हो।? तुम अपनी जान दे रहे हो बॉर्डर पर? तुम आम जनता से कह रहे हो कि तुम्हारे पैसे से तुम्हारी जान लेकर के युद्ध चलना चाहिए। पैसा आपका जा रहा है, जान आपकी जा रही है और पूरा इतिहास ऐसे ही रहा है कि जितने भी शासक रहे हैं जिन्होंने अपनी टेरिटरी बढ़ाई आप उनको महान बोल देते हो। यही करते हो ना? — वो महान थे। और जो उन्होंने युद्ध लड़े उसमें जिनकी जान गई उनका तो कोई नाम ही नहीं है। उन युद्धों में जिनकी जान गई उनका कोई नाम है? इतने सिविलियंस अभी मर गए हैं — जम्मू में, पुंछ में, पंजाब के सीमावर्ती गाँव में इतने मरे हैं। उनके नाम पता है आपको? नहीं पता है। उनका कोई नाम नहीं है — वो आप हो, द कॉमन मैन।
हाँ हमें महान बनना है। हाँ, हमें जीतना भी है। हाँ, सीमा पार से दुष्टता होती है, हमें उस दुष्टता को हराना भी है निश्चित रूप से हराना है। पर बुद्धि के साथ, विवेक के साथ। हमें समस्या की जड़ पर पहुँचकर जड़ को ही उखाड़ देना है। आप कहोगे पर हम क्या कर सकते हैं? एस्कलेशन दूसरी ओर से हो रहा है। पर ये तो सवाल ही है कि हम क्या कर सकते हैं? ये सवाल तो मजबूरी का सवाल हो गया माने आप कह रहे हो कि अब आप लड़ते रहने के लिए मजबूर हो। जो लड़ते रहने के लिए मजबूर है उसने तो पहले ही मजबूरी माने गुलामी स्वीकार कर ली। अगर गुलामी स्वीकार ही कर ली है तो अब लड़ाई किस लिए कर रहे हो? जो स्वीकार कर चुका है कि मैं तो गुलामी हूँ। वो लड़ किस ले रहा है? लड़ा तो आजादी के लिए जाता है ना? आप कह रहे हो अब मैं मजबूर हूँ। एस्कलेशन दूसरी तरफ से हो रहा है। आप मजबूर हो माने विवश हो, हेल्पलेस हो। और अगर आप हेल्पलेस हो ये मान ही लिया है तो अब लड़ाई क्या है? फिर तो आप हार ही गए। जो हेल्पलेस हो गया उसने तो हार स्वीकार ही कर ली।
कुतर्क बिल्कुल उठ सकते हैं। मैं ये कह रहा हूँ आप में से बहुत लोगों के मन में आ रहा है। तो क्या करें? उनको चढ़ने दे? हम लड़ाई छोड़ दें? उनको हत्याकांड करने दें? नहीं ये तो मैं नहीं कह रहा। हम बिल्कुल रोकेंगे उन्हें, रोकना चाहिए रोकना ही धर्म है। मैं बात उनके संदर्भ में कर रहा हूँ जो हमें मीडिया में आकर के चिल्लाते हुए दिखाई दे रहे हैं कि — ललकार, उद्घोष, यलगार, काट दो, फाड़ दो। ऐसे मत बन जाओ।
जब युद्ध आवश्यक भी हो और युद्ध कई बार आवश्यक होता है, हम मानते हैं। जब युद्ध आवश्यक भी हो तो उसको कहो इट इज़ अ नेसेसरी इविल। इट इज़ नेसेसरी बट इट इज़ अ नेसेसरी इविल। दोनों बातें याद रखनी है कि आवश्यक तो है पर इविल भी है। इसका मतलब ये है कि अगर हमने युद्ध शुरू भी करा है तो लगातार इसी प्रयास में रहेंगे कि जितनी जल्दी हो सके युद्ध को रोक भी दें। हम कायर नहीं है कि लड़ नहीं सकते। तो लड़ेंगे जब जरूरत आ जाएगी जरूर लड़ेंगे और मुंहतोड़ लड़ेंगे। लड़ेंगे बिल्कुल लड़ेंगे। लेकिन भीतर ही भीतर जानते भी रहेंगे कि वॉर एक इविल चीज़ तो है ही। जितनी जल्दी हो सके, जिन तरीकों से हो सके खोजो कि इसको रोका कैसे जा सकता है। वॉर मंगरिंग नहीं करेंगे, वॉर रोकने का प्रयास करेंगे। भले ही हम ही ने शुरू करी हो, भले ही हमारे ऊपर थोपा गया हो युद्ध। लड़ेंगे लेकिन लड़ते-लड़ते भी सोचेंगे यही कि, क्या इसको किसी तरह से जल्दी खत्म करा जा सकता है? ये है। बात समझ में आ रही है?
जरूर लड़ेंगे लेकिन इसलिए नहीं लड़ेंगे कि लड़ते ही जाएँ। बिल्कुल संपूर्ण न्यूक्लियर विनाश तक लड़ते ही चले जाएँ। इसलिए नहीं लड़ेंगे। लड़ेंगे पर लड़ते-लड़ते भी लगातार भाव यही रहेगा कि किस तरह से इसको रोका जाए। बड़ी जीत पाएँ। बड़ी जीत।
प्रश्नकर्ता: सर आज का जो दौर चल रहा है वो काफी ज़्यादा मिसइनफॉरमेशन का युग चल रहा है। अभी कल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने संसद में अपना स्टेटमेंट दिया कि हमने तीन जो है राफेल जेट को हमने गिरा दिया और वो न्यूज़ जो है उसको अल्जज़ीरा, बीबीसी, न्यूयॉर्क टाइम्स जो है वो सब प्रकाशित कर रहे हैं उसको। तो मेरा ये सवाल है कि क्या झूठ इतने पैमाने पर और इतने दृढ़ता के साथ आगे ये आ रहा है। मतलब इसको क्या हम कैसे रोक सकते हैं?
आचार्य प्रशांत: तुम ये मत देखो कि झूठ बोला जा रहा है, झूठ आ रहा है। ये देखो कि झूठ का निशाना तुम हो। वो झूठ तुम्हें बेवकूफ बनाने के लिए बोला जा रहा है। ये जो पूरा तमाशा चल रहा है, इसकी ऑडियंस तुम हो, तुम्हें बेवकूफ बनाना है। इसलिए ये झूठ बोले जा रहे हैं। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री झूठ बोल रहे हैं और वो झूठ किससे बोल रहे हैं? वो अपने देश की जनता से झूठ बोल रहे हैं। छत्तीस तो कुल राफेल हैं भारत के पास। तीन गिर गए — माने 10% गिर गया। किसी को पता नहीं चलेगा? कोई एविडेंस नहीं मिलेगी? राफेल डिसॉल्ट के साथ कॉन्ट्रैक्ट है मेंटेनेंस का, उन्हें नहीं पता चलेगा? सेटेलाइट इमेजरी नहीं आएगी? जहाँ पर मलवा गिरेगा वहाँ पर दिखाई नहीं देगा कि गिरा हुआ है?
पाकिस्तान के पीएम खुला झूठ बोल रहे हैं। और किससे बोल रहे हैं? अपनी जनता से बोल रहे हैं। इससे मतलब समझो। युद्ध तुम्हारे विरुद्ध लड़ा जा रहा है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अपनी ही जनता के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं। बम कहीं भी और गिर रहा हो, गिराया अपनी पब्लिक पर जा रहा है। क्योंकि बेवकूफ किसको बनाना है ले दे के? अपनी पब्लिक को बनाना है क्योंकि वो बम किसके पैसे का था? पब्लिक के पैसे का था। वो पीएम के पैसे का थोड़ी बम था। आज ड्रोन स्ट्र्राइक्स हुई है। वो कामीकाज़े ड्रोनस हैं। सुसाइडल ड्रोनस हैं, वो बने ही ऐसे हैं कि वो जाकर गिरेंगे। तो जब गिर गए हैं तो कह रहे हैं हमने पचास ड्रोन मार गिराए।
पाकिस्तान पर भारत ने ड्रोन हमला करा है। ये कौन से ड्रोन हैं? ये सुसाइड ड्रोनस हैं जो कि जाते हैं, बहुत छोटे ड्रोनस होते हैं बहुत कम पैसे में बनते हैं। ये वन टाइम यूज़ वाले होते हैं। ये जाएँगे और अपने डेस्टिनेशन पर एक्यूरेटली गिर जाएँगे छोटे हैं, तो बहुत प्रिसीजन के साथ गिरते हैं, तो गिर गए हैं। वहाँ उनकी आर्मी और मीडिया और सारे राजनेता कह रहे हैं मलवा दिखा-दिखा के ड्रोन का कि देखो हिंदुस्तान के ड्रोन थे हमने गिरा दिए। बात को समझो। बेवकूफ किसको बनाया जा रहा है? बेवकूफ जनता को बनाया जा रहा है। युद्ध सरकारें हमेशा लड़ती हैं एक दूसरे के खिलाफ नहीं अपनी ही जनता के खिलाफ। इसको पूरा एक तमाशा एँटरटेनमेंट बना दिया गया है ताकि तुम कोई सवाल ना पूछो। तुम्हारे भीतर बस एक भावना बढ़ जाए कि लड़ो, लड़ो।
उनको भी तो अपनी पब्लिक को बताना है ना कि हिंदुस्तान आया, इतनी मिसाइलें गिरा दी ये कर दिया, ये सब है तो तुमने क्या किया? तो तुमने क्या किया? तुमने वहाँ पे जाकर बता दिया हमने इनके पाँच मार दिए और पाकिस्तान में सचमुच लोगों को यही लग रहा होगा कि पाँच गिरा दिए हैं हिंदुस्तान के जहाज। बताओ क्यों? क्योंकि हिंदुस्तान के सारे चैनल, अकाउंट सब पाकिस्तान ने ब्लॉक कर रखे हैं। ये ब्लॉक क्यों करेगा? ये समझो ताकि तुम्हारे पास बस वही सूचना पहुँचे जो तुम्हारी सरकार तुम तक पहुँचाना चाहती है। तो पाकिस्तानियों के पास कोई तरीका नहीं है किसी भी हिंदुस्तानी चैनल को या सोशल मीडिया को या पब्लिकेशन को एक्सेस करने का। उन्हें ले देकर उन्हीं बातों में यकीन करना है जो बातें उनकी सरकार उनको बता रही है। उनकी सरकार उनको ये बताएगी कि फतह हमारी हुई है।
पाकिस्तानी आज तक ये मानते हैं कि 1965 में उनकी जीत हुई थी। वो 1965 में जब युद्ध खत्म हुआ था उस दिन को डे ऑफ विक्ट्री के रूप में सेलिब्रेट करते हैं, आज भी। कहते हैं हम जीते थे। क्योंकि उनको यही नैरेटिव बताया गया है उनकी सरकार और उनके मीडिया द्वारा। ले दे के बेवकूफ किसको बनाया जाता है हर हाल में? — आम आदमी को और आम आदमी को समझ में नहीं आता। वो झुनझुना बजा रहा है उसको लग रहा है एँटरटेनमेंट चल रहा है, वाह बढ़िया है ये देखो, ये ऐसे-ऐसे रॉकेट जा रहा है, ये हो रहा है वो हो रहा है, वीडियो गेम है?
आप पाकिस्तान की इतिहास की किताबें पढ़ेंगे आपका सर चकरा जाएगा कि लिखा क्या हुआ है। उनमें गांधी, नेहरू सब दुष्ट इंसान हैं और जिन्ना एक हीरो हैं, एक सेवियर हैं। और मुसलमान अलग इसलिए हुए क्योंकि हिंदुओं ने उन पर बहुत अत्याचार किए तो अंत में मुसलमानों को किसी तरह उनका एक अलग देश मिला। आप जाकर देखो ना वहाँ ये नैरेटिव वहाँ छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। बेवकूफ किसको बनाया जा रहा है? छोटे बच्चों तक को बेवकूफ बनाया जा रहा है। बेवकूफ हमेशा आम जनता को ही बनाया जाता है। और आम जनता पैसे दे देकर बेवकूफ बनती है। वो कहती है मैं और पैसे दूँगी, मुझे और बेवकूफ बनाओ। हमारे ही पैसों से हमें बेवकूफ बनाओ। हमें बेवकूफ बनाओ ख़ुद महान बन जाओ।
आप जो कहानी लेकर चल रहे हो पाकिस्तान जाओगे वहाँ कहानी इससे बिल्कुल अलग है। और आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि वहाँ क्या कहानी चल रही है। अभी तक तो उन्होंने यही बोला था कि पाँच भारतीय जहाज गिरा दिए हैं। हो सकता है अब कल बोलते 15 गिरा दिए क्योंकि आज रात भी बमबारी चल ही रही है। मिसाइल बाजी भी चल रही है। जब 2019 में हुआ था स्ट्राइक्स तो यही नहीं हुआ था कि हमारी ओर से जो ये अभिनंदन वर्थमान उधर पी.ओ.डब्ल्यू. बने थे।
पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का या किन्ही मंत्री का पहले बयान आया था कि हमने दो भारतीय पायलट पकड़ लिए हैं। दो पकड़ लिए हैं। उन्होंने झूठ नहीं बोला था दूसरा था, मालूम है दूसरा कौन था? वो पाकिस्तानी था। और वो, वो था जिसका जो एफ 16 था उसको अपने मिग 21 से अभिनंदन वर्थमान ने ही गिराया था। तो मिग 21 से एफ 16 को भी गिराया था और वो गिरा था तो उसका भी जो पायलट था वो भी गिरा था। उसको भी उन्होंने सोचा कि ये हिंदुस्तानी पायलट ही है। पर वो पूरा छुपा गए कि उनका एफ 16 गिराया गया है। उन्होंने अपनी जनता को बेवकूफ बना दिया कि हमने तो भारत का प्लेन गिरा दिया। उन्होंने ये नहीं बताया कि साठ की टेक्नोलॉजी वाले मिग 21 बाइसन ने वो बहुत पुराना जहाज है — मिग 21 वो पहला सुपरसोनिक जहाज था। बोले उस टेक्नोलॉजी वाले ने तुम्हारे लेटेस्ट एफ 16 को गिरा दिया है। ये बात पाकिस्तान पूरी छुपा गया।
और गिर ही नहीं गया, आपका तो जो पायलट गिरा था वो बच गया। उधर उन्होंने पकड़ लिया, हिरासत में ले लिया। फिर हमने दबाव डाला, छुड़वा भी लिया। ये सब हो गया। उनका तो जो गिरा था पायलट उसकी मौत हो गई। तो पहला बयान आया दो थे फिर पलट गए। बोले नहीं एक ही, एक ही, एक ही है। क्योंकि तब तक पता चल गया ये तो हमारा ही है। बेवकूफ हमेशा जनता को ही बनाया जाता है। आम पाकिस्तानी नहीं मानेगा आज भी कि उनका एफ 16 गिराया गया था। और जो बात पाकिस्तान पर लागू होती है, वो बात हिंदुस्तान पर भी लागू होती है, वो बात चीन पर भी लागू होती है। सब सरकारें अपनी-अपनी जनता को बेवकूफ बनाती ही बनाती हैं। वही बात अमेरिका पर भी लागू होती है।
ट्रंप ने क्या करा है कि क्लाइमेट चेंज से संबंधित सोशल मीडिया ब्लॉक कर दूँगा, वेबसाइट्स ब्लॉक कर दूँगा, यूनिवर्सिटीज़ को पढ़ाने नहीं दूँगा, सेमिनार, कॉन्फ्रेंसेस होने नहीं दूँगा — ये किससे सच्चाई छुपा रहे हैं ट्रंप? अपनी ही जनता से। सब सरकारें अपनी ही जनता को बेवकूफ बनाती हैं। चीन में गूगल नहीं चलता, बताओ क्यों? चीन में गूगल नहीं चलता, क्या चलता है? गूगल क्यों बंद कर रखा है? — सच पता चल जाएगा वहाँ की जनता को। चलने ही नहीं देते। ले देकर बलि का बकरा आम आदमी ही बनता है।
पहलगाम में जो हुआ उसके जस्टिफिकेशन के तौर पर पाकिस्तानी आवाम को ये बोला गया है कि ये तो हमने नहीं करा। लेकिन जो बलूचिस्तान में पचास पाकिस्तानी आर्मी को मार दिया था बलूच उग्रवादियों ने, वो इंडिया ने करवाया था। तो इसीलिए जब वो बार-बार बोलते हैं ना पाकिस्तान की ओर से आता है कि अनप्रवोक्ड अग्रेशन है इंडिया की ओर से, अनप्रवोक्ड, अनप्रवोक्ड है। उन्हें सचमुच लगता है अनप्रवोक्ड है। उन्हें माने जनता को। सेना और राजनेता तो उनके जानते हैं कि वो झूठ बोल रहे हैं। पर उन्होंने जनता को यही बताया है अपनी, कि पहलगाम में जो कुछ हुआ उसमें हमारा कोई हाथ नहीं था। हमने नहीं करा है। हाँ, इंडिया ने जरूर करा है। बलूचिस्तान में पचास पाकिस्तानी आर्मी के जवान मारे गए थे अभी कुछ ही समय पहले इसी साल, बोल रहे वो इंडिया ने करवाया था। बलूच रिपब्लिकन आर्मी है, बलूच लिबरेशन आर्मी है। उसकी फंडिंग इंडिया करता है।
आप गीता पढ़ते हो। वहाँ श्री कृष्ण आपको बार-बार क्या बोलते हैं? तीन के बहकावे में मत आना — समय, समाज, संयोग। बोलते हैं ना कृष्ण। अब समझ में आ रहा है कैसे बहकाया जाता है? ये जगत है ना यह अपने आप में एक प्रोपेगेंडा मशीनरी है और मुक्त वो है जो अपने ऊपर किसी प्रोपेगेंडा को हावी नहीं होने देता।
आप जाकर के ब्रिटेन के लोगों को साबित करके दिखा दो कि उन्होंने भारत पर जुल्म करा है। करके दिखा दो। मालूम है वहाँ क्या चलता है। आप हैरान रह जाओगे। ब्रिटेन में पहली बात तो जो कॉलोनियल हिस्ट्री है वो पढ़ाई नहीं जाती है बच्चों को और जब पढ़ाई जाती है तो पता है क्या बोल के पढ़ाई जाती है? हमने भारत पर एहसान करा, भारत एक बहुत ही पिछड़ा हुआ बर्बर देश था और हमारे ऊपर वाइट मैन्स बर्डन था। वाइट मैन्स बर्डन मतलब जो गोरा आदमी है उसके ऊपर ये दायित्व है कि वो इन अशिक्षित भूरे काले लोगों को जाकर सभ्य करें। तो कहते हैं कि भारत तो पिछड़ा हुआ देश था। हमने एहसान करा इनके पास जाकर। इनको रेलवे हमने दी। इनको आधुनिक चिकित्सा और टेक्नोलॉजी हमने दी। इनको पोस्टल सिस्टम हमने दिया। इनको सड़कें हमने दी। इनको यूनिवर्सिटीज़ हमने दी। इनको ढंग के नियम कायदे हमने दिए। आप जाओगे ब्रिटेन में। तो वहाँ ये हिस्ट्री पढ़ाई जाती है, वहाँ की जनता सचमुच यही मानती है।
आप कहते हो कि ब्रिटेन के लोग आए यहाँ से लूट के ले गए। वो कहते हैं लूट के नहीं ले गए हम तुमको दे के गए हैं। कहते पिछड़े गवार भारतीय हो हमने एहसान करा है तुम पर राज करके क्योंकि हमने ही तुम्हें सभ्य बनाया नहीं तो अपनी हालत देखो और वो अपने पक्ष में बहुत दलीलें देते हैं। बोलते हैं तुम्हारा फीमेल लिटरेसी रेट जीरो था। हमने नियम कायदे बनाए जिसके कारण तुम्हारी महिलाएँ पढ़ पाई। तुम्हारे जो अपने पूरे विधि विधान चलते थे वो ऐसे थे कि दलितों को कोई अधिकार नहीं था। हमने देखो दलितों को अधिकार दिया। तो बताओ हमने भारत पर एहसान करा कि नहीं करा? उनको ये हिस्ट्री पता है। वो क्या छुपा जाएँगे? वो आंकड़े छुपा जाएँगे कि रिपैट्रियेशन कितना हो रहा है? लूट कितनी हो रही है? कि भारत से कितने बिलियन पाउंड तुमने लूटे। ये बात कोई तुमसे इंग्लिश मैन नहीं करेगा। वो बाकी सारी बातें करेंगे। क्योंकि ये बात उनको कभी बताई ही नहीं गई है। सब सरकारें अपने लोगों से झूठ बोलती हैं।
अमेरिका में भी जब ये सब एबोलिशन ऑफ स्लेवरी और सब चला था ना वहाँ पर। वास्तव में अमरिकी अपने आप को महान वो मानते हैं यह कह के कि हमने स्लेवरी को बंद करा। हमारे यहाँ वॉर हुआ, गृह युद्ध हुआ और ये सब करके देखो हमने अपना नुकसान सह करके हमने फाइनली गुलामी की प्रथा — तो वो प्रथा चला कौन रहा था? तुमने एहसान किस पे किया है? तुमने एहसान किस पर करा है भई? अभी पिछले कुछ दशकों तक तुमने अश्वेतों को वोटिंग राइट भी नहीं दे रखे थे। तुमने एहसान किस पर करा है? पर अमेरिकन भी यही मानते हैं कि हमने काले लोगों पर एहसान करा है।
बांग्लादेश की किताबों में 1971 का जो वॉर है, तुम्हें क्या लग रहा है? उनमें ग्रैटिट्यूड् है कि भारत ने आकर के हमें आजादी में मदद करी। बांग्लादेश की किताबों में 1971 की लड़ाई में भारत बिल्कुल हाशिए पर है, मार्जिन्स पर। वो कहते हैं सब लड़ाई हमने ख़ुद ही लड़ ली, मुक्तिवाहिनी थी हमारी। और वह हमारी एक इंडिजिनस स्ट्रगल थी जिससे हमने पाकिस्तान को यहाँ से भगा दिया। भारत ने क्या करा? भारत ने कुछ नहीं करा। तभी तो ऐसा इतिहास पढ़-पढ़ के अब वो तैयार हो रहे हैं कि हमें भारत से अब लड़ाई करनी है। क्योंकि वहाँ की सरकार भी अपने एजेंडा के चलते अपने लोगों को झूठ बोल रही है। उन्हें बता ही नहीं रही कि बांग्लादेश हो ही नहीं सकता था बिना भारत के।
ये जगत है भाई माया, माया माने क्या? — झूठ। तभी तो आदि शंकराचार्य — जगत मिथ्या अब समझ में आ रहा है जगत मिथ्या माने क्या। यहाँ जो कुछ तुम्हें दिखाई सुनाई दे रहा है सब मिथ्या ही है डिफॉल्ट यही है कि झूठ मानना। जगत मिथ्या माने ये नहीं कि ये सब नकली है, जगत मिथ्या इंद्रियों से जो भी तुम्हें मिल रहा है इनपुट आ रहे हैं, जरा इनके प्रति सजग सतर्क रहो स्केप्टिकल रहो। कोई यहाँ नहीं बैठा है सच तुम तक लाने के लिए।