मृत्यु के बाद क्या होता है? || (2019)

Acharya Prashant

6 min
348 reads
मृत्यु के बाद क्या होता है? || (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मेरी मृत्यु के बाद मेरी आत्मा का क्या होगा?

आचार्य प्रशांत:

आत्मा के साथ कभी कुछ नहीं होता। आत्मा अद्वैत है। कौन आएगा उसके साथ कुछ करने, जब दूसरा कोई है ही नहीं?

क्या कहीं से सुनकर आए हो ये सब – आत्मा की यात्रा वगैरह, कि आत्मा भी यात्रा करती है? जो यात्रा होती होगी, वो भी किसी गति से ही होती होगी। कितने किलोमीटर प्रति घण्टे, ये भी बता देना। सॉनिक है, या अल्ट्रा-सॉनिक है, ये सब भी बताकर रखो आत्मा की यात्रा के बारे में।

यात्रा तो हमेशा किसी सीमित वस्तु की होती है, जगत में ही कहीं-से-कहीं तक की होती है, और सीमित गति होती है। और एक सज्जन हुए हैं जो हमें ये भी बता गए हैं कि जगत में जो भी वस्तु यात्रा करेगी, उसकी गति प्रकाश की गति से ज़्यादा नहीं हो सकती। तो ये तो तुमने आत्मा के ऊपर भी बाध्यता डाल दी। अगर वो यात्रा करेगी तो उसके ऊपर भी एक नियम लग गया, पर आत्मा के ऊपर तो कोई नियम लगता नहीं।

कभी ज़रा-भी विचार नहीं करते न कि क्या सोच रहे हैं, किस बात को मान लिया, क्या धारणा बना ली?

तुम पूछो कि तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारे दोस्त का क्या होगा, तो मैं बता सकता हूँ। उसका कुछ नहीं होगा, दो दिन रोएगा, फिर मौज करेगा। पर तुम पूछो कि तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारा क्या होगा, तो ये सवाल ही बेतुका है। तुम अपने-आप को जितना जानते हो, उसके नष्ट हो जाने को ही तुम कहते हो – ‘मृत्यु’। तो एक तरफ़ तो तुम कह रहे हो कि – “मैं नष्ट हो गया”, दूसरी तरफ़ पूछते हो कि- “मेरा क्या होगा?”

ये कैसा सवाल है?

या तो तुमने अपने-आप को थोड़ा-भी ऐसा जाना होता, जो अविनाशी होता, फिर तुम कहते कि – “मेरे बाद क्या शेष रहेगा?” तो तुक भी बनता। पर तुमने अपने-आप को जितना भी जाना है, वो मृत्युधर्मा है, ठीक?

तुम्हारे पास ऐसा कुछ भी है, जो आग में ना जले, जिसे समय ना मिटा दे? कुछ है ऐसा, बताओ? जब तुम्हारे पास ऐसा कुछ नहीं है, तुम्हारे ही अनुसार तुम्हारे पास ऐसा कुछ नहीं है, तो बताओ मृत्यु के बाद क्या बचेगा?

कभी तुमने किसी ऐसे का संसर्ग किया है जो समय के पार का हो, जो संसार के पार का हो? अगर किया होता, तो तुम जानते होते कि क्या है वो, जो कभी मरता नहीं। पर जब तुमने उसके साथ कभी संसर्ग किया ही नहीं, तो तुम्हें कैसे बताएँ कि मृत्यु के बाद क्या है और क्या नहीं है?

जहाँ तक तुम्हारी ‘इस’ व्यवस्था की बात है, जो कुर्सी पर बैठी हुई है, ये पूरी व्यवस्था पूर्ण रूप से राख हो जानी है। किसी मुग़ालते में मत रहना, कोई दिव्यस्वप्न मत पाल लेना कि – हम मर भी जाएँगे, तो ‘हमारा’ कुछ बच जाएगा। तुम्हारा कुछ नहीं बचने वाला, तुम राख ही हो जाने वाले हो। जो बचेगा वो कुछ और है, पर जो बचेगा उससे तुमने कोई सम्बन्ध बनाया नहीं।

"गुण गोबिंद गायो नहीं, जनम अकारथ कीन्ही।"

पूरा सम्बन्ध अपना हमने बस उससे बना रखा है, जो मरेगा। जो मुर्दाघर से आगे नहीं निकल सकता, जो शमशान से आगे नहीं जा सकता। और फिर हम पूछते हैं कि – “मेरा क्या होगा?”

पूछते ही इसीलिए हो क्योंकि जानते हो कि ग़लत जगह रिश्ता बना रखा है, इसीलिए डरते हो कि – मेरा क्या होगा। और ये जो ग़लत जीवन है, ग़लत रिश्तों का, इसको प्रोत्साहन कहाँ से मिलता है? इसको प्रोत्साहन मिलता है उन सब सिद्धांतों और कहानियों से, जो तुम्हें बताते हैं कि – “तुम मर भी जाते हो तो तुम्हारे भीतर से कुछ निकलकर के इधर-उधर डोलता रहता है, और वो बच जाएगा।”

कुछ नहीं डोलता, धुआँ है! मर कर भी प्रदूषण करके जाओगे, और कुछ नहीं होगा। धुआँ भी इधर-उधर कुछ दिन डोलेगा, बाकी उसमें भी अणु-परमाणु हैं। वो भी इधर-उधर जाकर के किसी से लिप्त हो जाएँगे। मरोगे तो बहुत सारा कार्बन है शरीर में, सबसे ज़्यादा कार्बन ही है, उसकी कार्बन-डाइऑक्साइड बन जाएगी। उसको कोई पेड़ पी जाएगा, या वो कार्बन-डाइऑक्साइड समुद्र में चली जाएगी, उसको समुद्र सोख लेगा। या वो अगर हवा में ही रह गयी, तो ग्लोबल वॉर्मिंग करेगी।

यही होगा तुम्हारा।

इस सब में तुम्हें आत्मा कहाँ दिख रही है, बता दो?

आत्मा कोई शरीर के अंदर की चीज़ होती है क्या कि तुम मरोगे, वो शरीर से निकलेगी, और कहीं और घुस जाएगी? आत्मा कोई इस संसार के भीतर की चीज़ है? आत्मा कोई पदार्थ है, कोई लहर है, कोई तरंग है?

तो फिर क्या है जो इस संसार में बचेगा?

तुम ही संसार हो। जिस पल तुम नष्ट हुए, उस पल तुम्हारे लिए संसार और समय दोनों नष्ट हो जाते हैं।

वास्तव में ये प्रश्न बेतुका है कि – मृत्यु के बाद क्या बचेगा?

जब कोई पूछे कि – “मृत्यु के बाद क्या बचेगा,” तो पूछो, “कहाँ?” क्योंकि तुम मरे तो, संसार मरा।

तो अब कुछ बचेगा भी, तो कहाँ बचेगा?

तुम कहते हो, "मृत्यु के बाद क्या बचेगा?" ‘बाद’ माने क्या? तुम मरे तो समय ही मर गया, अब पहले या बाद की बात ही व्यर्थ है। जब तक जी रहे हो, तब तक स्मृति है। स्मृति है, तो मन है। मन होता है, जो अतीत और भविष्य की बात कर सकता है। जब मन ही नहीं बचा, तो भविष्य कैसा बचा? जब भविष्य ही नहीं बचा, तो ये ‘बाद’ की क्या बात है? जिस क्षण तुम मरते हो, उस क्षण तुम्हारे साथ-साथ तुम्हारा समय भी मर जाता है। अब भविष्य कहाँ है?

तो अध्यात्म जब कहता है, “स्वयं को जानो”, तो सुनने में बड़ी छोटी-सी बात लगती है, पर बड़ी दूरगामी है। स्वयं को नहीं जाना, तो दुनिया भर के व्यर्थ लफड़ों-पचड़ों में फँसे रहोगे, और इधर-उधर की बात करते रहोगे।

This article has been created by volunteers of the PrashantAdvait Foundation from transcriptions of sessions by Acharya Prashant
Comments
LIVE Sessions
Experience Transformation Everyday from the Convenience of your Home
Live Bhagavad Gita Sessions with Acharya Prashant
Categories